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विभिन्‍न केन्‍द्रीय उच्चतर शिक्षा संस्थानों के कुलपतियों, निदेशकों और प्रमुखों की बैठक में भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्‍द का संबोधन

राष्ट्रपति भवन : 13.07.2018

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1. मैं, आरंभ में आपकी सारगर्भित और ज्ञानवर्धक प्रस्तुतियों के लिए आप सभी को धन्यवाद देता हूं। भारत के राष्ट्रपति के रूप में 146 केन्‍द्रीय विश्वविद्यालयों और उच्चतर शिक्षा संस्थानों का मैं, कुलाध्यक्ष हूं। पद ग्रहण करने पर मुझे बताया गया कि वर्ष में एक बार इन संस्थानों के सभी कुलपतियों, निदेशकों और अन्य प्रमुखों का सम्मेलन करने की परंपरा है। राष्ट्रपति सम्मेलन की शुरुआत में उपस्थित जनों को संबोधित करते हैं और इसके बाद अन्य सत्र आरंभ होते हैं।

2. जब मुझे इस प्रस्ताव के बारे में बताया गया तो मैंने इस बारे में व्‍यपाक और गहन विचार किया। मैंने महसूस किया कि एक बहु प्रयोजनीय सम्मेलन जिसमें भिन्न-भिन्‍न प्रणालियों, ढांचों, प्रेरक-तत्‍वों, और चुनौतियों की पृष्‍ठभूमि वाले 146 अलग-अलग किस्‍म के संस्थानों की बैठक एक ही समय में करने से केवल सीमित उद्देश्य ही पूरा होगा। संस्थानों को अपेक्षाकृत छोटे-छोटे वर्गों और अधिक प्रबंधनीय समूहों में या कम से कम एक जैसी प्रशासनिक व्यवस्थाओं और मुद्दों वाले संस्थानों के रूप में वर्गीकृत करना बेहतर होगा। मेरे विचार से ऐसा करना अधिक होता यदि वास्‍तव में हमारी प्राथमिकता समस्या का समाधान करने की है तो।

3. 19 उच्चतर शिक्षा के केंद्रीय संस्थानों का यह ऐसा चौथा समूह है जिसके साथ मैं बातचीत कर रहा हूं। अगले सप्ताह राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों के साथ एक बैठक होगी और इस प्रकार इस महीने के अंत में मेरे कार्यकाल का 1 वर्ष पूरा होने से पहले ही सभी 146 संस्थानों के साथ परस्‍पर बातचीत संपन्‍न हो जाएगी।

4. यहां उपस्थित 19 केन्‍द्रीय संस्थान कई अर्थों में विशेष हैं। वे कृषि, औषध निर्माण, उड्डयन, डिजाइन, फुटवियर डिजाइन, फैशन, पेट्रोलियम और ऊर्जा, समुद्री अध्ययन तथा युवा विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्‍त, वे भारत सरकार के 9 भिन्न-भिन्‍न मंत्रालयों के कार्य क्षेत्र में आते हैं।

5. इनमें से प्रत्येक संस्थान का एक समृद्ध इतिहास रहा है। आप में से प्रत्येक संस्थान उन सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को साकार करने में महत्वपूर्ण जो निर्धनता उन्मूलन तथा मध्यम आय वर्ग वाला देश बनने का प्रयास स्‍वरूप भारत ने अपने लिए तय किए हैं। मध्यम आय वर्गीय देश बनना कोई संख्‍यात्‍मक उपलब्धि मात्र नहीं है। इसके लिए मानसिकता को बदलने और महत्वाकांक्षाओं के विस्तार की भी जरूरत होगी।व्यक्ति के रूप में यह बात हममें से प्रत्येक पर लागू होती है। और यही बात आपके संस्थानों के लिए भी सच है।

6. इसलिए अपने-अपने संस्थानों के भविष्य की योजना आपको ऐसे भारत के संदर्भ में बनानी चाहिए जिसके पास प्रत्याशित भविष्‍य में विशाल युवा जनसंख्या और 2025 तक संभावित 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद की संभावना मौजूद है। इसके लिए बड़ी सोच रखने और जोखिम लेने की जरूरत है और आपके प्रत्येक संस्थान को इन चुनौतियों पर विजय प्राप्‍त करनी होगी।

