भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का मातोश्री रमाबाई आंबेडकर की प्रतिमा के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन
पुणे : 30.05.2018
1. मातोश्री रमाबाई भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा की स्थापना के ऐतिहासिक कार्य के लिए मैं पुणे नगरपालिका को बधाई देता हूँ। भौतिक रूप से यह प्रतिमा नौ फीट ऊंची है। लेकिन जिस महान विभूति की यह प्रतिमा है उनके व्यक्तित्व की ऊंचाई और महानता की कोई सीमा नहीं है। उन्होने हमारे संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की असाधारण जीवन यात्रा में उनकी अर्धांगिनी के रूप में कदम से कदम मिलाते हुए उनको शक्ति प्रदान की।
2. महज नौ वर्ष की आयु में रमाबाई का विवाह हुआ जब डॉक्टर आंबेडकर भी केवल चौदह वर्ष के थे। बाबा साहब प्यार से उन्हे ‘रामू’ कहते थे और रमाबाई उन्हे‘साहब’ कहती थी। मात्र सैंतीस वर्ष की अवस्था में उनका स्वर्गवास हुआ। लेकिन उन्होने डॉक्टर आंबेडकर को उनकी महान जीवन यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार करके इस संसार से विदाई ली।
3. बाबा साहब को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली और उन्होने अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन वे इतना कुछ इसीलिए कर पाए कि मातोश्री रमाबाई ने उनको हर कदम पर पूरा साथ दिया और उनका हौसला बनाए रखा। जीवन साथी के रूप में रमाबाई के अमूल्य योगदान को व्यक्त करते हुए बाबा साहब ने कहा था कि उनकी एक साधारण‘भीमा’ नामक व्यक्ति से डॉक्टर आंबेडकर जैसा सुशिक्षित व्यक्ति बनने की यात्रा मातोश्री रमाबाई के कारण ही संभव हो सकी थी। रमाबाई के निर्णायक योगदान के बल पर ही वे अपनी क्षमता का समुचित उपयोग करने में सफल हो सके। अंग्रेजी की लोकप्रिय कहावत ‘Behind every successful man, there is a woman’ बाबा साहब और मातोश्री रमाबाई पर बिलकुल ठीक बैठती है। भीमराव आंबेडकर को यदि मातोश्री का निरंतर सहयोग न मिला होता तो संभवतः वे‘बाबा साहब डॉक्टर' भीमराव आंबेडकर न बन पाते।
4. हम सब जानते हैं कि एक विशाल और मजबूत भवन, शक्तिशाली आधारशिला पर ही टिक पाता है। भवन की विशालता और भव्यता दिखाई देती है लेकिन नींव के पत्थर दिखाई नहीं देते। समाज और राष्ट्र के लिए अनेक क्षेत्रों में उनके अतुलनीय योगदान के विषय में जानकारी भी बढ़ी है और जागृति भी। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के विराट व्यक्तित्व का पूरी दुनियाँ सम्मान करती है। इसी पाँच मई को अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचूसेट्स, एमहर्स्ट के परिसर में डॉक्टर आंबेडकर की मूर्ति का उदघाटन किया गया। कनाडा की साइमन फ्रेज़र यूनिवर्सिटी में इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशन्स द्वारा डॉक्टर आंबेडकर की विचारधारा पर एक चेयर की स्थापना की जा रही है। पिछले नवंबर के महीने में कनाडा के तीन विश्वविद्यालयों में‘आंबेडकर स्मृति व्याख्यान’ आयोजित किए गए थे। बाबा साहब को विश्व-विख्यात महापुरुष बनाने में रमाबाई का ही योगदान था। यह कहा जा सकता है कि अगर बाबा साहब के विराट व्यक्तित्व की तुलना एक विशाल इमारत से की जा सकती है तो निश्चय ही मातोश्री रमाबाई उस भवन की आधारशिला मानी जाएंगी।
5. डॉक्टर आंबेडकर ने अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘Thoughts on Pakistan’ मातोश्री को समर्पित की थी। पुस्तक समर्पित करते हुए बाबा साहब
ने जो वाक्य लिखा था उसके प्रत्येक शब्द का मैं उल्लेख करना चाहूँगा। उन्होने लिखा था:
As a token of my appreciation of her goodness of heart, her nobility of mind and her purity of character and also for the cool fortitude and readiness to suffer along with me which she showed in those friendless days of want and worries which fell to our lot.”
6. इस तरह बाबा साहब ने मातोश्री के हृदय की उदारता, विचारों की महानता, चरित्र की निर्मलता के साथ-साथ उनके शांतिपूर्ण साहस और चुनौतियों को साझा करने में तत्परता के लिए उनकी सराहना की है। बाबा साहब ने यह भी स्पष्ट किया है कि मातोश्री ने चिंताओं और परेशानियों से भरे उस कठिन दौर में उनका साथ दिया था जब उन दोनों का साथ देने के लिए कोई भी नहीं था।
7. मातोश्री रमाबाई सही मायनों में बाबा साहब की सह-धर्मिणी थीं। जिस तरह रथ के दोनों पहियों का सामंजस्य उसे सही दिशा में ले जाता है वैसे ही रमाबाई और बाबा साहब अपने दाम्पत्य जीवन के जरिए समाज और देश के लिए आगे बढ़ते रहे। मातोश्री ने स्वयं भी अस्पृश्यता निवारण और सामाजिक समानता के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया था। उनका आदर्श सबके लिए प्रेरणादायक है। उनका जीवन प्रत्येक भारतीय नारी के लिए अनुकरणीय है।
8. बाबा साहब और मातोश्री के बीच गहरा सम्मान और अगाध प्रेम था। उस दंपति ने तीन पुत्रों और एक पुत्री के निधन का आघात सहन किया। वे एक दूसरे को सहारा देते रहे। उन्होने बाबा साहब को उनके महान कार्यों के लिए हमेशा उचित वातावरण प्रदान किया। अपनी बीमारी के बावजूद वे यह प्रयास करती थीं कि किसी भी कारण से बाबा साहब के अध्ययन या किसी भी काम में कोई रुकावट न पैदा हो।
9. बाबा साहब के जीवन के आरंभिक दिनों में रमाबाई का उन पर जो प्रभाव पड़ा, शायद उसी का यह परिणाम था कि बाबा साहब हमेशा महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए सदैव सक्रिय रहे। बाबा साहब द्वारा रचित हमारे संविधान में आरंभ से ही मताधिकार समेत प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। देश के अन्य प्रमुख लोकतान्त्रिक देशों में यह समानता महिलाओं को लंबे समय के बाद ही मिल पाई थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी बाबा साहब समाज के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की समानता और सशक्तिकरण के प्रबल पक्षधर के रूप में अपना योगदान देते रहे।
10. बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की गिनती हमारे प्रमुख राष्ट्र-निर्माताओं में होती है। उनके व्यक्तित्व निर्माण एवं योगदान में निर्णायक भूमिका निभाने वाली मातोश्री रमाबाई के सम्मान में सभी देशवासियों की ओर से मैं उन्हे नमन करता हूँ।