केन्द्रीय सूचना आयोग के 13वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन
नई दिल्ली : 12.10.2018
1. मुझे केन्द्रीय सूचना आयोग के 13वें सम्मेलन में यहाँ आने पर प्रसन्नता हो रही हैlमैं समझता हूँ कि इस समारोह को संबोधित करने वाला मैं भारत का चौथा राष्ट्रपति हूँlवास्तव में, 2006 में, मेरे विख्यात पूर्ववर्ती डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने सीआईसी के प्रथम उद्घाटन समारोह को संबोधित किया थाl आज उस दिन की वर्षगांठ है, जब 2005 में आज के दिन सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुआ थाlइन वर्षों में आरटीआई अधिनियम ने हमारे लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने में योगदान दिया है और हमारे नागरिकों का ज्ञान-आधार बढ़ाने में मदद की हैlमुझे याद है कि जब आरटीआई क़ानून लागू हुआ था, तब मैं संसद सदस्य था और उस स्थाई समिति के विमर्श का हिस्सा था जिसने उक्त कानून को अंतिम रूप देने में सहायता की थीlइस तरह से यह मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर भी संतुष्टि का क्षण हैl
2. सूचना का मुक्त प्रवाह लोकतंत्र का मूल तत्व है।और किसी स्वाधीन एवं स्वतंत्र-हृदय देश के लोगों के लिए,सूचना एक शक्ति है।उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उन पर किस प्रकार शासन किया जा रहा है,सार्वजनिक धन कैसे खर्च किया जा रहा है,सार्वजनिक और राष्ट्रीय संसाधनों का उपयोग कैसे किया जा रहा है, सार्वजनिक सेवाएं किस प्रकार उपलब्ध कराई जा रही हैं, और लोक निर्माण एवं कल्याण कार्यक्रमकैसे चलाए जा रहे हैं। लोकतंत्र में, अत्यधिक जानकारी जैसी कोई चीज नहीं होती।सूचना का अधिक होना, सूचना की कमी से हमेशा बेहतर होता है।
3. सूचना का अधिकार इन सिद्धांतों को ही आगे बढ़ाता है।पारदर्शी और सहभागी शासन का आधार भी इससे तैयार होता है।1946 में, संयुक्त राष्ट्र आम सभा के प्रथम सत्र में संकल्प पारित किया गया था कि "सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और ऐसे सभी अधिकारों की कसौटी है जिनके प्रति संयुक्त राष्ट्र समर्पित है। मुझे बताया गया है कि आरटीआई से सम्बंधित प्रथम कानून 250 वर्ष पूर्व-1766 में स्वीडन में बनाया गया थाl 1990 में, जब शीत युद्ध समाप्त हुआ, तब केवल ग्यारहदेशों में आरटीआई कानून थेl 1990 से 2016 के बीच, जिस प्रकार से लोकतंत्रीकरण की लहर चली, 104 अन्य देशों में आरटीआई कानून बनाये गएlभारत भी इस लोकतांत्रिक विस्तार का हिस्सा थाl
4. भारत में, केन्द्रीय सूचना आयोग आरटीआई अधिनियम का संरक्षक हैlविगत 13 वर्ष में, प्रत्येक राज्य में स्थापित राज्य सूचना आयोगों के साथ मिलकर केन्द्रीय सूचना आयोग इस कानून को लागू करता है और मांगी गई सूचना उपलब्ध कराके नागरिकों को सशक्त बनाता हैlअधिनियम के तहत भारत ने 5 लाख लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किये हैंlमुझे बताया गया है कि एक वर्ष में मांगी गई सूचना का अनुमानत: 60 लाख तक पहुंच जाती हैl यह संख्या चौकाने वाली हैlविश्व के विशालतम लोकतंत्र के रूप में भारत की हैसियत को देखते हुए शायद यह संख्या विश्व में सबसे बड़ी है।इन उपलब्धियों के लिए मैं केन्द्रीय सूचना आयोग और इसकी सभी सहयोगी और अधीनस्थ संस्थाओं को बधाई देता हूंl
देवियो और सज्जनो,
5. आरटीआई कोई एकल विधान नहीं है।यह कानून, भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने, प्रशासन की समस्त प्रणालियों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और आम नागरिकों की क्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें अच्छी तरह सूचना प्राप्त करके निर्णय लेने और चयन करने में सक्षम बनाने की बड़ी पहल का हिस्सा है। सबसे बढ़कर यह कि यह प्रयास, नागरिकों और शासन के बीच विश्वास के सामाजिक अनुबंध को पुष्ट करने का है - जहां दोनों को एक-दूसरे पर विश्वास हो। इसका एक प्रासंगिक और समांतर निहितार्थ यह भी है कि भ्रष्टाचार या अपव्यय की घटनाओं की रोक-थाम हेतु सार्वजनिक संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
6. आम नागरिकों को सूचना प्रदान करना, उन परविश्वास करना और इस प्रकार उन्हें सशक्त बनने के लक्ष्य सराहनीय हैं लेकिन वास्तव में ये लक्ष्य ही अंतिम लक्ष्य नहीं हैं। जब हम ऐसे निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के साथ इस प्रक्रिया को जोड़ें जिसमें सेवा प्रदाताओं की सहभागिता हो और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाना सुनिश्चित हो सके और इस प्रकार से ऐसी सेवाएँ दें जो नागरिकों के जीवन को इतना बेहतर बना दें कि लोकतंत्र सही मायनों में पूर्ण हो सके। आरटीआई ऐसे ही वृहत प्रयोजन का हिस्सा हैl
