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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर स्मारक पर आयोजित समारोह में सम्बोधन

आम्बडवे: 12.02.2022

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आज राष्ट्र-निर्माता बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के पैतृक गांव आम्बडवे की धरती पर आना, उनके अस्थि-कलश का पूजन करना, भगवान बुद्ध तथा बाबासाहब डॉक्टर आंबेडकर की प्रतिमाओं और आदरणीय रामजी सकपाल व आदरणीया रमाबाई आंबेडकर के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित करना, मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूं।

लगभग दो महीने पहले 6 दिसंबर को देशवासियों ने बाबासाहब का महापरिनिर्वाण दिवस मनाया और उनका सादर स्मरण किया। उसके पहले 26 नवंबर को पूरे देश में संविधान दिवस मनाया गया। सन 2015 से प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले संविधान दिवस के दिन आयोजित देशव्यापी समारोहों में भी बाबासाहब और उनके द्वारा पोषित संवैधानिक आदर्शों को ही मुख्यतः स्मरण किया जाता है। मुझे बताया गया है कि 7 नवंबर का दिन, महाराष्ट्र के विद्यालयों में, विद्यार्थी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन 1900 में, 7 नवंबर को, बाबासाहब ने विद्यालय में दाखिला लिया था। आज यह कहा जा सकता है कि उस दिन एक नए युग का सूत्रपात हुआ। विद्यार्थी-दिवस के आयोजन द्वारा, बाबासाहब के आदर्शों को अपनाने की शिक्षा देने का यह प्रयास सराहनीय है। इसके लिए महाराष्ट्र की जनता और सरकार को मैं बधाई देता हूं। 14 अप्रैल को सभी देशवासी श्रद्धा और उत्साह के साथ आंबेडकर जयंती मनाते हैं। बाबासाहब से जुड़ा हर कार्यक्रम हमें करुणा-युक्त, कानूनी राज व समतामूलक समाज की परिकल्पना को साकार करने के लिए प्रेरित करता है। शिक्षा के प्रति बाबासाहब आंबेडकर के लगाव को स्मरणीय बनाने हेतु पूरे देश में 7 नवंबर को विद्यार्थी-दिवस के रूप में मनाने पर भी विचार किया जा सकता है।

बाबासाहब शिक्षा के प्रचार-प्रसार को सबसे अधिक महत्व देते थे। यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि बाबासाहब के इस गांव में, श्री भिकू रामजी इदाते के प्रयासों से ‘सवित्रीबाई फुले शिक्षण प्रसारक मण्डल’ द्वारा ‘भारत-रत्न डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर विद्या-मंदिर’ नामक माध्यमिक विद्यालय चलाया जा रहा है। मुझे यह भी बताया गया है कि इस विद्यालय के बेटे-बेटियों का रिजल्ट बहुत प्रभावशाली होता है। मेरा विश्वास है कि माध्यमिक विद्यालय के यहां होने से, इस क्षेत्र के बच्चों, विशेषकर बेटियों को अपनी पढ़ाई जारी रखने में मदद मिली होगी और भविष्य में भी मिलती रहेगी। इस योगदान के लिए मैं इदाते जी की विशेष सराहना करता हूं।

आज के समारोह में भाग लेकर परम आदरणीय बाबासाहब के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का सौभाग्य तो मुझे मिला ही है, साथ ही भारतीय महिलाओं की शिक्षा तथा सशक्तीकरण के संघर्ष का आरंभ करने वाली सावित्रीबाई फुले तथा देश में सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत महात्मा फुले का पुण्य स्मरण करने का भी सुअवसर मिला है। बाबासाहब, महात्मा जोतिबा फुले को अपना आदर्श मानते थे। ‘सावित्रीबाई फुले शिक्षण प्रसारक मण्डल’ द्वारा यहां चलाया जा रहा माध्यमिक विद्यालय उन दोनों महान विभूतियों के आदर्शों की याद दिलाता है। इस प्रकार, आम्बडवे गांव की यह यात्रा मेरे लिए एक तीर्थ यात्रा के समान ही है।

