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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के 9वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन

लखनऊ: 26.08.2021

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आज यहां उपाधियां प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को मैं हृदय से बधाई और आशीर्वाद देता हूं। पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की विशेष उपलब्धियों के लिए मैं उनकी सराहना करता हूं। विद्यार्थियों की सफलता में सहायता और प्रेरणा प्रदान करने वाले अध्यापकों, अभिभावकों तथा विश्वविद्यालय की टीम के अन्य सदस्यों को भी मैं बधाई और साधुवाद देता हूं।

मुझे दिसंबर, 2017 में आपके विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल होने का अवसर मिला था। यह एकमात्र विश्वविद्यालय है जहां किसी समारोह में, मैं दूसरी बार आया हूं।आपका यह विश्वविद्यालय, बाबासाहेब के विचारों के अनुरूप, शिक्षा के माध्यम से अनुसूचित जातियों और जनजातियों के समावेशी विकास हेतु विशेष योगदान दे रहा है।इन वर्गों के विद्यार्थियों के लिए इस विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु 50 प्रतिशत सीटों का आरक्षण तथा अन्य सुविधाओं के विशेष प्रावधानों से ऐसे विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा के अवसर बढ़े हैं। साथ ही, इन विद्यार्थियों में से उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को अलग से पदक प्रदान करके प्रोत्साहित किया जाना भी एक सराहनीय पहल है। ये सभी प्रयास आप सबके इस विश्वविद्यालय की समावेशी संस्कृति को और मजबूत बनाएंगे। इस प्रकार, आप सबका यह विश्वविद्यालय समता मूलक समाज के बाबा साहेब के स्वप्न को पूरा करने की दिशा में सराहनीय योगदान दे रहा है।

मुझेयह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सन 2017के मेरे सुझावों के अनुसार आपने एल्यूम्नाई एसोसिएशन की स्थापना सहित कई कदम उठाए हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस विश्वविद्यालय द्वारा ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे विद्यार्थियों को शिक्षा व रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त हो सकेंगे। इन प्रयासों के लिए मैं कुलाधिपतिडॉक्टर प्रकाश बरतूनिया, कुलपति प्रोफेसर संजय सिंह तथा विश्वविद्यालय की पूरी टीम की सराहना करता हूं।

उत्तरप्रदेश की अपनी पिछली यात्रा के दौरान इसी वर्ष जून में मुझे डॉक्टर भीमराव आंबेडकर सांस्कृतिक केंद्र के शिलान्यास समारोह में सम्बोधन करने का अवसर मिला था। उस समय मैंने यह विचार व्यक्त किया था कि उस सांस्कृतिक केंद्र का आपके इस विश्वविद्यालय के साथ तालमेल बने और बाबासाहेब के विचारों को प्रसारित करने के संयुक्त प्रयास किए जाएं जिससे उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और योगदान के विषय में सबको जानकारी मिल सके। हम सब जानते हैं कि विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के संविधान के शिल्पकार होने के साथ-साथ बाबा साहेब ने हमारे बैंकिंग, इरिगेशन, इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम, लेबर मैनेजमेंट सिस्टम, रेवेन्यू शेयरिंग सिस्टम, शिक्षा व्यवस्था आदि क्षेत्रों में मूलभूत योगदान दिया है। वे एक शिक्षाविद , अर्थ-शास्त्री , विधिवेत्ता, राजनीतिज्ञ, पत्रकार, समाज-शास्त्री व समाज सुधारक तो थे ही, उन्होंने संस्कृति, धर्म और अध्यात्म के क्षेत्रों में भी अपना अमूल्य योगदान दिया है। उनके अवदान के विषय में गहन और विस्तृत अध्ययन करना राष्ट्र-निर्माण में सहायक होगा।

देवियो और सज्जनो,

लगभग एक वर्ष पहले, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020के माध्यम से भारत को एक शिक्षा-महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के अभियान का शुभारंभ किया गया है। यह शिक्षा नीति , 21वीं सदी की आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं के अनुरूप आज की युवा पीढ़ी को सक्षम बनाने में सहायक सिद्ध होगी। हमारे सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों से प्रेरणा प्राप्त करते हुए,आधुनिक विज्ञान तथा टेक्नॉलॉजी के क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने का हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य तभी सिद्ध होगा जब सभी विद्यार्थी एवं शिक्षक पूरी निष्ठा के साथ प्रयास करेंगे।

