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जैव-प्रौद्योगिकी विभाग और ‘वेलकम ट्रस्ट’ के बीच भागीदारी की 10वीं वर्षगांठ के समारोह में भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द द्वारा सम्बोधन

नई दिल्ली : 12.11.2018

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1. मैं, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और ‘वेलकम ट्रस्ट’ के बीच भागीदारी की 10वीं वर्षगांठ पर यहां आकर प्रसन्न हूँ।यह भागीदारी, जिसे ‘इंडिया अलायन्स’ के नाम से जाना जाता है, 2008 में एक सरकारी विज्ञान संगठन और एक अंतरराष्ट्रीय चैरिटी के प्रथम सह-वित्त पोषित संगठन के रूप में स्थापित की गई थी।अलायन्स के प्रथम चरण में जैव चिकित्सा अनुसंधान पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जिसमें बुनियादी, क्लिनिकल ​​और सार्वजनिक स्वास्थ्य विज्ञान शामिल हैं।

2. जैसा कि हमें अभी बताया गया है, अलायन्स ने उन लोगों के सपने को साकार किया है जिन्होंने इसे स्‍थापित किया था।पिछले 10 वर्ष में, इसने 34 भारतीय शहरों की 93संस्थाओं में शोधकर्ताओं को 320अध्येतावृत्तियां प्रदान की हैं।इसमेंयुवा शोधकर्ताओं पर, उनके करियर की शुरुआत में, सहायता देने पर विशेष जोर दिया है, जब समर्थन की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।मुझे यह जानकर खुशी हुई कि अलायन्स ने उन महिला शोधकर्ताओं के लिए लचीले समर्थन कार्यक्रम तैयार किए हैं जो परिवारिक या मातृत्व कारणों से कुछ अंतराल के बाद प्रयोगशाला में फिर से काम करने आ रही हैं।

3. हमारे देश में विज्ञान की सामाजिक, क्षेत्रीय और लैंगिग विविधता को विस्तारित करने का यह प्रयास प्रशंसनीय है।हमारी अधिकांश वैज्ञानिक प्रतिभाएं इसलिए खो जाती हैं क्योंकि बड़े शहरों से हटकर,अपेक्षाकृत छोटे केन्द्रों में पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं - या फिर इसलिए कि हमारा तंत्र घरेलू जिम्मेदारियों के साथ एक अच्छे कॅरियर को संतुलित करने की कोशिश कर रही योग्य महिला उम्मीदवारों को पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं करा पाता। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि इस स्थिति के तत्‍काल समाधान की आवश्‍यकता है चाहे यह स्थिति किसी अकादमिक संस्था,आर एंड डी केन्‍द्र, उद्योग या सरकारी संस्था कहीं पर भी हो।

4. जीवन विज्ञान आज एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जहाँ अभी भी काफी हद तक शोध किया जाना शेषहै।यह ध्यान देने योग्य बात है कि भौतिकी की आधारभूत पाठ्यपुस्तकों में साल-दर-साल मामूली बदलाव आता है, परजीव विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में मूल स्तरों पर भी कार्य जारी है।आनुवांशिकी विज्ञान, उत्पत्ति और मानव विकास विज्ञान ने हाल के वर्षों में ज्ञान का काफ़ी विस्‍तार हुआ है, लेकिन हम अभी भी शोध के नए युग के आरम्भ में ही हैं।

5. यह याद रखने योग्य है कि मानव जीनोम केवल 15 साल पहले ही अनुक्रमित किया गया था।सापेक्ष तौर पर देखें तो, जीव विज्ञान के साथ सूचना प्रौद्योगिकी और बिग डेटा का समन्वय अभी भी अपनी शुरुआती अवस्था में ही है।इसके आगे अभी भी बहुत कुछ है।अगर मैं उदाहरण देने के लिए इतिहास के पन्नों में झाँकू, तो यह कह सकता हूं कि हमने भाप का इंजन तो बना लिया है लेकिन औद्योगिक क्रांति के बराबर की क्रांति अभी जीव-विज्ञान के क्षेत्र में आनी बाकी है।जैव प्रौद्योगिकी विभाग और ‘वेलकम ट्रस्ट’ के बीच की भागीदारी जैसी पहलों से इस नई क्रांति को शक्ति प्राप्‍त होगी। और मुझे पूरा विश्वास है कि प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार डॉ के. विजयरा घवन के कुशल नेतृत्व में, आपको भारतीय वैज्ञानिक समुदाय का पूरा समर्थन मिलेगा।

