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राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमशीलता और प्रबंधन संस्थान (निफ्टेम) में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

सोनीपत : 10.02.2018

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1. मुझे राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमशीलता और प्रबंधन संस्थान अर्थात् निफ्टेम के प्रथम दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। स्नातक और स्नातकोत्तर उपाधियां प्राप्त करने वालों और विशेषकर पदक विजेताओं को मेरी बधाई। यह आपके शैक्षिक जीवन की एक उपलब्धि है। इसका अधिकांश श्रेय आपकी कठोर मेहनत को और आपके प्रोफसरों और संकाय सदस्यों तथा आपके माता-पिता और परिजनों से आपको प्राप्त सहयोग को जाता है। वास्तव में, आपकी सफलता में ही उनकी सफलता है।

2. भले ही इस संस्थान में आपकी औपचारिक शिक्षा सम्पन्न हो गई हो परन्तु आपका कॅरियर यहां से उड़ान भरने वाला है। आप संभावनाओं से भरी दुनिया में कदम रख रहे हैं। एक ऐसी दुनिया में, जिसमें आपके द्वारा यहां हासिल खाद्य प्रौद्योगिकी और उद्यमशीलता कौशल की बहुत मांग है। आप विशेष रूप से भाग्यशाली हैं क्योंकि आपने जो सीखा है, उससे आप न केवल एक पेशेवर जीवनवृत्ति की नींव रखने के योग्य बनेंगे बल्कि आप हमारे किसानों का जीवन भी बदल सकते हैं और एक समृद्ध देश बनने के लिए उसकी विकास यात्रा में मदद कर सकते हैं।

3. हमारे पूर्वजों द्वारा सिंधु घाटी में अन्न उपजाने के बाद से भारत लगातार कृषि आधारित अर्थव्यवस्था बना हुआ है। अलग-अलग फसलों और खाद्य पदार्थों का उल्लेख, वेदों से लेकर आयुर्वेद और योग तक के हमारे सांस्कृतिक और बौद्धिक ग्रन्थों में हुआ है। पोषक अनाज की अनेक किस्में और विभिन्न किस्म की दालें भारतीय अनुभव की पहचान हैं। यही बात, जिलेवार न सही परंतु एक राज्य से दूसरे राज्य में बदलती दिखने वाली खानपान की आदतों और व्यंजनों पर भी लागू होती है। भारत के विस्तार और विविधता, जो हमारी ताकत है, के प्रतीक हैं ये भारतीय व्यंजन।

4. इस त़ाकत के मूल में हमारे लाखों-करोड़ों किसान हैं। ये करोड़ों स्त्री-पुरुष हमारे लिए अन्न पैदा करने के लिए अथक मेहनत और कठोर प्रयास करते हैं। वे न केवल खाद्य सुरक्षा में बल्कि वस्तुत: राष्ट्रीय सुरक्षा में भी योगदान देते हैं। वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि हमारे 130 करोड़ देशवासियों की थाली में भोजन उपलब्ध हो; उनमें से अधिकांश देशवासी तो ऐसे होते हैं जिनके साथ इन किसानों का कोई परिचय नहीं होता और हो सकता है कि इन लोगों से उनकी जीवन में कभी मुल़ाकात भी न हो। ऐसा नि:स्वार्थ कार्य करने वाले किसानों की कमाई प्राय: सीमित होती है और उन्हें मानसून और बाजार की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। सचमुच हमारे देश में खेतीबाड़ी करना कोई आसान काम नहीं है, बल्कि एक तपस्या है।

5. एक समाज के रूप में और एक नागरिक के रूप में, हम पर अपने किसानों का जीवन बेहतर बनाने तथा उन्हें प्राकृतिक व मौसम संबंधी आपदाओं और यथा- संभव मांग एवं पूर्ति के उतार-चढ़ाव से मुक्त करने का दायित्व है। यही सरकार का संकल्प है और उसने इसे आगे बढ़ाने के लिए नीतियां व कार्यक्रम आरंभ किए हैं। इन कार्यक्रमों में खाद्य आपूर्ति शृंखला के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग अत्यावश्यक है। और यहीं पर, ‘निफ्टेम’ जैसे संस्थान और यहां उत्तीर्ण होने वाले स्नातक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

देवियो और सज्जनो,

6. हमारे देश में कृषि में प्रौद्योगिकी का समावेश कोई नई बात नहीं है। हमारी हरित क्रांति में नवान्वेषण की महत्वपूर्ण भूमिका थी। हरियाणा राज्य सहित हमारे मेहनती किसानों ने इनसे लाभ उठाया और पैदावार में वृद्धि की। परिणामस्वरूप भारत खाद्य उत्पादन में स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर हो गया है। आज हमारा देश विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत चावल, गेहूं, फल और सब्जियां, गन्ना और चाय का दूसरा सबसे बड़ा, अण्डों का तीसरा और मांस का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है।

7. यह उपलब्धि हमारे किसानों के प्रति एक सम्मान है। इस उपलब्धि ने एक सराहनीय खाद्य उद्योग की नींव भी रखी है। भारत का खाद्य और किराना बाजार विश्व में छठा सबसे बड़ा बाज़ार है और 2025 तक इसके 1 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगभग 39,000 पंजीकृत फैक्ट्रियों और बीस लाख से ज्यादा अपंजीकृत खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों तक फैला हुआ है। पंजीकृत विनिर्माण कारखानों में कार्यरत आठ में से एक भारतीय नागरिक खाद्य क्षेत्र में रोजगार-प्राप्त है। देश के निर्यात में खाद्य वस्तुओं के निर्यात का हिस्सा 11 प्रतिशत है। इस क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए, सरकार ने 42 मेगा फूड पार्कों को मंजूरी दी है और ये पार्क आरंभ किए जाने की राह पर अलग-अलग चरणों में हैं।

8. तथापि, यह केवल झांकी मात्र है या यूं कहें कि हाथी की पूंछ मात्र है। हाल के दशकों में विश्व खाद्य व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं। हमें इन परिवर्तनों के लाभ और इस व्यापार की संभावनाओं को हर खेत और हर किसान तक ले जाना होगा। हमारे दृढ़-निश्चयी और समर्पित किसानों ने हमारे देश के लिए अनाज उपजाया है, उनमें विश्व के लिए अन्न उपजाने की भी क्षमता है। सेवा क्षेत्र में भारत ने विश्व स्तरीय उद्योग खड़े करने के लिए अपनी प्रभूत मानव प्रतिभा और किफायती लागत वाली संरचना का लाभ उठाया है। कृषि और खाद्य तथा कृषि आधारित उद्योगों में इसे दोहरा न पाने का कोई कारण नहीं है। भारतीय कृषि उत्पाद-चाहे चावल हो, दूध, फल और सब्जियां हों या फिर मिर्च ही क्यों न हो, सुपर बाजारों को पाट सकते हैं, और पूरे विश्व के परिवारों का पेट भर सकते हैं। शीत भण्डारण और परिरक्षण में, खाद्य प्रसंस्करण और खाद्य आपूर्ति शृंखला में हमारे युवाओं के लिए इससे रोजगार के भरपूर अवसर पैदा किये जा सकते हैं।

