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भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अतिरिक्त भवन परिसर के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

नई दिल्ली : 17.07.2019

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1. मुझे यहां इस विशेष कार्यक्रम में आकर प्रसन्नता हो रही है, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय और हमारे देश की न्याय व्यवस्था से जुड़ी दो अलग-अलग दिखने वाली लेकिन एक दूसरे से संबंधित ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है। आज, मुझे भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था के लिए 21वीं सदी के नए केन्द्र अर्थात् भारत के सर्वोच्च न्यायालय के ‘अतिरिक्त भवन परिसर’ का उद्घाटन करते हुए प्रसन्नता हो रही है। मुझे सर्वोच्च न्यायालय के 100 महत्वपूर्ण निर्णयों के अनुवाद की प्रतियां प्राप्त करने और इन्‍हें देखने पर भी प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। ये निर्णय,अब विभिन्न क्षेत्रीय और भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होंगे, और हमारे ऐसे लाखों-करोड़ों नागरिकों की पहुँच में होंगे, जिन्हें संभवत: अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है।

2. सर्वोच्च न्यायालय बार के पूर्व सदस्य के रूप में, मैंने सर्वोच्च न्यायालय में अपने उस पेशे में कई महत्वपूर्ण वर्ष बिताए हैं। इसके कोर्ट रूम, रजिस्ट्री और विशेष रूप से बार लाइब्रेरी की बहुत सी अच्छी यादें मेरे स्मृति-पटल में दर्ज हैं। सर्वोच्च न्यायालय की इमारत का स्थापत्य और इतिहास हमेशा आकर्षण का स्रोत रहा है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद, सर्वोच्च न्यायालय, हमारी राजधानी में निर्मित इतने बड़े स्तर का पहला सरकारी भवन था। यह भवन, किसी भारतीय वास्तुविद द्वारा डिज़ाइन किया गया दिल्‍ली का पहला राजकीय-भवन भी था।इसके पहले तक,दिल्‍ली एक राज-शाही शहर था।

3. इमारत को डिज़ाइन करते समय सौंदर्य पर विशेष ध्यान दिया गया था। राष्ट्रपति भवन और संसद भवन,जिसके एक हिस्से में पहले सर्वोच्च न्यायालय बनाए जाने का विचार था,सहित इसके आसपास की अन्य संरचनाओं के साथ यह भवन घुल-मिल गया। अगस्‍त 1958 में,मेरे पूर्ववर्ती और भारत के पहले राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय भवन का उद्घाटन किया गया था। उसके बाद से इमारत का विस्तार होता गया, फिर भी अब से कुछ वर्ष पहले से यह स्पष्ट होने लगा था कि स्‍थान की बढ़ती मांगों के कारण एक समूचे नए परिसर की आवश्यकता है। आज का उद्घाटन उन्हीं प्रयासों का परिणाम है, जिसके लिए सर्वोच्च न्यायालय और न्यायिक बिरादरी केसाथ ही भारत सरकार तथा इसके लिए उत्तरदायी एजेंसियां बधाई की पात्र हैं।

4. मुझे बताया गया है कि इस अतिरिक्त भवन परिसर में, रजिस्ट्री, पुस्तकालय, सम्मेलन कक्ष और संगोष्ठी सभागृह होंगे, और इसके साथ ही यहाँ अभिलेखों के भंडारण की सुविधा भी होगी। मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई कि परिसर का चेहरा-मोहरा पारंपरिक रखा गया है और इसे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य भवन की डिजाइन को ध्यान में रखते उससे मिलता-जुलता बनाया गया है, फिर भी इसमें, हरित और ऊर्जा-दक्ष प्रौद्योगिकी का भी खूब उपयोग किया गया है। मुझे बताया गया है कि अत्याधुनिक अपशिष्ट और जल प्रबंधन तंत्रों के साथ ही साथ सौर ऊर्जा ग्रिड भी स्थापित किया गया है। यह स्वागत योग्य कार्य है। मुझे विश्वास है कि हमारी सभी सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं में अब इस तरह की पहल को मानक के तौर पर अपनाया जाएगा।

देवियो और सज्जनो,

5. सर्वोच्च न्यायालय का अतिरिक्त भवन परिसर निर्मित होने से, न्यायाधीशों, वकीलों, वादकारियों और न्यायालय तथा न्यायालयी के मामलों से जुड़े अन्य लोगों को निश्चित रूप से बेहतर सुविधा मिलेगी। तथापि,हमें इसके पीछे की समग्र भावना को समझना चाहिए। भौतिक सुख-सुविधा के अलावा, इस तरह की अवसंरचना से न्याय-निर्णयन की गति, मामलों के निपटान और न्याय उपलब्ध कराने में दक्षता और गतिशीलता बढ़ाने का लाभ मिलना चाहिए। इस तरह के किसी भी विस्तार की अंतिम कसौटी यह होनी चाहिए कि आम नागरिकों और वादियों - तथा न्याय की उनकी गुहार पर इसका कैसा प्रभाव पड़ता है।

6. आज हम जिस दूसरे महत्वपूर्ण उपलब्धि का जश्‍न मनाने के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं, वह भी न्याय की पहुंच के मुद्दे से संबंधित है, और वह उपलब्धि है-सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद। यह विषय मेरे दिल के बहुत करीब है। बार के सदस्य के रूप में, मैंने आम वादियों को किसी निर्णय को समझने में केवल इसलिए संघर्ष करते देखा है क्योंकि उन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है। अक्सर उन्हेंनिर्णय समझने के लिए वकील की सेवा लेनी पड़ती है और इसके लिए अलग से खर्च करना पड़ता है। आप इस बात से सहमत होंगे कि प्रभावित वादियों के साथ यह बहुत नाइंसाफी की बात है।