6. अभी ‘इंडिया अलायंस’ का पहला दशक पूरा हुआ है और इससे भी अधिक साहस के साथ आगे देखने और बेधड़क आगे बढ़ने की दृष्टि से यह अवसर ‘इंडिया अलायन्स’ के लिए अगले चरण की अपनी प्राथमिकताओं का मसौदा तैयार करने का उपयुक्त समय है।जिस प्रकार से अलायन्स की शुरुआत, एक जैसे कार्यों को ही आगे बढ़ाते रहने के स्‍थान पर कुछ अलग करने के लिए की गई थी, उसी प्रकार सेअब आपको एक नया रास्ता ईजाद करना होगा।वह नया रास्ता क्या हो सकता है?आज, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से, मनुष्यों के पास हमारे ग्रह का भविष्य बनाने की अकल्पनीय शक्ति आ गई है।इसलिए अब हमारी जिम्मेदारी भी पहले से कहीं अधिक हो गई है।और वैज्ञानिक, विशेष रूप से जैव-वैज्ञानिक, हमारी धरती, हमारी प्रजातियों और हमारे भविष्य की संरक्षा के युद्ध में हमारे सैनिक और सेनापति की भूमिका में हैं।

7. मेरे विचार से, इस लड़ाई के चार मोर्चे हैं।पहला है पर्यावरण।हमारी वायु, जल और मिट्टी को साफ रखा जाना जरूरी है। ऐसा करते हुए, हमें मानव जाति और पशुधन की सेहत पर होने वाले दुष्परिणामों का शमन करना होगा।वास्तविक पर्यावरण में मानवों और पशुओं के स्वास्थ्य का अध्ययन करने और अस्थमा, श्वसन संबंधी विकारों और कैंसर जैसी समस्याओं के समाधान खोजने पर अधिक जोर दिए जाने की आवश्यकता है।

8. दूसरा मोर्चा जीवनशैली सम्बन्धी रोगों का है।मधुमेह, हाइपरटेंशन और हृदय रोग की की समस्‍याएं बढ़ रही हैं।1990 के बादसे इस चौथाई शताब्दी में, मधुमेह पीड़ित भारतीयों की संख्या 26 मिलियन से बढ़कर 65 मिलियन हो गई।इसी अवधि में, सभी प्रकार के कैंसरों में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई।मातृत्व, भ्रूण सम्बन्धी और नवजातों के स्वास्थ्य के समान ही, आहार और जीवनशैली भी महत्वपूर्ण कारक बन गए हैं।इनकी रोकथाम और उपचार दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।

9. तीसरा मोर्चा संक्रामक बीमारी का है।जहां हम, ज्ञात संक्रामक बीमारियों से सचेत रहते हैं, वहीं अल्‍प-ज्ञात बीमारियों के विस्तार का खतरा बढ़ जाता है।इस मामले में भी हमें बीमारी का अध्ययन, इसके पर्यावरण और इसके सभी वाहकों के संदर्भ में करना होगा।उदाहरण के लिए, यह देखना होगा कि निपावायरस चमगादड़ मेंकैसे रहता है?इसका संक्रमण कैसे फैलता है?हम मनुष्यों के लिए भावी टीकों का परीक्षण कैसे करते हैं?ये सब वैश्विक चुनौतियां हैं।आपके अलायन्स को वैश्विक स्तर पर इन मुद्दों से निपटना होगा और साझेदारियां बनानी होंगी। विज्ञान की तरह ही रोगों की भी कोई सीमा नहीं होती। महामारी के रूप में इन्फ्लूएंजा वायरस को फैलने के लिए पासपोर्ट और वीजा की आवश्यकता नहीं होती।दूसरी ओर, पशु पर्यावासों के कम होते जाने सेपशुजन्य बीमारियों और एक से दूसरी प्रजाति में फैलने वाली बीमारियों की गुंजाइश अवसर पैदा हो रही है।

