Back

वर्ल्ड फूड इंडिया 2017 के समापन समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

नई दिल्ली: 05.11.2017

Download PDF

1. मुझे ‘वर्ल्ड फूड इंडिया 2017' के समापन समारोह में उपस्थित हो कर प्रसन्नता हुई है और मैं इसकी शानदार और वास्तव में ऐतिहासिक सफलता के लिए सभी आयोजकों को बधाई देता हूं। इस शिखर सम्मेलन में 60 वैश्विक कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों सहित 60 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इससे भारत के खाद्य उद्योग और खाद्य प्रसंस्करण के विस्तृत और लगभग असीम अवसर सामने लाने में मदद मिली है। दूसरे शब्दों में यदि मैं कहूं तो यह आयोजन भारतीय खाद्य का‘कुम्भ मेला’रहा।

2. एक समृद्ध, मिश्रित और परिष्कृत खाद्य संस्कृति भारत की परंपरा है। हमारे पूर्वजों द्वारा सिंधु घाटी में अन्न उगाए जाने के बाद से अब तक के हजारों वर्षों का सच यही रहा है। आयुर्वेद और योग जैसी हमारी बौद्धिक परंपराओं में शरीर की विभिन्न प्रणालियों के अनुकूल उपयुक्त खाद्य तत्वों पर जोर दिया जाता है।

3. हमारे समुदाय, इस विशाल उपमहाद्वीप के कोने-कोने में ऐतिहासिक रूप से विविध और पौष्टिक अन्न का प्रयोग करते आ रहे हैं। उन्होंने ऐसी पारंपरिक कृषि पद्धतियों भी प्रयोग किया है जो तत्वत: जैविक हैं। विडंबना यह है कि ये पद्धतियां अन्य देशों से अपना रूप बदलकर आज वापस हमारे बाजारों में आ गई हैं।

4. भारत का खान-पान हमारे समाज की ही तरह विविधतापूर्ण है। हमारे देश के बहुत से लोगों के लिए प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं दालें, अनेक किस्म की दालों की किस्में राज्यवार,यहां तक जिलेवार बदलती जाती हैं। भारत में 29 राज्य हैं और शायद बिरयानी या खिचड़ी तैयार करने की भी 290 अलग-अलग विधियां होंगी। विभिन्न मृदा प्रणालियां,आश्चर्यजनक कृषि उत्पादों की इस अद्भुत रेंज के पीछे हैं। आसाम के ‘टायेंगा’ से लेकर पंजाब के ‘सरसों दा साग', गुजरात के‘ढोकला’ से लेकर तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य राज्यों के‘डोसा’में सेचुनने के लिए बहुत कुछ है।

5. मैं कहना चाहूंगा कि किसी मानव का पूरा जीवन भी भारतीय खाद्य पदार्थों की किस्मों और प्रचुरता का अनुभव करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

6. खाद्य पदार्थ, भारत के विश्व संपर्क विस्तार का हिस्सा हैं और सदियों से ऐसी ही स्थिति रही है। स्वाभाविक रूप से उन्मुक्त और व्यापारिक समाज के रूप में हमने खान-पान की विभिन्न किस्मों और रीति-रिवाजों को अन्य देशों में पहुंचाया है और उन्हें अपनाया भी है। आज, पश्चिम एशिया से लेकर वेस्ट इंडीज तक, भारतीय खान-पान लोकप्रिय है और अक्सर स्थानीय स्वादों के अनुसार इनमें मामूली बदलाव कर लिए जाते हैं। बटर चिकन कांगो के ब्रात्साविले से लेकर जर्मनी के बर्लिन तक पाया जा सकता है।

7. हाल ही में,मैंने भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपनी पहली विदेश यात्रा पर हॉर्न ऑफ अफ्रीका के जिबूती नगर की यात्रा की। उस देश में मुख्य अल्पाहार के तौर पर समोसे का बदला हुआ रूप प्रयोग में लाया जाता है। मुझे बताया गया है कि जिबूती में समोसा भारत से आया था। और भारत में यह माना जाता है कि समोसे का एक रूप मध्य एशिया से व्यापार मार्गों के जरिए यहां आया था। खान-पान वास्तव में दुनिया को जोड़ता है। यहां तक कि जापान की टेम्पुरा शैली के बारे में कहा जाता है कि यह भारत के तले हुए पकौड़ों से प्रेरित है।

मित्रो,

8. खान-पान एक संस्कृति है परन्तु यह वाणिज्य भी है। भारत का खाद्य उपभोग वर्तमान में 370 बिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य का है। एक दशक से भी कम समय अर्थात 2025 में इसके 1 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। उपज के बाद की सुविधाओं,संभार तंत्र,कोल्ड चैन और विनिर्माण सहित भारत की सम्पूर्ण खाद्य मूल्य-वर्धन शृंखला में अवसर मौजूद हैं। इस क्षेत्र में विशाल कारोबार संभावनाएं है।

9. खाद्य उद्योग में बहुत से लोगों को रोजगार मिल सकता है। और भारत जैसे देश के लिए इसका सर्वाधिक महत्व है क्योंकि इस देश में विशाल युवा जनसंख्या है। यह भी उल्लेखनीय है कि महिलाएं व्यापक तौर पर खाद्य क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। विशेषकर हमारे ग्रामीण इलाकों में, सूक्ष्म उद्यमियों के रूप में महिलाओं के उभरने और कार्यबल में महिलाओं की समग्र भागीदारी बढ़ने की प्रबल संभावनाएं हैं।

