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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का जामिया मिलिया इस्लामिया के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन

नई दिल्ली : 30.10.2019

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1. इस दीक्षांत समारोह में मौजूद सभी पदक विजेताओं, शिक्षकों, अन्य सभी विद्यार्थियों तथा अभिभावकों को मेरी बहुत-बहुत बधाई। आप सभी के बीच यहां आकर मुझे बेहद खुशी हो रही है।

2. मैं खास तौर से, यहां बैठी सभी बेटियों को तहे-दिल से मुबारकबाद और दुआएं देता हूं जिन्होंने दोनों ही साल, लड़कों से ज्यादा गोल्ड-मेडल हासिल किए हैं। इन काबिल और होनहार बेटियों में समाज और देश के आने वाले कल की सुनहरी तस्वीर दिखाई देती है।

3. ये बहुत अहम इत्तिफाक़ है कि ‘जामिया’ के लगभग 100 साल के इतिहास में पहली बार महिला चांसलर और वाइस-चांसलर नियुक्त हुई हैं। दर-असल, यह एक ऐतिहासिक बदलाव है जिसके लिए मैं केंद्र सरकार और मानव-संसाधन-विकास मंत्रालय की सराहना करता हूं। एक और संयोग है कि आप दोनों विशिष्ट महिलाएं हम-नाम हैं और इनके नाम का मतलब है ‘स्टार’ या ‘सितारा’। अपनी असाधारण सफलताओं और विशेषताओं के कारण आप दोनों ‘स्टार्स’ से भी बढ़कर, हमारी इन बेटियों के लिए ‘गाइडिंग स्टार्स’ की तरह हैं। महिला प्रतिभाओं की अमर यादगार के रूप में, ‘जामिया’ के कैंपस में ही उर्दू साहित्य की अज़ीम कलम-निगार, कुर्रत-उल-ऐन-हैदर जैसी अदीबा की कब्र मौजूद है। मुझे यकीन है कि उनकी मिसाल और आप जैसी रोल-मॉडल महिलाओं से प्रेरणा लेकर हमारी ये बेटियां भी कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचेंगी।

4. मुझे खुशी है कि कल 29 अक्तूबर को आप सबने अपनी यूनिवर्सिटी का फाउंडेशन-डे मनाया है। अगले साल आपकी यूनिवर्सिटी के 100 साल पूरे हो जाएंगे, यानि आप अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। यह आप सभी के लिए अपने इतिहास, वर्तमान और आने वाले कल के बारे में संजीदगी के साथ ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने का भी उपयुक्त अवसर है।

5. इस यूनिवर्सिटी की शुरुआत, देश की आज़ादी की लड़ाई के इतिहास के साथ जुड़ी हुई है। विदेशी हुकूमत के खिलाफ चल रहे अहिंसापूर्ण आंदोलन के दौरान, आज से ठीक सौ साल पहले, वर्ष 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद देश में स्वाभिमान और जागरण की एक नई लहर उठी थी। 1920 में असहयोग और खिलाफ़त आंदोलनों ने ज़ोर पकड़ा तथा सामाजिक एकता और भाई-चारे की भावनाओं को बल मिला। महात्मा गांधी ने विद्यार्थियों से यह अपील की, कि वे विदेशी हुकूमत की मदद से चलने वाले शिक्षण संस्थानों को छोड़ दें। साथ ही, उन्होंने यह आह्वान भी किया कि राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जाए। ‘जामिया तराना’ का एक मिसरा, ‘उठे थे सुनके जो आवाज़े-रहबराने-वतन’, ‘जामिया’ के संस्थापकों के देश प्रेम को बयान करता है। स्वतन्त्रता संग्राम का मार्गदर्शन करने वालों की पुकार सुनकर मौलाना मोहम्मद अली जौहर, डॉक्टर एम. ए. अंसारी, हकीम अजमल खान और डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन जैसे लोग आगे आए और ‘जामिया मिलिया इस्लामिया’ की स्थापना की। ‘जामिया’ शिक्षा और पुनर्जागरण का माध्यम बना। यह धर्म,अध्यात्म, देशभक्ति और राष्ट्र-निर्माण का केंद्र बना। ‘जामिया’ हमारी साझा संस्कृति की मिसाल बना।

