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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सद्गुरु कबीर महोत्सव - 2018 के समारोह में सम्बोधन

सागर : 28.04.2018

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1. संतों के संत यानि संत शिरोमणि कबीर साहब का उत्सव सागर में मनाया जाना मुझे बहुत उपयुक्त लगता है। मुझे बताया गया है कि सागर में स्थित‘कबीर आश्रम’ लगभग तीन सौ साल पुराना है। यह आश्रम सद्गुरु कबीर की मनुष्यता, समरसता और त्याग की शिक्षा का प्रचार करता रहा है। मैं पहले भी‘सागर’ आता रहा हूं। आज फिर यहाँ कबीर महोत्सव में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।

2. संत कबीर स्वयं दस्तकार थे। इस महोत्सव के आयोजक श्री नारायण प्रसाद कबीरपंथी जी राज्य सरकार की संस्था‘संत रविदास मध्य प्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम लिमिटेड’के अध्यक्ष हैं जिसका नाता संत कबीर की स्मृति से जुड़ा हुआ है। यह मान्यता है कि संत रविदास और संत कबीर गुरु भाई थे। दोनों की साधना-स्थली वाराणसी थी। कबीर के जुलाहा होने और हथकरघा चलाने के बारे में भी सभी को मालूम है। इस संस्था द्वारा बुनकरों तथा अन्य शिल्पकारों को प्रशिक्षण दिया जाता है और उनके उत्पाद के लिए मार्केटिंग की सुविधा और सहायता प्रदान की जाती है। बुनकरों तथा शिल्पकारों को स्व-रोजगार के लिए भी सहायता दी जाती है। मुझे विश्वास है कि इन प्रयासों से बड़ी संख्या में यहां के दस्तकार आर्थिक क्षेत्र में आत्म-निर्भरता प्राप्त कर रहे होंगे।

3.‘कबीर’ शब्द का अर्थ है महान या विशाल। संत कबीर की महानता उनके नाम को सार्थक करती है। उन्होने अपनी महानता के बल पर समाज की सोच बदल दी। सद्गुरु कबीर के समय में समाज में कमजोर वर्गों के लोगों को कुछ कहने और बोलने का अधिकार प्राप्त नहीं था। यहाँ तक कि उन्हे अपनी पीड़ा तक को व्यक्त करने का अधिकार भी नहीं था। ऐसी पृष्ठभूमि में संत कबीर ने लोगों को मानवता का सही अर्थ समझाया। उन्होने कहने वालों और सुनने वालों का आपसी संबंध ही बदल दिया। अब कबीर कहते थे और सभी लोग सुनते थे। और केवल सुनते ही नहीं थे उनके अनुयायी भी बन जाते थे। बहुत ही सरल लोक-भाषा में सामान्य लोगों के जीवन से जुड़ी कबीर-वाणी के माध्यम से वे जन-जन के हृदय में निवास करने लगे।

4. संत कबीर का सम्मान के साथ उल्लेख करने वाले संतों में महाराष्ट्र के तुकाराम से लेकर असम के शंकरदेव जी तक शामिल हैं। सिखों के परम पवित्र‘गुरुग्रंथ साहब’ में भीसंत कबीर की वाणी बहुत बड़ी संख्या में संकलित की गई है। संत कबीर ने रूढ़ियों से मुक्त, प्रेम और करुणा पर आधारित एक ऐसे मानव-धर्म की शिक्षा दी जिसका बहुत ही बड़े पैमाने पर स्वागत हुआ है।

5. सद्गुरु कबीर के व्यापक प्रभाव और लोकप्रियता के कई कारण हैं। स्वयं को बड़ा समझने की आधारहीन चिंतन प्रणाली की निरर्थकता को उन्होंने बहुत ही प्रभावी ढंग से उजागर किया। कुरीतियों और व्यर्थ के आपसी भेद-भाव पर उन्होंने कठोर प्रहार किए।

6. मध्य प्रदेश के लिए यह बड़े गौरव की बात है कि संत कबीर ने बांधवगढ़ में लंबा प्रवास किया था और वहीं से कबीर पंथ का आरंभ माना जाता है। सागर के अलावा दतिया तथा अन्य स्थानों पर भी मध्य प्रदेश में कबीर दास के भक्तों के आश्रम हैं। मुझे लगता है कि संत कबीर की वाणी में प्रेम और करुणा का जो सागर छलकता है उसका सबसे अच्छा अनुभव मध्य प्रदेश की कबीर भजन गाने वाली मंडलियों का संगीत सुनने में होता है।

7. यह मध्य प्रदेश का सौभाग्य है कि गुजरात में मंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में बहुत ही प्रभावी नेतृत्व प्रदान करने वाली श्रीमती आनंदीबेन पटेलजी यहां की राज्यपाल हैं। वे अपने जीवन में संत कबीर के आदर्शों को चरितार्थ करती रही हैं। सामाजिक आडंबरों से दूर उनका सादगी भरा जीवन उन्हे सबके लिए अनुकरणीय बनाता है। मुझे बताया गया है कि जब राज्यपाल महोदया का अपना विवाह हुआ था तो उन्होने यह निश्चय किया था कि वे अपने परिवार और अपने होने वाले पति के परिवार से कोई भी गहना,कपड़ा व उपहार नहीं लेंगी। अपने पुत्र और पुत्री के विवाह में उन्होने बारात की संख्या पाँच व्यक्तियों तक सीमित कर दी थी, अर्थात माता-पिता, वर या वधू के अलावा केवल दो व्यक्ति और। उन्होने अपने भाई की बेटी का विवाह भी इसी सादगी के साथ सम्पन्न कराया था। यही नहीं, एक बार उन्होने अपने भाई का विवाह रुकवा दिया था क्योंकि उस समय उनके भाई कानूनी तौर पर विवाह-योग्य आयु के नहीं थे। इसके कारण उन्हे अपने परिवार और समाज में कुछ अप्रिय स्थितियों का सामना भी करना पड़ा था। उपभोक्तावादी संस्कृति के खिलाफ उनका सिद्धांत, कर्मठता और सादगी से भरा जीवन एक सुखी, सफल और आदर्श जीवन का प्रेरक उदाहरण है। यही सीख हमें संत कबीर की वाणी और जीवन से भी प्राप्त होती है।

धन्‍यवाद

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