7. काफी लंबी अवधि से,और विशेष रूप से भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण के बाद से, मैं उच्च न्यायालय के निर्णयों की प्रमाणित अनूदित प्रतियां संबंधित राज्य या क्षेत्र की स्थानीय भाषा में – तथा इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की प्रमाणित अनूदित प्रतियां भारतीय भाषाओँ में उपलब्ध कराने की आवश्यकता की वकालत करता रहा हूं। भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के अक्टूबर 2018 में कार्यभार ग्रहण करने के बाद हुई हमारी पहली बैठक में, मैंने उनसे इस बात का उल्लेख किया। मेरे लिए यह हर्ष का विषय था कि उन्होंने तत्काल और सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने बताया कि इस विषय में उनका भी ऐसा ही विचार है। आज मुझे भेंट किया गया अनूदित निर्णयों का संग्रह, उनके और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों तथा अधिकारियों के कर्तव्‍यनिष्‍ठ प्रयासों का ही परिणाम है।

8. नौ भारतीय भाषाओं में अनूदित किए गए ये 100 निर्णय, एक शुभारम्भ के द्योतक हैं। मुझे बताया गया है कि श्रम कानूनों, उपभोक्ता संरक्षण, परिवार और स्‍वीय विधि,भूमि अधिग्रहण तथा किराये संबंधी विवादों और इसी प्रकार के अन्‍य क्षेत्रों से संबंधित निर्णयों को प्राथमिकता दी गई है - क्योंकि ये क्षेत्र आम लोगों से जुड़े हैं।

9. हालांकि यह एक ठोस तर्क है, फिर भीमैं आग्रह करूंगा कि इस परियोजना का दायरा और दूरगामी सोच को उपयोगितावादी उद्देश्यों के तराजू से न तौला जाए। हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के ज्यादातर निर्णय प्रमुख भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हों। आदर्श रूप से, इसमें महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों पर किए जाने वाले निर्णय भी शामिल होने चाहिए। प्रारंभिक अवधि में, यह पहला वादियों के लिए एक वरदान सिद्ध होगी - लेकिन अंततः, इससे हमारे देश में विधिक ज्ञान का प्रकाश फैलाने तथा कानून की बारीकियों को समझने में लोगों को सहायता मिलेगी। विधिक रूप से जागरूक और प्रबुद्ध समाज के निर्माण में इससे सहायता मिलेगी।

10. मैं मानता हूं कि अनुवाद एक लंबा और श्रमसाध्य कार्य हो सकता है। फिर भी, इस कार्य में प्रौद्योगिकी की सहायता ली जा सकती है। यह प्रसंशनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने खुले दिमाग से ऐसे सॉफ्टवेयर का विकास करने और इस कार्य में उसका उपयोग करने का निर्णय लिया जिसके माध्यम से निर्णयों को अलग-अलग भाषाओं में अनुदित किया जा सकता है। मुझे यकीन है कि समय और अनुभव के साथ, सॉफ्टवेयर प्रोग्राम और बेहतर होता जाएगा तथा इसमें कई और भाषाएं शामिल की जा सकेंगी। अक्सर डिजिटल प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर हमारे न्यायालय कठिन प्रश्नों और चुनौतियों का सामना करते रहे हैं; अनुवाद के कार्य में इनकी सहायता लेकर, हमारी न्यायपालिका ऐसी चुनौतियों को अवसरों में परिवर्तित कर रही है।

11. अपना संबोधन समाप्त करने से पूर्व, मैं अपने इस विश्वास पर बल देना चाहूंगा कि आज जो नई शुरुआत की जा रही है, उससे हमारे नागरिकों को और ऐसे लोगों को,जो न्यायपूर्ण प्रक्रिया तथा निष्पक्ष निर्णय के लिए सर्वोच्च न्यायालय में आते हैं, त्वरित न्याय प्रदान करने में बहुत सहायता मिलेगी। न्यायिक प्रणाली की दक्षता और जवाबदेही-गुणवत्ता तथा मात्रा - दोनों पर निर्भर करती है। एक ओर जहाँ दुनिया भर में हमारे न्यायाधीशों को उनकी योग्यता और हमारी न्यायपालिका को इसकी स्वतंत्रता के लिए जाना जाता है, वहीं समय-समय पर न्‍यायाधीशों की संख्या और रिक्तियों की समस्या उत्पन्न होती रही है। फिर भी, आज हम इस संतोषजनक स्थिति में हैं कि सर्वोच्च न्यायालय में सभी 31 पदों पर सक्षम न्यायाधीश पदासीन हैं। ऐसी स्थिति पूरे एक दशक के बाद संभव हो पाई है, और इस उपलब्धि के लिए भी,परस्‍पर समझ-बूझ और तत्परता दिखाते हुए साथ मिलकर काम करने के लिए मैं कॉलेजियम और सरकार दोनों को बधाई देता हूं।

12. अपने लंबे और शानदार इतिहास में, सर्वोच्च न्यायालय आज बहुत ही रोमांचक चरण में है जहाँ न्यायाधीशों की संख्या पूरी है, भवन परिसर नया है, और निर्णयों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने का सराहनीय कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। न्याय उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बार के सदस्यों पर भी है; मुझे विश्वास है कि इस नई शुरुआत के साथ, वे नए उत्साह से अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करेंगे। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं सर्वोच्च न्यायालय को- आप सभी को और इसके सभीहितधारकों को – सुखद भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिन्द!