भारत जल सप्ताह-2017 के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन
नई दिल्ली : 10.10.2017
मुझे पांचवे भारत जल सप्ताह-2017 के उद्घाटन के लिए यहां आ कर प्रसन्नता हुई है। मैं विशेष रूप से यूरोपीय संघ और अन्य देशों के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों का स्वागत करता हूं। वे इस अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर अपने भारतीय समकक्षों के साथ विचार-विमर्श करेंगे।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, जल,जीवन के लिए अत्यावश्यक है। वास्तव में,मानव शरीर का60 प्रतिशत जल है इसलिए यह कहा जा सकता है कि जल स्वयं में जीवन है। बिना जल के मानव कार्यकलाप का कोई भी क्षेत्र पूरा नहीं हो सकता। आज,विश्व में यह बहस हो रही है कि क्या सूचना का प्रवाह ऊर्जा के प्रवाह से अधिक महत्वपूर्ण है?यह अर्थव्यवस्था,पारिस्थितिकी और मानव समता का मूल तत्व है। जलवायु परिवर्तन और संबंधित पर्यावरणीय चिंताओं की दृष्टि से जल का मुद्दा और अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
भारत में, जल हमारे कुछ प्रमुख कार्यक्रमों के लिए अहम है। मैं यह तक कहना चाहता हूं कि भारत का आधुनिकीकरण हमारे जल प्रबंधन के आधुनिकीकरण पर निर्भर है। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि हमारे देश में 17 प्रतिशत विश्व जनसंख्या रहती है परन्तु यहां विश्व जल संसाधनों का केवल चार प्रतिशत मौजूद है।
जल का बेहतर तथा कुशल प्रयोग भारतीय कृषि और उद्योग के लिए एक चुनौती है। इसके लिए हमारे गांवों और निर्मित शहरों दोनों में नए मापदण्ड तय करने की जरूरत है।
भारत के 54 प्रतिशत लोग अपने जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर हैं। तथापि राष्ट्रीय आय मे उनका हिस्सा मात्र14 प्रतिशत है। कृषि को और अधिक लाभकारी बनाने तथा कृषक समुदायों की समृद्धि
बढ़ाने के लिए,सरकार ने अनेक नई परियोजनाएं शुरू की हैं। इनमें शामिल हैं :
1.‘हर खेत को पानी’-इसके लिए जल की आपूर्ति अैर उपलब्धता बढ़ाने की आश्यकता होगी।
2.‘प्रति बूंद,अधिकफसल’:इसके लिए जल की समान मात्रा का प्रयोग करते हुए कृषि पैदावार बढ़ाने हेतु ड्रिप सिंचाई और संबंधित तरीके अपनाने की आवश्यकता है।
3.‘2022 तक कृषि आय को दुगुना करना’: इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए,सरकार सिंचाई के अंतर्गत क्षेत्र का तेजी से विस्तार कर रही है तथा काफी समय से लंबित99 सिंचाई परियोजनाएं पूरी कर
रही है। इसमें से 60 प्रतिशत योजनाएं सूखाग्रस्त इलाकों के लिए हैं।
मैं, अब भारत के औद्योगिकीकरण तथा इसमें जल की भूमिका पर चर्चा करता हूं। भारत निर्माण मिशन के तहत,भारत हमारे सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण के योगदान को तीव्रता से बढ़ा रहा है। हम सकल घरेलू उत्पाद को वर्तमान17 प्रतिशत को 2025 तक 25 प्रतिशत तक ले जाने के लिए कृतसंकल्प हैं।
उद्योग को बहुत अधिक मात्रा में बढ़ाने की जरूरत होती है। विशेष रूप से यह इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर,कम्प्यूटर और मोबाइल फोन के निर्माण के लिए सच है।
वर्तमान में भारत में 80 प्रतिशत जल कृषि और 15 प्रतिशत उद्योग द्वारा प्रयोग किया जाता है। आने वाले वर्षों में यह अनुपात बदल जाएगा। जल की कुल मांग बढ़ जाएगी। इसलिए जल के प्रयोग और पुन:प्रयोग की कुशलता को औद्योगिक परियोजनाओं की रूपरेखा में शामिल किया जाना चाहिए। कारोबार और उद्योग को इस समाधान का भाग बनाना चाहिए। इसीलिए मुझे खुशी है कि इस सम्मेलन में विशाल विनिर्माण कंपनियां उपस्थित हैं।