बाबासाहब की जीवन-यात्रा से जुड़े पांच महत्वपूर्ण स्थलों को पंच-तीर्थ का नाम दिया गया है। महू में उनकी जन्म-भूमि, नागपुर में दीक्षा-भूमि, दिल्ली में परि-निर्वाण स्थल, मुंबई में चैत्य-भूमि तथा लंदन में आंबेडकर मेमोरियल होम के पंच-तीर्थों में बाबा साहब के आदर्शों से जुड़े लोग अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। देश में स्थित सभी चारों स्थलों का दर्शन करने का सौभाग्य मुझे मिला है। बाबासाहब के सम्मान में इन स्थलों को सुचारु रूप से विकसित करने में योगदान के लिए मैं केंद्र सरकार की सराहना करता हूं। केंद्र सरकार को मेरा सुझाव है कि बाबासाहब से जुड़े उन महत्वपूर्ण स्थलों की भांति उनके इस पैतृक गांव में स्थित स्मारक को भी तीर्थ-स्थल घोषित किया जाए। साथ ही, केंद्र व महाराष्ट्र की सरकार मिलकर ऐसी सुविधाओं का विकास करें जिनसे लोगों को इस स्थल पर आना सुगम हो सके।

मुझे बताया गया है कि इस गांव को ‘स्फूर्ति-भूमि’ का नाम दिया गया है। अनेक क्षेत्रों में पूरी ऊर्जा के साथ आजीवन योगदान देने वाले बाबासाहब के इस पैतृक गांव को ‘स्फूर्ति-भूमि’ का नाम दिया जाना सर्वथा उपयुक्त है। मैं आशा करता हूं कि स्थानीय प्रशासन व राज्य सरकार द्वारा गांव के इस नाम को relevant documents में दर्ज करा दिया जाएगा। ‘स्फूर्ति-भूमि’ के आदर्श के अनुरूप पूरे देश के प्रत्येक गांव में समरसता और सौहार्द पर आधारित ऐसी समाज व्यवस्था होनी चाहिए जो उन सभी कुप्रथाओं से मुक्त हो जिनसे बाबासाहब की समतामूलक संवेदना को ठेस पहुंचती थी।

यहां उपस्थित पूर्व सांसद श्री अमर साबले जी ने इस गांव के लिए सराहनीय योगदान दिया है। अपनी सांसद निधि की अधिकांश धन-राशि उन्होंने इस क्षेत्र के विकास में लगाई है। इसके लिए मैं उनकी विशेष सराहना करता हूं। अन्य समर्थ व्यक्तियों और संस्थाओं को भी, इसी प्रकार, बाबासाहब से जुड़े स्थलों के लिए अपना योगदान देना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

महाराष्ट्र का यह क्षेत्र भारत के आत्म-गौरव तथा मानव मात्र की गरिमा के लिए संघर्षरत महान विभूतियों की कर्मस्थली रहा है। इसी रत्नागिरि जिले से जुड़े रायगढ़ में छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदवी साम्राज्य का उद्घोष किया था और उनका ऐतिहासिक राज्याभिषेक हुआ था। दो महीने पहले मुझे रायगढ़ दुर्ग में स्थित शिवाजी महाराज के ऐतिहासिक राज्याभिषेक-स्थल को देखने तथा उनकी पवित्र समाधि पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का सौभाग्य मिला। महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले के पैतृक स्थल भी इसी क्षेत्र के सतारा और पुणे जिलों में स्थित हैं और यह क्षेत्र उनकी कर्मस्थली भी रहा है। रत्नागिरि से जुड़े कोल्हापुर में ही छत्रपति शिवाजी के वंशज शाहूजी महाराज ने 19वीं सदी के अंत तथा 20वीं सदी के आरंभ में महात्मा फुले के आदर्शों को आगे बढ़ाया तथा बाबासाहब को हर तरह से सहायता प्रदान की। इस प्रकार, रत्नागिरि के क्षेत्र ने देश को अनेक रत्न दिए हैं, जिनमें सभी एक से बढ़कर एक हैं। रत्नागिरि जिले ने एक और मूल्यवान रत्न के रूप में, भारत-रत्न बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को दिया। इससे रत्नागिरि जिले का नाम सार्थक हो गया है।

ऐसी विभूतियों की जीवन गाथाओं के बारे में जानकर लोगों को, विशेषकर युवाओं को बहुत प्रेरणा मिल सकती है। इन सभी महान व्यक्तियों ने अपने जीवन में नैतिकतापूर्ण लक्ष्य सामने रखे और उस पर निरंतर चलते रहे। अच्छे उद्देश्यों के लिए उन लोगों के प्रयासों का लाभ समाज और देश को मिला है। इस संदर्भ में मराठी में कुछ पंक्तियां मैं आप सबके साथ साझा करना चाहूंगा:

