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केन्द्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 के अंतर्गत स्थापित नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

राष्ट्रपति भवन : 06.01.2018

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आज हम लोगों ने उत्तर में जम्मू और कश्मीर से लेकर दक्षिण में केरल तक और पूरब में बिहार से लेकर पश्चिम में गुजरात तक और बहुत से दूसरे राज्यों में अब स्थित17नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की बात सुनी है। ये विश्वविद्यालय, हमारे उच्च शिक्षा संस्थान परिवार के नवीनतम सदस्य हैं। इनमें से 16 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना 2009 में और एक की स्थापना चार वर्ष से भी कम समय पहले 2014 में की गई है।

2. भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपनी भूमिका के तहत मैं इन सभी विश्वविद्यालयों का कुलाध्यक्ष हूं। शिक्षा और विशेष रूप से उच्च शिक्षा एक ऐसा विषय है जिसमें मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत रुचि है। इसीलिए मैंने, इन विश्वविद्यालयों के समक्ष आने वली समस्याओं को समझने, विचार-विमर्श करने और जहां भी संभव हो, उनके शीघ्र समाधान के लिए यह बैठक बुलाई है।

3. किसी नए संस्थान की स्थापना में अनिवार्य रूप से कुछ शुरुआती समस्याएं आती हैं। ऐसी समस्याएं प्रत्याशित होती हैं और इन्हें सुलझाया जाना होता है। नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के मामले में,जैसा कि मैंने आज जाना है, संकाय के चयन और भर्ती, शैक्षिक कर्मियों के प्रशिक्षण और उनके कौशल को अद्यतन करने की अवसंरचना, वित्तीय दबावों, प्रौद्योगिकी के समेकन और ऐसे ही अन्य मामलों से संबंधित मुद्दे आते हैं।

4. कई मामलों में विश्वविद्यालय अकेले ही इन समस्याओं को हल नहीं कर सकता। वास्तव में, इन्हें किसी एक विभाग या मंत्रालय द्वारा हल नहीं किया जा सकता। यह सही है कि इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को आगे आना होगा और आज मानव संसाधन विकास मंत्री, राज्य मंत्री तथा मंत्रालय के अन्य अधिकारियों की यहां उपस्थिति की सराहना करता हूं। परंतु इसमें वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग जिसके प्रतिनिधि आज यहां उपस्थित हैं और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जैसे संस्थानों की भी भूमिका है।

5. इसीलिए मैंने बहु-हितधारकों के विचार मंथन के तौर पर इस बैठक का प्रस्ताव किया था। मुझे खुशी है कि हमारे बीच एक खुला और स्पष्टवादी विचार-विनिमय हुआ है। अब इसके बाद, निर्णयों का समयबद्ध कार्यान्वयन होना चाहिए।

6. हमारे नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को आरंभिक कठिनाइयां हो सकती हैं परंतु वे फायदे की स्थिति में हैं। वे अतीत के मुद्दों से पूरी तरह बच सकते हैं। वे ऐसी प्रणालियों और व्यवस्थाओं का निर्माण कर सकते हैं जो भावी जरूरतों और भविष्योन्मुखी प्रौद्योगिकियों के साथ चल सकें। संक्षेप में, वे वास्तव में, 21वीं शताब्दी के विश्वविद्यालय बन सकते हैं। एक साथ स्थापित होने से,आपके विश्वविद्यालय वैसे ही एक साझा समुदाय का हिस्सा हैं जिस प्रकार से भारतीय प्रबंधन संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान एक ही समुदाय का हिस्सा हैं। इसलिए नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों कोसंगठित होना चाहिए और एक दूसरे सीख लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए।

7. मैं साफ तौर से कहना चाहूंगा कि कुलपतियों के रूप में आप सभी को इन संस्थानों का नेतृत्व करने और महान विश्वविद्यालय के रूप में विकसित होने की आधार-भूमि तैयार करने का कार्य सौंपा गया है, क्योंकि आपमें बहुत क्षमता है। केन्द्रीय विश्वविद्यालय का नाम लेने से ही एक उच्चतर मानदंड की और अखिल भारतीय स्वरूप और प्रतिष्ठा वाले विश्वविद्यालय की छवि मन में आनी चाहिए।

8. इन नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और प्रशासकों के रूप में आप सभी को एक बड़ा अवसर मिला है। आप सब, शिक्षा के इन अग्रणी संस्थानों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। आपका दायित्व विश्वविद्यालय में दृढ़ अनुशासन लागू करने का है। आपके विश्वविद्यालयों को प्रवेश, कक्षाओं का संचालन, परीक्षाओं, परिणामों की घोषणा, दीक्षांत समारोह में उपाधियों का वितरण आदि सभी पहलू शामिल करते हुए अपने शैक्षिक कार्यक्रम तैयार करने चाहिए, उनका नियमन करना चाहिए और उसका सख्ती से पालन करना चाहिए। समाज को आपसे सर्वोत्तम कार्य-निष्पादन की उम्मीद है।

9. इसी प्रकार से अध्यापकों द्वारा नियमित उपस्थिति लिया जाना सुनिश्चित करने तथा वित्तीय अनुशासन लागू करने और खातों का रख-रखाव करने की महत्ता भी है। आखिरकार आप लोक निधियों के संरक्षक हैं। जहां संभव हो, वहां कुलसचिव और वित्तीय अधिकारियों के रूप में केन्द्रीय सेवाओं के अधिकारियों को लाना बुद्धिमतापूर्ण रहेगा। इससे कुछ मानदंड सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

10 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में तेजी से तथा तत्काल रिक्तियां भरी जानी चाहिए। अध्यापकों की रिक्तियों को न भरा जाना प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों के प्रति अन्याय होगा और उनकी शिक्षा का नुकसान होगा। जहां आवश्यक हो, वहां कुछ निश्चित अवधि के लिए सेवानिवृत्त प्रोफेसरों को नियुक्त किया जा सकता है। सेवानिवृत्ति या बढ़ती हुई आवश्यकताओं के कारण प्रत्याशित रिक्तियों की योजना महीनों पहले बना लेनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना सभी प्राधिकारियों का दायित्व है कि भर्तियां पूरी ईमानदारी से की जाएं तथा किसी भी अन्यथा प्रभाव से मुक्त हों।

11. आपके विश्वविद्यालय का एक भौगोलिक संदर्भ है। इन विश्वविद्यालयों को संबंधित राज्य के समाज की तथा राज्य की भी बेहतरी में योगदान करना होगा। राज्य सरकारों के साथ समन्वय रखने की प्रक्रिया निरंतर जारी रहनी होती है और भूमि अंतरण कीआरंभिक जरूरत तक ही इसे सीमित नहीं रहना चाहिए। आसपास स्थित विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ संसाधनों को साझा करने और उनसे लाभ उठाने व साझेदारियां बनाने में मदद मिलेगी।

12. पिछड़े हुए क्षेत्रों में स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का विशेष दायित्व या मुझे कहना चाहिए कि नैतिक दायित्व है कि वे प्रतिभावान बच्चों के लिए अवसर बढ़ाएं। जिले के जवाहर नवोदय विद्यालय के सर्वोत्तम और प्रतिभावान विद्यार्थी को आपके विश्वविद्यालय में आने की आकांक्षा होनी चाहिए। इतना ऊंचा दर्जा आपके विश्वविद्यालय को प्राप्त करना होगा।

13. प्रौद्योगिकी का प्रभाव इसमें तीव्रकारी हो सकता है। इससे विश्वविद्यालय का काम-काज कुशल और पारदर्शी बन सकता है। आज हमने अलग-अलग विश्वविद्यालयों की श्रेष्ठ पहलों के बारे में सुना है। जैसा कि रोजगार सेवाओं के लिए स्काइप और ऑनलाइन संचार जालसाजी रोकने के लिए डिग्रियों के साथ‘आधार’को जोड़ने तथा रिकॉर्डों का डिजिटाइजेशन। इनका अनुकरण किया जाना चाहिए और किसी‘सर्वोत्तम पद्धति पोर्टल’पर डालना चाहिए।

14. प्रौद्योगिकी से उच्च गुणवत्ता वाली प्रयोगशालाओं को भी मदद मिल सकती है। ऑनलाइन सुविधाओं की स्थापना से,पुस्तकों और अध्यापन के संसाधनों की कमियों को दूर किया जा सकता है और ई-शिक्षण और ई-पुस्तकालय तक पहुंच प्रदान की जा सकती है।

15. हमारे जैसे विविधतापूर्ण देश में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को व्यावसायिक पाठ्यक्रमों और व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रमों पर भी ध्यान देना चाहिए। इसमें भी प्रौद्योगिकी बहुत मदद कर सकती है। मुझे विश्वास है कि हमारे देश में दूर-संचार और इंटरनेट संयोजन के विस्तार से कुछ विश्वविद्यालयों के सम्मुख आ रही ऐसी समस्याओं को दूर कर लिया जाएगा।

16. याद रखिए कि हमारे देश में और विश्व में मेधा के लिए प्रतिभावान प्रोफेसरों और प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिए स्पर्द्धा बढ़ रही है। अच्छे अध्यापकों और प्रोफेसरों के लिए अनेक अवसर-द्वार खुले हुए हैं। विश्वविद्यालयों को इन प्रतिभाओं के लिए स्पर्द्धा करनी पड़ेगी। इसीलिए उदाहरणत-स्वरूप‘एनएएसी’मूल्यांकन प्रणाली के आधार से विश्वविद्यालयों की श्रेष्ठता जांचना बहुत जरूरी है। इससे संभावित विद्यार्थी को यह तय करने में मदद मिलेगी कि किस विश्वविद्यालय का चयन किए जाए। मैं,प्रत्येक केन्द्रीय विश्वविद्यालय से आग्रह करता हूं कि वह अपने लिए और अपने से संबद्ध संबंधित कॉलेजों के लिए श्रेष्ठ‘एनएएसी’रेटिंग प्राप्त करने का भरपूर प्रयास करें।

17. मैं यह भी कहना चाहूंगा कि कुलपतियों के रूप में आप सभी की यह जिम्मेदारी है कि आपको अपने अधीनस्थ लोगों के लिए या आपके विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए सर्वोत्तम वातावरण और सुविधाएं प्रदान करना है चाहे छात्रावास के कमरे हों,स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण हो या उपयुक्त शैक्षिक परिवेश हो। उनकी जायज मांगें पूरी होनी चाहिए। उनकी जायज मांगें पूरी करना ही आपकी सच्ची परीक्षा है।

18. आज हमने समस्याओं पर विचार-विमर्श किया है, परंतु हमने समाधान ढूंढ़ने में भी कुछ प्रगति की है। मुझे विश्वास है कि मंत्री, श्री प्रकाश जावड़ेकर के नेतृत्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय न केवल उन समस्याओं को समयबद्ध ढंग से हल करेगा बल्कि हमारे नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के लिए मध्यकालिक से लेकर दीर्घकालिक दर्शन भी आरंभ करेगा। हमें इन विश्वविद्यालयों को एक राष्ट्रीय परिसंपत्ति और विश्वस्तरीय संस्थान बनने के लिए तैयार करने की जरूरत है। यदि हम उचित समय-सीमा में ऐसा नहीं कर पाए तो हम आने वाली पीढि़यों के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे।

19. इसलिए मुझे विश्वास है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जैसी संस्थाएं नए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को परेशान करने वाले मुद्दों को यथासंभव शीघ्रता से हल करने का भरसक प्रयास करेंगे। मेरा विचार है कि लगभग 4महीने के भीतर शायद मई के मध्य में हम प्रगति की समीक्षा करने के लिए दोबारा मिलें।

20. इन्हीं शब्दों के साथ मैं इस अत्यंत शिक्षाप्रद बैठक के लिए राष्ट्रपति भवन आने और इतनी ईमानदारी से अपनी बात रखने के लिए आपका धन्यवाद करता हूं। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि आप सभी अपने-अपने संस्थानों के प्रति और इन्हें उत्कृष्ट केन्द्र बनाने के प्रति इतने समर्पित हैं। मैं आपको,आपके विश्वविद्यालयों को और विश्वविद्यालय समुदायों को भविष्य के लिए और विशेष तौर से अभी शुरू हुए वर्ष के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!