10. महिलाएं गांव के खेतों से इकट्ठे किए गए फलों व सब्जियों के प्रसंस्करण द्वारा ‘जैम’और अचार बनाने के लिए लघु उद्यम स्थापित कर सकती हैं। वे सुदूर बाजारों की कीमतों और उपभोक्ता रुझानों के अध्ययन के लिए इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर सकती है। ऐसा करके,वे स्वयं को सबला बना सकती हैं, परिवार की आय में वृद्धि कर सकती हैं और ऐसा करके राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकती हैं।

11. इस प्रकार के सामान्य परिणाम से बहुत सारे लाभ हो सकते हैं। इससे हमारे देश में फसल की अस्वीकार्य और अत्यधिक बरबादी को काफी कम किया जा सकता है। इस बारे में उपलब्ध कुछ आंकड़े वाकई चौंका देने वाले हैं। उदाहरण के लिए,भारत में अमरुदों की लगभग 16 प्रतिशत तथा आम और सेब की 10प्रतिशत उपज बेकार हो जाती है। मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन के विचार-विमर्श के परिणाम-स्वरूप हम ऐसी खेद-जनक बर्बादी को काफी हद तक रोक सकेंगे। आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण पर संकेंद्रित तौर पर बल दिए जाने से हालात बदल सकते हैं। इससे‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्ट-अप इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे हमारे अनेक अग्रणी कार्यक्रमों के साथ खाद्य-क्षेत्र के जुड़ने की संभावना बनेगी और कृषि आय को दुगुना करने का संकल्प पूरा हो सकेगा।

12. बढ़ते खाद्य उद्योग के सामाजिक और आर्थिक लाभों के प्रति भारत सरकार जागरूक है। घरेलू और विदेशी निवेश को आकर्षित करने का यह एक प्रमुख क्षेत्र है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस समारोह में लगभग 50 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर हुए हैं। खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए देश के सभी भागों में41मेगा फूड पार्क और कोल्ड चेन स्थापित की जा रही हैं। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा, सटीक लेबलिंग,बौद्धिक संपदा मुद्दों और नवान्वेषण तथा सहायक के तौर पर प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर निरंतर जोर दिया जा रहा है।

13. इस संदर्भ में, मैं आज स्टार्ट-अप और हैकेथोन पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि आप भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र संवारेंगे तथा गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों में सुधार लाएंगे। चुने गए एक स्टार्ट-अप में भारत के नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ. सी.वी. रमन की खोज‘रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’ को,एक कम लागत के दस्ती यंत्र के रूप में ढाला गया है, जिससे खाद्य मिलावट का तुरंत पता लगाया जा सकता है। इस प्रौद्योगिकी से खाद्य पदार्थों में अरबों रुपये की धोखा-धड़ी से बचा जा सकता है।

14. मुझे विश्वास है कि भारतीय कृषक और भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भारत के लिए खाद्य उत्पाद बना सकते हैं तथा भारत में प्रतिस्पर्धी लागत ढांचे को देखते हुए विश्व के लिए भी। इससे किसान और उपभोक्ता दोनों औचक कीमत वृद्धि के धक्के से बच सकते हैं तथा कृषि समुदाय के लिए समुचित आय सुनिश्चित करने में इसका बहुत योगदान हो सकता है। मुझे इस सम्मेलन के परिणामों और समझौतों की प्रतीक्षा रहेगी। मुझे विश्वास है कि इससे हम अपने लक्ष्यों में से अनेक के नजदीक पहुंच जाएंगे।

15. मैं एक बार फिर आयोजकों के प्रयासों की सराहना करता हूं। उन्होंने वास्तव में एक प्रभावशाली आयोजन किया है जिसने हम भारती और विदेशी आगंतुकों को हम लोगों को खाद्य मुद्दों और खाद्य उद्योग के बारे में इस प्रकार विचार करने के लिए प्रेरित किया है, जैसा हमने पहले नहीं किया था। विशेष रूप से, इससे हमारे देश में फसल की बर्बादी समाप्त तो नहीं हो जाएगी लेकिन इसे घटाकर नीचे लाने की एक समयबद्ध योजना जरूर बनेगी।

मित्रो,

16. यह अकारण नहीं है कि इस शिखर सम्मेलन का नाम वर्ल्ड फूड इंडिया रखा गया है। भारत की खान-पान गाथा के अर्थ विश्वव्यापी हैं। विश्व स्तर पर, भारतीय खाद्य उत्पादों का बाजार विशालहै। यह व्यापार दक्षिण एशिया के 1.8 बिलियन लोगों से लेकर 30 मिलियन जनसंख्या वाले प्रवासी समुदाय तक तथा विश्व के सभी भागों में और करोड़ों लोगों तक फैला हुआ है। इस प्रकार, भारतीय खाद्य उद्योग में मौजूद अवसरों के बारे में आपको बहुत अच्छी जानकारी मिली होगी। यह जानकारी प्राप्त करें और यहां निवेश करें।


धन्यवाद

जय हिन्द !