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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर पोर्ट्रेट का वर्चुवल अनावरण व सम्बोधन

राष्ट्रपति भवन : 16.08.2020

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1. अटल जी के चित्र का अनावरण करते हुए, एक कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से, मैं उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। सौभाग्य से, पिछले वर्ष फरवरी में, संसद भवन के सेंट्रल हॉल में, अटल जी के चित्र के अनावरण का ऐतिहासिक अवसर भी मुझे मिला था।

2. आज, इस वर्चुअल समारोह द्वारा, हम सब एक ऐसे प्रखर राष्ट्रवादी महानायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट कर रहे हैं जिन्होंने भारत की राजनीति के अनेक गौरवशाली अध्याय रचे।

3. अटल जी, उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहे। सर्वमान्य और सर्वप्रिय अटल जी का सद्व्यवहार, विनोद प्रियता, वाक्‌पटुता और प्रभावी कार्यशैली जनसेवकों के लिए शिक्षा व प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी लोकप्रियता, दल और राजनीति की सीमाओं से ऊपर थी। उनके व्यक्तित्व, व्यवहार और विचारों की शक्ति के कारण राजनैतिक विरोधी भी उनके प्रति स्नेह और सम्मान का भाव रखते थे।

4. अपने असाधारण सार्वजनिक जीवन के दौरान राजनीतिक दल के कार्यकर्ता, सांसद, संसद की महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष, प्रतिपक्ष के नेता, विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री, इन सभी जिम्मेदारियों को निभाते समय अटल जी ने अपने विलक्षण व्यक्तित्व और अमूल्य योगदान की अमिट छाप छोड़ी है। प्रत्येक भूमिका में उन्होंने अनुकरणीय और अविस्मरणीय उदाहरण प्रस्तुत किए। सभी जानते हैं कि 21वीं सदी के आगमन के समय, प्रधानमंत्री के रूप में, अटल जी ने विश्व समुदाय के सम्मुख भारत को एक नई शक्ति के रूप में स्थापित किया।

5. अटल जी अपने आचरण से सभी राजनैतिक दलों तथा सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों को यह सीख देते रहे कि राष्ट्र-हित सर्वोपरि होता है। उनका अपना आचरण दलगत राजनीति से सदैव ऊपर रहा। सन 1971 के युद्ध में वे तत्कालीन सरकार के समर्थन में दृढ़ता के साथ खड़े रहे। उनकी इसी राष्ट्र-निष्ठा के कारण सन 1994 में तत्कालीन सरकार ने अपने प्रखर विरोधी अटल जी को कश्मीर के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष प्रस्तुत करने की ज़िम्मेदारी दी जो उन्होंने बहुत प्रभावशाली ढंग से निभाई।

6. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की अस्मिता, गरिमा और प्रतिष्ठा को बढ़ाने के साथ-साथ, वे विश्व समुदाय को भारत की विशिष्टता का परिचय भी दिया करते थे। उनका व्यक्तित्व, भारत के आध्यात्मिक मूल्यों और सांस्कृतिक उत्कर्ष का प्रतिबिंब था। वे जहां भी जाते थे, वहां के लोग उनके प्रभामंडल से अभिभूत हो जाते थे।

7. विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, वाजपेयी जी ने 1977 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया। संयुक्त राष्ट्र के सम्मुख एक भारतीय भाषा में भाषण देने वाले वे पहले भारतीय नेता थे।

8. भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उचित स्थान दिलाने के प्रति वे दृढ़ता से प्रयासरत रहे। ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में भारत की स्थायी सदस्यता के अधिकार पर उन्होंने हमेशा ज़ोर दिया।

9. अटल जी नैतिकता, संवेदनशीलता और पारदर्शिता पर आधारित शासन व्यवस्था के पक्षधर थे। इसलिए, सन 2014 से, 25 दिसंबर को उनकी जयंती, पूरे देश में, ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाई जाती है।

10. मुझे अटल जी को निकट से देखने-समझने और उनके साथ काम करने का सुअवसर मिला था। उनसे जुड़ी बहुत सी यादें मेरी स्मृति में आज भी अंकित हैं। विषम से विषम परिस्थिति में संतुलन और विनोदशीलता बनाए रखने की उनकी अद्भुत क्षमता के कारण उन्हें स्थित प्रज्ञ कहना सर्वथा उचित है। अपनी सहज मुस्कान और मृदुल स्वभाव के साथ-साथ वे ‘न दैन्यं न पलायनम्’ का संदेश भी देते थे। वे सभी देशों, विशेषकर पड़ोसियों के साथ मधुर सम्बन्धों पर ज़ोर देते थे। वे कहा करते थे कि मित्र बदले जा सकते है लेकिन पड़ोसी नहीं। इसके साथ-साथ, देश की सैन्य शक्ति को मजबूत बनाते हुए परमाणु परीक्षण का निर्णय लेने की दूरदर्शिता भी उनमें थी। एक तरफ उन्होंने शांति और मित्रता के लिए बस से लाहौर तक की यात्रा की तो दूसरी तरफ उन्होंने पोखरण से कारगिल तक भारत की सामरिक शक्ति का ठोस परिचय भी दिया। उनके व्यक्तित्व में शक्ति और सौहार्द का अद्भुत समन्वय था।

देवियो और सज्जनो,

11. अटल जी के कवि हृदय की झलक उनकी ‘कैदी कविराय की कुंडलियां’ और ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ नामक पुस्तकों में पाठकों को सदैव मिलती रहेगी। उनका काव्य पाठ बहुत ओजस्वी होता था। वे कहा करते थे कि यदि किसी राजनेता की आस्था कविता में है तो उसकी राजनीति भी मानवीय संवेदनाओं पर आधारित होगी। अटल जी अप्रतिम वक्ता और श्रेष्ठ पत्रकार भी थे। वे भारत की सांस्कृतिक विरासत के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण थे।

12. उस कालजयी कवि-राजनेता ने विश्व-पटल पर भारत के गौरव, शांतिप्रियता और शक्ति को प्रतिष्ठित किया। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद’ ने उनका चित्र लगाकर उनके प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त की है। सचमुच में अटल जी भारतीय संस्कृति के अग्रदूत थे। यह आई.सी.सी.आर. की टीम के लिए गौरव का विषय है कि मार्च 1977 से अगस्त 1979 तक, जब वे भारत के विदेश मंत्री थे, तब उन्होंने इस संस्था के पदेन अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था।

देवियो और सज्जनो,

13. आज पूरा विश्व कोविड-19 की महामारी के कारण संकटग्रस्त है। परंतु मुझे पूरा विश्वास है कि इस महामारी से उबरकर हम सब देशवासी प्रगति और खुशहाली के मार्ग पर पुनः तेजी से आगे बढ़ेंगे और इक्कीसवीं सदी को भारत की सदी बनाने के अटल जी के सपने को साकार करने में सफल होंगे। अपने इस विश्वास को व्यक्त करने के लिए मैं अटल जी की कविता के आधार पर एक संकल्प दोहराना चाहता हूं:

कालिमा छंटेगी,

निराश मन में नई आशा जगेगी;

सभी सपने साकार करेंगे,

मिलकर रास्ता पार करेंगे;

आइए,

इस संकल्प को दोहराएं, और

नई सदी को भारत की सदी बनाएं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!