'धर्म चक्र दिवस' के अवसर पर 'इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कॉन्फेडरेशन' द्वारा आयोजित समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन
राष्ट्रपति भवन : 04.07.2020
1. लगभग दो हज़ार पांच सौ वर्ष पहले आज ही,आषाढ़ पूर्णिमा के दिन, पहली बार बुद्ध की ज्ञान वाणी का उद्घोष हुआ था। आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद, पांच सप्ताह तक, बुद्ध वर्णनातीत अवस्था में रहे। तत्पश्चात उन्होंने, उस ज्ञानामृत को लोगों में बांटना शुरू कर दिया। उत्तरभारत की प्राचीन नगरी वाराणसी के निकट सारनाथ के मृग-दावमें, बुद्ध ने अपने पांच आदि-शिष्यों को‘धम्म’का उपदेश दिया। मानव जाति के इतिहास में वह एक अपूर्व व अतुलनीय अवसर था।
2. आज के दिन को ‘गुरु पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू और जैन समुदायों के लोग भी इस दिन अपने आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह दिन,कट्टरता से मुक्त होकर शाश्वतज्ञान के निरंतर अन्वेषण की भारतीय परंपरा की एक अटूट कड़ी है। अनादिकाल से,विश्व कल्याण की दिशा में हमारी सभ्यता की अनवरत यात्रा के एक चरण के रूप में, राष्ट्रपति भवन में आयोजित इस ‘आषाढ़ पूर्णिमा महोत्सव’की मेजबानी करते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है।
3. कुछ ही देर पहले, हम सभी ने भारत के प्रधानमंत्री का वीडियो संदेश देखा, जिसमें भारत के शाश्वत जीवन-मूल्यों और सकारात्मक दृष्टिकोण की झलक दिखाई दी। मंगोलिया के राजदूत द्वारा पढ़े गए राष्ट्रपति महामहिम खल्तमागीनबातुल्ग के सारगर्भित संदेश को सुनकर मुझे बहुत हर्ष हुआ है। पिछले वर्ष सितंबर में,मंगोलिया के माननीय राष्ट्रपति की राजकीय यात्रा के दौरान,सम्मानित अतिथि के रूप में,राष्ट्रपति भवन में उनकी मेजबानी करने का सुअवसर मुझे मिला था। उनकी यात्रा से,हमारी सभ्यताओं की मैत्री को प्रगाढ़ बनाने और बौद्ध मत से जुड़े हमारे सदियों पुराने संबंधों को पुष्ट करने का अवसर हमें प्राप्त हुआ था।
4. मुझे बताया गया है कि 36 देशों में कार्यरत इंटरनेशनल बुद्धिस्ट काउंसिल (आईबीसी) द्वारा यह समारोह विश्वस्तर पर आयोजित किया जा रहा है। हालांकि,आजकल हम एक ऐसी जटिल महामारी से जूझ रहे हैं, जिसने प ूरी मानवता को जकड़ लिया है। दुनिया का शायद ही कोई हिस्सा इस आपदा से अछूता रहा है,और हर व्यक्ति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। एहतियात के तौर पर हमें विशेष अनुशासन का पालन करना है और शारीरिक दूरी बनाए रखनी है।
5. इसीलिए आईबीसी, इस समारोह को वर्चुअल प्रारूप में आयोजित कर रहा है। इस तरह का प्रयास सराहनीय है,क्योंकि इससे दुनिया के कोने-कोने से, और भी बड़ी संख्या में लोगों की इस आयोजन में भागीदारी संभव हो सकी है। भारत में सारनाथ व बोधगया,श्रीलंका में कैंडी और मंगोलिया में गंदन तेगचेंगलिंगविहार जैसे पवित्र स्थलों पर समारोह और प्रार्थनाएं आयोजित की जा रही हैं। विभिन्न देशों में महासंघ द्वारा आयोजित‘धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र’ के पाठ का सीधा प्रसारण किया जा रहा है।
6. हमें यह याद रखना चाहिए कि बुद्ध का प्रथम उपदेश नितांत सरल था। पालि भाषा में‘धम्म चक्क पवत्तन सुत्त’ के नाम से प्रसिद्ध उस उपदेश का बौद्ध धर्म-ग्रन्थों में अद्वितीय स्थान है। बौद्ध धर्मके अनुयायी और विद्वान इसे ऐसा खजाना मानते हैं जिसमें गौतम बुद्ध की समस्त शिक्षाएं समाहित हैं। बोधि प्राप्त करने के बाद के 45वर्षों के दौरान,गंगा के विस्तृतमैदानी क्षेत्र की यात्रा करते हुए बुद्ध,अपना कल्याणकारी संदेश जन-जन तक पहुंचाते रहे। उस अवधि में उन्होंने अनेक प्रवचन दिए। परंतु, ऐसा कहा जा सकता है कि उस प्रथम धर्मोपदेश में सार रूप में निहित मूल बिन्दुओं का ही अलग-अलग रूप और विस्तार,उनके सभी प्रवचनों में व्यक्त हुआ है।