अपनी इस यात्रा के दौरान मुझे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे विशेष प्रयासों के बारे में और भी अधिक जानने का अवसर मिला है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप राज्य में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत उन्नति के लिए शिक्षा ही सबसे प्रभावी माध्यम होती है। शिक्षा के विकास हेतु किए गए इन प्रयासों की भरपूर सराहना की जानी चाहिए। इसलिए मैं राज्यपाल श्रीमती आनन् दीबेन पटेल, मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ एवं उनके अधिकारियों व कर्मचारियों की प्रशंसा करता हूं।

आज सावित्रीबाई फुले महिला छात्रावास का शिलान्यास करके मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। सावित्रीबाई फुले ने आज से लगभग 175 वर्ष पहले बेटियों की शिक्षा के लिए जो क्रांतिकारी कदम उठाए, उनका महत्व तब और भी अधिक स्पष्ट होता है जब हम तत्कालीन समाज में महिलाओं की स्थिति के विषय में अध्ययन करते हैं। आज हमारी बेटियां हमारे समाज और देश का गौरव पूरेविश्व में बढ़ा रही हैं। हाल ही में सम्पन्न हुए ओलंपिक खेलों में हमारी बेटियों के प्रदर्शन से पूरे देश में गर्व की भावना का संचार हुआ है। आज प्रत्येक क्षेत्र में हमारी बेटियों ने अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज की है। समान अवसर मिलने पर प्राय: हमारी बेटियां हमारे बेटों से भी आगे निकल जाती हैं। आज के इस समारोह में भी पदक विजेताओं में बेटियों की संख्या अधिक है। इस परिवर्तन को एक स्वस्थ समाज और उन्नत राष्ट्र की दिशा में बढ़ते हुए कदम के रूप में देखा जाना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

आज पूरे विश्व में, जीवन के लगभग सभी पहलुओं में अभूतपूर्व परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसे समय में विद्यार्थियों को सचेत और जागरूक रहते हुए आज के अत्यंत गतिशील वैश्विक परिदृश्य में अपना स्थान बनाना है। साथ ही, एक बेहतर समाज और अपने देश के निर्माण में योगदान देना है। बाबासाहेब की पुस्तकों, आलेखों और भाषणों में आप सबको ऐसे अनेक मार्ग दर्शक और प्रेरक उल्लेख मिलेंगे जो आपके लिए जीवन-निर्माण व राष्ट्र-निर्माण में सहायक होंगे।

मुंबई में, समाज-सेवी महिलाओं के एक समूह के समक्ष भाषण देते हुए, बाबासाहेब ने ज्ञान और शील के संबंध को स्पष्ट करते हुए अपने विचार व्यक्त किए थे। बाबासाहेब के उन विचारों को मैं उन्हीं के शब्दों में साझा करता हूं। उन्होंने कहा था:

"हम सबको अपना मन पवित्र करना चाहिए। हमारा झुकाव सदाचार की ओर होना चाहिए। ....शिक्षा के साथ-साथ मनुष्य का शील भी सुधरना चाहिए। शील के बगैर शिक्षा की कीमत शून्य है। ज्ञान तलवार की भांति है। मान लीजिए किसी व्यक्ति के हाथ में तलवार है। उसका सदुपयोग अथवा दुरुपयोग करना उस व्यक्ति के शील पर अवलंबित है। उस तलवार से वह किसी का खून भी कर सकता है अथवा किसी की रक्षा भी कर सकता है। ज्ञान की भी वही स्थिति है। कोई शिक्षित व्यक्ति जिसका शील अच्छा है वह अपने ज्ञान का उपयोग लोगों के कल्याण हेतु करेगा। परंतु यदि उसका शील ठीक नहीं है, तब वह अपने ज्ञान का उपयोग लोगों के अकल्याण में करेगा। ....जिन्हें स्वार्थ के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखता है, जिन्हें थोड़ा भी परमार्थ करना नहीं आता है ऐसे लोग केवल शिक्षित हो गए तो क्या लाभ हुआ?