9. वैश्विक मांग के साथ-साथ, घरेलू बाजार में भी भारी हलचल है। जैसे-जैसे सामाजिक आदतों में बदलाव हो रहा है और खास तौर पर हमारे शहरों में एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे भारत में पैक किए हुए और ‘खाने के लिए तैयार’ खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। खाद्य पदार्थों में शामिल अवयवों की गुणवत्ता, सुरक्षा और लेबल मानकों को वैश्विक मापदण्डों के बराबर रखना एक चुनौती है। यह पक्का करना है कि पैकेज किये हुए आहार से सुविधा और सेहत को बढ़ावा मिले और यह भी कि भारत के प्रत्येक राज्य में पाए जाने वाले पोषक अन्न और पारंपरिक खाद्य पदार्थों का अस्तित्व बना रहे। खाद्य उद्योगों का यह दायित्व है कि वह नवान्वेषण करें और हमारे देश में जीवनशैली से उत्पन्न रोगों के प्रकोप का सरल उपयोगी समाधान निकालें। यह सब करते हुए भी, हमें विशेषकर सदियों तक भारत का गौरव रहे पारंपरिक और पोषक तथा देश-विदेश के अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को सुलभ कराए जा सकने वाले खाद्य पदार्थों के अपने खुद के ब्रांड स्थापित करने के प्रति जागरूक रहना होगा।

10. आपका संस्थान ऐसे ही सामाजिक संदर्भ में उभर कर सामने आया है। इस संस्थान के स्नातक,किसानों को समाज व प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ते हुए, उद्यमशीलता और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के साथ जोड़ते हुए अपनी केन्द्रीय भूमिका निभाएंगे। आपका दायित्व अनेक प्रकार के हित धारकों-जैसे उद्योग क्षेत्र, विनियामकों, नीति निर्माताओं, उपभोक्ताओं, वित्तीय और ऋणदाता संस्थाओं तथा हमारे प्यारे किसान भाइयों के बीच साझेदारियां निर्मित करने का है।

11. यदि मुद्रा और स्टार्ट-अप इंडिया जैसे सरकारी कार्यक्रमों को सही रूप में प्रभावशाली बनाना है और किसानों और किसान परिवारों को आगे बढ़ाना है तथा वृहत्तर खाद्य उद्योग की मूल्य शृंखला का हिस्सा बनना है तो यहां उपस्थित स्नातक और युवा पेशेवर ही इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे। मुझे यह जानकार प्रसन्नता हुई है कि निफ्टेम का कॉरपोरेट संसाधन प्रभाग प्लेसमेन्ट में सहायता कर रहा है तथा स्थापित खाद्य कारोबारियों और उदीयमान स्टार्ट-अप उद्यमों को विद्यार्थियों के संपर्क में आने के लिए प्रोत्साहन दे रहा है। इस संस्थान से तैयार हुए स्नातकों को अपने अंदर रोजगार प्रदाता बनने की आकांक्षा पैदा करनी चाहिए। प्रधान मंत्री किसान सम्पदा योजना जैसी सरकारी योजनाओं से खाद्य प्रसंस्करण संयंत्र तथा संपूर्ण खाद्य प्रसंस्करण मूल्य शृंखला के अन्तर्गत पार्श्विक और अग्रिम संयोजन वाली इकाइयां स्थापित करने के लिए योग्य युवाओं को वित्तीय प्रोत्साहन सहित अवसर उपलब्ध होते हैं। ऐसे अवसरों से अधिक से अधिक लाभ उन्हें उठाना चाहिए।

12. हमारे देश में, खेत और थाली के बीच या कहें तो हल और निवाले के बीच अभी काफी दूरी बनी हुई है। यह अंतर केवल कीमतों या प्रौद्योगिकी का ही मामला नहीं है बल्कि यह अंतराल न्याय का भी है-वह न्याय जिसे एक समाज के तौर पर हमें दूर-दराज के खेतों में कड़ी मेहनत करने वाले अपने देशवासियों को प्रदान करना ही चाहिए। इस अंतराल को समाप्त करने में निफ्टेम जैसे संस्थान और यहां से तैयार हुए स्नातकों को सरकार और देश की मदद करनी होगी। मुझे विश्वास है कि अपने कौशल, ऊर्जा और आशावाद की भावना से आप इस कार्य में अवश्य ही सफल होंगे।

13. इन्ही शब्दों के साथ, मैं आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिन्द !