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भारत के राष्ट्रपति,श्री राम नाथ कोविन्द का इन्टरनेशनल आंबेडकर कॉनक्लेव-2021 के उद्घाटन में सम्बोधन

नई दिल्ली : 02.12.2021

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भारत में जन्मा एक ऐसा महापुरुष जो अपने व्यक्तित्व व कृतित्व के कारण संविधान निर्माता भी बना, राष्ट्र निर्माता भी कहलाया तथा जो समाज-सुधारक और विकास-पुरुष के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में जीवन पर्यन्त अपना सर्वस्व योगदान देता रहा, ऐसे महापुरुष को बाबा साहब आंबेडकर कहते हैं। उनके कृतित्व का वर्णन करना किसी एक सम्बोधन में संभव नहीं है। उनके विचारों में हमारे भविष्य निर्माण का मार्ग उपलब्ध है। ऐसे बाबा साहब आंबेडकर के विचारों को यथार्थ रूप देने के उद्देश्य से आयोजित इस कॉनक्लेव के लिए मैं आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं।

लोकसभा के भूतपूर्व उपाध्यक्ष,पंजाब विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष तथा सांसदों के अंतर्राष्ट्रीय समूहों के उपाध्यक्ष के रूप में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले डॉक्टर चरनजीत सिंह अटवाल जी अपनी निष्ठा के लिए सराहना के हकदार हैं। उनकी सक्रियता के बल पर Forum of SC and ST Legislators and Parliamentarians द्वारा सामाजिक और आर्थिक न्याय के मुद्दों पर निरंतर प्रकाश डाला जाता है। आप सबके प्रयासों की बाबा साहब के आदर्शों और लक्ष्यों को प्रसारित करने में अच्छी भूमिका रहती है।

आज से चार दिन बाद यानि 6 दिसंबर को बाबा साहब का परिनिर्वाण दिवस मनाया जाएगा। उस दिन पूरे देश में स्थान-स्थान पर, विशेषकर महू में उनकी जन्म-भूमि, नागपुर में दीक्षा-भूमि, दिल्ली में परिनिर्वाण स्थल, मुंबई में चैत्य-भूमि तथा लंदन में आंबेडकर मेमोरियल होम के पंच-तीर्थों में बाबा साहब के आदर्शों से जुड़े लोग अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। बाबा साहब के आदर्शों का अनुसरण करते हुए समावेशी विकास तथा वंचित वर्गों के उत्थान पर ज़ोर देने के लिए मैं केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों की सराहना करता हूं।

संविधान के प्रारूप के निर्माण का कार्य सम्पन्न हो जाने के बाद संविधान सभा में बाबा साहब की प्रशंसा में संविधान सभा के अनेक सदस्यों ने अपने उद्गार व्यक्त किए थे। ऐसे ही एक सम्मानित सदस्य ने यह कहा था कि "भारत की स्वाधीनता का श्रेय महात्मा गांधी को दिया जाएगा तथा भारत की स्वाधीनता को संहिताबद्ध करने का सेहरा हमारे महान संविधान के महान शिल्पी डॉक्टर आंबेडकर के सिर पर बंधेगा। ..... न केवल यह सदन उनका आभारी है अपितु पूरा राष्ट्र उनका आभारी है..... वे न केवल इस पीढ़ी के लिए स्मरणीय हैं बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियां भी उन्हें याद रखेंगी।” संविधान सभा के उन सम्मानित सदस्य के इस कथन की सार्थकता का एक जीता-जागता प्रमाण इस कॉनक्लेव में देखने को मिल रहा है।

मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस कॉनक्लेव में चर्चा हेतु आपने संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ शिक्षा, उद्यमिता,इनोवेशन तथा आर्थिक विकास के मुद्दों को भी प्रमुखता दी है।

देवियो और सज्जनो,

मैं कहना चाहता हूं कि बाबा साहब के जीवन के बारे में जानकर किसी भी व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व निर्माण और भविष्य निर्माण की प्रेरणा स्वतः मिल जाती है। हर प्रकार की चुनौतियों को पार करते हुए बाबा साहब ने विश्व की सर्वोच्च उपलब्धियां हासिल कीं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में से एक कोलम्बिया यूनिवर्सिटी ने बाबा साहब को LL.D. की उपाधि से सम्मानित किया था।

कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के प्रशस्ति पत्र में बाबा साहब द्वारा भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किए जाने की प्रशंसा करते हुए उन्हें भारत का एक प्रमुख नागरिक, महान समाज सुधारक और मानव अधिकारों का रक्षक बताया गया है। उन्हें सम्मान देने की नीयत से, उस विश्वविद्यालय के प्रांगण में बाबा साहब की प्रतिमा शोभायमान की गई है।

बाबा साहब का संघर्ष आजीवन चलता रहा। आप में से बहुत से लोग यह जानते होंगे कि एक विद्यार्थी के रूप में विश्व-स्तर पर बाबा साहब ने अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर ली थी फिर भी उनके पास बंबई हाई कोर्ट में वकालत करने हेतु सनद लेने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे। लेकिन,ऐसी हर एक रुकावट बाबा साहब की आंतरिक शक्ति के आगे छोटी साबित हुई।

देवियो और सज्जनो,

बाबा साहब भारत माता के सच्चे पुजारी थे। वे भारतीयता के अविचल पुरोधा थे। हमारे स्वाधीनता की लड़ाई तथा उसके बाद संविधान-निर्माण के लगभग तीन वर्षों के दौरान सांप्रदायिक वैमनस्य का वातावरण बना हुआ था। उस समय एक सौहार्दपूर्ण वातावरण के निर्माण के लिए बहुत सारे नेता यह कहा करते थे कि हम सभी लोग हिन्दू और मुसलमान बाद में हैं,सबसे पहले हम सब भारतीय हैं। यह सोच बहुत अच्छी थी। लेकिन बाबा साहब की सोच उससे भी ऊपर थी। जब दूसरे नेता कहते थे कि हम पहले भारतीय हैं और बाद में हिन्दू,मुसलमान,सिख या ईसाई हैं उस समय बाबा साहब कहा करते थे कि ‘हम पहले भी भारतीय हैं, बाद में भी भारतीय हैं और अंत में भी भारतीय हैं। इस प्रकार हम सदैव भारतीय ही हैं।’ अर्थात बाबा साहब की सोच में भारतीयता के समक्ष जाति,धर्म और संप्रदाय का कोई स्थान नहीं था।

देवियो और सज्जनो,

शिक्षा के प्रति बाबा साहब का लगाव सर्वविदित है। वे स्वयं एक प्रोफेसर बनना चाहते थे। लेकिन,समाज की समस्याओं ने, लोगों की पीड़ा ने उन्हें जन-सेवा की ओर प्रेरित किया। उन्होंने मुंबई में अपना मकान बनवाया जिसे उन्होंने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से जुड़े स्थान के आधार पर राजगृह नाम दिया। उस मकान का सबसे बड़ा हिस्सा उनका पुस्तकालय था। वे प्रायः अपने उस निजी पुस्तकालय में ही भोजन करते थे और वहीं सो जाया करते थे। भारत और विश्व की समस्याओं के समाधान के बहुत से विचार उन्हें अपने अध्ययन से प्राप्त होते थे। उन्होंने People’s Education Society की स्थापना की और मुंबई तथा औरंगाबाद में शिक्षण संस्थानों की स्थापना की। वे मनुष्य की सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक स्वाधीनता को उतना ही महत्व देते थे जितना राजनीतिक स्वाधीनता को।

देवियो और सज्जनो,

एक अर्थशास्त्री के रूप में बाबा साहब की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में थी। केवल 35 वर्ष की आयु में उन्होंने रिजर्व बैंक की स्थापना से जुड़े हिल्टन-यंग कमीशन के समक्ष अपने जो विचार रखे थे, उनमें से अनेक विचार आज भी प्रासंगिक हैं। भूमिहीन किसानों, सामूहिक खेती, लैंड रेवेन्यू सिस्टम और भूमि पर स्वामित्व से जुड़े उनके विचार बहुत गंभीरता से लिए जाते हैं। वे कहते थे कि अधिकांश भूमिहीन और सीमांत किसान अनुसूचित जातियों और जन-जातियों के लोग हैं। उनकी मुक्ति के लिए बाबा साहब निरंतर संघर्ष करते रहे। बाबा साहब को न्याय का प्रतीक पुरुष कहने में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बाबा साहब, समाज की नैतिक अंतरात्मा को जगाने के पक्षधर थे। वे कहते थे कि अधिकारों की रक्षा केवल क़ानूनों से नहीं हो सकती, अपितु समाज में नैतिक और सामाजिक चेतना का होना भी अनिवार्य है। परंतु उन्होंने सदैव अहिंसात्मक तथा संवैधानिक माध्यमों पर बल दिया।