7. सात राष्ट्रीय औषधि शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों का उदाहरण लिया जाए। भारत के पास एक मजबूत और ऊर्जावान औषध निर्माण उद्योग मौजूद है तथा जेनरिक दवाइयां निर्मित करने का एक सराहनीय रिकॉर्ड है। तथापि अब लंबी छलांग लगाने का समय आ गया है जिसमें दवाइयों की खोज और अग्रणी पेटेंट दवाइयां विकसित करना, क्षयरोग जैसे लंबे समय से मौजूद सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों के समाधान पर जोर, जीवन शैली के कारण उभर रहे रोगों के प्रबंधनतथा इस उद्देश्य के लिए आवश्यक औषधीय उत्पादों पर बल तथा तेजी से विकसित हो रहे चिकित्सा अनुसंधान उद्योग के लिए एक अनुकूल वातावरण भी शामिल हो। इनसे हमारे युवाओं के लिए अपार आर्थिक और रोजगार अवसर पैदा होंगे। ऐसा उद्यमिता पूर्ण वातावरण तैयार करने का काम आपके संस्थानों के लिए महत्‍वपूर्ण है।

8. इस कक्ष में प्रतिनिधित्व पा रहे तीन केन्‍द्रीय कृषि विश्वविद्यालय हमारे राष्ट्रके मेरुदंड की भूमिका निभा रहे किसानों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के सरकार के संकल्पको पूरा करने में भारी सहायता कर रहे हैं।हमारी 61 प्रतिशत जनसंख्या अब भी कृषि पर निर्भर है। हमें ध्यान रखना चाहिए किजमीन और पानी पर भारी दबाव है। नई प्रौद्योगिकियां जिनमें वे प्रौद्योगिकियां भी शामिल हैं जिनसे हम अब तक बचते रहे हैं, का भी अध्ययन करना होगा और व्‍यावहारिक पाए जाने पर उन्‍हें अपनाना होगा। खाद्य और कृषि मूल्य श्रृंखला को भी और अधिक सुदृढ़ बनाना होगा। कृषि विश्वविद्यालयों का कार्य क्षेत्र खेतोंके दायरे से बाहर भी है।

9. इसी प्रकार, कोई उड्डयन विश्वविद्यालय अब केवल पायलटों और वायु-अंतरिक्ष इंजीनियरों के प्रशिक्षण तक ही सीमित नहीं है। हमारे देश में उड्डयन क्षेत्र का विकास होते जाने के साथ ही जहां छोटे-छोटे शहर उड्डयन मानचित्र पर जगह बना रहे हैं वहीं और अधिक कार्य करने की गुंजाइश बन रही है। प्रौद्योगिकी के बढ़ते हुए समेकन से नए हवाई अड्डों के निर्माण और प्रबंधन से इस क्षेत्र में बदलाव आएगा। इस बात की भी महती संभावना है कि भारत में विमानों और उड्डयन उपकरणों के रखरखाव, मरम्मत और पूर्ण जांच के बहुविध प्रमुख केन्‍द्र स्‍थापित होंगे। रखरखाव, मरम्मत और पूर्ण जांच में तेजी के लिए मानव संसाधनों का प्रशिक्षण हमारे राष्ट्रीय उड्डयन विश्वविद्यालय की कार्य सूची का हिस्सा होना चाहिए।

10. जैसे आकाशीय खोज की कोई सीमा नहीं है वैसी ही समुद्र की खोज की भी सीमा नहीं है। भारतीय समुद्री विश्वविद्यालय समुद्र विज्ञान, समुद्री इतिहास और विधिक अध्ययन का एक अग्रणी संस्थान है और हमारी समुद्री अर्थव्यवस्था का वाहक है। समुद्र एक ऐसा संसाधन है जिसका उपयोग हम बड़े पैमाने पर कर सकते हैं परंतु इसके लिए लोगों को प्रशिक्षित करने और ऐसी कार्य नीतियां तैयार करने की जरूरत है जिन्हें मुहैया करवाने की श्रेष्ठतम स्थिति में कोई शैक्षिक और तकनीकी संस्थान ही होता है।

11. पेट्रोलियम और ऊर्जा के प्रति समर्पित दो संस्थानों की पुन: संकल्‍पना जीवाश्म ईंधनों और हाइड्रोकार्बन की रूपरेखा के अंतर्गत ही नहीं बल्किवैकल्पिक और नवीकरणीय ऊर्जा तथा शेल और फ्रेकिंग जैसी प्रौद्योगिकियों और नवोन्मेषी ईंधन मिश्रणों के युग के अनुरूप भी करनी होगी। इसी प्रकार, फुटवियरडिजाइन और फैशन टेक्नोलॉजी संस्थान जोहमारे देश की दो ऐतिहासिक परंपराओं चर्म प्रसंस्‍करण और वस्‍त्र निर्माण से संबंधित हैं, का महत्‍वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक प्रभाव है। पारंपरिक शिल्‍पों जिनमें वे शिल्‍प भी शामिल हैं जो दस्तकारी उत्पादों के निर्माण में मददगार हैं, के लिए वृहत्‍तर विश्‍व बाजार की दरकार है। इसके लिए इन्हें एक समुचित उपभोक्ता आकलन और पर्याप्त कौशल की सुविधा दी जानी होगी।

12. इन संस्थानों को अपनी-अपनी विशिष्‍टताएं विकसित करते हुए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए और एक-दूसरे से सीखना चाहिए। यह कर पाना एक जैसे क्षेत्र के संस्थानों के लिए संभव है। यह उन अलग-अलग श्रेणियों में भी संभव है जो एक ही क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान और राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान की एक सर्व-क्षेत्रीय पहचान है। डिजाइन से अनेक क्षेत्रों में मूल्य संवर्धन किया जा सकता है और हमारे युवा हमारे सभी राष्ट्रीय प्रयासों और यहां उपस्थित सभी संस्थानों के मूल हैं। प्रयोजन सहयोग के लिए आपको व्यावहारिक और संकेंद्रित योजनाएं बनानी चाहिए। नालंदा विश्वविद्यालय जिसकी एक अखिल एशियाई पहचान है और यह विश्‍वविद्यालय शिक्षा में उस विरासत के प्रति सम्‍मान है जो भारत और दक्षिण पूर्व एशिया की साझी विशेषता है, इस संदर्भ में एक मंच के रूप में काम कर सकता है।

13. जहां कहीं भी पदों का सृजन किया जाना हो, यह काम शीघ्र करना चाहिए। रिक्त संकाय पदों पर भर्ती, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। मुझे विश्वास है कि आप यह सुनिश्चित करने के लिए संभावित कदम उठाएंगे जिनसे यह पदअगली बैठक से पहले भर जाएं।

14. उपाधि-प्राप्ति, प्रदान करना विद्यार्थियों के जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। इसलिए दीक्षांत समारोह नियमित रूप से आयोजित किए जाने चाहिए। विचार-विमर्श से यह विदित हुआ है कि दो संस्थान, मणिपुर कृषि विश्वविद्यालय तथा पूसा कृषि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मेरी उपस्थिति का अनुरोध लंबित है। हम इन अनुरोधों को अगले तीन महीनों के भीतर पूरा करने का प्रयास करेंगे।

15. विश्व प्रतिस्पर्धा के युग में यह महत्‍वपूर्ण है कि विभिन्‍न पाठ्यक्रमों की पाठ्यचर्या नियमित आधार पर अद्यतन की जाए। इससे हमारे विद्यार्थी प्रतिस्पर्धी विश्व में और अधिक आत्मविश्वासी बनेंगे और सफलता प्राप्त कर पाएंगे।

देवियो और सज्जनो,

16. निष्कर्ष रूप में मैं आपसे आग्रह करता हूंकि आप अपने-अपने क्षेत्रों में और उससे परे भी, देश और विदेश के अन्य विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करें। ज्ञान अलग-अलग प्रयास करने से विकसित नहीं हो सकता; इसलिए यह जरूरी है कि हर संस्‍थान, दूसरों के विकास में सहभागिता करे। और इसके साथ साथ आपको ध्यान रखना चाहिए कि आप राष्ट्रीय महत्व के संस्थान हैं। जो विद्यार्थी आप तैयार करते हैं, वे हमारे राष्ट्र का निर्माण करने वाले पेशों को रूपरेखा प्रदान करेंगे।भारत के लोग आपसे यही अपेक्षा करते हैं और यही वे मापदंड हैं जिनके द्वारा आप स्‍वयं अपनी परख कर सकते हैं।आपके इस कार्य में मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

धन्यवाद

जय हिंद!