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भारत के राष्‍ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्‍द का ‘वयोश्रेष्‍ठ सम्‍मान – 2019’ के अवसर पर सम्‍बोधन

नई दिल्ली : 03.10.2019

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1. अपने श्रेष्‍ठ कार्यों से समाज को दिशा देने वाले, आप सब वरिष्‍ठ जनों के बीच आकर मैं बहुत प्रसन्‍न हूं। आज इस समारोह में, देश के भिन्‍न-भिन्‍न हिस्‍सों से आए, 90 वर्ष से ऊपर के अनेक वरिष्‍ठ जन उपस्‍थित हैं, जो आयु से तो वृद्ध हैं, लेकिन उत्‍साह से युवा हैं। इसी कारण, मैं उन्‍हें ‘युवा वृद्ध’ कहता हूं क्‍योंकि, उनकी ऊर्जा और उल्‍लास के बारे में जानकर ऐसा लगता है कि उनमें अपनी, अपने समाज की और देश-सेवा की शक्‍ति व भावना प्रबल है। मेरे लिए यह बहुत सुखद अनुभव है। समाज को अपनी निष्‍ठा और कर्मठता से समृद्ध करने वाले,ऐसे आप सब वरिष्‍ठजनों की मैं सराहना करता हूं।

2. हमारी परम्‍परा में शतायु और दीर्घायु होने के साथ-साथ आत्‍म–निर्भर बने रहने की प्रार्थना की जाती रही है। आप सब में से अनेक लोगों की जीवन-यात्रा, इस प्रार्थना के अनुरूप लंबी आयु, आत्‍म–निर्भरता और सक्रियता का उदाहरण है। मुझे लगता है कि आपने सार्थक जीवन जिया है और घर-परिवार व देश-समाज की सेवा की है। आज, ऐसे ही कुछ व्‍यक्‍तियों और संस्‍थाओं को सम्‍मानित करने का अवसर मुझे प्राप्‍त हुआ है। यह सम्‍मान आप जैसे सभी वृद्धजनों का सम्‍मान है और इसके लिए मैं, आप सभी के स्‍वस्‍थ एवं दीर्घायु जीवन हेतु शुभकामनाएं देता हूं।

3. एक अनुमान के अनुसार, इक्‍कीसवीं शताब्‍दी के अंत तक, मनुष्‍य की औसत आयु 81 वर्ष हो जाएगी। यह भी अनुमान है कि 2050 तक विश्‍व में, 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्‍या, 200 करोड़ हो जाएगी। हमारे यहां, आयु बढ़ने के कारण लोगों को ‘वृद्ध’ नहीं, ‘वयोश्रेष्‍ठ’ माना जाता है क्‍योंकि वे अपनी ‘वय’ के साथ-साथ अपने ज्ञान, विवेक, अनुभव और दूर-दर्शिता में भी ‘श्रेष्‍ठ’ माने जाते हैं। इसीलिए, भारत में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर, ‘वयोश्रेष्‍ठ सम्‍मान’ की शुरुआत की गई। ऐसी दूर-दर्शितापूर्ण योजना को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने के लिए, सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्री श्री थावर चन्‍द गेहलोत, उनके सहयोगी राज्‍यमंत्रियों और उनकी पूरी टीम को भी मैं बधाई देता हूं।

देवियो और सज्‍जनो,

4. सभी वरिष्‍ठ जन हमारे सामाजिक व राष्‍ट्रीय जीवन के महत्‍वपूर्ण अंग हैं। मुझे बताया गया है कि केन्‍द्र और राज्‍य सरकारें, उनके जीवन को सुगम और सुचारु बनाने के अनेक उपाय कर रही हैं। केन्‍द्रीय सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा ‘समेकित वरिष्‍ठ नागरिक कार्यक्रम’ संचालित किया जा रहा है। भारत सरकार की ‘आयुष्‍मान भारत’ योजना से वृद्धजनों को भी चिकित्सा-सुविधा प्राप्‍त हो रही है। विशेष जमा योजनाओं और रेल किराए में छूट के माध्‍यम से, उन्‍हें आर्थिक सहायता दी जा रही है। राज्‍य सरकारें, अपने स्‍तर पर उनके सम्‍मान के लिए, वृद्धावस्‍था पेंशन जैसी कल्‍याणकारी योजनाएं चला रही हैं।

5. सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्‍थाएं अपने स्‍तर से जो प्रयास कर रही हैं, उनकी सराहना करते हुए हमें ‘वरिष्‍ठ जनों’ के लिए, अपने स्‍तर पर भी कुछ जिम्‍मेदारियां लेनी होंगी। हम सब को मिलकर ऐसा वातावरण बनाए रखना होगा, जिसमें हमारे वरिष्‍ठ जनों को, विचार और चेतना की स्‍वतंत्रता हो। उनमें ऐसी भावना बनाए रखनी होगी कि समाज में, परिवार में उनकी उपयोगिता है, उनका योगदान है। इससे उनमें आत्‍म-संतोष का भाव रहेगा और उनका तन-मन स्‍वस्‍थ रहेगा।

देवियो और सज्‍जनो,

6. आज के इस विशेष अवसर पर, मुझे ‘जीवन और ऊर्जा’ से भरे एक अमर सेनानी वीर कुंवर सिंह जी की वीरगाथा याद आती है। 1857 के प्रथम स्‍वाधीनता संग्राम में शामिल, हजारों स्‍वाधीनता सेनानियों में, उनका नाम आज भी बहुत सम्‍मान और श्रद्धा से लिया जाता है। बिहार के सपूत वीर कुंवर सिंह ने, अंग्रेजों के खिलाफ निरन्‍तर युद्ध किया। जिस बहादुरी, सैन्‍य कौशल और अदम्‍य साहस से उन्‍होंने अपनी सेना का नेतृत्‍व किया, उसे देखकर अंग्रेज सैनिक चकित रह जाते थे। ऐसा कहा जाता है कि गुरिल्‍ला युद्ध के जरिए, विशाल शत्रु सेनाओं को भारी नुकसान पहुंचाकर, बार-बार बच निकलने में वे, छत्रपति शिवाजी की याद दिलाते थे। उनके आत्‍म-बलिदान और वीरता से जुड़े लोक-गीतों में, यह रोमांचकारी विवरण मिलता है कि गंभीर रूप से घायल हो जाने के बाद भी वे, बहादुरी के साथ निरन्‍तर लड़ते रहे। अंत में, अप्रेल, 1858 में 81 वर्ष की आयु में वे वीर गति को प्राप्‍त हुए। अपनी ‘वय’ को ‘जय’ में बदल देने वाले वीर कुंवर सिंह, आज भी हमारे प्रेरणा-स्रोत बने हुए हैं।

देवियो और सज्‍जनो,

7. ‘वृद्धावस्था’ जीवन का एक अनिवार्य चरण है। जो आज युवा है, वह कल वृद्ध भी होगा, यह शाश्‍वत सत्‍य है। लेकिन अपने लंबे जीवन में, हमारे इन ‘वरिष्‍ठ जनों’ ने अपने घर-परिवार और समाज को बहुत कुछ दिया है। इसलिए, हम सबको यह स्‍वीकार करना होगा कि बूढ़े मां-बाप या दादा-दादी, तिरस्‍कार नहीं बल्‍कि सम्‍मान रूपी पुरस्‍कार के हक़दार हैं। हमारी परम्‍परा भी हमें यही सिखाती है। भारतीय संस्‍कृति हमें ‘मातृदेवो भव’ और ‘पितृदेवो भव’ की शिक्षा देती है। यह याद रखना है कि समय की कसौटी पर खरे उतरे ये पारिवारिक मूल्‍य, हमारी अनमोल विरासत हैं। संयुक्‍त परिवार के आदर्श और जीवन-मूल्‍य, हमारी समाज-व्‍यवस्‍था को बनाए रखने में सहायक रहे हैं। परन्‍तु, आज इन जीवन-मूल्‍यों में विघटन के चिन्‍ताजनक उदाहरण देखने में आ रहे हैं। हम सबको मिलकर, अपने पारंपरिक जीवन-मूल्‍यों का अनुसरण करना होगा।

