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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का शिवाजी जयंती समारोह में सम्बोधन

नई दिल्ली : 19.02.2018

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1. शिवाजी जयंती के अवसर पर बड़े पैमाने पर राजधानी दिल्ली में यह आयोजन करने के लिए मैं‘अखिल भारतीय शिवराज्य-अभिषेक महोत्सव समिति’को बधाई देता हूं। मुझे बताया गया है कि तीन दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में अनेक कार्यक्रम होंगे। उनमे से एक कार्यक्रम में लगभग तीन सौ कलाकारों द्वारा शिवाजी के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों को एक नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।

2. मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि श्री संभाजी छत्रपति की पहल पर इस समिति द्वारा प्रतिवर्ष रायगढ़ किले में होने वाला‘शिवाजी राज्य-अभिषेक महोत्सव’ बहुत लोकप्रिय हो गया है। मुझे बताया गया है कि लगभग दो लाख लोग वहां पिछले महोत्सव में आए थे। ऐसे आयोजनों के जरिए शिवाजी के आदर्शों के बारे में सभी देशवासियों को अवगत कराने का प्रयास सराहनीय है।

3. केवल पचास वर्षों के अपने जीवन-काल में भारत के इतिहास को निर्णायक योगदान देने वाले शिवाजी हमारे देश की सबसे प्रेरक विभूतियों में से एक हैं। उन्होने न्याय और आजादी के पक्ष में संघर्ष का महान आदर्श प्रस्तुत किया। उनका संघर्ष अपने निजी मान-सम्मान या धन-दौलत के लिए नहीं बल्कि स्वराज के लिए था। उन्होने दासता और हीन-भावना से ग्रस्त हो चुके लोगों में आत्म-सम्मान जगाया।

4. शिवाजी के जीवन के विषय में जानने पर कोई भी दंग रह जाता है कि एक ही व्यक्ति में इतने सारे गुण एक-साथ कैसे हो सकते हैं। वे अद्वितीय योद्धा थे। अपनी छोटी सी सेना के सहारे विशाल सेनाओं को परास्त करने के लिए उन्होने जो युद्ध-शैलियां अपनाई उन पर अध्ययन होते रहे हैं। पूर्ण अनुशासन, तेज गति,सतर्क गुप्तचर और सिपाहियों में वफादारी उनकी सैनिक व्यवस्था की विशेषताएं थीं। उनकी सेना में हिन्दू और मुस्लिम सिपाही एक ही झंडे के नीचे युद्ध करते थे। शिवाजी भारत में नौसेना का निर्माण करने वाले पहले शासक थे।

5. लगभग ढाई सौ साल पहले शिवाजी की सेना की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले मराठा योद्धाओं को लेकर‘मराठा लाइट इंफेंट्री’ का गठन किया गया। आज भी इस इंफेंट्री का युद्ध-घोष है‘बोल श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की जय’।

6. वीर योद्धा होने के साथ-साथ शिवाजी कुशल राजनयिक भी थे। बिना कोई युद्ध किए, उन्होने कई किले अपने अधिकार में ले लिए थे। साथ ही उन्होने कई नए दुर्गों का बहुत ही कम समय में निर्माण करवाया था।

7. अपने राज्य का गठन करने के बाद शिवाजी ने कुशल और प्रबुद्ध शासक के रूप में भी लोक-प्रियता पाई। उन्होने अनेक प्रभावी व्यवस्थाएं शुरू कीं। आज की भाषा में कहें तो वे एक‘सिस्टम बिल्डर’ थे। आठ मंत्रियों की एक परिषद उनकी मदद करती थी जिसे‘अष्ट-परिषद’कहा जाता था। उन्होने उर्दू-फारसी के प्रशासनिक शब्दों के संस्कृत भाषा में समान अर्थ वाले शब्दों का संकलन करवाया और‘राज-व्यवहार-कोश’के नाम से प्रकाशित किया। यह अपने ढंग का पहला शब्दकोश है।

8. शिवाजी ने जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर सभी लोगों को जोड़ने का काम किया था। वे बिना किसी जाति-संप्रदाय के भेद-भाव के, योग्यता के आधार पर,सैनिकों और प्रशासन के अधिकारियों को नियुक्त करते थे।अच्छी शासन व्यवस्था प्रदान करने, जनता के प्रति उदार और न्याय-प्रिय बर्ताव करने और लोक-कल्याण में लगे रहने के कारण लोगों के हृदय में शिवाजी के लिए बहुत सम्मान था। इसीलिए लोक-साहित्य में शिवाजी को बहुत ही विशेष स्थान प्राप्त है। शिवाजी के सामाजिक लोकतन्त्र के आदर्श हमारे लिए आज भी प्रासंगिक हैं।

9. समाज के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा महिलाओं का सम्मान करना उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उनका अपनी माता जीजाबाई के लिए जो सम्मान था वह अपने आप में एक मिसाल है।

10. बाल गंगाधर तिलक ने आजादी के आंदोलन में जन-साधारण को एकजुट करने के लिए‘शिवाजी-महोत्सव’का आयोजन करना शुरू किया था।

11. शिवाजी को इतिहास में जो सम्मान प्राप्त हुआ है उसके मूल में उनकी वीरता के साथ-साथ उनकी न्याय-प्रियता, समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए उनकी निष्पक्ष उदारता का प्रमुख योगदान है।

12. मैं एक बार फिर शिवाजी जयंती महोत्सव से जुड़े सभी आयोजकों को बधाई देता हूं।

13. मुझे विश्वास है कि इस समारोह में तीन दिनों तक चलने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से पूरे देश में शिवाजी की वीरता, सामाजिक आदर्श, सामाजिक एकता, सुशासन और राष्ट्रीय एकता के आदर्श प्रसारित होंगे।

धन्यवाद

जय हिंद!