6. इस यूनिवर्सिटी की सहायता करने में महात्मा गांधी, सेठ जमनालाल बजाज और श्रीनिवास आयंगर जैसे लोग पूरी निष्ठा के साथ लगे रहे। ‘जामिया’ ने सबको साथ लेकर चलने तथा अनेकता में एकता के सूत्रों को मजबूत करने की जो मिसाल पेश की है वह हमारे देश और समाज की सही पहचान है। इस पहचान को बनाए रखना तथा इसे और भी अधिक मजबूत बनाना आप सभी विद्यार्थियों की खास ज़िम्मेदारी है। आप सभी पर मौलाना मोहम्मद अली जौहर, महात्मा गांधी और डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन के सपनों को पूरा करने की भी ज़िम्मेदारी है।

7. प्रख्यात शिक्षाविद और मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ने गांधीजी के आदर्शों को शिक्षा-व्यवस्था में ढालने का आजीवन प्रयास किया। वे सेवाग्राम, वर्धा में स्थापित ‘हिन्दुस्तानी तालीमी संघ’ के अध्यक्ष भी रहे थे। महात्मा गांधी के आदर्शों को भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी फैलाने के लिए डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन में कितना उत्साह था इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब वे जर्मनी में उच्च-शिक्षा प्राप्त करने गए थे उसी दौरान उन्होंने जर्मन भाषा में ‘डाइ बोट-शाफ़्ट देस महात्मा गांधी’ यानि ‘महात्मा गांधी के संदेश’ नामक पुस्तक भी लिखी। जैसा कि सभी जानते हैं, वे 22 वर्षों तक ‘जामिया’ के वाइस-चांसलर रहे थे। ऐसे महान शिक्षक और शिक्षा-शास्त्री को ‘भारत-रत्न’ से भी अलंकृत किया गया। यह ‘जामिया मिलिया इस्लामिया’ से जुड़े हर व्यक्ति के लिए फ़ख्र की बात है।

8. मेरे लिए भी, यह एक ख़ुश-गवार इत्तिफाक़ है कि मुझे बिहार का राज्यपाल बनने का अवसर मिला, जिस पद को ज़ाकिर हुसैन साहब ने सुशोभित किया था। हम दोनों को ही राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस तरह वे राष्ट्रपति भवन के साथ-साथ बिहार राजभवन में भी मेरे पूर्ववर्ती रहे हैं। आज ज़ाकिर हुसैन साहब जैसी अज़ीम शख़्सियत के इदारे के इस जलसे में शिरकत करना मेरे लिए बेहद खुशी की बात है।

प्यारे विद्यार्थियो,

9. आज हमारा देश एक नई ऊर्जा के साथ दुनिया में अपनी एक खास पहचान बना रहा है। इस प्रयास में देश की 65 प्रतिशत युवा आबादी का महत्वपूर्ण योगदान है। युवाओं के इस योगदान को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए ‘जामिया’ जैसे संस्थानों को अहम किरदार निभाना है। आप जैसे युवाओं के ‘ज्ञान और विवेक’ यानि ‘इल्म-ओ-इदराक’ के बल पर हमारे देश को विश्व में और भी ऊंचा मुकाम हासिल करना है।

10. शिक्षा का असली मकसद है, इंसान को बेहतर इंसान बनाना। एक बेहतर इंसान जो कुछ भी करेगा, अच्छा करेगा। वह एक बेहतर टीचर, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अधिकारी या समाज सेवक साबित होगा। मैं समझता हूं कि बेहतर इंसान बनाने की बात ही ‘जामिया तराना’ के इन अल्फ़ाज़ में कही गई है:

यहां पे शम्मे-हिदायत है, सिर्फ अपना ज़मीर

यानि अपनी अंतरात्मा, अपना कॉन्शेंस ही, सही राह दिखाने वाली रोशनी है, यही गाइडिंग-फोर्स है। ज़मीर की आवाज़ में हमेशा सच्चाई होती है, ईमानदारी होती है, भाई-चारा होता है, हर इंसान की बेहतरी का जज़्बा होता है। इसलिए, ज़ेहन के साथ-साथ ज़मीर की रोशनी को बनाए रखना, अच्छी तालीम की कसौटी है। मुझे यकीन है कि हमारा देश, ज़ेहन की ताकत से, दुनिया की ‘नॉलेज सोसाइटी’ में आगे की कतार में खड़ा रहेगा। साथ ही, ज़मीर की रोशनी में हमारा समाज, inclusive society और compassionate society के रूप में आगे बढ़ता रहेगा।

