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‘इंडिया रैंकिंग्स 2019’ एवं ‘अटल रैंकिंग ऑफ़ इंस्टिट्यूशंस ऑन इनोवेशन अचीवमेंट' जारी करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन

नई दिल्ली : 08.04.2019

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1. राष्ट्रीय संस्थाओं की रैंकिंग की रूपरेखा के तहत ‘इंडिया रैंकिंग्स’ के साथ-साथ ‘अटल रैंकिंग ऑफ़ इंस्टिट्यूशंस ऑन इनोवेशन अचीवमेंट’ जारी करने के लिए यहाँ आकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं उन अनुसंधान और उच्च शिक्षा संस्थाओं को बधाई देता हूं जिन्होंने आज रैंकिंग में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है और पुरस्कार जीते हैं।

2. इन रैंकिंग को अंतिम रूप देने का विशाल व जटिल कार्य पूरा करने के लिए मैं मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड और सूचना तथा पुस्तकालय नेटवर्क केन्द्र के अधिकारियों को भी बधाई देता हूं। मुझे जानकारी दी गई है कि भिन्न-भिन्न श्रेणियों और विषय क्षेत्रों में रैंकिंग के लिए 3,127 संस्थानों से 4,867 आवेदन प्राप्त हुए थे। गुणात्मक के साथ-साथ मात्रात्मक मानदंडों को लागू करते हुए, इन सभी आवेदनों की जाँच करना–एक कठिन व थकाने वाली प्रक्रिया होने के साथ ही शिक्षाप्रद कार्य भी रहा होगा।

3. भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली बहुत विशाल और जटिल है।903 विश्वविद्यालयों, 39,050 संबद्ध महाविद्यालयों और 10,011 स्‍वतंत्र संस्थाओं के साथ, यह दुनिया का इस प्रकार का तीसरा सबसे बड़ा तंत्र है। इस नेटवर्क में 3 करोड़ 40 लाख विद्यार्थी हैं और लगभग 13 लाख शिक्षक हैं।

4. उच्च शिक्षा एक ऐसा विषय है जो मेरे दिल के बहुत करीब है।150 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थाओं के कुलाधिपति के रूप में, मैंने ऐसी अखिल भारतीय संस्थाओं के कुलपतियों और प्रशासकों के साथ पांच दौर से अधिक की विस्तृत और व्यापक चर्चा की है। आने वाले समय में, इन विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों और शिक्षकों से आगे भी मुलाक़ात करने की मेरी योजना है।

5. हमारे देश में, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हुए हाल के विस्तार से उच्च शिक्षा तक पहुंच बढ़ी है और हिस्सेदारी बढ़ी है। फिर भी, गुणवत्ता अब भी चिंता का विषय बनी हुई है। हालांकि सार्वजनिक और निजी-दोनों क्षेत्रों में उत्कृष्टता के कतिपय केन्द्र मौजूद हैं, किन्तु कुल मिलाकर मानकों के मामले में स्थिति असमान है। जैसे-जैसे भारत की उच्च शिक्षा का बुनियादी ढांचा विकसित होता जा रहा है और जैसे-जैसे नामांकन बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मानकों को ऊपर उठाना जरूरी है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उच्च शिक्षा से न केवल व ्यक्तिगत आकांक्षाएं पूरी हों, बल्कि राष्ट्रीय लक्ष्य और प्राथमिकताएं भी पूरी हों, एक सुविचारित कार्यनीति लागू करना आवश्यक है।

6. गुणवत्ता और उत्कृष्टता का क्षेत्र बहुआयामी हैं। उन्हें संस्थागत लक्ष्यों और उद्देश्यों के संदर्भ में समझने की आवश्यकता होती है। गुणवत्ता संबंधी मानकों में बुनियादी ढांचा, संकाय, विद्यार्थियों का योगदान पाठ्यचर्चा और शिक्षाशास्त्र, स्नातक स्‍तर के परिणाम तथा अनुसंधान की गुणवत्ता शामिल होती है। इन मापदंडों में से कई का आकलन मात्रात्मक रूप से किया जा सकता है। फिर भी उनमें से कुछ परिस्थिति पर आधारित होते हैं और इसलिए उनका मापन और आकलन करना कठिन होता है। अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई रैंकिंग प्रणाली में दोनों पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

7. उच्च शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 2015 में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग रूपरेखा की स्‍थापना के समय इस चुनौती को गंभीरतापूर्वक स्वीकार किया था। मानकों के विकसित और विस्तारित होने के साथ, इस कार्य से सभी संबंधित हितधारकों को हमारे देश में उच्च शिक्षा संस्थाओं की गुणवत्ता और स्थिति की जानकारी अब मिलने लगी है। विद्यार्थी और उनके परिवार के पास अब विकल्प चुनने के अवसर उपलब्ध हैं। शिक्षक और शैक्षणिक समुदाय ऐसे विकल्पों का मूल्यांकन कर सकते हैं। संस्थाओं के प्रशासक अपने समकक्षों के साथ तुलनात्‍मक रूप से आकलन करके अपनी स्थिति तय कर सकते हैं और सुधार की गुंजाइश का आकलन कर सकते हैं। इससे, सरकार को कमियों के बारे में जानकारी मिल सकती है जिन्‍हें देखते हुए उचित नीतिगत उपाय किए जा सकते हैं।

8. मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि समग्र रैंकिंग के अलावा, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए श्रेणी-आधारित रैंकिंग शुरू की गई है; साथ ही इंजीनियरिंग, प्रबंधन, फार्मेसी, वास्तुकला, कानून और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों के लिए विषय-आधारित रैंकिंग भी दी गई है। इस तरह की रैंकिंग प्रणाली संस्थाओं के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ावा देती है। ऐसा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी संस्थाएं आज प्रतिभा के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं– चाहे वह शिक्षण प्रतिभा हो, या अनुसंधान की प्रतिभा हो, सर्वाधिक प्रतिभाशाली विद्यार्थी हो और यहां तक कि सर्वाधिक प्रबुद्ध प्रशासकों की खोज का मामला हो। यदि कोई संस्था सर्वोत्तम को आकर्षित करना चाहती है, तो उसे भी सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक होना चाहिए। संस्था के लिए यह भी आवश्यक होगा कि वह छात्रों और शैक्षणिक समुदाय के सदस्यों के लिए उत्साह जनक वातावरण और उपयुक्त परिसर संस्कृति, प्रदान करने वाली हो।

9. जहाँ दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में कुछ मानदंड एक समान और प्रासंगिक हैं, मुझे इस बात का संतोष है कि इन रैंकिंग्स को तैयार करने में भारतीय परिस्थिति और देश-विशिष्‍ट मापदंडों पर भी विचार किया गया है। इन मापदंडों में क्षेत्रीय विविधता, इनकी पहुँच, स्त्री-पुरुष समानता और वंचित तथा पारंपरिक रूप से कमजोर वर्गों की इन तक पहुँच को भी शामिल किया गया है।

10. मैं अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली में, विशेष रूप से एसटीईएम संस्थानों में बालिकाओं के अपेक्षाकृत कम नामांकन की ओर ध्यान खींचना चाहूँगा। यह एक विरोधाभासी स्थिति है, क्योंकि स्कूल परीक्षाओं में बालिकाएं अक्सर लड़कों को पछाड़ते हुए बहुत अच्छा प्रदर्शन करती हैं। सही अवसर मिलने पर, छात्राएं उच्च शिक्षा में भी इस प्रदर्शन को बरकरार रखती हैं। देश भर के विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों में जाने पर, मैंने पाया है कि स्नातक हो रही महिला उम्मीदवारों का टॉपरों और पदक विजेताओं की सूची में दबदबा रहता है। और फिर भी कई परिवार उच्च शिक्षा में अपनी बेटियों को दाखिला लेने देने से वंचित रखते हैं। एक समाज और एक देश के रूप में, हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

देवियो और सज्जनो

11. ‘इंडिया रैंकिंग्स 2019’ में जिन संस्थाओं ने अच्छा प्रदर्शन किया है, मैं उन्हें बधाई देता हूँ, और उनसे और अन्य लोगों से जोर देते हुए यह कहना चाहता हूँ कि यह तो केवल एक शुरुआत है। यह महत्वपूर्ण है कि निकट भविष्य में अग्रणी विश्वविद्यालयों और उच्चतर शिक्षण संस्थाओं की वैश्विक रैंकिंग में भारतीय संस्थाएं अच्छी-खासी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं।

12. हम ज्ञान-आधारित समाज और एक नवोन्मेषी अर्थव्यवस्था के बीच चौथी औद्योगिक क्रांति के युग में रह रहे हैं। हम संख्या और मानक दोनों की कसौटी पर खरे उतरे बिना और शिक्षा के अपेक्षित बुनियादी ढांचे के बिना अपनी क्षमताओं को साकार नहीं कर सकते हैं। इसीलिए, भारत की रैंकिंग व्यवस्था में संस्थाएं जिस उत्सुकता से भागीदारी कर रहीं है, वह उत्सुकता कायम रहनी चाहिए और वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं में रैंकिंग हासिल करने की ललक पैदा करने के लिए इस उत्सुकता को बढ़ाया जाना चाहिए।

13. हजारों वर्ष पूर्व, नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों के कारण, भारत शिक्षा और ज्ञान सृजन का एक अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र था।21वीं सदी में, भारतीय विश्वविद्यालयों को वही स्थान हासिल करने के लिए जोर लगाना चाहिए। हम अपने इतिहास और अपनी विरासत के ऋणी हैं। इससे भी कहीं अधिक, हम अपनी युवा पीढ़ी और अपने भविष्य के ऋणी हैं। आप सभी साहसपूर्वक आगे बढ़ते रहें!

धन्यवाद,

जय हिन्द!