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वर्ष 2014, 2015 और 2016 के लिए ‘सांस्कृतिक सद्भाव हेतु टैगोर अवार्ड’ प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन

नई दिल्ली : 18.02.2019

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1. वर्ष 2014, 2015 और 2016 के लिए ‘सांस्कृतिक सद्भाव हेतु टैगोर अवार्ड’ प्रदान करते हुए मुझे प्रसन्नता है। मैं सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। चाहे साहित्य या संगीत हो, कला या नाटक हो, मूर्तिकला या हस्तशिल्प हो, डिजाइन या डिजिटल कला हो, और रचनात्मक अभिव्यक्ति के अन्य अनेक माध्यम हों - यह पुरस्कार भारतीय सांस्कृतिक परंपरा और हमारी सभ्यता के वैभव का उत्सव है। हमारे देश में प्रत्येक क्षेत्र की एक विशिष्‍ट सांस्कृतिक पहचान है। फिर भी, तात्विक दृष्टि से देखें तो संस्कृति कभी विभाजित नहीं करती है – अपितु यह पूरे भारत और पूरी मानवता को एकजुट करती है और इनके बीच सामंजस्य स्थापित करती है।

2. यह पुरस्कार सात साल पहले मानव मनीषा को समृद्ध करने में संस्कृति की भूमिका की सराहना में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान और सम्मान में - तथा उनकी 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आरम्भ किया गया था। गुरुदेव विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। वे सुप्रसिद्ध लेखक थे। 1913 में जब उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला, तो वे ऐसे पहले एशियाई थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। हालाँकि,वह केवल लेखक ही नहीं थे बल्कि इससे कहीं बढ़कर - वे एक संगीतकार, कलाकार, शिक्षाविद् और विरल संवेदनशील आध्यात्मिक विद्वान थे। भारत को उसका राष्ट्रगान देने वाले कवि के रूप में हम उन्हें प्रतिदिन याद करते हैं। और वे हमारे सर्वाधिक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीकों में से एक बने हुए हैं।

3. जब मैं गुरुदेव के लिए "हमारे" शब्द का प्रयोग करता हूं, तो मेरा आशय सिर्फ भारत से नहीं अपितु पूरी दुनिया से है। वे एक राष्ट्रवादी होने के साथ-साथ अपने में अंतर्राष्ट्रवादी विचारधारा समाहित किये हुए थे, वे माँ भारती के सपूत थे और विश्वभारती के पैरोकार थे। इसीलिए यह उचित ही है कि यह पुरस्कार - राष्ट्रीयता और धर्म, भाषा और जातीयता से परे-सभी के लिए है। यह पुरस्कार उन सभी व्यक्तियों और संस्थाओं के लिए है, जिन्होंने हमारी साझी धरती पर सांस्कृतिक सद्भाव के प्रति उत्कृष्ट योगदान किया है।

देवियो और सज्जनो,

4. आज के तीनों पुरस्कार विजेताओं के प्रोफाइल को देखकर, मैं उनके कार्यों की व्‍यापकता और मानव समाज के बीच एकता को आगे बढ़ाने में उनके द्वारा किए गए संस्कृति के सदुपयोग के प्रयासों से प्रभावित हूं। मैं उनके और रवीन्द्रनाथ टैगोर के कार्यों के बीच सुखद संयोग से भी प्रभावित हूं।

5. 2014 के लिए पुरस्कार विजेता, राजकुमार सिंघजीत सिंह, मणिपुरी नृत्य के हमारे सबसे बड़े प्रतिपादकों में से एक हैं। उन्होंने न केवल आधुनिक संवेदनाओं के साथ, बल्कि देश के अन्य हिस्सों के साथ भी मणिपुर के इस सदियों पुराने कलारूप को जोड़ा है। 50 से भी अधिक साल पहले, उन्होंने मणिपुर के महान राजा के नाम पर नृत्य नाटिका "बभ्रुवाहन" की रचना क‍रके, मणिपुरी नृत्य को बैले के रूप में प्रस्तुत किया और संस्कृतिक जगत को हतप्रभ कर दिया। यह गौर करने वाली बात है कि टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक - नृत्य नाटिका - "चित्रांगदा" भी मणिपुर की योद्धा-राजकुमारी, महाभारत में अर्जुन की पत्नी और बभ्रुवाहन की माँ पर आधारित है।