7. यह भी एक विडंबना है कि बुद्ध की शिक्षा तत्कालीन विचारधारा के विरुद्ध थी। लेकिन,उनके तर्क के ताने-बाने को प्रेम,करुणा और अहिंसा की शक्ति प्राप्त थी। इन्हीं शाश्वत मूल्यों के अनुसरण से समस्त विश्व में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। अपने जीवनकाल में उन्होंने हमेशा तर्क और नैतिकता के बल पर अपनी बात समझाने का प्रयास किया। बुद्ध का यह मानना था कि बिना जाने-समझे,दबाव में किसी बात को मान लेना और स्वीकार कर लेना आध्यात्मिक या बौद्धिक कृत्य नहीं है, राजनीतिक भले ही हो।
8. यही कारण है कि अपने पहले उपदेश में,बुद्ध ने अपने पांच आदि-शिष्यों को यह सलाह दी कि उन्हें अतिरेक का त्याग करके बीच का रास्ता अर्थात‘मध्यम मार्ग’ अपनाना चाहिए। इसके बाद उन्होंने उस परम यथार्थ की चर्चा की जो कि चार आर्य सत्यों के रूप में वर्णित है। ये चार आर्यसत्य हैं:‘दुख’ या पीड़ा,‘समुदय’ अर्थात दुख का उदय,‘निरोध’ अर्थातदुख का निवारण, और‘मग्ग’ अर्थातदुख के निवारण का मार्ग।
9. मानव मात्र की दशा और मानवीय क्षमता का संक्षिप्त विवेचन, जिस प्रकार इन चार सारगर्भित सूत्रों मेंसमाहित है उस प्रकार का दूसरा उदाहरण,सम्पूर्ण इतिहास में किसी भी आध्यात्मिक या साहित्यिक परंपरा में नहीं मिलता है। हमारे कष्टों की पहचान के बाद,बुद्ध ने उनकी औषधि भी बताई, जिसे ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाले‘अष्टांग मार्ग’के रूप में जाना जाता है। यह, जीवन का सर्वांग-सम्पूर्ण व आदर्श मार्ग है। इस मार्ग के आठ अंग हैं: सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प,सम्यक वाक, सम्यक कर्म,सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि।
10. अंत में, बुद्ध यह घोषणा करते हैं, ‘और इस प्रकार सम्यक ज्ञान का आलोक मुझ में उदित हुआ: मेरे हृदय को निर्वाण से अब रोका नहीं जा सकता। यह अंतिम जन्म है। अब पुनर्जन्म नहीं होगा।’
11. इस प्रकार 'धम्म चक्क' अर्थात सत्य के चक्र का प्रवर्तन किया गया। तभी से यह चक्र, ध्रुव-तारे की भांति,आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को सांसारिक जीवन के जंजाल से निकलने का रास्ता दिखाने और उनके दुखों को तत्काल समाप्त करने में सहायक बना हुआ है। यह मार्ग इतना वैज्ञानिक है कि यह किसी परंपरागत व रूढ़िवादी धर्म जैसानहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक उपचार जैसा प्रतीत होता है। अस्तित्व के मूल-तत्व के अन्वेषण के प्रति उदारवादी दृष्टि रखने और शाश्वत शांति की कुंजी प्राप्त करने की संभावना प्रस्तुत करने के कारण ही इस मार्ग की ओर,पिछले पच्चीस सौ वर्षों के दौरान हर आयु के जिज्ञासु प्रवृत्त हुए हैं। इस चक्र की एक आवृत्ति पूरी हो चुकी है,और धम्म का संदेश हाल के दशकों में पश्चिम के सुदूर स्थानों तक पहुंच गया है।
12. धम्म का उद्भव-स्थल होने पर भारत को गर्व है। भारत से ही धम्म का प्रसार निकटवर्ती क्षेत्रों में हुआ। वहां, इसे उर्वरा भूमि व अनुकूल जलवायु मिली और यह सहज रूप से फला-फूला। अंततः इसकी विभिन्न शाखाएं-प्रशाखाएं विकसित हुईं।
13. भारत में, हम बौद्ध धर्म को परम सत्य की नवीन अभिव्यक्ति के रूप में देखते रहे हैं। बोधि प्राप्त होने तथा उसके बाद केचार दशकों से भी लंबी अवधि के दौरान बुद्ध ने जो उपदेश दिए, वे बौद्धिक उदारता और आध्यात्मिक विविधता की भारतीय परंपरा के अनुरूप थे। आधुनिक युग में,भारत कीदो असाधारण महान विभूतियों - महात्मा गांधी और बाबासाहब आंबेडकर - ने बुद्ध के उपदेशों से प्रेरणा प्राप्त करके राष्ट्र की नियति को स्वरूप प्रदान किया।
