चौथे अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का अभिभाषण
राजगीर, बिहार : 11.01.2018
1. मुझे वियतनाम बौद्ध विश्वविद्यालय,भारत फाउंडेशन तथा विदेश मंत्रालय,भारत सरकार की साझीदारी से नालंदा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए जा रहे धर्म-धम्म परम्पराओं में राजकीय और सामाजिक व्यवस्था पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के लिए यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। विशेष तौर से,मैं इस सम्मेलन में आए हुए11 देशों के अंतरराष्ट्रीय विद्वानों और प्रतिनिधियों का स्वागत करता हूं।
2. मुझे ज्ञात है कि यह चौथा अंतरराष्ट्रीय धर्म-ध्म्म सम्मेलन है जिसे पहली बार नालंदा विश्वविद्यालय और बिहार राज्य में आयोजित किया जा रहा है। एक प्रकार से, धर्म और धम्म की दोनों परम्पराएं अपने घर आई हैं। ये भगवान बुद्ध की इस भूमि,,आस्था, ज्ञान और बुद्धत्व के इस प्राचीन देश की पवित्र धरती पर आई हैं।
3. आधुनिक राष्ट्रों और राष्ट्र सीमाओं से बहुत पहले भगवाद बुद्ध के काल में यह संपूर्ण क्षेत्र मगध के रूप में विख्यात था। उन दिनों, संस्कृत और पालि प्रमुख भाषाएं थीं। धर्म संस्कृत का, और धम्म पालि भाषा का शब्द है। उनके अर्थ एक समान हैं और उनका मूल स्रोत एक ही है। मगध प्रदेश से यात्रा करते समय,भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों ने मठों के रूप में निर्मित शिविरों में विश्राम किया था। इन्हें विहार कहा गया, और इस विहार से ही बिहार नाम पड़ा।
4. इस स्थल के अलावा, यह सम्मेलन सही समय पर हो रहा है। हम आसियान-भारत संवाद साझीदारी की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। जनवरी का महीना भारत-आसियान रिश्तों का उत्सव है। आसियान के सभी 10 देशों के नेता नई दिल्ली में भारत के गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी को समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। आज यह सम्मेलन भारत और आसियान की स्थायी मैत्री और साझे मूल्यों तथा उपमहाद्वीप और दक्षिणपूर्व एशिया दोनों की आध्यात्मिक विरासत और ज्ञान का प्रमाण है।
5. यह सम्मेलन धर्म और धम्म की विविध परंपराओं की समान जड़ों और समानताओं की जानकारी बढ़ाने का एक प्रयास है। हम उन्हें अनेक नामों से जानते हैं परंतु ये हमें एक ही पथ पर ले जाते हैं। वे एक की बजाए अनेक मार्गों पर बल देते हैं, जो एक ही अपेक्षित लक्ष्य कीय ओर ले जाते हैं। इस सम्मेलन की परिचर्चाएं किसी महत्त्वपूर्ण सत्य का अन्वेषण करेंगी। इसमें नैतिक आचरण और उद्देश्यपूर्ण राजकौशल को आकार देने में धर्म और धम्म की भूमिका पर विचार-विमर्श और परिचर्चाएं की जाएंगी । ये विषय सार्वभौमिक और शाश्वत हैं। ये विदेशी चुनौती और आत्मशंका के लम्बे समय तक कायम रही। उन्होंने मानव इतिहास के दौरान उल्लेखनीय सहन-शक्ति दर्शाई है।
6. नालंदा विश्वविद्यालय इस भावना का प्रत्यक्ष रूप है। यहां स्थापित प्राचीन विश्वद्यालय ज्ञान और प्रज्ञा की अद्भुत कृति था। यह भारत के इस क्षेत्र में स्थित था परंतु इसका स्वरूप अंतरराष्ट्रीय था। इसने संपूर्ण एशिया के विद्यार्थियों, विद्वानों और तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित किया। इसी प्रकार, वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय चिरस्थायी धर्म-धम्म अस्मिता प्रस्तुत करता है। विश्वविद्यालय की संकल्पना, स्थान और विकास भारत और साझीदार देशों विशेषकर आसियान परिसार के देशों के उत्साही प्रयासों का परिणाम है।
7. अनेक भारतीय विद्वानों के अतिरिक्त, मुझे बताया गया है कि इस सम्मेलन में विख्यात अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि ज्ञानपूर्ण विचार व्यक्त करेंगे। वे उत्तरी और दक्षिण अमेरिका सहित सुदूर महाद्वीपों से आए हैं। परन्तु उनमें से अधिकतर एशिया के कोने-कोने अर्थात मध्य एशिया से लेकर दक्षिणपूर्व एशिया से हैं। इस सम्मेलन में प्रतिनिधित्व कर रहा प्रत्येक देश और समुदाय विशिष्ट है और उनकी विशेष खूबियां हैं। तथापि उनमें से सभी किसी न किसी प्रकार से धर्म-धम्म परंपरा प्राप्त है। उनमें से सभी ने भगवान बुद्ध का संदेश प्राप्त किया है, जो एशिया और उससे आगे प्रसारितत हुआ और जो हमारे लिए एक महत्त्वपूर्ण शक्ति है।