6. 2015 के लिए पुरस्कार विजेता, ‘छायानट’, एक ऐसा संगठन है जिसने बांग्लादेश में रवीन्द्रनाथ टैगोर के कार्यों और दर्शन को बढ़ावा दिया और संरक्षित किया है। बांग्लादेश और भारत की समान संस्कृतियाँ,पश्चिम बंगाल और उससे परे, सीमाओं के आर-पार लोगों को एक सू्त्र में बांधती है। जिस प्रकार से टैगोर की कविता से भारतीयों को प्रेरणा मिलती है, उसी प्रकार से यह बांग्लादेश के लोगों को भी प्रेरित करती रही है। वे हमारे दोनों ही देशों के राष्ट्र-गानों के रचयिता हैं।

7. गुरुदेव के लोकाचार अनुप्राणित होकर, हाल के वर्षों में, भारत और बांग्लादेश के बीच संपर्क और विकासात्मक परियोजनाओं में सहयोग तथा, लोगों के बीच आपसी जुड़ाव भी बढ़ा है। वाणिज्य और कूटनीति, संस्कृति के साथ–साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह बात बांग्लादेश और भारत के लिहाज से सच है; वहीं मैं तो यह कहूंगा कि यह हमारे पूरे उपमहाद्वीप के लिए एक मिसाल है।

8. आज के अंतिम पुरस्कार विजेता, मूर्तिकार और विद्वान, राम वनजी सुतार हैं, जो हमारे सुदूर अतीत की हजारों साल पुरानी कला परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दिनों वह सबसे ज्‍यादा दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के लिए मशहूर हो रहे हैं। यह मूर्ति सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रति श्रद्धांजलि है,जिन्होंने आजादी के तुरंत बाद हमारे नवगठित राष्ट्र को एकजुट करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लगभग दो महीने पहले, मैंने गुजरात में सरदार सरोवर बांध के पास बनी ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को देखा,और उसे देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ परियोजना की अवधारणा और सम्‍पादन के लिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी प्रशंसा के पात्र हैं।

9. सुतारजी के कार्य से मैं इससे पहले तब वाकिफ़ हुआ जब मैं संसद सदस्य था और संसद के बाहर स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास से गुजरता था। यह सराहनीय प्रतिमा भी उन्‍होंने ही बनाई है। गांधीजी को ध्यान मुद्रा में दर्शाने वाली यह प्रतिमा सिर्फ राष्ट्रपिता की ही नहीं,बल्कि गांधीवादी दर्शन की भी द्योतक बन गई है। यह एक सुखद संयोग है कि हम इस वर्ष गांधीजी की 150वीं जयंती मना रहे हैं - और हमें यह भी याद रखना चाहिए कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही उन्हें सबसे पहले "महात्मा" या महान आत्मा की संज्ञा दी थी।

10. इस तरह, देवियो और सज्जनो, आज के हमारे तीनों पुरस्कार विजेता, भारत की संस्कृति और सांस्कृतिक सौहार्द के हर प्रकार की विलक्षण सुंदरता के प्रतीक ही नहीं,बल्कि रवीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन और उनकी प्रतिभा से भी जुड़े हुए हैं। मुझे विश्वास है कि सांस्कृतिक सौहार्द की सुंदरता और टैगोर की प्रखर प्रज्ञा हमारे राष्ट्रीय जीवन और दुनिया के साथ हमारे जुड़ाव को परिभाषित करने में निरंतर सहायक सिद्ध होती रहेगी। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं पुरस्कार विजेताओं को एक बार पुनः बधाई देता हूं और भविष्य के उनके कार्यों के लिए उन्हें शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!