7. यह एक ऐसा विषय है जिसमें लोगों की बात सुनकर तथा निर्णय और नीति निर्माण में जनता द्वारा दी गई जानकारी का उपयोग कर उन्हें जोड़ा जाता है। संसदीय कानून बनाने से पूर्व संचालित की जाने वाली परामर्श प्रक्रिया इसका उदाहरण हैl दूसरा उदाहरण माल और सेवा कर जैसी किसी नवीन प्रणाली के बारे में तत्समय प्रतिपुष्टि और जानकारी प्राप्त करने और इस प्रकार एक जिम्मेदार सरकार द्वारा प्रतिपुष्टि प्राप्त कर आवश्यक परिवर्तन करने का हैlऐसी अवधारणा का संस्थागत प्रारूप शायद विश्व के सबसे बड़े नागरिक साझीदारी मंच के रूप में परिकल्पित और निर्मित- मेरी सरकार (My Gov)में देखा जा सकता हैl
8. यह एक ऐसा विषय भी है जिसमें दस्तावेजों को स्व-प्रमाणित और स्व-सत्यापित करने का अधिकार देकर और सक्रिय रूप से सूचना उपलब्ध कराकर जनता को समर्थ बनाया जाता है- उदाहरण के तौर पर, निरंतर अद्यतन किए जाने वाले ऑनलाइन डैशबोर्ड जिनसे सभी को पता चलता है कि‘स्वच्छ भारत अभियान’ के अंतर्गत कितने शौचालयों का निर्माण हुआ; ‘उजाला’ योजना के तहत कितने एलईडी बल्ब वितरित किये गए;और मुद्रा योजना के तहत कितने संचयी मूल्य के और कितने ऋण दिए गए हैं।
9. आरटीआई उस स्थिति में नागरिकों को स्वयं सक्षम बनाता है जब उसे दी जा रही सेवाओं की गति और गुणवत्ता के बारे में उन्हें सूचना प्राप्त होती है कि- घर के बाहर की सड़क अभी तक तैयार क्यों नहीं हो पाई है;कोई विकास की परियोजना किस आधार पर निर्मित की गई है;या किसी सरकारी एजेंसी में कोई आवेदन अभी भी लंबित क्यों हैl
10. और अंत में, देवियो और सज्जनो, आरटीआई एक ऐसी विषयवस्तु का हिस्सा है जिससे नागरिकों को सेवाएं मुहैया कराने के साथ-साथ सार्वजनिक संसाधनों और वित्त के उपयोग दोनों में अधिक दक्षता आती है। इससे पारदर्शिता में सुधार आता है और पक्षपातएवं दुरूपयोग केबारे में उठने वाले संदेह दूर होते हैं। खनन क्षेत्रों की ई-नीलामी का काम आगे बढ़ाने के लिए इंटरनेट और डिजिटल अर्थव्यवस्था का उपयोग किया गया है। इनसे माल और सेवाओं की सार्वजनिक खरीद के लिए गवर्नमेंट ई-मार्केट या‘जीईएम’पोर्टलबनाने में मदद मिली है। और‘जेएएम’त्रिमूर्ति अर्थात् -जनधन खाते, आधार-आधारित विशिष्ट पहचान और मोबाइल फोन-से योजनाओं के लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में सहायता मिली है।
11. इन सभी से दक्षता को बढ़ावा मिल रहा है और अपव्यय की रोकथाम हो रही है। ये, भ्रष्टाचार के खिलाफ ढाल के रूप में कार्य करते हैं। ये सब नागरिक सशक्तिकरण, नागरिक सक्षमता और सार्वजनिक दक्षता की उसी संरचना का हिस्सा हैं जिनसे‘सूचना के अधिकार’को प्रेरणा मिली है।
12. जानकारी तकनागरिकों की जानकारी तक पहुंच बढ़ाने के प्रयास अनवरत जारी हैं। हालांकि यह विषय सूचना के अधिकार से अलग है, फिर भी सरकारी और पुरालेखीय दस्तावेजों के संबंध में हमारे अवर्गीकरण प्रोटोकॉल और यह देखने की आवश्यकता है कि हम इनका आधुनिकीकरण कैसे कर सकते हैं। सुगम सरकार और जनता की जायज निगरानी के लक्ष्यों की ओर बढ़ने की वांछनीय और गतिशील प्रक्रिया चलाई जानी चाहिए। इस दिशा में जितना आगे बढ़ा जाए, उतना कम है;जितना ऊंचा लक्ष्य तय किया जाए, कम है।
13. अंत में, मैं‘सूचना का अधिकार’और ‘निजता का अधिकार’के बीच बारीक संतुलन पर भी कुछ कहना चाहता हूँ। आरटीआई के मूल चार्टर की इस भावना को बनाए रखने के लिए मैं केन्द्रीय सूचना आयोग की सराहना करता हूं किराष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों के कुछ अपवादों को छोड़कर सार्वजनिक अभिलेख, सार्वजनिक संवीक्षा के लिए उपलब्ध हैं - लेकिन व्यक्ति विशेष के निजी अभिलेख किसी अन्य पक्ष की अनधिकार जिज्ञासा से सुरक्षित रखे जाते हैं। हमें ऐसे इक्का-दुक्का मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए जो व्यक्तिगत रंजिश में आरटीआई तंत्र के दुरुपयोग का प्रयास करते हैं। विशेष रूप से ऐसे दौर में जब निजता के मुद्दे पर इतनी व्यापक बहस चल रही हो, इस संतुलन को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
14. अभी तक केन्द्रीय सूचना आयोग और इसकी सहायक संस्थाओं ने इस संतुलन को बहुत अच्छी तरह से साधा है। मुझे पूरा भरोसा है कि सूचना के अधिकार के उद्देश्य के लिए आगे बढ़ते हुए आप आगे भी ऐसा करना जारी रखेंगे। इन शब्दों के साथ, मैं आपको इस सम्मेलन के साथ-साथ आपके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं।