चार्ल्स विश्वविद्यालय में भारतविदों के साथ बैठक में भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन
प्राग : 08.09.2018
1. मुझे यहां उपस्थित होकर और अपने विचार आपके साथ बांटते हुए खुशी हो रही है। इस अवसर पर मैं, ज्ञान के इस मंदिर के समृद्ध इतिहास को जानने का अवसर प्रदान करने के लिए चार्ल्स विश्वविद्यालय के डॉ. शीमा और संकाय सदस्यों का धन्यवाद देता हूं।
2. मैं भारत की विभिन्न भाषाओं में आपकी प्रस्तुतियों से प्रभावित हुआ हूं। मैं भारतविद्या के जिज्ञासुओं के रूप में ज्ञान और शैक्षिक उत्कृष्टता प्राप्ति के आपके प्रयासों की गहरी सराहना करता हूं।
3. चार्ल्स विश्वविद्यालय की गिनती विद्वता की दीर्घ परंपरा वाले यूरोप के एक सबसे पुराने संस्थानों में की जाती है ।यहां अपने विचार व्यक्त करते हुए, मैं इस महान ज्ञान पीठ में अपनी उपस्थिति पर गर्व का अनुभव कर रहा हूं। मुझे प्रसन्नता है कि हमारे राष्ट्रकवि और भारत के महानतम सपूतों में से एक श्री रवींद्र नाथ टैगोर ने कभी इसी परिसर में विचारोत्तेजक भाषण देकर अनेक श्रोताओं को अभिभूत कर दिया था। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ही मोहनदास करमचंद गांधी को पहली बार ‘महात्मा’ नाम दिया था। मुझे अभी-अभी हमारे राष्ट्रपिता के जीवन और उनकी विरासत पर प्रकाश डालने और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। एक महीने से भी कम समय में यानि कि2 अक्टूबर को, उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर हम विश्वव्यापी समारोह आरंभ करेंगे। मुझे उम्मीद है कि आप सब हमारे साथ उनमें अवश्य शामिल होंगे।
4. हमारे दोनों देशों के बीच के संबंधों के इतिहास को खोजना बहुत ही रुचिपूर्ण है। ये संबंध, भारतविदों द्वारा स्थापित संबंधों से पूर्व ही स्थापित हो चुके थे। आपको यह जानना दिलचस्प लगेगा कि लगभग एक सहस्राब्दी पहले ही बोहेमिया राजशाही और भारत के बीच मसाले और रेशम का फलता-फूलता व्यापार हुआ करता था। आज, हमने अपने उस साझे अतीत की नींव पर एक सुदृढ़ सम-सासमयिक साझेदारी निर्मित की है।
5. भारतविद्या पर प्राग में काफी पहले से काम हो रहा है, इसकी शुरुआत 1850 में चार्ल्स विश्वविद्यालय में संस्कृत पीठ की स्थापना के बाद हुई। प्रोफेसर लेसनी, चेक स्कूल ऑफ इंडोलॉजी के संस्थापकों में शामिल थे। वे पहले यूरोपीय विद्वान थे जिन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के काव्य को अंग्रेजी माध्यम की बजाए सीधे बांगला से चेक भाषा में अनूदित किया। प्रोफेशन लेसनी के निमंत्रण पर टैगोर ने 1921 और 1926 में तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया की यात्रा की थी। इस अवसर पर,मैं व्यक्तिगत तौर पर, हाल ही में स्वर्गवासी हुई डॉ. हाना प्रेनलतेरोवा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। डॉ. हाना ने टैगोर पर और अन्य भारतीय विभूतियों पर उल्लेखनीय कार्य किया है।
6. चेकोस्लोवाकिया के विद्वानों के साथ टैगोर की बातचीत ने उन पर गहरा प्रभाव छोड़ा। प्राग में उनकी आवक्ष प्रतिमा की स्थापना तथा ट्राम स्टेशन का नामकरण ‘ठाकुरोवा’ के रूप में कके हमारे राष्ट्रीय कवि और उनकी काव्यात्मक प्रतिभा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त की गई है।