पाऊले ती धन्य होती, ध्यास पंथे चालता,

सार्थक जीवाचे होते, ध्यास पंथे चालता,

गौरवान्वित होते संस्था, ध्यास पंथे चालता,

उजलते तेज मायभूचे, ध्यास पंथे चालता।

अर्थात

लक्ष्य के पथ पर चलते हुए चरण धन्य हो जाते है, लक्ष्य के पथ पर चलते हुए जीवन सार्थक हो जाता है,लक्ष्य के पथ पर चलते हुए संस्थान के सम्मान में वृद्धि होती है तथा लक्ष्य के पथ पर चलते हुए मातृभूमि की गरिमा बढ़ जाती है। इसी भावना के साथ, समानता और समरसता के लक्ष्यों की ओर हम सबको आगे बढ़ना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की सीख बाबासाहब को अपने पिता श्री रामजी सकपाल से भी मिली होगी जो फौज में सूबेदार-मेजर रह चुके थे। बाबासाहब के आजोबा यानि पितामह श्री मालोजी सकपाल भी फौज में रहे थे। बाबासाहब के पिताजी मानते थे कि देश की रक्षा व सुरक्षा हेतु अपने जीवन की कुरबानी देने के लिए महार रेजीमेंट में भर्ती होना उन सबका राष्ट्रीय दायित्व है। लेकिन, महार जाति के लोगों की फौज में भर्ती पर सन 1892 से रोक लगा दी गई। सेना से सेवा-निवृत्त होने के बावजूद, बाबासाहब के पिताजी ने उस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई और श्री महादेव गोविंद रानाडे तथा बंबई के गवर्नर के समक्ष इस मुद्दे पर ज्ञापन दिया। फौज में महार समुदाय के लोगों की भर्ती के इस विषय को लेकर वे निरंतर प्रयासरत रहे। अंततः फरवरी 1917 में वह आदेश निरस्त किया गया और प्रथम विश्व युद्ध के समय महार बटालियन की स्थापना की गई।

देवियो और सज्जनो,

शिक्षा और स्वाध्याय के प्रति बाबासाहब की निष्ठा सर्वविदित है। मुंबई में उनके निवास, ‘राजगृह’ में उनका निजी पुस्तकालय अत्यंत विशाल था। शिक्षा और अध्ययन को उन्होंने व्यक्तित्व, समाज और राष्ट्र-निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में अपनाया और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया।

बचपन से ही अध्ययन के प्रति उनके अनुराग का एक रोचक उदाहरण उनके इस पैतृक गांव से जुड़ा हुआ है। जैसा कि लोग जानते हैं कि जिन दिनों बाबासाहब ने सतारा तथा मुंबई में अपनी पढ़ाई की थी उस समय वे प्रायः परिवार के बड़े लोगों के साथ अपने इस गांव में आया करते थे। शायद जब वे कक्षा नौ की पढ़ाई कर रहे थे उस समय उनके एक भाई आनन्द जी का विवाह इसी गांव में हुआ था। विवाह समारोह में भाग लेने के लिए पूरे परिवार के साथ बाबासाहब भी आए थे। विवाह सम्पन्न होने के बाद जब सभी को मुंबई वापस लौटना था उस समय यह पाया गया कि बाबासाहब जिन्हें ‘भिवा’ के नाम से पुकारा जाता था, वहां नहीं थे। लोगों ने उन्हें खोजना शुरू किया। किसी व्यक्ति ने बताया कि एक बच्चा थोड़ी दूर स्थित एक मंदिर में बैठकर कोई पुस्तक पढ़ रहा है। बाबासाहब के पिताजी समझ गए कि वह बालक ‘भिवा’ ही हो सकता है। परिवार के लोगों ने जाकर पुस्तक पढ़ने में डूबे हुए बाबासाहब को साथ लिया और मुंबई के लिए रवाना हुए।

