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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का वृंदावन के ‘कृष्णा कुटीर’ में संबोधन

वृंदावन :27.06.2022

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वृंदावन को मैं, राधा और कृष्ण के अलौकिक प्रेम का एक जीवंत स्मारक मानता हूं। यहां, मेरा अनेक बार आना हुआ है, परंतु पिछले कुछ समय से मेरे मन में, श्री बांके बिहारी जी के दर्शन करने और आप सभी माताओं-बहनों से मिलने की इच्छा थी। इसीलिए, आज फिर से, वृंदावन में आने का जो सुअवसर प्राप्त हुआ है उसे मैं श्री बांके बिहारी जी की विशेष कृपा मानता हूं।

वृंदावन का अर्थ है- तुलसी का वन। तुलसी स्वयं ही देवी का प्रतीक हैं। तुलसी का हर हिस्सा पवित्र और अर्पण करने योग्य है। वृंदावन के कण-कण में प्रेम और त्याग की कहानियां बसी हुई हैं। यहां राधा के दिव्य प्रेम को याद किया जाता है, तो यशोदा के मातृ-प्रेम को भी सम्मान दिया जाता है। यहां गोपियों की प्रीत का उत्सव मनाते हैं तो मीराबाई के समर्पण भाव का भी सम्मान करते हैं। यहां उपस्थित आप सभी माताओं-बहनों में भी म ुझे यशोदा मैया की ममता और मीराबाई के समर्पण के दर्शन हो रहे हैं।

परंतु, इन सबके बावजूद, सैकड़ों वर्षों से प्रचलित एक सामाजिक विकृति को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। वृंदावन और इसी जैसे अनेक स्थानों में कठोर जीवन जीने वाली बेसहारा और उपेक्षित माताओं-बहनों की पीड़ा भी हमारे समाज की एक सच्चाई है।

देवियो और सज्जनो,

हमारी संस्कृति में तो नारी को देवी और लक्ष्मी कहा गया है। यहां तक कहा गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ अर्थात् जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है। यह भी कहा गया है कि ‘गृहिणी गृहम् उच्यते’ यानि घर की स्वामिनी से ही घर बनता है। मुझे आश्चर्य होता है कि वेद-मंत्रों की रचना करने वाली लोपामुद्रा, अपाला और घोषा जैसी महिला ऋषियों वाले समाज में महिलाओं के तिरस्कार की स्थितियां कैसे बनती गईं। लेकिन, ऐसा हुआ है और यह एक कड़ुवा सच है। इस सच को हमें स्‍वीकार करना होगा।

एक लंबे कालखंड में, हमारे समाज में, अनेक कुरीतियां पैदा हो गईं। बाल-विवाह, सती-प्रथा और दहेज-प्रथा की तरह ही विधवा जीवन भी समाज की एक कुरीति है। कभी जिन महिलाओं को घर की शोभा कहा जाता हो, उन्हीं को पति की मृत्यु के पश्चात बेसहारा छोड़ दिया जाता है। ऐसे अनेक उदाहरण देखने में आए हैं, जब महिलाओं के अपने बेटे या परिवार वाले ही, उन्हें वृंदावन में बेसहारा छोड़ गए और फिर लौटकर कभी उनका हाल पूछने नहीं आए। यह सामाजिक बुराई, देश की संस्कृति पर एक कलंक है। यह कलंक जितनी जल्दी मिट सके, उतना ही अच्छा होगा।

ऐसा देखा गया है कि किसी भी कारण से पति की मृत्यु हो जाने पर, महिला के प्रति न केवल उस परिवार का, बल्कि पूरे समाज का नज़रिया बदल जाता है। उस पर अनेक प्रकार के सामाजिक बंधन लगा दिए जाते हैं। उनके प्रति किए जाने वाले उपेक्षापूर्ण व्यवहार को हर हाल में रोकने के लिए हम सब को आगे आना होगा और समाज को जागृत करना होगा।

समय-समय पर अनेक संतों और समाज-सुधारकों ने ऐसी तिरस्कृत माताओं-बहनों के मुश्किल जीवन में सुधार लाने के प्रयास किए हैं। राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और स्वामी दयानंद को कुछ हद तक सफलता भी मिली। परंतु अभी भी, इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

प्यारी माताओ और बहनो,

यदि संयोग से आपके जीवन में कोई दुर्घटना घट गई है, तो इसमें आपका तो कोई दोष नहीं। इसलिए, आप न तो स्वयं को दोषी समझें और न ही किसी को ऐसा समझने दें। आपके अंदर कोई कमी नहीं है। आपको भी समाज में पूरे सम्मान से जीने का अधिकार है। हमारा संविधान, सुप्रीम कोर्ट, उत्तर प्रदेश सरकार और समाज के लाखों संवेदनशील लोग आपके साथ खड़े हैं।