हम सभी जानते हैं कि भारत के संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन-जातियों के हितों की रक्षा के लिए अनेक प्रावधान हैं जिन्हें affirmative actionका आधार कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद-46 में यह निर्देश दिया गया है कि राज्य को, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन-जातियों की शिक्षा और आर्थिक हितों का विकास विशेष सावधानी के साथ करना है। साथ ही, इस अनुच्छेद में राज्य को यह भी निर्देश दिया गया है कि सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनका संरक्षण किया जाएगा। इस अनुच्छेद में निहित दिशा-निर्देश को कार्यरूप देने के लिए अनेक संस्थान बनाए गए हैं और प्रक्रियाएं लागू की गई हैं। काफी सुधार भी हुए हैं। लेकिन,हमारे देश और समाज द्वारा अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

वंचित वर्गों के बहुत से लोग अपने अधिकारों तथा उनके हित में चल रहे सरकार के अनेक कार्यक्रमों के बारे में नहीं जानते हैं। ऐसे लोगों तक यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंचाना और उन्हें जागरूक बनाना आप सबकी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है।

यहां उपस्थित लोगों में अधिकांश संख्या सचेत और प्रबुद्ध व्यक्तियों की है। आप सबकी यह भी ज़िम्मेदारी है कि अनुसूचित जातियों व जन-जातियों के जो लोग आपसे पीछे रह गए हैं उन्हें भी आप आगे बढ़ाएं। ऐसा करके ही आप बाबा साहब के प्रति सच्ची श्रद्धा व्यक्त कर सकेंगे।

देवियो और सज्जनो,

‘डॉक्टर आंबेडकर चेम्बर ऑफ कॉमर्स’के प्रतिनिधियों की इस कॉनक्लेव में भागीदारी बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। हमारे देश के उद्यमियों,विशेषकर युवाओं में आजकल एक शब्द बहुत प्रचलित हुआ है। वह शब्द है यूनिकॉर्न। जब किसी बिजनेस स्टार्ट-अप का वैल्यूएशन एक बिलियन डॉलर से अधिक हो जाता है तब उसे यूनिकॉर्न कहते हैं। अधिकांश यूनिकॉर्न के संस्थापक युवा हैं और पहली पीढ़ी के उद्यमी हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री महोदय ने यह कहा है कि ‘स्टार्ट-अप लीडरशिप’ भारत की विकास यात्रा का एक नया मोड़ सिद्ध हो सकता है। अनुसूचित जाति के उद्यमियों के लिए भी वेंचर कैपिटल फंड जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा उद्यमों को प्रोत्साहित करने वाले अन्य सरकारी कार्यक्रमों की सुविधा भी अनुसूचित जातियों व जन-जातियों के युवाओं को उपलब्ध है। इन सभी कार्यक्रमों का लाभ लेना चाहिए तथा जॉब सीकर की जगह जॉब गिवर की मानसिकता विकसित करनी चाहिए।

बाबा साहब भी स्व-रोजगार के समर्थक थे। उन्होंने स्टॉक और शेयर्स के व्यापारियों को सलाह देने के लिए एक फर्म की स्थापना की थी। सन 1942 में तत्कालीन वायसराय को ज्ञापन देकर उन्होंने CPWD के टेंडरों में वंचितों के लिए हिस्सेदारी की मांग की थी। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व में स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करने वाले आर्थिक लोकतन्त्र के पक्षधर का स्वरूप भी शामिल है।

मुझे विश्वास है कि इस कॉनक्लेव में होने वाले विचार-विमर्श से अनुसूचित जातियों और जन-जातियों विशेषकर युवाओं के हित में प्रभावी सुझाव निकलेंगे। ऐसे सुझावों को कार्यरूप देकर आपके संस्थान और इस आयोजन की सार्थकता सिद्ध होगी। मैं आप सबको अपने उद्देश्य में सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!