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राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के 57वें पाठ्यक्रम के संकाय और पाठ्यक्रम सदस्यों से भेंट के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

राष्ट्रपति भवन: 14.11.2017

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मैं आप सभी का और विशेषकर राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के 57वें पाठ्यक्रम में भाग ले रहे 23 साझीदार देशों के 25 अधिकारियों का राष्ट्रपति भवन में स्वागत करता हूं। मैं आशा करता हूं कि भारत में आपका प्रवास सुखद रहा है और आपका पाठ्यक्रम बौद्धिक रूप से संवर्धक रहा है।

2. हम एक चुनौतीपूर्ण और गतिशील वैश्विक माहौल में रह रहे हैं। सुरक्षा और प्रतिरक्षा की अवधारणाएं हमारी नजरों के सामने तेजी से बदल रही हैं। अब यह मामला क्षेत्रीय अखंडता तक सीमित नहीं रह गया है। आज के समय में सुरक्षा का विचार आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा तथा खाद्य, स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को समेटे हुए है। सुरक्षा का भविष्य जितना परमाणु प्रसार रोकने पर निर्भर है, उतना ही और इंटरनेट व डेटा संरक्षा को कायम रखने पर निर्भर है।

3. ये सभी ऐसे अवयव बन गए हैं जिन्हें हम समग्र रूप में राष्ट्रीय शक्ति का नाम देते हैं। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र के लिए विशिष्टता और विश्लेषण की जरूरत होती है। परन्तु ये एक दूसरे से जुड़े हुए भी हैं। इनके लिए हमारी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार लोगों के समेकित नजरिए और निरंतर सीखते रहने की प्रक्रिया के साथ-साथ ज्ञान को अद्यतन बनाते रहने की आवश्यता है।

4. समेकित तरीके से कार्य करने के लिए भिन्न-भिन्न विषय क्षेत्रों को एक साथ लाना एक जटिल कार्य है। भारत जैसी लोकतांत्रिक प्रणाली में इसे साधने के लिए राज्य की या साफ-साफ कहूं तो निजी क्षेत्र की भी अलग-अलग एजेंसियों और विभागों को मेल-जोल के साथ काम करने तथा एक दूसरे के कार्यकरण की खूबियों और कमजोरियों को समझने की जरूरत पड़ती है।

5. इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक कार्यपालिका और सिविल सेवाओं के अधिकारियों को रक्षा सेनाओं की क्षमता और सोच से भली-भांति परिचित होना चाहिए। इसी प्रकार से सैन्य अधिकारियों को भी उस संवैधानिक और प्रशासनिक रूप-रेखा का ज्ञान होना चाहिए जिसके अंतर्गत कार्यपालिका काम करती है। ये सभी तत्व राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी दृष्टिकोण के सृजन के लिए आवश्यक हैं।

6. कोई भी राष्ट्र अपने-आप में पूर्ण नहीं है, इसलिए यह समझदारी बन जाने पर मित्र देशों के सहयोग से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नीतियां और योजनाएं तैयार करने में मदद मिलती है।

7. इसी संदर्भ में देखें तो, राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज का यह पाठ्यक्रम अत्यंत महत्वपूर्ण है। असैन्य और सैन्य दोनों के सर्वोत्तम मानव संसाधनों और अधिकारियों का सदुपयोग करके क्षमता निर्माण करने में यह पाठ्यक्रम सहायता करता है। हम ऐसा केवल किसी एक देश की जरूरतों के लिए ही नहीं करते बल्कि हमारी साझा सुरक्षा चिंताओं की सुचिंतिति समझ बनाने के लिए करते हैं।

8. मुझे बताया गया है कि राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज की पाठ्यचर्चा में 6 घटक या अध्ययन शामिल हैं। सामाजिक-राजनीतिक अध्ययन से भारतीय समाज और राजतंत्र की प्रमुख विशेषताओं को समझने में मदद मिलती है। आर्थिक सुरक्षा अध्ययन से आपको उन सिद्धांतों और तरीकों का परिचय मिलता है जिनसे संबंधित आर्थिक प्रवृत्तियां और व्यापक सुरक्षा पर उनके प्रभावों की रूप-रेखा तैयार होती है।


अगले तीन अध्ययनों का संबंध निम्नलिखित से हैः-

(i) अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण

(ii) प्रौद्योगिकी और पर्यावरण सहित वैश्विक मुद्दे

(iii) भारत का सामरिक पड़ोस

9. ये सभी अध्ययन उन कारकों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिवेश को आकार देते हैं और भारत की विदेश नीति पर प्रभाव डालते हैं।

10.अंतिम अध्ययन राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियों और संरचनाओं के बारे में है। आपने पूरे वर्ष के दौरान जो सीखा और अनुभव किया है, उन सभी का मिश्रण है यह अंतिम अध्ययन।

देवियो और सज्जनो,

11. मुझे विश्वास है कि इस पाठ्यक्रम और इस अनुभव से आपमें बेहतर बोध जागृत हुआ होगा और अपने-अपने देश के सुरक्षा परिप्रेक्ष्यों में योगदान करने की आपकी क्षमता में बढ़ोतरी हुई होगी।

12. भारत और उसका पड़ोस तथा व्यापक एशियाई महाद्वीप ऐसे अनेक सुरक्षा खतरों और जोखिमों का मूल हैं जिनका वैश्विक स्तर पर है। आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद हमारी साझी चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां राज्याधारित भी हैं और बेतरतीब किस्म की भी हैं। इसके अलावा, वैश्विकरण और प्रौद्योगिकी क्रांति के कारण एशिया महाद्वीप 21वीं शताब्दी की अर्थव्यवस्था के केन्द्र के तौर पर उभरा है। आने वाले वर्षों में इस आर्थिक उत्थान को कायम रखना और इसे अस्थिर करने के प्रयासों की रोकथाम करना एक महत्वपूर्ण कार्य होगा। समुद्री स्थलों से लेकर साइबर स्पेस तक, खतरे सभी क्षेत्रों में पैदा होंगे।

13. ऐसी स्थिति में यह महत्वपूर्ण हो गया है कि भारत और वास्तव में यहां प्रतिनिधित्व कर रहे सभी देशों में ‘‘सामरिक संस्कृति’’ को बढ़ावा दिया जाए। राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के स्नातकों और पूर्व विद्यार्थियों के रूप में अब आप एक ही परिवार के हिस्से हैं। मेरा विश्वास है कि राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के संकाय सदस्यों के साथ, आप आने वाले वर्षों में सुरक्षा के बहुआयामी नज़रिए की समझ बढ़ाने में अपना योगदान करेंगे।

14. निष्कर्ष रूप में मैं, राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज और इस पाठ्यक्रम के सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देता हूं। हमारे अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों के लिए मैं कहना चाहूंगा कि यह अलविदा कहने का नहीं बल्कि नई शुरुआत का समय है। आप कहीं भी जाएंगे, अपने साथ भारत की थोड़ी-बहुत यादें लेकर जाएंगे।


धन्यवाद,

जय हिन्द!