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गोवा विश्वविद्यालय के 30वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्‍द का संबोधन

गोवा : 07.07.2018

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1. भारत के राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण करने के बाद गोवा की यह मेरी पहली यात्रा है और मुझे बेहद खुशी है कि यह यात्रा गोवा विश्वविद्यालय के 30वें वार्षिक दीक्षांत समारोह के समय हुई है। उच्च शिक्षा एक ऐसा विषय है जिसमें मेरी गहरी दिलचस्पी है और यह मेरे राष्ट्रपति काल का एक प्राथमिकता वाला क्षेत्र है। इसलिए यह उपयुक्त है कि हमारे देश के सबसे सुंदर और जागरूक राज्यों में से एक गोवा की मेरी यह यात्रा इस अग्रणी विश्वविद्यालय से आरंभ हुई है।

2. मुझे ज्ञात हुआ है कि भारत के राष्ट्रपति इस दीक्षांत समारोह में चौथी बार भाग ले रहे हैं।2001 में मेरे प्रख्यात पूर्ववर्ती डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, 2009 में श्रीमती प्रतिभा पाटिल मुझसे पहले यहां पधार चुके हैं।2017 में श्री प्रणब मुखर्जी ने इस समारोह की शोभा बढ़ाई थी। इस वर्ष मेरी बारी है। आप यह स्वीकार करेंगे कि भारत के राष्ट्रपति के लिए लगातार दोवर्ष किसी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि बनना बहुत असाधारण बात है। सामान्य तौर पर कुछ वर्षों का अंतराल रखा जाता है।

3. फिर भी, जब राष्ट्रपति भवन में निमंत्रण पहुंचा तो मैंने इसे स्वीकार करने का मन बना लिया। इससे इस विश्वविद्यालय और वास्तव में गोवा के प्रति मेरे व्यक्तिगत लगाव का पता चलता है। इसके पीछे गोवा की राज्यपाल और इस विश्वविद्यालय की कुलाधिपति, श्रीमती मृदुला सिन्हा का व्यक्तिगत अनुरोध भी था। वह मेरी यहां उपस्थिति के लिए बहुत ही उत्सुक रही हैं।

4. दीक्षांत समारोह, किसी विश्वविद्यालय, इसके विद्यार्थियों, प्रोफेसरों और अध्यापकों, प्रशासकों, मूल निकाय और विश्वविद्यालय समुदाय का हिस्सा रहे दूसरे व्यक्तियों के लिए एक यात्रा के संपन्न होने और एक नई शुरुआत का क्षण होता है। इस वर्ष गोवा विश्वविद्यालय के लगभग 9000 विद्यार्थियों को स्नातक उपाधियों से लेकर पीएच-डी तक उपाधियां प्रदान की जा रही हैं। ये स्‍नातक साहित्य, चिकित्सा, पर्यावरणीय अध्ययन और ललित कला जैसे विविधतापूर्ण संकायों से संबंध रखते हैं।

5. मैं आज स्नातक बन रहे सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं। यह सफलता आपके प्रयासों का परिणाम है तथा आपके प्रोफेसरों और आपके अभिभावकों और परिजनों की मेहनत और त्याग के प्रति सम्मान भी है। मैं कॉलेज को सबसे साफ-सुथरे परिसर के रूप में ‘स्वच्छतम महाविद्यालय सम्मान’का विजेता बनने पर भी बधाई देता हूं। ऐसे पुरस्कार की शुरुआत बहुत सराहनीय है और स्वच्छ भारत मिशन के आदर्शों के अनुरूप है।

6. देश भर की यात्रा करते हुए मैं छात्राओं की लगन और शैक्षिक परिणामों से अभिभूत रहा हूं। यह हमारे समाज के लिए परिवर्तनकारी उपलब्धि है, तथा गोवा द्वारा बालिका-शिक्षा को दिया जा रहा प्रोत्साहन अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श है। गोवा विश्वविद्यालय की छात्राओं का प्रदर्शन एक मिसाल है। यहां के विद्यार्थियों में साठ प्रतिशत बेटियां हैं और आज के समारोह में 63 प्रतिशत बेटियां प्रथम स्‍थान प्राप्‍त और पदक विजेता हैं। मुझे बताया गया है कि आज 67 स्वर्ण पदक प्रदान किए जा रहे हैं, इनमें से 41 पदक, छात्राओं ने जीते हैं। यह न केवल आपके विश्वविद्यालय और गोवा के लिए बल्कि समूचे देश के लिए एक उत्कृष्ट उपलब्धि है।

