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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर राज्यपालों के सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन

राष्ट्रपति भवन : 07.09.2020

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1. यह शिक्षा नीति, परामर्शों की अभूत पूर्व और लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार की गई है। मुझे बताया गया है कि इस नीति के निर्माण में, ढाई लाख ग्राम पंचायतों, साढ़े बारह हजार से अधिक स्थानीय निकायों तथा लगभग 675 जिलों से प्राप्त दो लाख से अधिक सुझावों को ध्यान में रखा गया है। ऐसी राष्ट्र-व्यापी तथा विस्तृत भागीदारी के कारण यह शिक्षा नीति सही मायनों में राष्ट्रीय अपेक्षाओं और समाधानों को समाहित करती है। यह शिक्षा नीति, 21वीं सदी की आवश्यकताओं व आकांक्षाओं के अनुरूप देशवासियों को, विशेषकर युवाओं को आगे ले जाने में सक्षम होगी। यह केवल एक नीतिगत दस्तावेज नहीं है, बल्कि भारत के शिक्षार्थियों एवं नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है।

2. इस शिक्षा नीति के निर्माण व निर्धारण की विस्तृत व जटिल प्रक्रिया को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए मैं केंद्रीय शिक्षा मंत्री, शिक्षा राज्य मंत्री और मंत्रालय के सभी अधिकारियों एवं अन्य संस्थानों के लोगों को साधुवाद देता हूं। इस शिक्षा नीति को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने वाले, पद्म विभूषण से सम्मानित डॉक्टर कस्तूरीरंगन एवं उनकी टीम के सभी सदस्य विशेष सराहना के पात्र हैं। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ के ऐतिहासिक दस्तावेज़ को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने में उनके दूरदर्शी नेतृत्व एवं प्रेरक भूमिका के लिए मैं प्रधानमंत्री जी को बधाई देता हूं।

3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा के बाद विभिन्न स्तरों और क्षेत्रों में इस पर चर्चा-परिचर्चा होने लगी है। शिक्षाविदों, अभिभावकों, विद्यार्थियों व सामान्य लोगों ने इस नीति का स्वागत किया है। यह कहा जा रहा है कि यदि इस नीति के अनुरूप बदलाव कर लिए जाते हैं तो भारत एक शिक्षा महाशक्ति बन जाएगा।

4. इस शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में राज्यपालों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। वर्तमान में 400 से अधिक राज्य विश्वविद्यालयों तथा उनसे सम्बद्ध 40,000 से अधिक महाविद्यालयों में ढाई करोड़ से अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस दृष्टिकोण से राज्य विश्वविद्यालयों के ऊपर एक विशेष जिम्मेदारी है। अधिकांशतः राज्यपाल ही इन विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं। विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, संस्थाओं तथा अन्य स्टेकहोल्डर्स के साथ संवाद और समन्वय स्थापित कर के शिक्षा नीति को कार्यरूप देने में राज्यपालों को अपना योगदान देना है।

5 .मुझे बताया गया है कि कुछ राज्यों ने वर्चुअल सम्मेलन आदि के माध्यम से शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में परामर्श प्रारम्भ भी कर दिया है। ऐसे सभी प्रयास सराहनीय हैं।

6. सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत उन्नति का सबसे प्रभावी माध्यम शिक्षा होती है। समाज के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा में निवेश करने से बेहतर अन्य कोई निवेश नहीं हो सकता। 1968 की शिक्षा नीति से लेकर इस शिक्षा नीति तक, एक स्वर से निरंतर यह स्पष्ट किया गया है कि केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी के 6 प्रतिशत निवेश का लक्ष्य रखना चाहिए। 2020 की इस शिक्षा नीति में इस लक्ष्य तक शीघ्रता से पहुंचने की अनुशंसा की गयी है।

7. शिक्षण तथा पठन-पाठन ऐसा होना चाहिए जो विद्यार्थियों में अन्वेषण, समाधान, तार्किकता व रचनात्मकता विकसित करे और नई जानकारी को आवश्यकतानुसार उपयोग में ला सकने की दक्षता व नई सोच पैदा करे। उन्हें ऐसी शिक्षा दी जाए जो चरित्र निर्माण, नैतिकता, करुणा और संवेदनशीलता का भाव विकसित करे और उन्हें रोजगार-योग्य भी बनाए। इस नीति के द्वारा उच्चतर शिक्षा प्रणाली में आमूल बदलाव करते हुए युवाओं को उनकी आकांक्षा व आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।

