नोबेल विजेता संगोष्ठी में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का समापन सम्बोधन
सभागृह, राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केन्द्र : 05.02.2018
1. दिन भर चली एक अति सार्थक और बौद्धिक रूप से प्रेरक चर्चा के समापन कार्यक्रम में एक बार फिर आपसे मिलकर मुझे खुशी हुई है। आज सुबह अपने प्रारंभिक संबोधन में, मैंने विज्ञान और वैज्ञानिक अन्वेषण की प्राचीन भारतीय परंपरा का उल्लेख किया था। एक अन्य प्राचीन भारतीय परंपरा ‘संवाद’ की है जो एक तरफा संभाषण की बजाय दो तरफा वैचारिक विनिमय की परंपरा है।
2. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि अपनी रूपरेखा के मामले में, आज का आयोजन संवाद की अवधारणा के अनुरूप था। नोबेल विजेताओं और वैज्ञानिक प्रशासकों के बीच एक-घंटे की पैनल परिचर्चा के बाद एक घंटा प्रश्नोत्तर हुआ। इस घंटे के दौरान, अनुसंधानकर्ता, युवा वैज्ञानिक और हमारे देश की कुछ सर्वोत्तम उदीयमान प्रतिभाएं अपने-अपने क्षेत्र के विशिष्ट अगुवाओं के साथ सीधे बातचीत कर पाने में सफल हो सके।
3. मैं उन नोबेल विजेताओं की सराहना करता हूं जो प्रश्नों के उत्तर इतने विस्तार से देने के लिए समय निकाल कर यहां उपस्थित हुए हैं और ऐसे संतोषजनक आयोजन प्रारूप को जिन्होंने सहमति प्रदान की। आपने अपने-अपने ज्ञान और विद्वता को प्रेरणाप्रद ढंग से साझा किया है। भारत में आपकी उपस्थिति और वास्तव में, यह सच्चाई कि नोबेल फाउंडेशन तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस संवाद के लिए एकजुट हुए हैं-इस बात का संकेत है कि भारत में अनुसंधान और विकास और नवान्वेषण के लिए उच्चतर प्रतिमान तय करने की हमारी साझी आकांक्षा है। ऐसे सच्चे और हितकारी मित्रों के प्रति प्रत्येक भारतीय आभार प्रकट करता है।
4. हमारी आकांक्षाएं और हमारी भविष्य की रूपरेखा एक जैसी है। आज उभर कर आए कुछ विषयों पर शायद ही कोई मतभेद उभरे। एक वक्ता ने जोर दे कर कहा था कि शिक्षा इस पिरामिड का आधार है और वैज्ञानिक अनुसंधान उसका शिखर है। एक सुदृढ़, गतिशील और रचनात्मक शिक्षा और विद्यालयी शिक्षा प्रणाली के बिना, हम अनुसंधान और नवान्वेषण की संस्कृति का सृजन नहीं कर सकेंगे। यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी कक्षाओं में जिज्ञासा की भावना उत्पन्न करें और विज्ञान को शब्द जाल से मुक्त करें।
5. इसके अलावा, जैसा कि आज कहा भी गया है कि श्रेष्ठ अनुसंधानकर्ता उसी व्यवस्था में उभरकर सामने आते हैं जिसमें श्रेष्ठ शिक्षक और श्रेष्ठ संकाय को महत्व दिया जाता हो। अनुसंधान संस्थाओं और विश्वविद्यालयों तथा अनुसंधान और उद्योग के बीच संयोजन अत्यंत आवश्यक है। इनका अस्तित्व अलग-अलग चारदीवारियों में कायम नहीं रह सकता।
6. विज्ञान को समाज के साथ जोड़ना भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रति व्यापक समर्थन का एक कारण आम भारतीयों के जीवन से जुड़े समाधान प्रदान करने की भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की योग्यता रही है, चाहे मामला हमारे किसानों की मदद के लिए मौसम की प्रवृत्तियों का मानचित्रण हो या स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बढ़ाने वाली टेली-मेडिसिन का।
7. एक अन्य बात जिस पर परिचर्चा हुई है, वह है हमारे वैज्ञानिकों की नेतृत्व व प्रशासनिक क्षमता तथा जन संप्रेषण क्षमता विकसित करना। 15 या 20 लोगों की तकनीकी रूप से सक्षम टीम के नेतृत्व के लिए प्रचुर कौशल की जरूरत होती है। योग्य वैज्ञानिकों की ऐसी टीम के साथ संवाद करने के लिए भी प्रभूत कौशल की आवश्यकता होती है। कुछ हजार वैज्ञानिकों वाले संस्थान का नेतृत्व करने के लिए ऐसी ही परन्तु अलग प्रकार की क्षमता चाहिए। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की जटिलताओं से जनसाधारण को अवगत कराने के लिए हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों को बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। तथापि हमारे वैज्ञानिकों को समाज के हित के लिए यह कार्य करना होता है। विज्ञान के बारे में बताकर, आप विज्ञान के अभियान का विस्तार करेंगे।
8. आज, हमने अपने नोबेल मित्रों की ऐसी ही उदार भावना यहां देखी है। मुझे उम्मीद है कि भारत की आपकी यात्रा सुखद रही होगी और मैं आपको और यहां मौजूद अन्य सभी को आपके भावी प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि नोबेल फाउंडेशन का प्रतिनिधि मंडल अगले वर्ष फिर हमारे देश की यात्रा पर आएगा। मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि राष्ट्रपति भवन के द्वार सदैव आपके लिए खुले हैं।
धन्यवाद
जय हिन्द !