7. मैं आज स्नातक बन रही युवतियों और युवकों से अनुरोध करता हूं किवे यह ध्यान रखें कि भारत में उच्‍चतर शिक्षा तक पहुंच अभी भी एक विशेष अवसर माना जाता है। असंख्‍य नागरिकों के योगदान से ही गोवा विश्वविद्यालय जैसे संस्थान कायम हैं और इनमें से अनेक लोग व्यक्तिगत रूप से उनसे परिचित भी नहीं होंगे।जब आप दुनिया में कदम रखें और अपनी आजीविका कमाएं तो उन नागरिकों का योगदान याद रखें और अपनी क्षमता अनुसार, अपनी मर्जी से समाज में योगदान करने का प्रयास करें। शिक्षा सशक्‍तीकरण का माध्‍यम है। यह न केवल दुनिया को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है बल्कि बेहतरी के लिए दुनिया को बदलने के तौर-तरीकों पर सोच-विचार करने में भी सक्षम बनाती है।

देवियो और सज्जनो और प्यारे विद्यार्थियो,

8. यदि हम देश के उच्चतर शिक्षा परिदृश्य पर गौर करें तो उल्लेख करने के लिए तीन संकेतक मौजूद हैं, पहला यह है कि सरकार और अन्यहित धारक उच्चतर शिक्षा को समावेशी और व्यापक बनाने पर अधिक जोर दे रहे हैं।

9. भारत में विश्व का तीसरा सबसे विशालतम शिक्षा तंत्र मौजूद है परंतु यह विश्व की विशालतम युवा जनसंख्या को शिक्षा प्रदान करने का दायित्‍व भी निभाता है। भारत ने उच्च शिक्षा वातावरण के विस्तार में प्रभावी बढ़त बनाई है। सच्चाई यह है कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सहित अधिकांश नए विश्वविद्यालय पिछड़े हुए क्षेत्रों में स्थापित किए जा रहे हैं जिससे उच्‍चतर शिक्षा को व्‍यापक जनसमूह तक ले जाने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का पता चलता है।

10. दूसरा संकेत यह है कि, बढ़ती हुई संख्‍या के साथ-साथ गुणवत्ता पर भी ध्‍यान दिया जाना होगा। यही सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। प्रौद्योगिकी के आगे बढ़ने और समाजों का चौथी औद्योगिक क्रांति के निहितार्थों के साथ आमना-सामना होने की स्थिति को देखते हुए उच्चतर शिक्षा को नई उम्मीदों के अनुसार खुद को ढालना होगा। इसे विषयगत ज्ञान के मूल विचार से विचलित हुए बिना, अंत:विषयी और परस्‍पर-विषयी पद्धतियों के प्रति भी सुग्राही होना होगा।

11. जो कुछ भी पढ़ाया और सीखा जा रहा है, उसमें ही नहीं बल्कि किस प्रकार पढ़ाया और सीखा जा रहा है, इसमें भी गुणवत्‍ता झलकनी चाहिए। ‘एनएएसी’ और ‘एनआईआरएफ’ जैसे संस्थान और पहल इस संबंध में महत्वपूर्ण हैं और विश्वविद्यालयों के श्रेणी निर्धारण में हमारी मदद करते हैं।यद्यपि निष्‍कर्षत:, किसी भी विश्वविद्यालय को दूसरों के साथ नहीं बल्कि अपने साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी। उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों और संस्थानों को स्वयं पहल करनी चाहिए।

12. तीसरा कारक, संसाधनों और उन्‍हें जुटाए जाने से संबंधित है। पारंपरिक रुप से इस मामले में निर्भरता सरकार पर रही है परंतु सभी पक्षों को राजकोषीय सीमाओं के प्रति तथा विश्वविद्यालयों की निरंतर बढ़ती जरूरतों के प्रति सचेत रहना चाहिए। इस संबंध में, स्वयं संसाधन जुटाने पर जोर देने की आवश्यकता है। जहां तक संभव हो और शैक्षिक प्रयासों की प्रामाणिकता से कोई समझौता किए बिना विश्वविद्यालयों को उद्योग क्षेत्र और अन्‍य बाहरी संस्थानों के साथ लक्षित साझेदारियों के लिए मैं प्रोत्‍साहित करना चाहूंगा। विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं में उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। विश्व भर में विश्वविद्यालय परिसरों में ऐसे पर्याप्त प्रकरणों के प्रमाण हैं और मुझे विश्वास है कि गोवा विश्वविद्यालय इस पथ पर आगे बढ़ सकता है।