8. सम्पूर्ण-एशिया पंथ के रूप में, बौद्धधर्म की यह यात्रा और बाद में विश्वव्यापी अनुकरण 2500 वर्ष पूर्व बिहार में आरंभ हुआ था। इसीलिए, सम्मेलन ऐतिहासिक घटना की स्मृति है और इसका उद्गम इसी क्षेत्र से हुआ था।
9. एशियाई महाद्वीप के शेष भाग में बौद्ध धर्म की यह यात्रा धर्म-धम्म परंपरा की अपेक्षा बहुत कुछ साथ लेकर गई। इनमें ज्ञान और शिक्षण, कला और शिल्प की भावी संपदा शामिल थी,यह अपने साथ ध्यान पद्धति और मार्शल आर्ट भी लेकर गई। फलत: संकल्पकृत भिक्षु और भिक्षुणियां, जो श्रद्धावान पुरुष और महिलाएं थीं, संस्कृति और वाणिज्य दोनों साथ लेकर गए। वे अन्तर-महाद्वीपीय पार व्यापार यात्रियों में शामिल हो गए।
10. लोकप्रिय होने से बहुत पहले, बौद्ध धर्म वैश्वीकरण के प्रारंभिक रूप और हमारे महाद्वीप के परस्पर संयोजन का आधार था। इसने बहुलवाद और विचार विविधता को बढ़ावा दिया। इसने विभिन्न विचारों और उदारवादी अभिव्यक्तियों को स्थान दिया। इसने व्यक्तिगत जीवन, मानव साझीदारियों तथा सामाजिक और आर्थिक व्यवहार में नैतिकता पर बल दिया। इसने प्रकृति और पर्यावरण के साथ मिलकर रहने, कार्य करने और सहयोग करने के सिद्धांतों पर जोर दिया। इसने साथी समुदायों के साथ ईमानदार, पारदर्शी और परस्पर लाभकारी व्यापारिक और कारोबारी संपर्क की प्रेरणा दी।
11. साधारण स्तर पर, धर्म-धम्म परंपरा हमें आत्मसुधार, उच्च स्थिति प्राप्त करने तथा ज्ञान के स्तर पर पहुंचाने के निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता और महत्व के बारे में बताती है। इसी ज्ञान प्राप्ति से ही राजकुमार सिद्धार्थ भगवान बुद्ध बने। योद्धा सम्राट धम्म अशोक बन गए।
12. भगवान बुद्ध ने जिसको स्पर्श किया, उसने एक बेहतर व्यक्ति और एक ज्ञानी व्यक्ति बनने की अबाध और अनवरत प्रयास की प्रक्रिया को अपनाया है और एक ऐसा व्यक्ति बनाया है जिसने भौतिक महत्त्वाकांक्षाओं और परिग्रह से ऊपर उठने का प्रयास किया है।
13. ऐसा अनुमान है कि विश्व की वर्तमान जनसंख्या का आधे से अधिक हिस्सा ऐसे भागों में रह रहा है जो ऐतिहासिक रूप से भगवान बुद्ध के ज्ञान द्वारा प्रभावित रहा है और अभी भी अनेक प्रकार से प्रभावित हो रहा है और अभी भी जिसे मानवता के सम्मुख एक आदर्श माना जाता है। इसी सूत्र से हम सभी बंधे हुए हैं। यही संकल्पना हमें 21वीं शताब्दी में प्रेरित करेगी। इसे ही सचमुच‘एशिया का प्रकाश’कहा जाता है।
देवियो और सज्जनो,
14. भारत की एक्ट ईस्ट नीति को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह एक राजनयिक पहल से कहीं अधिक है। इसका लक्ष्य अधिक व्यापार और निवेश ही नहीं है। वास्तव में ये सभी आकांक्षाएं भारत और इसके समस्त साझीदार देशों के लोगों की समृद्धि और खुशहाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तथापि एक्ट ईस्ट नीति का लक्ष्य मात्र आर्थिक अवसरों का आदान-प्रदान करना नहीं है बल्कि भारत और दक्षिणपूर्व एशिया तथा धर्म-धम्म पहचान वाले एशिया के दूसरे भागों में रहने वाले करोड़ों लोगों के सपनों और उम्मीदों को एक साथ जोड़ना है। हमारे अतीत का एक ही उद्गम है, और हमारा भविष्य भी आपस में जुड़ा हुआ है। यह सम्मेलन और नया नालंदा विश्वविद्यालय उसी साझी भावना के प्रतीक हैं। हमारे आर्थिक और राजनयिक प्रयासों को इसी उद्गम से पे्ररणा ग्रहण करनी चाहिए।
15. भारत के पूर्वोत्तर राज्यों बिहार जैसे राज्य के लिए,सैकड़ों-हजारों वर्ष पहले धर्म और धम्म भिक्षुओं द्वारा प्रेमपूर्वक निर्मित आध्यात्मिक,सांस्कृतिक और व्यापार संपर्क एक ऐतिहासिक स्मृति से कहीं अधिक है। वे समाज के डीएनए में गुंथे हुए हैं। वे एक जीती जागती हकीकत है जो दक्षिणपूर्व एशिया को घरेलू और हमारे शानदार महाद्वीप में विकास और समृद्धि, शांति और बहुलवाद की खोज में प्राकृतिक और अपरिहार्य साझीदार बनाती है। इसीलिए, यहां उपस्थित हम सभी और मानव कार्यकलाप के किसी भी क्षेत्र के लिए,धर्म और धम्म निरंतर, अनवरत यात्रा और एक लक्ष्य है ।
16. इन्ही शब्दों के साथ, मुझे चौथे अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन के उद्घाटन की घोषणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है। मैं आगे की कार्यवाही के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद
जय हिन्द !