चौथे भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन
लखनऊ : 06.10.2018
1. मुझे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और ‘विज्ञान भारती’ द्वारा आयोजित ‘भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव 2018’ के उद्घाटन के लिए यहाँ आने पर प्रसन्नता हैlयह आयोजन, इस प्रकार के कार्यक्रमों की श्रृंखला में चौथा कार्यक्रम है।यह उपयुक्त ही है कि इस वर्ष आई आईएसएफ का आयोजन लखनऊ में किया जा रहा हैlइस शहर में शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसन्धान की लम्बी परम्परा रही हैl
2. स्वतन्त्रता प्राप्ति से भी पहले, वनस्पति-विज्ञानी और जीवाश्म विशेषज्ञ बीरबल साहनी ने यहाँ अग्रगण्य कार्य किये।उनके शोध का प्रतीक बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान यहीं पर है। केन्द्रीय औषधि अनुसन्धान संस्थान, केन्द्रीय औषधीय एवं सगन्ध पादप संस्थान, भारतीय गन्ना अनुसन्धान संस्थान और भारतीय विष विज्ञान अनुसन्धान संस्थान जैसी उत्कृष्ट संस्थाएं यहाँ स्थापित की गई थीं। इनवर्षों के दौरान, लखनऊ विशेष रूप से संजय गांधी स्नातकोत्तर चिकित्सा विज्ञान संस्थान के कारण चिकित्सा शिक्षा और शोध का केन्द्र बन गया है। इसके साथ-साथ इजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी का, और हाल ही में, सूचना प्रौद्योगिकी का भी केन्द्र बन गया है। इन सभी संस्थानों को देखते हुए यह शहर, इस प्रकार के उत्सव के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है।
3. विज्ञान हमेशा से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने गणित के रहस्य और शून्य की अवधारणा को उद्घाटित किया था। वे चिकित्सा और धातु कर्म जैसे विविध क्षेत्रों में विज्ञान के नुस्खों का प्रयोग किया करते थे। विज्ञान ने 1947 के बाद, हरित क्रांति से लेकर हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम तथा समृद्ध जैव प्रौद्धोगिकी और औषध निर्माण उद्योग के सृजन के रूप में देश के आधुनिकीकरण को आगे बढ़ाया है। आज 21वीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश में जब रोबोटिक्स और प्रिसीजन विनिर्माण, बायोइनफॉर्मेटिक्स और जीन एडिटिंग, चौथी औद्योगिक क्रांति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग चल रहा है तो हमारे लिए ऊंची छलांग लगाने का समय आ गया है।
4. विज्ञान को जन आंदोलन में तब्दील किए बिना, और हमारी प्रयोगशालाओं, हमारे विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में भी दिन-प्रतिदिन की गतिविधि के रूप में छोटे-छोटे नव-परिवर्तन और नवाचार को प्रोत्साहित किए बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। जुगाड़, कट-पेस्ट प्रयोगों और किफायती नवाचारों की अपनी-अपनी भूमिका होती अवश्य है। फिर भी, यदि हम भारत को मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था और एक उन्नत औद्योगिक शक्ति में बदलना चाहते हैं तो हमें ज्ञान अर्जन के प्रेरकों को उन्नत बनाना होगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी केवल कोई अतिरिक्त साधन नहीं हैं, हमें उनके सर्व-व्यापी स्वरूप और प्रत्येक क्षेत्र में तथा हमारे सभी प्रमुख कार्यक्रमों और विकासात्मक प्रयासों में उनकी भूमिका की पहचान करनी होगी।
5. ऐसे विचारों से सरकार की नीतियाँ तैयार होती हैं। सरल शब्दों में कहूं तो ऐसी विचारधारा से ही आईआईएसएफ ‘विज्ञान का कुम्भ मेला’ बन गया है। इसके सत्रों में विज्ञान सम्बन्धी विषयवस्तुओं पर चर्चा शामिल है।इसके तहत भारत और सहभागी देशों के विज्ञान मंत्रियों का सम्मेलन आयोजित किया जा रहा हैlभारतीय अनुसंधान संस्थानों में प्रवासी भारतीयों के कौशल के उपयोग के रास्ते खोजने के लिए प्रवासी भारतीय वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद् मिलकर विचार-विमर्श करेंगे।