13. विश्वविद्यालय के प्रत्येक संकाय, प्रत्येक विधा और प्रत्येक विषय की अपनी-अपनी प्रतिष्‍ठा होती है। इसके बावजूद, भौगालिक स्थिति, सांस्‍कृतिक सुविज्ञता या विद्वतापूर्ण विरासत के कारण, विश्वविद्यालयों में विशेषज्ञता हासिल करने की प्रवृत्ति होती है। वे कभी-कभी ऐसी विशेषज्ञता प्रदान करने की सामर्थ्‍य प्राप्‍त कर लेते हैं जो अन्‍यत्र सुलभ नहीं होती।

14. ज्ञान के दो ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें गोवा विश्वविद्यालय राष्ट्र का मार्गदर्शन कर सकता है और आपको अपने पहले के काम को आगे बढ़ाना ही चाहिए। पहला, पुर्तगाली भाषा और लूसोफोन अध्‍ययन विभाग है। मुझे बताया गया है कि यह इस उपमहाद्वीप में इस प्रकार का ऐसा अकेला विभाग है। यह अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका तक फैले हुए लूसोफोन देशों के बारे में जानकारी प्राप्त करने और उनके साथ नेटवर्क स्‍थापित करने का अवसर प्रदान करता है। और सच तो यह है कि यह विभाग हमें पुर्तगाल और यूरोपीय संघ जो हमारा बहुमूल्‍य साझेदार हे, के साथ अपने रिश्तों को मजबूत बनाने का भी अवसर देता है।

15. मेरा दूसरा संदर्भ समुद्री विज्ञान विभाग का है। इसमें भौतिकीय समुद्र विज्ञान, समुद्री भूविज्ञान और समुद्री जैविकी आदि सहित अध्‍ययन की अनेक शाखाएं शामिल हैं।इस विभाग की संभावित क्षमता लगभग असीम है। भारत समुद्र से घिरा हुआ है। इसके पास एक लंबी तट रेखा और विशाल समुद्री क्षेत्र है। इसके बावजूद हम समुद्री संपदा का दोहन करने और अपनी समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास में पीछे रहे हैं। समुद्री जैव विविधता और ऊर्जा संसाधनों एवं समुद्री खनिजों में इसकी उपयोगिता तक इतना सब कुछ माजूद है कि हम उसका फायदा उठा सकते हैं। भारत इस क्षेत्र में अगुआकार बन सकता है और गोवा विश्वविद्यालय हमारी समुद्री अर्थव्यवस्था के ज्ञान उद्यम का आधार बन सकता है। मैं आपसे इस दिशा में विचार करने और इसके लिए कार्यनीति बनाने का आग्रह करता हूं।

देवियो और सज्जनो तथा प्यारे विद्यार्थियो,

16. यद्यपि आपका अपेक्षाकृत नया विश्वविद्यालय पहले ही देश में अपनी छाप छोड़ चुका है। राज्य का लोकाचार बनाए रखते हुए, गोवा विश्वविद्यालय का स्वरूप उदारवादी और वैश्विक है। यह एक बड़ी ताकत है और इसे कमजोर नहीं होने देना चाहिए। मैं आगंतुक शोध प्रोफेसरशिप कार्यक्रम का विशेष उल्लेख करना चाहूंगा जिसका अब छठा वर्ष चल रहा है। यह हमारे देश में एक अनूठी बात है। इसने अंतरराष्ट्रीय रूप से प्रतिष्ठित अनेक विद्वानों, व्‍यवसायिकों और कलाकारों को गोवा विश्वविद्यालय आने और उनके ज्ञान और अनुभव को यहां के विद्यार्थियों के साथ साझा करने में मदद की है। अन्य विश्वविद्यालय इस मुक्त द्वार दृष्टिकोण से सीख हासिल कर सकते हैं।

17. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर आज स्‍नातक बन रहे विद्यार्थियों को बधाई देता हूं। मैं आपको और आपके विश्वविद्यालय को उज्‍जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिंद!