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नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के तृतीय स्थापना दिवस में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

कटक : 17.03.2018

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1. मुझे नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा के तृतीय स्थापना दिवस व्याख्यान के लिए यहां आकर खुशी हुई है। यह विश्वविद्यालय हमारे देश के 19 राष्ट्रीय विधि विद्यालयों में से एक है। ऐसा पहला संस्थान 1986 में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया, बंगलौर के रूप में स्थापित किया गया था। पिछले तीन दशक के दौरान विधि विश्वविद्यालयों के इस समूह ने भारत की विधिक शिक्षा में मूलभूत परिवर्तन ला दिया है।

2. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा इस समूह के अपेक्षाकृत नए तथा अधिक गतिशील सदस्यों में से एक हैं। एक दशक पहले 2008 में स्थापित यह संस्थान, अग्रणी वकील और राष्ट्र निर्माता मधुसूदन दास से लेकर भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा तक इस राज्य के अनेक प्रतिष्ठित विधि विशेषज्ञों की विरासत को आगे बढ़ा रहा है। यह विश्वविद्यालय न केवल ओडिशा बल्कि पूरे देश में कानूनी शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र बना हुआ है। इसे एक उत्कृष्ट केन्द्र माना जाता है, और मुझे बताया गया है कि यहां भारत के 29 में से 25 राज्यों के विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि आज मुझे एक लघु भारत को संबोधित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

3. कानूनी पेशे के आधुनिकीकरण ने विधि स्नातकों और युवा वकीलों के लिए अवसरों की वृद्धि के साथ ताल-मेल बनाए रखा है। हालांकि, कानूनी प्रैक्टिस का आधार अभी भी अदालतों में चलने वाले मुकदमे ही हैं परंतु किसी विधि स्नातक को आज ऐसे बहुत से अवसर उपलब्ध हैं जो उससे पहले वाली पीढ़ियों को साधारणतया प्राप्त नहीं हो पाते थे।

4. जैसे-जैसे हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ी है, वैसे-वैसे कानूनी पेशे का भी विस्तार होता गया है। वाणिज्यिक और कारोबार कानून और अधिक महत्वपूर्ण, जटिल और बौद्धिक रूप से प्रेरक बन गए हैं। यह बात यदि देश पर सटीक बैठती है तो अंतर-राष्ट्रीय तौर पर भी सही होगी। व्यापार और वाणिज्य, अंतरराष्ट्रीय समझौतों और राजनयिक कला में भी वार्ताओं को सम्पन्न करने और प्रारूपों के कुशल लेखन के लिए वकीलों और विधिक विचारकों का सहारा लेना बढ़ता जा रहा है। विवाचन और कानूनी सेवाओं के वैश्वीकरण ने आउटसोर्सिंग जैसे तंत्रों के माध्यम से वर्तमान वकीलों को हमारी बाकी दुनिया से भी जोड़ दिया है।

5. जिन कानूनी पेशेवरों पर हम निर्भर करते हैं, उनके लिए आवश्यक है कि दुनिया जैसी है उसे वैसी ही नहीं बल्कि वह जिस तरह की दुनिया बनने जा रही है, उस रूप में समझने का प्रयास करें। यह बात, विशेषकर प्रौद्योगिकी कानून के बारे में सच है क्योंकि प्रौद्योगिकी में प्राय: कानून की तुलना में तीव्रतर बदलाव हो रहे हैं। परिणामस्वरूप, वकीलों से अपेक्षा की जाती है कि वे अत्यधिक गतिशील और विकासशील प्रौद्योगिकी माहौल के लिए और उसके अंतर्गत विनियामक रूपरेखा तैयार करेंगे। साइबर स्पेस और इंटरनेट कानून के लिए यह बात सच सिद्ध होती रही है। आगामी वर्षों में, कानून का पढ़ाई करवाने वाले संस्थानों और प्रैक्टिस करने वालों को ऐसी और ज्यादा चुनौतियों का सामना करना होगा। उन्हें बाहरी अंतरिक्ष के लिए, चौथी औद्योगिक क्रांति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए नियम और कानूनी ढांचे निर्मित करने होंगे। चाहे बिना ड्राइवर की कार हो या कृषि और चिकित्सा में नवान्वेषण हों, मानव और मशीनों के बीच के इन नए समीकरणों के लिए उन्हें कानून तैयार करने होंगे।

6. इस संस्थान के प्रतिभावान छात्रों और छात्राओं की तरह कानून के वर्तमान विद्यार्थियों के लिए, इस स्थिति में लगभग असीम अवसर पैदा होते हैं। आपका प्रशिक्षण और कौशल उन व्यापक किस्म के मानव प्रयासों और क्षेत्रों पर प्रभाव डाल सकता है जो आपके पूर्ववर्तियों के मामले में संभव नहीं थे। कानून और कानूनी पेशे के इन बहुविधात्मक तथा अंतर-विधात्मक तौर-तरीकों को बढ़ावा देने का दायित्व कानूनी शिक्षा संस्थानों का है।

7. मुझे यह जानकर खुशी है कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा विविध शिक्षा में अगुवाकार है और अपने विद्यार्थियों को नए क्षेत्रों के लिए तैयार करने के साथ-साथ तथा उन्हें नई संभावनाओं से परिचित करा रही है। भारत सरकार के ‘शैक्षिक नेटवर्कों की वैश्विक पहल कार्यक्रम’ (जीआईएएन) का प्रयोग करते हुए, इस विश्वविद्यालय ने विगत वर्ष में अंतरराष्ट्रीय ई-वाणिज्य कानून और भारत में कॉरपोरेट संचालन पाठ्यक्रमों की पेशकश की है। इनमें अमेरिका और सिंगापुर के अतिथि शिक्षकों को शामिल किया गया है।

8. मुझे यह जानकर भी खुशी हुई है कि विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम सामाजिक रूप से प्रासंगिक है जिसमें उद्यमीय और नवान्वेषी मानसिकता के विकास पर बल दिया गया है। ‘कानूनी सहायता और जनहित याचिका पर क्लीनिकल कोर्स’ और तथा विधि और उद्यमिता पाठ्यक्रम इसके प्रमाण हैं। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा का 2015 में स्थापित दूरवर्ती शिक्षा केन्द्र ‘स्वयम्’ के अंतर्गत दूर-शिक्षा और व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम तैयार कर रहा है। आजीवन शिक्षण के अवसर उपलब्ध कराने की यह भारत सरकार की पहल है।

9. मुझे बताया गया है कि इस वर्ष जुलाई से बाल अधिकारों पर युनिसेफ के सहयोग से तैयार एक दूर-शिक्षा एवं ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा। मैं इस प्रयास की सराहना करता हूं। इस पेशे की उन्नति चाहे कितनी भी हो जाए लेकिन मूल रूप से कानूनी पेशे की एक सहज आकांक्षा यह होती है कि वकील को उन लोगों की आवाज बनना चाहिए जिनके लिए आवाज उठाने वाला कोई न हो। वंचित लोगों को न्याय दिलाने वाला बनना चाहिए। प्रत्येक बच्चे के लिए सार्वभौमिक और अनपरिहार्य अधिकार सुनिश्चित करने की आकांक्षा ही वह तत्व है जिससे कानूनी पेशा इतना सार्थक है।

देवियो और सज्जनो,

10. इन वर्षों में कानून और इसके अनुप्रयोगों की हमारी समझ अधिक व्यापक तथा परिष्कृत हो गई है। निजता और व्यक्तिगत पसंद की बारीकियां; अधिकारों व दायित्वों संकल्पना की गहन पड़ताल; जैव-प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में व्यापक साझे हित के लिए नवाचार और नियमन में गुंजायश और स्वायतत्ता के बीच सुखद मध्यम बिन्दु की खोज-ये सभी इसके उदाहरण हैं।

11. फिर भी , ऐसा करते हुए क्या हम विशेषत: आम नागरिकों के लिए कानूनी ढांचे और न्याय तक पहुंच के मुद्दों पर पूरा ध्यान दे रहे हैं? मैं कानूनी साक्षरता बढ़ाने और कानूनी नियमों को सरल बनाने तथा उच्च न्यायालय के फैसलों की राज्य अथवा क्षेत्र की स्थानीय भाषा में प्रमाणित अनूदित प्रतियों की शीघ्र उपलब्धता की आवश्यकता के बारे में पहले भी कह चुका हूं। इन सभी से न्याय लोगों के करीब आ पाएगा। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि कुछ उच्च न्यायालयों ने इसके प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

12. लेकिन जहां न्यायिक प्रणाली की अपनी जिम्मेदारियां हैं, वहीं लेकिन उतनी ही जिम्मेदारियां वकील बिरादरी की भी हैं। इस संस्थान के विद्यार्थी भी जल्द ही इस बिरादरी से जुड़ जाएंगे। वकील अदालत का कानून अधिकारी होता है। मुवक्किल के प्रति उसकी जिम्मेदारी तो होती ही है परंतु उसका कर्तव्य यह भी है कि वह न्याय प्रदान करने में अदालत की सहायता करे। हमारी विधिक प्रणाली के बारे में यह कहा जाता है कि यह खर्चीली और विलंब प्रवण है। अकसर वकीलों द्वारा ‘स्थगन के उपाय’ का उपयोग और दुरुपयोग किया जाता है क्योंकि वे स्थगन को किसी वास्तविक विपदा के समाधान के उपाय की बजाय कार्यवाही को धीमा करने की युक्ति के रूप में देखते हैं। इससे वादी के लिए न्याय प्राप्ति की लागत काफी बढ़ जाती है। यदि कानून तक किसी गरीब व्यक्ति की पहुंच अमीर व्यक्ति की तरह नहीं है तो हमारी गणतांत्रिक नैतिकता एक तरह का मजाक बनकर रह जाएगी। दुर्भाग्यवश, ऐसा ही हो रहा है।

13. इस संस्थान में अध्ययनरत विद्यार्थियों समेत वकीलों की उभरती पीढ़ी को इन मुद्दों पर चिंतन करना चाहिए और अपने कार्यालय में उनमें सुधार करना चाहिए। बौद्धिक और वित्तीय-दोनों रूपों में पेशे में अवसर और प्रतिसाद-दोनों प्रभूत मात्रा में होते हैं। और यह स्वागत योग्य भी है। परंतु कोई श्रेष्ठ कानूनी पेशेवर, मात्र कोई मेधा-संपन्न व्यक्ति न होकर, सहृदय व्यक्ति भी होता है।

14. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा उत्कृष्ट प्रतिभाओं को संवारे और सहृदयता को पुष्ट करे।

धन्यवाद

जय हिन्द!