6. ऐसे ही आपसी मेलजोल को सरकार प्रोत्साहित कर रही हैlमुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि वर्ष 2012 और 2017 के बीच, देश मेंअनुसन्धान कार्य संचालित करने के लिए 649 भारतीय वैज्ञानिक विदेशों से स्वदेश वापस आए हैं।उससे पहले के 5 वर्षों में, केवल 243 वैज्ञानिक वापस लौटे थे। यही सही है कि यह महत्वपूर्ण नहीं होता है कि वैज्ञानिक निवास कहां कर रहे हैं क्योंकि विज्ञान की प्रकृति परा-अंतर्राष्ट्रीय हैlकुछ सप्ताह पूर्व, मैं चेक गणराज्य के प्राग में अवस्थित यूरोप के अग्रणी लेज़र अनुसन्धान केन्द्र में था। इस संस्थान में, अपना योगदान देने वालों में मुबई में रह रहे भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल थे।
7. मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि इस महोत्सव में ऐसे सत्र भी होंगे जो जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग का मुकाबला करने; शुद्ध वायु की हमारी आकांक्षा को सामने रखने; और कृषि सम्पन्नता के साथ-साथ लोक स्वास्थ्य को प्रोत्साहन देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएंगेlये मामले देश के विकास की कार्य-सूची के केन्द्र में हैं। वैज्ञानिक नवोन्मेष से ये सभी लाभान्वित हो रहे हैं।
8. अपने कथन के समर्थन में, कुछ उदाहरण मैं आपके सामने रखना चाहता हूं:-
i. भारत को खुले में शौच के अभिशाप से मुक्त करने के साथ-साथ ‘स्वच्छ भारत’ हमारे रहन सहन को अधिक साफ-सुथरा, स्वास्थ्यप्रद और आधुनिक अपशिष्ट निपटान व्यवस्थाओं के अनुकूल बनाने का अभियान है। इसमें बहुत कम पानी के उपयोग या बिना पानी के सफाई सुकर बनाने वाले नवाचारों के साथ ही अपशिष्ट को ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली प्रौद्योगिकियों से सहायता प्राप्त हो रही है।
ii. हमारे टीकाकरण कार्यक्रम, ‘मिशन इन्द्रधनुष’ में दूरस्थ स्थानों तक टीके के परिवहन के लिए‘कोल्ड चेन’ नवाचारों का उपयोग किया जाता हैl ‘आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम’ हमारे फार्मास्यूटिकल अनुसंधानकर्ताओं की मदद से बनाया गया है, जिससे गुणवत्ता से समझौता किये बगैर लागत घटी हैlहमारे जीव-वैज्ञानिकों के समक्ष चुनौती यह है कि वे ऐसी उपलब्धियां चिकित्सा उपकरणों और इम्प्लान्ट्स के क्षेत्र में प्राप्त करें।
iii. हमारे जलवायु परिवर्तन उपशमन अभियान में बहुत तरक्की हासिल की गई है। हम 175 गीगा वाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की स्थापना करने की दिशा में अग्रसर हैं। इसमें से 100 गीगा वाट का उत्पादन सौर ऊर्जा से किया जाएगा। भारतीय नव-प्रवर्तकों ने ऐसी प्रौद्योगिकी की परिपक्वता में बड़ी भूमिका निभायी है जिसकी सहायता से सौर ऊर्जा डिवाइस जनित डायरेक्ट करेंट को अल्टरनेट करेंट में परिवर्तित किए बिना घरेलू उपकरणों में सीधे प्रयुक्त किया जा सकता है। इससे 30 प्रतिशत तक की ऊर्जा बचत हो सकी है;और
iv. कृषि आय और उत्पादकता बढ़ाने के सरकारी प्रयासों में कृषि भूमि के रासायनिक विश्लेषण से सहायता प्राप्त हो रही हैlयह सूचना मृदा स्वास्थ्य कार्ड में सहेजी जाती है और कृषिभूमि के अनुरूप पोषक तत्व तथा फसल पद्धति उपयोग में लाई जाती है। नवीन सिंचाई प्रौद्योगिकी की तरह ही यह पहला वास्तव में हमारे किसानों के लिए वरदान है।
9. मैंने केवल कुछ उदाहरण ही दिए हैंlऐसे और भी बहुत से उदाहरण हैं और बहुत कुछ किया जाना अभी शेष हैlहमारी राष्ट्रीय विकासात्मक कार्य सूची में विज्ञान और वैज्ञानिक नवाचार की भूमिका दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।2017 में भारतीय स्टार्ट-अप के पेटेंट आवेदन बढ़कर 909 हो गए।2016 के 61 की तुलना में यह बढ़ोत्तरी 15 गुना है।2018 में भारत का अनुसंधान और विकास निवेश सराहनीय रूप से 83.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर हो जाएगा। सरकार ने ‘प्राइम मिनिस्टर्स रिसर्च फैलोशिप’ की घोषणा की है। इससे नवाचार के जरिए विकास को प्रोत्साहन मिलेगा और इसमें 2018-19 से प्रारम्भ 7 वर्षों के लिए 1650 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। भारत में विज्ञान के लिए यह उत्साह जनक दौर है। अब हमारे पास संसाधन उपलब्ध हैं और अब आगे बढ़ने की बारी हमारे प्रतिभा समूह की है।