प्यारे विद्यार्थियो,

आप सबके विश्वविद्यालय के प्रतीक चिह्न में तीन सारगर्भित शब्द दिए हुए हैं। वे शब्द हैं प्रज्ञा, शील और करुणा। भगवान बुद्ध के आदर्शों को व्यक्त करने वाले इन शब्दों में भारत के व्यापक जीवन-मूल्य समाहित हैं। हम सबको, विशेषकर युवा पीढ़ी को, इन जीवन-मूल्यों को आचरण में ढालने की आवश्यकता है।

शिक्षा अथवा विद्या की सार्थकता के विषय में समझाते हुए बाबासाहेब ने भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिपादित प्रज्ञा, शील और करुणा, इन आदर्शों की बहुत ही सरल व्याख्या प्रस्तुत की थी। उन्होंने कहा था कि विद्या के साथ-साथ प्रज्ञा यानि समझदारी, शील यानि सदाचरण और करुणा यानि समस्त मानवजाति के प्रति प्रेम-भाव की भावना का होना आवश्यक है।

प्यारे विद्यार्थियो,

बाबासाहेब ने भगवान बुद्ध, संत कबीर और जोतिबा फुले को अपना गुरु माना था। संत कबीर की वाणी के अथाह सागर से बाबासाहेब ऐसे उद्धरणों को चुनते थे जो व्यक्ति और समाज को सीधे-सीधे समझ में आएं और उपयोगी हों। बाबासाहेब को संत कबीर का ऐसा ही एक कथन बहुत प्रिय था:

कबीर कहे, कुछ उद्दम कीजे,

आप खाय, औरन को दीजे।

इस पंक्ति के माध्यम से बाबासाहेब ने उद्यमशीलता, आत्म- निर्भरता और स्वयं के उत्थान के साथ-साथ समाज के कल्याण की भावना के साथ कार्य करने की प्रेरणा दी है। बाबासाहेब कठोर परिश्रम, और स्व-रोजगार के पक्ष धर थे। उनकी आर्थिक सोच निजी उद्यम को प्रोत्साहित करने की थी। आज यदि बाबासाहेब होते तो उन्हें यह देखकर बहुत प्रसन्नता होती कि भारत के हजारों उद्यमी युवा स्व-रोजगार के प्रति उत्साहित हैं और बहुत से लोगों को रोजगार दे रहे हैं।

आज भारत में बहुत ही अच्छा स्टार्ट- अप ईको-सिस्टम है। एक आकलन के अनुसार, देश में लगभग 100 यूनिकॉर्न यानि ऐसे स्टार्ट-अप हैं जिनमें से प्रत्येक का मूल्यांकन एक बिलियन डॉलर से अधिक है। और उन सबका मार्केट कैपिटलाइज़ेशन कुल मिलाकर लगभग 18 लाख करोड़ रुपए है। यूनिकॉर्न्स की कुल संख्या के आधार पर आज भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। अधिकांश यूनिकॉर्न्स युवाओं द्वारा स्थापित हैं। यह युवा शक्ति ही हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत है। आप सब भी ऐसे युवा उद्यमियों से प्रेरणा लेकर जॉब-सीकर होने के बजाय जॉब- क्रिएटर बनने के विषय में सोचें, कार्य करें और जीवन में आगे बढ़ें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आपके विश्वविद्यालय में इनोवेशन और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए सुविचारित प्रयास किए जा रहे हैं।

आज देश की आधी से अधिक आबादी की आयु 25 वर्ष से कम है। इस ऑडिटोरियम में बैठे अधिकांश युवा भी 25 वर्ष से कम आयु के ही होंगे। मैं आशा करता हूं कि आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष में आजकल पूरे देश में चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव के बारे में यहां उपस्थित विद्यार्थी गण अवगत होंगे और किसी न किसी रूप में भागीदारी भी कर रहे होंगे। सन 2047 में जब हमारा देश आजादी की शताब्दी मनाएगा तब आप जैसे युवा देश को नेतृत्व दे रहे होंगे। मुझे विश्वास है कि आपकी पीढ़ी के प्रयासों से सन 2047 का भारत सब प्रकार के भेद-भाव से मुक्त , एक विकसित देश के रूप में प्रतिष्ठित होगा। भविष्य के उस भारत में न्याय, समता और बंधुत्व के संवैधानिक आदर्शों को हम पूरी तरह अपने व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में ढाल चुके होंगे। हम एक समावेशी विश्व व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभा रहे होंगे। ऐसे समता मूलक एवं सशक्त भारत के निर्माण के लिए आप सबको आज से ही संकल्पबद्ध होकर जुट जाना चाहिए। मैं चाहूंगा कि आप सब भारत को विकास की ऐसी ऊंचाइयों तक ले जाएं जो हमारी कल्पना से भी बहुत ऊपर हो।

मैं एक बार पुनः आप सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!