देवियो और सज्जनो,

कोविड की महामारी के संकट के दौरान ही इस क्षेत्र के लोगों को जून 2020 में निसर्ग साइक्लोन की आपदा का सामना भी करना पड़ा था। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि ‘दलित इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ यानि ‘डिक्की’ द्वारा निसर्ग साइक्लोन के बाद यहां के सभी परिवारों के लिए राहत के कार्य करने के साथ-साथ इस गांव को आत्मनिर्भर बनाने की भी पहल की गई है। इस प्रयास में डिक्की के साथ खादी ग्रामोद्योग निगम, डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर टेक्निकल यूनिवर्सिटी तथा बैंक ऑफ बड़ौदा की भागीदारी भी है। मुझे बताया गया है कि कोविड महामारी के कारण इस प्रकल्प को कार्यरूप देने में कुछ रुकावट आई है। लेकिन, मुझे विश्वास है कि इस गांव में छोटे उद्यमों को बढ़ावा देकर लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का यह सामूहिक प्रयास परिवर्तनकारी सिद्ध होगा तथा यहां के लोगों के जीवन में अच्छा बदलाव आएगा। इस गांव तथा क्षेत्र के लोग प्रगति और समरसता का आदर्श प्रस्तुत करेंगे। मैं चाहूंगा कि इसी प्रकार भारत के अन्य ग्रामीण अंचलों में भी विकास और आत्मनिर्भरता का प्रसार हो। जब हमारे गांव आत्मनिर्भर होंगे तभी सही अर्थों में आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का संकल्प पूरा होगा।

इस संदर्भ में यह बताना प्रासंगिक है कि बाबासाहब स्वरोजगार के समर्थक थे। उन्होंने स्टॉक और शेयर्स के व्यापार में सलाहकार के रूप में व्यवसाय करने के लिए एक फर्म की स्थापना की थी। सी.पी.डबल्यू.डी. के टेंडरों में वंचित लोगों की हिस्सेदारी की मांग करते हुए उन्होंने सन 1942 में वायसराय लिनलिथगो को ज्ञापन दिया था। उनके बहु-आयामी व्यक्तित्व में स्वरोजगार द्वारा आर्थिक शक्ति अर्जित करने वाले उद्यमी का स्वरूप भी शामिल है। अपनी व्यापक सामाजिक व राजनैतिक जिम्मेदारियों के कारण वे अपने उद्यमी पक्ष को समय नहीं दे सके। लेकिन उनके प्रयासों के फलस्वरूप आज हमारे देश में हर वर्ग के युवा स्वरोजगार द्वारा सफलता के कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। वंचित वर्ग से निकले सफल उद्यमियों की प्रेरणादायक कहानियों की ‘Dalit Millionaires’ जैसी पुस्तकें प्रकाशित और लोकप्रिय हो रही हैं। उद्यमशीलता से जुड़े इस सराहनीय परिवर्तन में यहां उपस्थित ‘डिक्की’ के फाउंडर चेयरमैन, पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर मिलिंद कांबले जैसे लोगों का उदाहरण अनुकरणीय है। ऐसे उद्यमियों की उपलब्धियां बाबासाहब के बहु-आयामी योगदान का एक महत्वपूर्ण पहलू है। बाबासाहब द्वारा निर्मित संविधान की व्यवस्था में आज प्रत्येक वर्ग के युवाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध हैं।

बाबासाहब का आदर्शवाद उनके कार्यों में परिलक्षित होता था। उनकी कार्य-निष्ठा का गहरा प्रभाव उनके सहयोगियों में देखा जा सकता था। सौभाग्य से मुझे कुछ ऐसे निस्वार्थ जन-सेवकों के साथ कार्य करने का अवसर मिला जो स्वयं बाबासाहब के साथ जुड़े रहे थे। यहां उपस्थित सुप्रीम कोर्ट के जज, जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के पिता श्री रामकृष्ण सूर्यभान गवई – जो पूर्व में राज्यपाल और संसद में मेरे सहयोगी रहे थे - उन लोगों में थे जिन्होंने बाबासाहब के साथ संघर्ष किया और उसके बाद उनके पदचिह्नों पर चलते हुए समाज की सेवा की। ऐसे जन-सेवकों की संवेदनशीलता और परहित की भावना ने मेरे मनो-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी है। बाबासाहब के इस स्मारक पर आकर मेरा यह संकल्प और दृढ़ होता है कि हम सभी को राष्ट्र के विकास हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर करना होगा। यही बाबासाहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

मैं बाबासाहब की पुण्य-स्मृति को पुनः प्रणाम करते हुए आप सभी के सुखद भविष्य की मंगल-कामना करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!