अब, धीरे-धीरे हमारा समाज बदल रहा है। शिक्षा के प्रसार और जागरूकता के बढ़ने से लोगों का नज़रिया अब पहले जैसा नहीं रहा है। कानून और न्यायालय भी आपके साथ हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2011 से आपके हक़ में आवाज बुलंद की है। सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्था आपके भरण-पोषण से लेकर उपचार की व्यवस्था में जुटी हुई है। डॉ. विंदेश्वर पाठक के प्रयासों की मैं सराहना करता हूं। अन्य अनेक व्यक्ति, सामाजिक संस्थाएं और संगठन भी सहायता के लिए आगे आए हैं। मुझे खुशी है कि मुख्यमंत्री जी ने प्रदेश की सरकार की प्रतिबद्धता भी घोषित की है।

मुझे प्रसन्नता है कि केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा, वृंदावन में निराश्रित एवं बेसहारा माताओं के लिए ‘कृष्णा कुटीर’ का निर्माण किया गया। अब, ‘कृष्णा कुटीर’ की व्यवस्था, उत्तर प्रदेश सरकार के हाथों में है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भरपूर सहयोग इस कार्य में प्राप्त है। वृंदावन की निराश्रित माताओं-बहनों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मासिक पेंशन की व्यवस्था की गई है। मुझे बताया गया है कि हमारी माताओं की समुचित देखभाल केन्‍द्र व राज्‍य सरकारें मिलकर कर रही हैं। मैं मुख्यमंत्री जी और उत्तर प्रदेश सरकार की पूरी टीम के प्रयासों की भरपूर सराहना करता हूं।

देवियो और सज्जनो,

‘कृष्णा कुटीर’ जैसे आश्रय स्थल का निर्माण, एक सराहनीय पहल है। परंतु, मैं इससे भी आगे की बात कहना चाहता हूं। मेरा विचार है कि समाज में इस प्रकार के आश्रय-गृहों के निर्माण की आवश्यकता ही नहीं पड़नी चाहिए। प्रयास तो यह होना चाहिए कि निराश्रित महिलाओं के पुनर्विवाह, आर्थिक स्वावलंबन, पारिवारिक सम्पत्ति में हिस्सेदारी, सामाजिक और नैतिक अधिकारों की रक्षा जैसे उपाय किए जाएं। और, इन उपायों के माध्यम से हमारी माताओं-बहनों में स्वाबलंबन तथा स्वाभिमान को बढ़ावा दिया जाए।

देवियो और सज्जनो,

समाज के इतने बड़े और महत्वपूर्ण वर्ग को, यूं ही उपेक्षित नहीं छोड़ा जा सकता है। हम सभी को मिलकर, इन तिरस्कृत एवं उपेक्षित महिलाओं के प्रति सामाजिक जागरूकता बढ़ानी होगी। सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक मान्यताओं और विरासत से जुड़े अधिकारों में किए जा रहे भेदभाव को दूर करना होगा। संपत्ति के बंटवारे में भेद-भाव और बच्चों पर अधिकार से महिलाओं को वंचित किए जाने की समस्याओं पर ध्यान देना होगा। तभी, हमारी ये माताएं-बहनें, जीवन की त्रासदी और विडम्बना से मुक्त होकर आत्म-संतोष, आत्म-सम्मान तथा आत्म-विश्वास से परिपूर्ण जीवन जी सकेंगी।

मैं समाज के सभी जिम्मेदार नागरिकों से भी अपील करता हूं कि सामाजिक जीवन से दूर हो गई इन माताओं को समाज की मुख्य-धारा में शामिल किया जाए। समाज के साथ उनका संपर्क बढ़ाया जाना चाहिए। तीज-त्योहारों, मेलों-उत्सवों में उनकी अनुभव-पूर्ण भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

आज का भारत बदल रहा है। बदलते भारत की तस्वीर, हमारी माताएं भी देखना चाहती हैं। मेरा सुझाव होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य समाज-सेवी संस्थाएं, इन माताओं को देश-दर्शन व देश के पर्यटन स्थलों के भ्रमण पर ले जाने की व्यवस्था कर सकती हैं।

अंत में, मैं, आयोजकों, उत्तर प्रदेश सरकार तथा सुलभ इंटरनेशनल को, उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों हेतु धन्यवाद देता हूं।

जय हिंद।