भारत में अभूतपूर्वरूप से शहरीकरण बढ़ रहा है। स्मार्ट शहरों के भाग के तौर पर, 100 आधुनिक शहरों के निर्माण और उन्नयन का प्रयास किया जा रहा है। जैसा कि हमें विदित है,जल का पुन:प्रयोग, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा बेहतर स्वच्छता ढांचे और तरीके सभी शहरों के मापदण्ड हैं।
शहरी भारत में, प्रतिदिन 40 बिलियन लीटर व्यर्थ जल निकलता है। इस जल की विषाक्त मात्रा को दूर करना और इसे सिंचाई व अन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग करने के लिए प्रौद्योगिकी अपनाना जरूरी है। इसे किसी भी शहरी नियोजन कार्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।
मैं, जल के संबंध में,भारत की प्रमुख क्षेत्रीय भिन्नताओं की ओर भी ध्यान दिलाना चाहूंगा। एक ओर,हमारे कुछ उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में भूजल स्रोतों का बुरी तरह विदोहन किया जा रहा है और वे तेजी से समाप्त हो रहे हैं। दूसरी ओर, पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में उफनती नदियों और नियमित बाढ़ की चुनौती है। वर्ष दर वर्ष हमारे मानव वास स्थलों को नुकसान होता है तथा असंख्य परिवारों में त्रासदी पैदा होती है।
एक बहु-भागीदार और बहु-स्तरीय दृष्टिकोण से ऐसी आपदाओं को नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें व्यवहार्य होने पर नदियों को जोड़ना शामिल है। नदियों को स्वच्छ रहने तथा विभिन्न प्रयोक्ताओं के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नदी तक के बेसिन-वाहक प्रबंधन की भी जरूरत है। नमामि गंगे परियोजना इस विषय में एक बेहतर शुरुआत है। हमें ऐसे विचारों का भारत की अन्य नदी प्रणालियों तथा भारतीय उपमहाद्वीप विशेषकर हमारे देश के पूर्वी भाग तक विस्तार करने की आवश्यकता है।
निष्कर्षत: मैं स्थानीय जल प्रबंधन पद्धति अपनाने का आग्रह करता हूं। इससे गांवों और आस-पड़ोस के समुदायों को सशक्त बनाना चाहिए तथा जल संसाधनों के प्रबंधन,आवंटन और मूल्य निर्धारण की उनकी क्षमता का निर्माण करना चाहिए।21वीं शताब्दी की जल नीति में जल के मूल्य निर्धारण की संकल्पना को प्रमुख कारक बनाया जाना चाहिए। इसे समुदायों सहित सभी भागीदारों के विचारों को व्यापक बनाने और जल की मात्रा आवंटित करने के स्थान पर लाभ की मात्रा आवंटित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
वास्तव में, लाभ की यह मात्रा अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये मानव समाज की आजीविका प्रतिरूपों की जानकारी और पूर्वानुमान से स्वयं जुड़ जाएंगे। और ये बढ़ते रहने चाहिए।
मित्रो, जल तक पहुंच मानव गरिमा का पर्याय है। भारत के लिए, छह लाख गांवों और शहरी इलाकों में बसी आबादी को साफ पेयजल प्रदान करना मात्र एक परियोजना प्रस्ताव नहीं है। यह एक पावन प्रतिबद्धता है। सरकार ने स्वतंत्रता के 75 वर्ष होने पर 2022 तक सभी ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने की एक महत्वपूर्ण योजना बनाई है। उस वर्ष तक90प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को पाइप से पेय जल आपूर्ति के लक्ष्य में शामिल करना होगा।
हम विफल नहीं हो सकते। इस समारोह के विचार-विमर्श से यह सुनिश्चित करना होगा कि हम विफल नहीं हुए हैं।
इन्ही शब्दों के साथ, मैं भारत जल सप्ताह-2017 के सफल होने की कामना करता हूं।
धन्यवाद !
जय हिन्द !