10. अंतिम मोर्चा मस्तिष्क के रोगों का है। शहरी तनाव और विशाल उग्रदराज बुजुर्ग आबादी जैसे कारकों से भारत की मानसिक स्वास्थ्य महामारी का सामना करना पड़ रहा है।हमारी अनुवांशिकी और हमारी जीवन शैली के लिए प्रासंगिक निवारक उपाय, जो अभी सिद्धांत के तौर पर ही देखे जा रहे हैं, अन्‍वेषण की प्रतीक्षा में हैं।अगर हमारे लोगों को पूरी मानसिक क्षमताओं के साथ बढ़ती उम्र का सामना करना है, तो हमें इनका अन्‍वेषण करना ही होगा। यदि हमारे देश में हमारे द्वारा इनके संबंध में शोध नहीं किया जाता है, तो डिमेंशिया जैसी बीमारियां एक बड़ी समस्या बन जाएंगी - और कहीं और का समाधान यहां काम नहीं आएगा।

11. आइए, यह तय करें कि ये चारमोर्चे ‘इंडिया अलायन्स’ का भविष्य परिभाषित करेंगे।इस लड़ाई को जीतने के लिए, भारत में जैव प्रौद्योगिकी के रोमांचक कार्य के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करना और लंबे समय से हमारे लोगों और हमारे देश को परेशान करने वाले गंभीर एवं उपेक्षित रोगों के निदान के लिए शोध करके इनका समाधान खोजना आवश्यकहै।मुझे यकीन है कि हमारे बेहद योग्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, जो स्वयंएक चिकित्सक हैं, इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे।

देवियो और सज्जनो,

12. आज हमजहां आसमान छूती उम्‍मीदों की दहलीज पर खड़े हैं, वहीं भारी अनिश्चितता के भी मुहाने पर हैं।प्रयोक्‍ता–अनुकूल और सटीक दवा; जीनोमिक दवा; प्रयोगशाला में तैयार अंग; क्लिनिकल ​​शोध के लिए डेटा उपयोग के साथ-साथ तर्कसंगत डेटा गोपनीयता और व्‍यापक लोक हित जैसे मुद्दे- हमारी निरोगता के लिए अच्‍छी संभावनाएं पेश कर रहे हैं। लेकिन ये बायोएथिकल दुविधाओं के साथ-साथ कानूनी प्रश्न भी खड़े कर सकते हैं।

13. इससे हटकर लेकिन इससे संभवत: प्रासंगिक विषय है- विनियमन और नीति तैयार करने का है।भारत में, विभिन्न क्षेत्रों में, हमने कभी-कभी चिकित्‍सकों और नियामकों के बीच अंतर पाया है। जैसे-जैसे जीवविज्ञान बढ़ता और विकसित होता जा रहा है,मैं चाहूँगा कि अधिक से अधिक चिकित्सक विनियामक की भूमिका में भी आएं।हम सभी के लिए यह मामला भी विचार करने और इस पर आगे काम करने का है।बेशक यह उद्देश्य हर भारतीय और वास्तव में हमारी साझी धरती के हर नागरिक के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने के वृहद उद्देश्य का छोटा-हिस्सा होगा।

14. इन शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर जैव-प्रौद्योगिकी विभाग और ‘वेलकम ट्रस्ट’ को इंडिया अलायंस के 10 वर्ष पूर्ण करने पर बधाई देता हूं। कामना करता हूँ कि आने वाले वर्षों में यह अलायंस और आगे बढ़े।

धन्यवाद

जय हिन्द !