7. प्रो. लेसनी के शिष्य दुसान बावीतेल ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और अनेक भारतीय विषयों का अध्ययन किया।उन्होंने उपनिषदों सहित 60 संस्कृत कृतियों का अनुवाद किया तथा भारतविद्या में योगदान के लिए भारत सरकार ने 2006 में उन्हें भारत के उच्च प्रतिष्ठित पुरस्कार‘पद्म भूषण’से सम्मानित किया। एक अन्य भारतविद् जोसेफ जुबती ने वैदिक साहित्य और भारतीय महाकाव्यों पर प्रचुरता से लिखा।इन सभी भारतविदों ने हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को एक दूसरे के समीप लाते हुए चेक लोगों को भारतीय साहित्य के गीति सौंदर्य से परिचित करवाया।
8. यद्यपि संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन के साथ भारतविद्या की शुरुआत लगभग दो शताब्दी पूर्व हुई थी परंतु आज इसका दायरा अधिक व्यापक हो गया है। भारत का क्षेत्र स्पष्ट दर्शाता है कि विषयों के विशेषज्ञ भारतीय संस्कृति और सभ्यता की गहरी जानकारी प्रदान करने के लिए किस प्रकार अक्सर एकजुट हो जाते हैं। घग्गर-हाकरा बेसिन के सुदूर संवेदन अध्ययन ने हड़प्पा सभ्यता तथा उन मैदानी इलाकों में कभी बहने वाली और वैदिक साहित्य में वर्णित लुप्त नदी‘सरस्वती’ की भूमिका के प्रति हमारे समाज की समझ को बदल दिया है। भिन्न-भिन्न विषयों के बीच इस शानदार सहयोग ने प्राचीन भारतीय बुद्धिकौशल के उन पहलुओं की पुनःखोज करने का सुअवसर प्रदान किया है जो हमारी अनेक सम-सामयिक समस्याओं को सुलझा सकते हैं। योग पर हुए अध्ययन से यह पता चला है कि मानव स्वास्थ्य और कुशलता पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि योग और आयुर्वेद के प्रति चेक गणराज्य में व्यापक समर्थन और दिलचस्पी पैदा हो रही है।
9. भारतविद्या के माध्यम से भारत और चेक गणराज्य केवल एकजुट ही नहीं हुए हैं,अपितु आधुनिक भारत के निर्माण तथा भारत के समृद्ध अतीत को सामने लाने में भी इसकी अहम भूमिका रही है। इसने भारत के समृद्ध अतीत की पुन:खोज की है और एक सांस्कृतिक जाग्रति पैदा की है। इसने भारत को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से हटे बिना आधुनिकता को अपनाने और उसे आत्मसात करने में सक्षम बनाया है। विद्यासागर से लेकर विवेकानंद और टैगोर से लेकर महात्मा गांधी तक यह देखा गया है कि भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक आधुनिकता ऐसी नींव पर निर्मित है जिसने पौर्वात्य और पाश्चात्य विचारों के सहज संगम पर जोर दिया। भारतविद्या से संबंधित अध्ययन से पूरे विश्व को एक ऐसे विश्व-परिवार के रूप में जोड़ा जाना जारी है जहां ना कोई दीवारें हैं और न रूकावटें हैं।
10. मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि लगभग 500 भारतीय विद्यार्थी चेक गणराज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययन कर रहे हैं। उनमें से अनेक ने अपना अध्ययन पूरा कर लिया है और वे व्याख्याता तथा वैज्ञानिकों के रूप में कार्य कर रहे हैं। आप अपने भारतविद्या अध्ययन में आपको उनसे बहुत सहयोग प्राप्त हो सकता है।
11. देवियो और सज्जनो, मैं एक बार फिर इस अवसर पर हमारी दोनों जनता और संस्कृतियों को एकजुट करने के अथक प्रयास के लिए चार्ल्स विश्वविद्यालय के रेक्टर और सभी संकाय सदस्यों का धन्यवाद करता हूं। मैं आपकी शिक्षा के सफलतापूर्वक पूर्ण होने और आपके सपनों के साकार होने के लिए शुभकामनाएं देता हूं।