14. उनके पद-चिह्नों पर चलते हुए,हमें गौतम बुद्ध के आह्वान पर ध्यान देने और इस श्रेष्ठ मार्ग का अनुसरण करने के आग्रह को स्वीकार करना चाहिए। अल्पकालीन और दीर्घकालीन, दोनों ही दृष्टियों से यह संसार दुखों से भरा हुआ लगता है। तीव्र अवसाद से पीड़ित होकर,जीवन की क्रूरताओं से मुक्ति पाने के लिए,बुद्ध की शरण में आए राजाओं और संपन्न लोगों की अनेक कहानियां उपलब्ध हैं। पहले से चली आ रही मान्यताओं को बुद्ध के जीवन से चुनौती मिली क्योंकि वे यह मानते थे कि इस संसार की अपूर्णताओं के बीच रहते हुए भी दुखों से मुक्ति प्राप्त करना संभव है।
15. आज, जब महामारी ने पूरी दुनिया में मानव जीवन और अर्थव्यवस्थाओं को तबाह कर दिया है, तब बुद्ध का संदेश ज्योति-पुंज की तरह राह दिखा रहा है। उन्होंने लोगों से कहा था कि आनंद प्राप्त करने के लिए उन्हें तृष्णा, घृणा, हिंसा,ईर्ष्या और अन्य अनेक दुर्गुणों का त्याग करना होगा। लोलुपता से ग्रस्त,पश्चाताप-रहित मानव-जाति हिंसा और प्रकृति के विनाश की उसी पुरानी राह पर चल रही है,जो बुद्ध के संदेश के सर्वथा विपरीत है। हम सभी को यह एहसास है कि कोरोना वायरस का प्रकोप कम होते ही हमें, अपने सम्मुख विद्यमान जलवायु परिवर्तन की अति गंभीर चुनौती का सामना करना है।
16. हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भली-भांति जानते थे कि बुद्ध के मार्ग पर चलकर हम वर्तमान संकट से बाहर आ सकते हैं।1927 में,उन्होंने कोलंबो के आनंद कॉलेज के विद्यार्थियों से कहा था: "उस महान गुरु ने हमें सन्मार्ग का पाठ पढ़ाया है... उस सन्मार्ग को जानने का अर्थ केवल यही नहीं है कि हम उन बहुत सी चीजों को, जो श्रेष्ठ, भली और सुंदर लगें,अपने मस्तिष्क में भर लें, बल्कि यह भी है कि हम सही कार्य करें... गौतम बुद्ध में करुणा और दया इतनी भरी हुई थी कि उन्होंने हमें मानव कोही प्यार करने की शिक्षा नहीं दी, बल्कि जिसमें भी जीवन है, उस सबसे, समस्त प्राणि-जगत से प्रेम करना सिखाया। उन्होंने हमें अपने व्यक्तिगत जीवन को भी शुद्ध रखने की शिक्षा दी।”
17. अपने जीवन के अंतिम चरण में,बुद्ध इस वास्तविकता के प्रति पूरी तरहसचेत थे कि ईर्ष्या,द्वेष, तृष्णाऔर महत्वाकांक्षा से उपजे अहंकार के कारण प्रेमयुक्त दयालुता और करुणा के सद्गुणों की उपेक्षा होगी। इसीलिए बुद्ध ने अपने अनुयायियों को प्रोत्साहित किया कि वे परस्पर वाद-विवाद और संवाद की संस्कृति को अपनाएं तथा अपने सत्य का संधान स्वयं करें। मानवीय दुखों के निवारण के लिए उनका सुझाया उपचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना ढाई हजार वर्ष पहले था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि बुद्ध ने जिन जीवन-मूल्यों का उपदेश दिया था,उनको अपनाने की आवश्यकता हमेशा बनी रहेगी। प्रत्येक आध्यात्मिक परंपरा सेउपलब्ध कल्याणकारी सद्बुद्धि की उपेक्षा करने से ही आज हम सब इस दशा में पहुंचे हैं। अब समय आ गया है कि हम सब उन शिक्षाओं का सम्मान करें।
18. इस आयोजन की मेजबानी और आप सबके साथ अपने विचार साझा करने का अवसर प्रदान करने के लिए, मैं इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कॉन्फेडरेशन का आभारी हूं। इस वर्ष विश्व समुदाय ने बहुत कष्ट उठाए हैं। मेरी हार्दिक कामना है कि यह पावन दिवस हम सबके जीवन में आशा की नई किरण और खुशियों की सौगातलाने वाला सिद्ध हो। मैं प्रार्थना करता हूं कि यह दिवस प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में ज्ञान कीज्योति प्रकाशित करे।