8. इस शिक्षा नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली ही जीवंत लोकतान्त्रिक समाज का आधार होती है। अतः सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों को मजबूत बनाना अत्यंत आवश्यक है। नई शिक्षा नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि हम सबको भारतीय जीवन-मूल्यों पर आधारित आधुनिक शिक्षा प्रणाली विकसित करनी है। साथ ही यह भी प्रयास करना है कि सभी को उच्च गुणवत्ता से युक्त शिक्षा प्राप्त हो तथा एक जीवंत व समता-मूलक नॉलेज सोसाइटी का निर्माण हो। विद्यार्थियों में मूल अधिकारों, कर्तव्यों और संवैधानिक मूल्यों के प्रति आदरभाव,देश-प्रेम तथा बदलते विश्व में अपने दायित्वों के प्रति जागरुकता उत्पन्न करना भी इस शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य है। उच्चतर शिक्षा के सभी क्षेत्रों में विशेषकर प्रोफेशनल्स को तैयार करने वाली शिक्षा प्रणाली में सार्वजनिक उद्देश्य और नैतिकता के महत्व पर बहुत बल दिया गया है।

9. शिक्षा के माध्यम से हमें ऐसे विद्यार्थियों को गढ़ना है जो राष्ट्र-गौरव के साथ-साथ विश्व-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत हों और सही अर्थों में ग्लोबल सिटिजन बन सकें।

10. इस नीति के द्वारा डिजिटल व ग्लोबलाइज्ड दुनिया में भारत की शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। सामाजिक तथा आर्थिक रूप से वंचित समूहों के लो गों को शिक्षा से जोड़ने पर विशेष बल दिया गया है। वर्ष 2025 तक प्राथमिक विद्यालय स्तर पर सभी बच्चों को मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान प्राप्त कराना इस शिक्षा प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता तय की गई है। इसके आधार पर ही आगे की शिक्षा का ढांचा खड़ा हो सकेगा। शिक्षा व्यवस्था में किए जा रहे बुनियादी बदलावों में शिक्षकों की केन्द्रीय भूमिका रहेगी। इस शिक्षा नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि शिक्षण के पेशे में सबसे होनहार लोगों का चयन होना चाहिए तथा उनकी आजीविका,मान-मर्यादा और स्वायत्तता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

11. स्कूली शिक्षा को मजबूत आधार देने के लिए अगले वर्ष यानि 2021 तक, इस शिक्षा नीति पर आधारित, टीचर्स एजुकेशन का एक नवीन और व्यापक पाठ्यक्रम तैयार करने का लक्ष्य है। टीचर्स एजुकेशन, उच्च शिक्षा का अंग है। अतः राज्य स्तर पर आप सबको टीचर्स एजुकेशन से जुड़े अत्यंत महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करना है। इस संदर्भ में शैक्षिक रूप से सुदृढ़, मल्टी-डिसिप्लिनरी और इंटीग्रेटेड टीचर्स एजुकेशन कार्यक्रम शुरू करने का प्रावधान है। वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र में केवल उच्च स्तरीय संस्थान ही सक्रिय रह जाएंगे।

12. विश्व परिदृश्य को देखते हुए,व्यावसायिक शिक्षा यानि वोकेशनल एजुकेशन के विषय में एक नए महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण को अपनाया गया है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के आकलन के अनुसार, भारत में वर्कफोर्स के 5 प्रतिशत से भी कम लोगों ने औपचारिक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की थी। यह संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका में 52 प्रतिशत, जर्मनी में 75 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 96 प्रतिशत थी। भारत में व्यावसायिक शिक्षा के प्रसार में तेजी लाने की आवश्यकता को देखते हुए यह तय किया गया है कि स्कूल तथा हायर एजुकेशन सिस्टम में वर्ष 2025 तक कम से कम 50 प्रतिशत विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी। इससे हमारे डेमोग्राफिक डिविडेंड का सही लाभ मिल सकेगा। भारतीय परंपरा में विकसित ‘लोक-विद्या’ को उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ा जाएगा। इस नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा का ही अंग समझा जाएगा और ऐसी शिक्षा को बराबर का सम्मान दिया जाएगा। इससे बच्चों और युवाओं में कौशल वृद्धि के साथ-साथ श्रम की गरिमा के प्रति सम्मान का भाव भी पैदा होगा।

13. नई शिक्षा नीति में ऐसी उच्चतर शिक्षा की अवधारणा की गई है जो परंपरा से पोषण प्राप्त करती हो और अपने दृष्टिकोण में आधुनिक व भविष्योन्मुख भी हो। शिक्षण पद्धति और बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से सभी स्‍वीकार करते हैं कि आरंभिक शिक्षा का माध्‍यम मातृभाषा होनी चाहिए। इस सोच के अनुरूप नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र की संस्‍तुति की गई है। इस शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं, कला और संस्‍कृति को प्राथमिकता दी गई है। इससे विद्यार्थियों में सृजनात्‍मक क्षमता विकसित होगी तथा भारतीय भाषाओं की ताकत और बढ़ेगी। विविध भाषाओं वाले हमारे देश की एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने में इससे मदद मिलेगी।

14. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं, कलाओं और संस्कृति के संवर्धन को विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि वे भारत की पहचान के साथ-साथ हमारी अर्थ-व्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और विविधता से विद्यार्थियों का परिचय कराने के लिए देश में एक सौ पर्यटन स्थलों को चिन्हित किया जाएगा। शिक्षण संस्थानों द्वारा उन्हें उन स्थानों पर शैक्षिक भ्रमण पर ले जाया जाएगा ताकि वे हमारे देश की बहुआयामी सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान और साहित्य को समझ सकें। आप सब अपने-अपने राज्यों में ऐसे स्थलों के विषय में अच्छी पाठ्य-सामग्री विकसित करवा सकते हैं। ऐसे स्थलों में पर्यटन सुविधाओं के विकास के लिए भी आप आवश्यक दिशा-निर्देश दे सकते हैं।

15. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा तथा विशेषज्ञों को जन-सामान्य एवं भारतीय भाषाओं से जोड़ने के पक्षधर थे। शिक्षा-योजना से जुड़े उनके अनेक महत्वपूर्ण विचार इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में परिलक्षित होते हैं। बापू ने कहा था, "मेरी योजना में ज्यादा और बेहतर पुस्तकालय होंगे, ज्यादा और अच्छी प्रयोगशालाएं होंगी, अधिक और श्रेष्ठतर अनुसंधान संस्थाएं होंगी। उसके अंतर्गत रसायन-शास्त्रियों, इंजीनियरों और अन्य विशेषज्ञों की एक पूरी सेना तैयार की जाएगी। ये लोग देश के सच्चे सेवक होंगे; और उस राष्ट्र की विविध और बढ़ती हुई जरूरतें पूरी करेंगे जिसे अपने अधिकारों तथा आवश्यकताओं का उत्तरोत्तर अधिकाधिक भान होता जा रहा है। और ये सभी विशेषज्ञ विदेशी नहीं, बल्कि आम जनता की भाषा बोलेंगे। जो ज्ञान वे प्राप्त करेंगे, वह आम लोगों की पहुंच के अंदर होगा, वे उसके साझीदार होंगे। आंख मूंदकर नकल करने के बजाय, सच्चे मौलिक काम किए जाने लगेंगे।”

16. तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी और विक्रमशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों से प्रेरणा लेते हुए बड़े और मल्टी-डिसिप्लिनरी विश्वविद्यालयों तथा हायर एजुकेशन इन्स्टीट्यूशन्स अथवा क्लस्टर्स को स्थापित करने की अनुशंसा की गई है। मल्टी-डिसिप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च यूनिवर्सिटिज अर्थात ‘मेरु’ की स्थापना की जाएगी जिनका लक्ष्य विश्व-स्तरीय गुणवत्ता प्राप्त करने का होगा। इससे देश के हर हिस्से में बहुमुखी प्रतिभा वाले योग्य और रचनाशील युवाओं का विकास हो सकेगा।

17. ऐसे प्रयासों से भारत में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या बढ़ेगी। भारत को एक ग्लोबल स्टडी डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया जाएगा जहां कम खर्च पर उत्कृष्ट शिक्षा उपलब्ध होगी। अच्छा प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को अन्य देशों में परिसर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही, दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों को भारत में आकर शिक्षा प्रदान करने की अनुमति दी जाएगी।

18. वंचित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के लिए वर्ष 2030 तक प्रत्येक जिले में या उसके समीप कम से कम एक बड़ा मल्टी-डिसिप्लिनरी हायर एजुकेशन इन्स्टीट्यूशन उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। इसके लिए राज्य स्तर पर अनेक कदम उठाए जाने होंगे। ऐस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स तथा स्पेशल एजुकेशनल जोन्स में गुणवत्ता-पूर्ण उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जानी है। यह सामाजिक तथा आर्थिक रूप से वंचित समूहों के हित में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा के लिए टेक्नॉलॉजी का उपयोग करके शिक्षा को सर्व-सुलभ बनाने का प्रयास किया जाएगा।

19. नई शिक्षा नीति में पहुंच, अवसर और गुणवत्ता के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में जवाबदेही भी तय की गई है। साथ ही, यह नीति शिक्षण संस्थानों और शिक्षकों को अधिक स्‍वायत्तता देने की संस्तुति करती है।

