65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन
नई दिल्ली : 03.05.2018
1. मुझे 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के लिए हमारे सिनेमा उद्योग के दिग्गजों के साथ यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। मैं सबसे पहले उन 125 पुरस्कार विजेताओं में से प्रत्येक को तथा उन सभी अनगिनत कलाकारों को बधाई देता हूं जिन्होंने आज पुरस्कृत हो रही फिल्मों में काम किया है। यह आप सभी के लिए एक विशेषक्षण है।
2. मैं उन दो कलाकारों का विशेष उल्लेख करना चाहूंगा जिन्हें मरणोपरांत सम्मानित किया जा रहा है और जो दुर्भाग्यवश आज हमारे बीच नहीं हैं। श्रीदेवी इस वर्ष की‘सर्वोत्तम महिला कलाकार पुरस्कार’ की विजेता हैं और विनोद खन्ना को उनके आजीवन योगदान के लिए‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ के लिए नामित किया गया है। आज हमें उनकी कमी महसूस हो रही है, और हमेशा महसूस होती रहेगी। उनकी शानदार फिल्में‘मेरे अपने’,‘लम्हे’-ऐसी बहुत सी फिल्में याद आती हैं जो बॉक्स ऑफिस की सफलता से बढ़कर कुछ अलग चीज हैं; ये फिल्में हमारे दिलों में समा गईं और हमारी भावनाओं में गहरी पैठी हुई हैं।
3. विनोद खन्ना और श्रीदेवी के निधन से करोड़ों फिल्म प्रेमियों को लगा कि उनकी कोई निजी वस्तु उनसे छिन गई है। उनके प्रशंसक और चाहने वाले जो उनकी पर्दे पर उनकी फिल्मों को देखा करते थे, हंसा करते थे और रोया करते थे, देश के सभी हिस्सों, प्रत्येक राज्य और प्रत्येक क्षेत्र में पाए जाते हैं। यही सिनेमा की खूबसूरती है। हमारे फिल्म उद्योग ने हमें जिस प्रकार से सूत्रबद्ध किया है, उस प्रकार का काम बहुत कम माध्यम कर पाते हैं।
4. हमारी अनेकता या विविधता ही भारत की सबसे बड़ी ताकत है। हमारी फिल्में न केवल इस विविधता को व्यक्त करती है बल्कि इसमें अपना योगदान भी देती हैं। हमारी फिल्मों के कथानक हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम अपनी सभ्यता और अपने समाज की साझा विरासत से जुड़े रहें। हमारी फिल्में शिक्षा और मनोरंजन दोनों ही प्रदान करती हैं। वे उन सामाजिक चुनौतियों को भी दर्शाती हैं जिन पर हमें अभी काबू पाना है। और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब फिल्मों द्वारा ऐसी भाषा में किया जाता है जिसे हर कोई समझ सके।
5. भारत में भोजपुरी से लेकर तमिल, मराठी से लेकर मलयालम आदि अनेक भाषाओं में फिल्में बनाई जाती हैं। तथापि सिनेमा अपने आप में एक भाषा है। हिंदी सिनेमा ने संभवत: पूरे देश में एक भाषा के तौर पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने में किसी भी अन्य संस्थान की तुलना में से संभवत: ज्यादा कार्य किया है। सत्यजीत रे या ऋत्विक घटक की फिल्मों के मानवतावाद और उसकी बारीकियों की सराहना करने के लिए बांग्लाभाषी होना जरूरी नहीं है। हमें‘बाहुबली’महा-गाथा के प्रति मंत्र-मुग्ध होने के लिए तेलुगु जानने की जरूरत नहीं है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ए. आर. रहमान जिन्होंने एक बार फिर राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है, ने बहुत पहले ही उन लोगों पर भी अपनी छाप छोड़ी थी जो गीतों के तमिल शब्दों को समझ नहीं पाते थे परंतु उसके बावजूद उनके संगीत से सम्मोहित हो जाते थे।
6. मुझे बताया गया है कि‘लद्दाखी’भाषा में बनी एक फिल्म ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया है। इसी तरह लक्षद्वीप में केवल कुछ हजार लोगों द्वारा बोली जाने वाली‘जासरी’भाषा में बनी एक फिल्म भी पुरस्कृत हुई है। सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार असम में बनी ‘विलेज रॉक-स्टार्स’को दिया गया है। विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट फिल्म-निर्माण के ऐसे अनेक उदाहरण हैं। यह हम सभी के लिए बड़े ही गर्व का विषय है। साथ ही,कला के रूप में सिनेमा के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
7. भारतीय सिनेमा का इतिहास 1913 से शुरू होता है जब दादा साहब फाल्के ने देश की सबसे पहली पूरी लंबाई की फीचर फिल्म‘राजा हरिश्चंद्र’ का निर्माण किया। हमारे फिल्म उद्योग नेउन शुरुआती दिनों के बाद सेएकलंबी यात्रा तय कर ली है। पिछले कुछ दशकों में श्रेष्ठ तकनीक, ध्वनि प्रभाव, सिनेमाटोग्राफी, अलग-अलग कथा-रूपों के प्रयोग, लीक से हटकर लिखी गई पटकथाओं तथा कैमरे के सामने और पीछे के उत्कृष्ट कार्य ने हमारे सिनेमामें हलचल मचा दी है। रचनात्मक स्तर, कलागत महत्वाकांक्षा तथा निर्माण बजट सभी का विस्तार हुआ है। और मुझे विश्वास है कि हम और भी बेहतर कर सकते हैं।
