नोबेल विजेता संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन
सभागृह, राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केन्द्र : 05.02.2018
1. मैं आप सभी का राष्ट्रपति भवन में स्वागत करता हूं। मुझे नोबेल विजेता संगोष्ठी के लिए यहां उपस्थित हो कर खुशी हुई है और मुझे खुशी है कि आप सब यहां उपस्थित हैं। भारतीय वैज्ञानिक और नीति निर्माता समुदाय तथा नोबेल फाउंडेशन के बीच यह एक नियमित और महत्वपूर्ण बैठक है, जो नोबेल पुरस्कार का भाग है।
2. अनुसंधान की भावना और आविष्कार की जिज्ञासा विज्ञान के मूल में निहित है। भारत में इनकी लम्बी परम्परा है। हल्के-फुल्के अंदाज में कहा जाए तो भारत ने कुछ न देकर विश्व के विज्ञान और गणित में क्रांति ला दी। मैं यहां ‘शून्य’ की बात कर रहा हूं-जिसका मूल भारत में है। गणित से लेकर खगोलविज्ञान, धातुओं के अध्ययन से लेकर चिकित्सा विज्ञान के अध्ययन तक भारत में विज्ञान और वैज्ञानिक चिंतन का युगों पुराना इतिहास है।
3. आधुनिक युग की शुरूआत में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के केन्द्र पश्चिम में, यूरोप में और संयुक्त राज्य अमेरिका में थे। अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और अर्थशास्त्र की भांति, विज्ञान की शक्ति संरचना भी औपनिवेशिक समीकरणों से प्रभावित हुई। 20वीं शताब्दी के आरंभ में, भारतीय वैज्ञानिक इसे चुनौती देने लगे। सीमित संसाधनों और अपनी पहल के द्वारा, उन्होंने यहीं भारत में रहकर शानदार कार्य किया।
4. इस संदर्भ में बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं। जे.सी. बोस विश्व-स्तर के मेधावी नवान्वेषक और वैज्ञानिक थे। उन्होंने 1895 में ही पहले सूक्ष्म तरंगों के बेतार संचार का प्रदर्शन किया। इतालवी इंजीनियर मारकोनी और रेडियो तरंगों के उनके संचार से काफी पहले ही उन्होंने यह कर दिखाया था। उन्होंने हमारे देश के एक अग्रणी संस्थान कोलकाता के बोस संस्थान, जिसने हाल ही में सौ वर्ष पूरे किए हैं, की भी स्थापना की थी। वास्तव में, कुछ महीने पहले, मुझे इसके शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम में शामिल हो कर प्रसन्नता हुई। ऐसे और लोग भी थे। सी.वी. रमण 1930 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले प्रथम भारतीय थे। और यदि विलक्षण श्रीनिवास रामानुजन के जीवनकाल में फील्डस पदक की स्थापना हो गई होती तो वे निश्चत तौर पर एक मजबूत प्रतियोगी रहे होते।
5. भारत के स्वतंत्र होने के बाद के 70 वर्षों में विज्ञान में हमारे विश्वास ने हमारे समाज और विकास की प्रक्रिया को आकार दिया है। कृषि से लेकर परमाणु ऊर्जा के सदुपयोग रोग प्रतिरोधक टीके के नवान्वेषण से लेकर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में प्रगति तक, विज्ञान ने सीढ़ी-दर- सीढ़ी या कहें कि तिनका-दर-तिनका राष्ट्र निर्माण में हमारी मदद की है।
6. विज्ञान में इस निवेश के साथ कदम से कदम मिलाते हुए, हमने अपने उच्च शिक्षा संस्थानों के माध्यम से लोगों में भी निवेश किया है। हमने हाल ही में अनेक केन्द्रीय विश्वविद्यालयों; भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों और भारतीयविज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों की स्थापना की है। परिवर्तनशील भारत के लिए इस निवेश से वैज्ञानिकों, चिकित्सीय अनुसंधानकर्ताओं और प्रौद्योगिकीविदों का एक विशाल समूह तैयार होगा।
7. इस निवेश के सार्थक परिणाम प्राप्त करने के लिए इन संस्थानों को और हमारे विद्यालयों को भी विश्व में सर्वोत्तम बनना होगा। यह एक चुनौती है परन्तु हम एकजुट होकर इसे पूरा कर सकते हैं। हम सब मिलकर नवान्वेषण को अपने वैज्ञानिक वर्ग का जुनून ही नहीं बल्कि अपनी विद्यालयी शिक्षा प्रणाली की जीवन रेखा भी बना सकते हैं।
8. सफलता के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है। पहली चीज, हमारे वैज्ञानिकों- पीएचडी विद्यार्थियों से लेकर वरिष्ठ प्रौद्योगिकीविदों तक में साझा उद्देश्य का भाव होना चाहिए। उन्हें उत्कृष्ट क्षमता निर्माण पर ध्यान देना चाहिए, राष्ट्रीय मिशनों में भाग लेना चाहिए और अग्रणी अनुसंधान शुरु करने चाहिए। खण्डित रूप वाले, व्यक्ति प्रेरित दृष्टिकोण से हटकार सर्वोच्च गुणवत्ता वाली टीमों का निर्माण करना होगा।
9. दूसरी चीज, अनुसंधान केन्द्र तैयार करने के लिए हमारे अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों को बुद्धिमत्तापूर्वक और परस्पर सहयोग से काम करना चाहिए। ये केन्द्र न केवल भारत के लिए बल्कि विश्वभर के लिए उत्कृष्टता के नए मापदण्ड स्थापित कर सकते हैं। बंगलुरु का प्रौद्योगिकी केन्द्र इसकी मिसाल है। हमें ऐसे बहुत से और केन्द्र स्थापित करने होंगे।
10. और तीसरी बात है, विश्व निरंतर बदल रहा है और प्रत्येक दिशा से विचारों का प्रवाह हो रहा है, इसलिए हमारे वैज्ञानिकों को अनुसंधान और प्रौद्योगिकी की नवीनतम प्रगति से जुड़े रहना चाहिए। बिना वैश्विक उद्यम के विज्ञान का कोई अर्थ नहीं है। हम आज इसी पर ध्यान दे रहे हैं। हम विश्व श्रेणी के संस्थानों और विश्वविद्यालयों की स्थापना कैसे कर सकते हैं और हम इन्हें अपनी राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर और उससे परे भी अपने समाज के साथ कैसे जोड़ सकते हैं; इस पर विचार चल रहा है।
11. यहां उपस्थित नोबेल विजेता और फील्डस पदक विजेता भारत के प्रतिभावान वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं, विद्यार्थियों और विश्वविद्यालयों के साथ परिचर्चा यह देखने के लिए करेंगे कि हम अपने संस्थानों को सर्वोत्तम कैसे बना सकते हैं, और इससे हमारे समाज का कायापलट कैसे हो सकता है।
12. बहुत से विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थानों के कुलाध्यक्ष के नाते, मुझे आज की परिचर्चा में व्यक्तिगत रुचि है। मैं कामना करता हूं कि पूरे दिन आप गंभीर बौद्धिक और महत्वपूर्ण विचार-विमर्श करें और मुझे आशा है कि आज दोपहर बाद आप कुछ ऐसी अनुसरणीय संस्तुतियां प्रस्तुत कर सकेंगे जिनका प्रयोग भारत में और विश्व में किया जा सके और जिनसे हम सब लाभ उठा सकें
धन्यवाद
जय हिन्द !