20. यह देखा गया है कि रिसर्च और इनोवेशन में निवेश का स्तर अमेरिका में जीडीपी का 2.8 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया में 4.2 प्रतिशत और इज़राइल में 4.3 प्रतिशत है जबकि भारत में यह केवल 0.7 प्रतिशत है। भारत जैसी बड़ी और जीवंत अर्थ-व्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए ‘नॉलेज-क्रिएशन’ तथा रिसर्च को प्रोत्साहित करना जरूरी है। केंद्र व राज्य सरकारों को रिसर्च तथा इनोवेशन में निवेश का प्रतिशत बढ़ाना होगा।


सभी क्षेत्रों में गुणवत्ता युक्त शैक्षिक अनुसंधान को प्रेरित करने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फ़ाउंडेशन की स्थापना की जाएगी। शोध की संस्कृति को मजबूत बनाने के लिए सभी विश्वविद्यालयों व उच्च शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रीय अनुसंधान फ़ाउंडेशन के साथ मिल कर काम करना होगा।

21. टेक्नॉलॉजी के उपयोग और इंटीग्रेशन से शिक्षण प्रक्रिया में सुधार को गति मिलेगी तथा बेहतर परिणाम निकलेंगे। इसके लिए नेशनल एजुकेशनल टेक्नॉलॉजी फोरम – एन.ई.टी.एफ़. की स्थापना की जाएगी। एन. ई. टी. एफ़. द्वारा राज्य सरकार की एजेंसियों को भी परामर्श उपलब्ध कराया जाएगा। शिक्षा प्रणाली के सभी आयामों को टेक्नॉलॉजी की सहायता से अधिक सुगम व सुलभ बनाया जाएगा। आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस के संदर्भ में अनुसंधान और उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि स्वास्थ्य सेवाओं, कृषि, क्लाइमेट-चेंज जैसे क्षेत्रों में प्रभावी बदलाव लाये जा सकें।

22. इस शिक्षा नीति की सफलता केंद्र तथा राज्य दोनों के प्रभावी योगदान पर निर्भर करेगी। भारतीय संविधान के अंतर्गत शिक्षा कन-करेंट लिस्ट का विषय है। अतः इसमें केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त और समन्वयपूर्ण कार्रवाई की आवश्यकता है।

23. शिक्षा से जुड़े मानकों पर विभिन्न राज्यों में असमानता देखी जाती है। राज्यों को अपनी स्थानीय परिस्थितियों,विशेषताओं तथा अपेक्षाओं के अनुरूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अनुपालन करना है। इस शिक्षा नीति को प्रभावी कार्यरूप देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ मिलकर अनवरत प्रयास करने होंगे। उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में, इस शिक्षा नीति की अनुशंसाओं का समयबद्ध पालन सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालयों के कुलपतियों तथा शिक्षकों की वेकेन्सीज पर अतिशीघ्र सुयोग्य व्यक्तियों को नियुक्त करने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री जी व शिक्षा मंत्री जी,

24. राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आज आयोजित परिचर्चा के संदर्भ में मैंने कुछ दिन पूर्व सभी राज्यपालों व उप-राज्यपालों से बात की। मुझे इन सबकी उत्सुकता, उत्साह व तैयारी के बारे में जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। सभी राज्यपालों ने अपने शिक्षा मंत्रियों और राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ बैठकें की हैं तथा आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चा करने के लिए तैयारी करके आए हैं। मैं परिचर्चा के अगले सत्र में भी उपस्थित रहूंगा। शिक्षा नीति के क्रियान्वयन से जुड़े संवाद व परामर्श की प्रक्रिया को जारी रखते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने आगामी 19 सितंबर को केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ एक वर्चुअल सम्मेलन का आयोजन निर्धारित किया है। मैं उस संवाद में भी भाग लूंगा। ऐसे सभी संवादों के निष्कर्षों को जोड़कर देखने से शिक्षा नीति के कार्यान्वयन से जुड़े मुद्दों पर समग्र दृष्टिकोण बन सकेगा।

25. मैं चाहूंगा कि सभी राज्‍यपाल अपने राज्‍यों में नई शिक्षा नीति को कार्यरूप देने के लिए थीम आधारित वर्चुअल सम्‍मेलन करें। शिक्षा नीति के विभिन्‍न आयामों पर व्‍यापक विचार-विमर्श के उपरान्‍त आप सब अपने महत्वपूर्ण सुझाव केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भेज सकते हैं ताकि उनका देशव्यापी उपयोग किया जा सके।

26. राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अनुशंसाओं को लागू करने की दिशा में आप सभी राज्यपालों तथा शिक्षा मंत्रियों का बहुत महत्वपूर्ण दायित्व है। मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को कार्यरूप देने में योगदान करते हुए आप सब भारत को ‘नॉलेज-हब’ बनाने में अपनी प्रभावी भूमिका निभाएंगे।

धन्यवाद,

जय हिन्द !