प्यारे विद्यार्थियो,

11. आज के दौर के मुताबिक तालीम मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा ‘एजुकेशन इको-सिस्टम’ में बदलाव किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के लिए मानव-संसाधन-विकास मंत्री और उनकी टीम के सभी सदस्य बधाई के हकदार हैं। उनके मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है, भारत को ‘नॉलेज सुपर पावर’ के रूप में स्थापित करना। भारत के विद्यार्थियों की असीम प्रतिभा से पूरा विश्व परिचित है। इस प्रतिभा का समुचित उपयोग करने के लिए देश के सभी शिक्षण संस्थानों को अपना योगदान देना है। ‘जामिया’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से विशेष योगदान की उम्मीद की जाती है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि ‘जामिया’ द्वारा फ्रांस, जर्मनी, युनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, फ़िनलैंड, मेक्सिको और जापान में स्थित, विश्व के सम्मानित संस्थानों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग किया जा रहा है।

12. ये बहुत खुशी की बात है कि इस विश्वविद्यालय में ‘सेंटर फॉर नैनो-साइंस ऐंड नैनो-टेक्नॉलॉजी’ में आधुनिकतम विषयों पर अध्ययन किया जा रहा है। यहां की ‘फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नॉलॉजी’ ने अच्छी साख बनाई है। ‘मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर’ के विद्यार्थियों ने पत्रकारिता और फिल्म जगत में शानदार सफलता प्राप्त की है। खेल-कूद के क्षेत्र में भी ‘जामिया’ के विद्यार्थियों ने अपनी कामयाबी का परचम लहराया है। आने वाले वक्त के मुताबिक आगे बढ़ने की सोच ही, इन सफलताओं की बुनियाद है। यही सोच आप सभी विद्याथियों को अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में अपनानी है, चाहे वह आपके निजी मुद्दे हों, या फिर समाज, देश और दुनिया के मसले हों।

13. मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि ‘जामिया’ द्वारा पड़ोस की बस्तियों में ‘community development program’ चलाए जा रहे हैं। दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। किसी मजबूरी या परेशानी के कारण पढ़ाई को बीच में रोकने के लिए मजबूर बेटियों को शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की जा रही है। मैं महिलाओं की उस पूरी टीम को बधाई देता हूं जो यहां ‘दस्तरख्वान’ के नाम से कैंटीन चला रही हैं।

14. समाज के हर तबके को विकास से जोड़ने के लिए, कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी यानि सीएसआर की तरह यूनिवर्सिटीज़ सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी यानि यूएसआर पर भी ज़ोर देने की ज़रूरत है। मैंने जून, 2018 में आयोजित ‘राज्यपाल सम्मेलन’ में अनुरोध किया था कि विश्वविद्यालयों को यूएसआर के लिए सक्रिय होना चाहिए। उस सम्मेलन में आपकी चांसलर डॉक्टर नजमा हेपतुल्ला, मणिपुर की राज्यपाल की हैसियत से शरीक हुई थीं। मुझे बताया गया है कि केंद्र सरकार के ‘उन्नत भारत अभियान’ के तहत ‘जामिया’ द्वारा पांच गांवों को गोद लिया गया है। क्या ‘जामिया’ द्वारा कुछ और गांवों को भी गोद लिया जा सकता है? मैं चाहूंगा कि इस अभियान के लक्ष्यों के लिए काम करने के साथ-साथ, यहां के विद्यार्थी उन गांवों में दो माह के अन्तराल पर जाएं। यदि संभव हो तो रात में वहां रुकें और गांव वालों के साथ मिल-बैठकर उनके मसलों को समझने की कोशिश करें। वे गांव की साफ-सफाई, साक्षरता, सभी बच्चों के टीकाकरण तथा न्यूट्रीशन जैसी योजनाओं के बारे में गांव के लोगों के साथ बातचीत करें। साथ ही, केंद्र तथा राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में भी उन्हें जानकारी प्रदान करें। ऐसे प्रयासों से समाज के कमजोर वर्गों को मदद मिलती है। साथ ही, विद्यार्थियों की समझ और संवेदनशीलता में इज़ाफ़ा होता है। समझदार और संवेदनशील युवा ही कल के राष्ट्र-निर्माता हैं।

15. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप सभी विद्यार्थी इस यूनिवर्सिटी के संस्थापकों की देशप्रेम और राष्ट्र-निर्माण की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, देश की तरक्की में पूरे जोश के साथ भागीदारी करेंगे। मेरी शुभ-कामना है कि आप सभी कामयाबी हासिल करें तथा अपने परिवार, अपनी यूनिवर्सिटी और अपने देश का नाम रौशन करें।

धन्यवाद

जय हिन्द!