8. संयुक्‍त परिवार के आदर्शों को बनाए रखने के लिए, हमें उन आदर्शों के अनुरूप आचरण भी करना होगा। अगली पीढ़ी वैसा ही आचरण करेगी, जैसा वह अपने माता-पिता में देखेगी। यहां मुझे एक प्रसंग याद आता है। एक बार एक दंपति ने, अपने बच्‍चे से पूछा कि वह बड़ा होकर क्‍या बनना चाहेगा। बच्‍चे ने जवाब दिया कि वह आर्किटेक्‍ट बनेगा और लोगों के घरों के नक्‍शे बनाएगा। माता-पिता ने बच्‍चे से कहा कि यह तो बहुत अच्‍छी बात है, ज़रा अपने घर का नक्‍शा बनाकर दिखाओ। बच्‍चे ने नक्‍शा बनाकर दिखाया कि घर में किसका कमरा, कहां पर होगा। घर के नक्‍शे में, उसके अपने माता-पिता के लिए कोई कमरा नहीं था। माता-पिता ने पूछा कि इस घर में हम कहां रहेंगे। इस पर बच्‍चे ने कहा कि आप दोनों तो, बाहर बने सर्वेन्‍ट क्‍वार्टर की तरफ रहेंगे। माता-पिता यह सुनकर सन्‍न रह गए। उन्‍होंने पूछा कि हमें बाहर क्‍यों रखोगे। बच्‍चे ने जवाब दिया कि आपने भी तो अपने माता-पिता को, बाहर ही रहने की जगह दी है। इस पर, उस दम्‍पति को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्‍होंने अपने माता-पिता से क्षमा मांगी और उन्‍हें घर के अन्‍दर, अपने साथ रहने के लिए, ले आए।

देवियो और सज्‍जनो,

9. जीवन के एक महत्‍वपूर्ण दौर से गुजर रहे अपने ‘वरिष्‍ठ जनों’ को मुझे यह ध्‍यान दिलाना है कि हमारी दूसरी और तीसरी पीढ़ी, दुनिया में तेजी से हो रहे बदलाव से, गुजर रही है। उनके सामने, कुछ व्‍यावहारिक कठिनाइयां हैं। उनकी कठिनाइयों के साथ, हम सबको अपनी आशाओं एवं अपेक्षाओं का ताल-मेल बैठाना है।

10. युवाओं को भी यह समझना चाहिए कि ‘वयोश्रेष्‍ठ’ जन हमारी संपदा हैं, हमारी धरोहर हैं। और इसलिए, अपनी युवा पीढ़ी से मैं यह कहना चाहूंगा कि अपने से बड़ों का, बुजुर्गों का, ध्‍यान रखकर, उन्‍हें उचित सम्‍मान देकर, आप जीवन में बहुत ऊंचा उठ सकते हैं। बुजुर्गों का आशीष हमेशा ही मंगलकारी होता है। हमारे नीति-ग्रन्‍थों में कहा भी गया है कि-

अभिवादन-शीलस्य, नित्यं वृद्धोप-सेविनः ।

चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयु: विद्या यशो बलम् ।।

अर्थात्

जो व्यक्ति सुशील होते हैं, अपने बुजुर्गों के सम्‍मान और सेवा में तत्‍पर रहते हैं, उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल – इन चारों में सदैव वृद्धि होती रहती है।

11. हमें यह भी देखना होगा कि हमारी सभी पीढ़ियां, एक दूसरे के जीवन में हिस्‍सा लें और संयुक्‍त परिवार की हमारी संस्‍कृति को, सशक्‍त बनाए रखें। प्रकृति ने हर पीढ़ी के बीच, एक अटूट रिश्‍ता बनाया है ताकि हमारे अनुभव, ज्ञान और कौशल अगली पीढ़ियों में, सहजता से हस्‍तांतरित हो सकें।

12. मैं एक बार फिर, सभी पुरस्‍कार विजेताओं को बधाई देता हूं और यह शुभकामना करता हूं कि उनका आगे का जीवन भी, खुशियों से भरपूर रहे।

धन्यवाद

जय हिन्द!