8. सिनेमा जहां संस्कृति है वहीं सिनेमा वाणिज्य भी है। भारतीय फिल्म उद्योग एक वर्ष में लगभग 1500 फिल्में बनाता है और इस प्रकार विश्व के विशालतम फिल्म उद्योगों में शामिल है। यह भारतीय सौम्य शक्ति का परिचायक है और इसकी मौजूदगी अंतर महाद्वीपीय स्तर पर देखी जाती है। हमारी फिल्में जापान और मिस्र, चीन और अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया और बहुत से सुदूर देशों में देखी जाती हैं और सराही जाती हैं। फिल्में हमारे प्रमुखतम सांस्कृतिक निर्यातों में से एक हैं और वैश्विक भारतीय समुदाय को अपनी मातृभूमि की घटनाओं से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी हैं।
9. मुझे बताया गया है कि भारतीय फिल्म उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से दो लाख लोग और अप्रत्यक्ष रूप से इससे भी अधिक लोग काम करते हैं। घरेलू टिकट-बिक्री तथा विदेश में रिलीज़ और सेटेलाइट अधिकारों की बिक्री में अच्छी बढ़ोत्तरी की बदौलत उद्योग ने 2017 में 27% का विकास किया है। मुझे भरोसा दिलाया गया है कि 2018 में इसमें 18% और वृद्धि होने की उम्मीद है। ये आंकड़े बहुत ही प्रभावशाली हैं।
10. हम सिनेमा के और व्यापकतर मनोरंजन अर्थव्यवस्था के रोमांचक और परिवर्तनकारी युग में रह रहे हैं। प्रौद्योगिकी ने फिल्मों की निर्माण प्रक्रिया को और उन्हें देखने के तरीकों को बदल दिया है। किफायती डेटा और स्मार्ट फोनों तथा टैबलेट के आगमन से फिल्म-अवलोकन के स्वरूपों में स्पष्ट परिवर्तन आया है। भारतीय फिल्म उद्योग इन बदलावों के अनुकूल खुद को ढाल रहा है और उन्हें विश्वास है कि फिल्म उद्योग चुनौतियों को अवसरों में बदलने की युक्तियां गढ़ता रहेगा। फिल्म निर्माताओं को यह जानना चाहिए कि बाजार से जुड़े फिल्म निर्माण के अर्थतंत्र और वितरण लगातार व्यवहार्य होते जाएंगे। आशा है कि इससे वे गुणवत्ता के प्रति अपनी सोच को उच्चतर स्तर पर लाने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
देवियो और सज्जनो,
11. सिनेमा समाज को जोड़ता है और फिल्म उद्योग भी अपने आपसी सहयोग के मामले में लगातार वैश्विक होता जा रहा है। किसी फिल्म का निर्माण एक देश में होता है, वास्तविकता में उसे दूसरे देशों में फिल्माया जाता है और निर्माण के बाद का और एनिमेशन का काम किसी तीसरे देश को आउट सोर्स किया जाता है। भारत इस समेकित व्यवस्था का हिस्सा है, परंतु इसे मूल्य श्रृंखला में आगे बढ़ना होगा। फिल्म निर्माण के गंतव्य के रूप में भारत ध्यान खींच रहा है। भारत में बनी अनेक फिल्मों की सफलता ने बहुत से अंतरराष्ट्रीय स्टूडियो को आकर्षित किया है। हमें इस प्रक्रिया का लाभ उठाना चाहिए और हमारे रचनात्मक और प्रतिभावान युवाओं को रोजगार और अवसर मुहैया करवाने चाहिए।
12. सरकार ने भारत को एक वैश्विक फिल्म निर्माण केन्द्र के रूप में बढ़ावा देने की अनेक पहले की हैं।विदेशी फिल्म निर्माताओं के लिए वीजा का एक नर्इ श्रेणी बनाई गई है।अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माण घरानों द्वारा फिल्म निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए एकल खिड़की एजेंसी के रूप में ‘फिल्म फैसिलिटेशन ऑफिस ’खोला गया है। इसके अतिरिक्त, मुझे उम्मीद है कि हाल ही में शुरू की गई केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की ऑनलाइन प्रमाणन प्रणाली ‘ई-सिने प्रमाण’ भी पारदर्शिता और कुशलता में मददगार बनेगा।
13. इससे पहले कि मैं अपनी बात समाप्त करूं, मैं हमारे फिल्म उद्योग के सबसे बड़े हितधारक उन करोड़ों लोगों के बारे में कुछ शब्द कहना चाहूंगा जो टिकट खरीदने के लिए कतार में लगते हैं और समर्पित होकर फिल्में देखते हैं।अक्सर हम समुदायों में, सिनेमा गृहों में या मल्टीप्लेक्स में या टेलीविजन के सामने फिल्में देखते हैं।परंतु सारांशत:, फिल्म को देखना एक व्यक्तिगत अनुभव है।जैसे ही रोशनी मद्धिम होती है, जैसे ही पर्दा हरकत में आता है, फिल्मों का जादू फिल्म प्रेमियों के सामने बिखरने लगता है।यह हमारे दिल-दिमाग, हमारी आंखों और हमारी इंद्रियों को अपने आगोश में ले लेता है।
14. यह जादू आज पुरस्कार जीतने वालों और बहुत से असाधारण प्रतिभावान साथियों के प्रयासों और हुनर की परिणति है।आप और हमारा फिल्म उद्योग मजबूती से लगातार आगे बढ़ता रहे और नई-नई बुलंदियां छूता रहे।मैं एक फिल्म के संवाद को दोहराना चाहूंगा, जो शायद आपमें कुछ को याद होगा, ‘पिक्चर अभी बाकी है’।
धन्यवाद
जयहिंद।