देवियो और सज्जनो
10. आम लोग विज्ञान के साथ प्रौद्योगिकीय उत्पादों और समाधानों के माध्यम से जुड़े होते हैं। निस्संदेह, अभी हमारे समाज के बीच मौजूद अनेक अंतरालों को पाटा जाना महत्वपूर्ण है। तथापि, वैज्ञानिकों का दायित्व केवल देशवासियों के लिए अनुप्रयोग निर्मित करना ही नहीं है। उनका दायित्व मुख्य रूप से मानवीय प्रवीणता के सीमान्तों के अन्वेषणों का है।अपनी वैज्ञानिक जिज्ञासा शांत करने के लिए मौलिक शोध एवं नवाचार तथा ब्रह्मांड की अज्ञात और अबूझ सीमाओं की पड़ताल ही विज्ञान का जादू है। इसी कारण से ऐसे आविष्कार संभव हुए हैं जिनकी पूर्व में योजना नहीं बनाई गई थी और जिनके अकल्पनीय प्रभाव सामने आए हैंl
11.सदियों से विज्ञान ने इसी तरह से तरक्की की है।और इसीलिए हम विज्ञान को विकासात्मक लक्ष्यों से जोड़ कर भलें ही चलें लेकिन हमें सैद्धांतिक अनुसंधान की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।हमें यह सुनिश्चित करना है कि विशुद्ध विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करना भारत में रोजगार का व्यवहार्य विकल्प बन सके।हमारे लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का वातावरण तैयार करना बहुत महत्वपूर्ण है।
12. विज्ञान सर्वोत्तम तरीके से कार्य तभी करता है जब वित्त पोषण संसाधनों सहित सभी संसाधनों के साथ यह कार्य सहयोगात्मक तौर पर किया जाए और सुविधाओं को साझा किया जाए। यह समय अनुसंधान केन्द्रों और विश्वविद्यालयों के बीच साझेदारियों का समय है। मैं वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह करता हूं कि आप विश्वविद्यालयों में उदीयमान शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करें और उनके लिए अपने द्वार खोल दें। उदीयमान शोधकर्ता और विद्यार्थी मार्गदर्शन, सहयोग और प्रयोगशालाओं व उपकरणों तक पहुंच बनाने के लिए वरिष्ठ वैज्ञानिकों से उम्मीद रखते हैं। ऐसी सदाशयता और बुद्धिमत्ता के व्यवहार से भारतीय विज्ञान की पहचान बेहतर बनेगी। ऐसा करने से यह देश, अपनी श्रेणी में सर्वोत्तम वातावरण तैयार करने के और नजदीक पहुंच जाएगा।
13. अपनी वाणी को विराम देने से पूर्व, मैं एक अन्य मुद्दे की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। वह बिन्दु उच्चतर विज्ञान में महिलाओं की अति अल्प भागीदारी का है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् में कार्यरत 3446 वैज्ञानिकों में से केवल 632 अथवा 18.3% वैज्ञानिक महिलाएं हैं।
14. इसी सप्ताह महिला वैज्ञानिकों ने भौतिकी और रसायन में नोबेल पुरस्कार जीता है; ऐसे समय में यह प्रतिशत अपनी कहानी स्वयं बयां करता है। इससे यह भी पता चलता है कि हम अपनी बेटियों की वैज्ञानिक क्षमताओं का पूरा प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। यह चुनौती सामाजिक भी है और व्यवस्थागत भी; परन्तु इस पर विजय प्राप्त करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।इस महोत्सव के भाग के रूप में महिला वैज्ञानिकों और उद्यमियों के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया गया हैlमुझे यकीन है कि इसमें इस कष्टकारी प्रश्न पर विचार किया जाएगा और इसका व्यवहारिक समाधान ढूंढा
15. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं आप सभी को और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आशा करता हूं कि आप सभी लोग खोज, अन्वेषण और अविष्कार के कार्य जारी रखेंगे।