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‘हैलेनिक फाउंडेशन फॉर यूरोपियन एंड फॉरेन पॉलिसी’ द्वारा आयोजित समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

जेप्पियो, एथेंस : 19.06.2018

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1. आप सभी को मेरा नमस्कार और हैलेनिक फाउंडेशन फॉर यूरोपियन एंड फॉरेन पॉलिसी में बोलने के लिए आमंत्रित करने के लिए आपका धन्यवाद। ‘हैलेनिक फाउंडेशन फॉर यूरोपियन एंड फॉरेन पॉलिसी’ यूनान और यूरोप के अग्रणी विदेश नीति-विचार मंचों में शामिल है और ‘इंडिया एंड यूरोप इन ए चेंजिंग वर्ल्ड’ विषय पर राजनयिकों, नीति-निर्माताओं और शिक्षाविदों के विशिष्ट श्रोता समूह को संबोधित करने के लिए यहां उपस्थित होकर मुझे खुशी हुई है। जुलाई, 2017 में भारत का राष्ट्रपति बनने के बाद यह यूरोप की मेरी पहली यात्रा है। यूनान की यात्रा पर आना उपयुक्‍त ही है क्योंकि भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से आपका देश भारत के लिए यूरोप का द्वार रहा है। यूनान की जनता और सरकार के हार्दिक स्वागत तथा राष्ट्रपति पावलोपाउलस और प्रधान मंत्री सिप्रास के साथ ठोस बातचीत की मैं सराहना करता हूं।

2. भारत और यूनान के बीच बहुत कुछ एक समान है। हम प्राचीन सभ्यताओं की नींव पर निर्मित आधुनिक राष्ट्र-राज्‍य हैं। ‘वसुधैव कुटम्बकम्’ संस्कृत की एक कालजयी उक्ति है, जिसका अर्थ है, ‘विश्व एक परिवार है’। इसने शताब्दियों से बाहरी दुनिया के प्रति भारत के दृष्टिकोण को दिशा दी है और अब भी दे रहा है। मानव समाज के आरंभिक समय की सहोदरा सभ्यताओं के तौर पर, यूनान और भारत इस परिवार के विशेष सदस्य हैं।

3. हमारे द्विपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक संबंध 2500 वर्ष पुराने हैं। यूनान पाश्चात्य संस्कृति का उद्गम था और इसकी छाप महाद्वीपों से परे तक फैली। भारत में भी हमारे पूर्वजों से संपर्क कायम करने वाले यूनानी यात्रियों, व्यापारियों, विद्वानों और योद्धाओं के अनगिनत साक्ष्‍य मिलते हैं। भारत आने वाला सर्वाधिक प्रसिद्ध यूनानी वास्तव में सिकंदर महान था। वह ईसा पूर्व 326 में आक्रमणकारी सेना के मुखिया के रूप में आया परंतु एक मित्र की भांति यहां से गया। भारत का प्रत्येक स्कूली बच्चा जानता है कि सिकंदर और भारतीय सम्राट पोरस के बीच कितना भयंकर युद्ध हुआ और इसके बाद एक-दूसरे के पराक्रम और प्रतिष्‍ठा से प्रभावित होकर वे मित्र बन गए।

4. इसके तुरंत बाद, सम्राट चन्द्रगुप्त ने प्रथम भारतीय महान ‘मौर्य साम्राज्‍य’ की स्थापना की, जो भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भूभाग तक फैला हुआ था। सेल्यूकस निकत्‍तर ने सैन्‍य अभियान में, उस समय यूनानियों में ‘सैंड्रोकोटोस’ के नाम से प्रसिद्ध चन्द्रगुप्त की सहायता की। सेल्यूकस सिकंदर का सेनापति था और उसने एशिया में अपने स्‍वयं के यूनानी साम्राज्य की स्थापना की।

5. ऐसा माना जाता है कि चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस की पुत्री हेलेन से विवाह किया और वह उनकी महारानी बनी। सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा जो संभवत: भारत आने वाला प्रथम यूनानी राजदूत था। सौभाग्यवश, हमारे लिए वह एक कूटनीतिज्ञ के अलावा, विद्वान, इतिहासकार और नृजाति व्याख्याकार था। उनका यात्रा वृत्‍तांत ‘इण्डिका’ प्राचीन भारत के बारे में अब तक सर्व-प्रसिद्ध विवरण रहा है।

6. यूनानी और भारतीय संस्कृति के प्रभावों के संगम ने ‘यूनानी-बौद्ध कला’ और ‘गांधार कला एवं मूर्तिशिल्प पद्धति’ को जन्म दिया। यूनानी भूगोलविद् टोलेमी ने उन सात द्वीपों के मानचित्र बनाए जिनसे मिल कर आज मुंबई नगर बना है। उन्होंने द्वीपों के इस समूह को ‘हेप्टेनेसिया’ जो सात द्वीपों के लिए यूनानी शब्द है, नाम दिया था। हाल के समय में, 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान, भारत में मसालों, जूट और अन्य उपभोक्‍ता वस्तुओं का कारोबार और व्‍यापार करने वाले यूनानियों का एक समृद्ध समुदाय होता था। कोलकाता का ग्रीक ऑर्थोडॉक्‍स चर्च अपने प्रभावशाली डोरियन स्तंभों के साथ अब भी शान से खड़ा है।

देवियो और सज्जनो,

7. मैंने आपको पुरातनकाल से लेकर अब तक यूनान और भारत के बीच आदान-प्रदान के केवल कुछ उदाहरण बताए हैं। वास्तव में, ऐसे और भी उदाहरण मौजूद हैं। परंतु मेरे विचार से, हमारी सबसे बड़ी साझी विशेषता, जीवन-मूल्‍यों की समानता है। एथेंस का यह शहर ‘लोकतंत्र का उद्गम’ माना जाता है। प्राचीन भारत में भी ‘नगर गणराज्यों’ की परंपरा पाई जाती थी, जैसे कि बिहार के आधुनिक राज्‍य में ‘लिच्छवी गणराज्य’ था। उदारवादी लोकतंत्र, जन संप्रभुता और पारदर्शी सरकार की परंपराएं हमारा मार्गदर्शन करती आ रही हैं और यही परंपराएं यूनान व यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंधों के आधार स्तंभ हैं। हमारी साझेदारी सिद्धांत पर आधारित है। इसका तात्‍पर्य आदान-प्रदान से कहीं ज्‍यादा है। यह मैत्री समय, गौरवशाली मान्यताओं और त्याग की कसौटी पर कसी गई मैत्री है।

8. कल मैंने ‘फलेरुन वॉर सिमेटरी’ में अपनी श्रद्धा अर्पित की। द्वितीय विश्व युद्ध में यूनान की मुक्ति की लड़ाई में जीवन अर्पण करने वाले 74 भारतीय सैनिकों के भस्मावशेष इस कब्रिस्तान में दफ्न हैं। मुझे आश्चर्य है कि किस भावना ने इन सैनिकों को अपने परिवारों और अपने घरों से इतनी दूर किसी अन्‍य देश के लोगों के लिए युद्ध की प्रेरणा दी। उन्होंने अपना जीवन केवल इस लिए उत्सर्ग कर दिया ताकि यूनान में शांति और समृद्धि की पुन:स्‍थापना हो सके। यूनान और यूरोप की मुक्ति में उनका योगदान हमें प्रेरणा प्रदान करता है। यह हमें निरंतर याद दिलाता है कि किस प्रकार भारत यूनानवासियों का सुदृढ़ मित्र तो है ही, यूरोप की निरंतर सुरक्षा और अखण्‍डता का हितधारक भी है।

9. भारत, यूरोपीय आर्थिक संघ के साथ कूटनीतिक रिश्ते स्थापित करने वाले प्रारंभिक देशों में शामिल था। 1962 में लिया गया यह निर्णय यूरोप के साथ रिश्ते जोड़ने का एक सचेत प्रयास था। तभी से यूरोपीय आर्थिक संघ और बाद में यूरोपीय संघ ने हमारी विदेश नीति के स्तंभ के रूप में कार्य किया है। भारतीय राष्ट्र निर्माण परियोजना और यूरोपीय एकीकरण परियोजना साथ-साथ चलती रही है। 1947 में औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्‍त करने के बाद, भारत ने साझे सांस्कृतिक अनुभवों और साझी आकांक्षाओं की नींव पर एक आधुनिक, संगठित राष्ट्र का निर्माण करने के लिए, अतीत की कड़वाहट को पीछे छोड़ने और एक नई शुरुआत करने का रास्‍ता चुना। यूरोप और यूरोपीय संघ ऐसी ही उम्मीदों से प्रेरित होते रहे हैं, और यही कारण है कि हम भारतीय इसके साथ अपनापन महसूस करते हैं।

10. आपकी भांति, हम यह मानते हैं और विश्वास करते हैं कि ‘साम्राज्यों का युग’ बीत चुका है। 21वीं सदी का निर्माण हमारे जैसे उन लोकतांत्रिक देशों द्वारा किया जाएगा जो सामान्य नागरिकों की बेहतरी; स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार व उन्‍नति के अवसर तथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य, पारिस्थितिकीय रूप से सतत और अपनी बनावट में नैतिक वैश्विक विकास मॉडल पर भरोसा करते हों और उसे प्राथमिकता देते हों। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, यूरोप को भारत से बेहतर साथी कोई नहीं मिलेगा। 2004 में, यूरोपीय संघ और भारत ने एक ‘कार्यनीतिक साझेदारी’ का सूत्रपात किया। 2017 में, हमने सहकार्य के 55 वर्ष पूरे होने का समारोह पूर्वक स्‍वागत किया। अक्तूबर, 2017 में नई दिल्ली में आयोजित 14वें भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन ने भारत-यूरोपीय संघ के रिश्तों में ऊर्जा का संचार करने में मदद की। अब, जबकि यूरोपीय आयोग एक नई ‘भारत कार्यनीति’ का निर्माण करना चाहता है, हमारे लिए यह जरूरी है कि हम अपने संबंधों की गुणवत्‍ता का स्‍तर ऊंचा उठाएं।क्षमता का विस्तार करना जरूरी है। हमारे सम्‍मुख अवसर है कि हम नए-नए सीमान्‍तों की तलाश करें।

11. यूरोप भारत में मौजूद अवसरों से अनभिज्ञ नहीं है। वर्तमान भारत में आर्थिक बदलाव इतनी तेज गति से और इतने परिवर्तनकारी ढंग से किए जा रहे हैं कि अब पुराने नियम, उदाहरण के लिए निवेश निर्णयों की गति धीरे-धीरे बढ़ाने जैसे नियम लागू नहीं होते। मैं श्रोताओं में बैठे हुए कारोबार मुखियाओं और आर्थिक नीति-निर्माताओं से आग्रह करता हूं वे भारत की प्रगति की तेजी को ध्‍यान में लाएं। हमारा सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक है। विगत तीन या उससे अधिक वर्षों में भारत विश्व बैंक की कारोबार सुगमता सूची में 42 स्थान ऊपर आ गया है। यह किसी भी देश के लिए सबसे ऊंची छलांग है। ज्ञान आधारित संस्कृति भारतीय कार्य स्थल की तस्वीर बदल रही है। 2025 तक भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। इससे भारत विश्व का तीसरा विशालतम उपभोक्ता बाजार बन जाएगा।

12. प्रौद्योगिकी न केवल सेवाओं में बल्कि कृषि क्षेत्र में परिष्कृत विनिर्माण और नवाचार को आगे बढ़ा रही है। प्रौद्योगिकी पारंपरिक वर्गीकरण और असमानता को समाप्त करके सामाजिक रवैए में भी परिवर्तन ला रही है। सरकार ने पिछले चार वर्षों के दौरान छोटी-छोटी लेकिन अत्‍यंत उपयोगी प्रौद्योगिकी जैसे कि अति उपयोगी मोबाइल फोन का प्रयोग करते हुए, बैंक खाते खोलने में 300 मिलियन पिछड़े हुए लोगों की मदद की है। इससे पहले वे बैंकिंग प्रणाली के दायरे से बाहर थे। उज्ज्वला कार्यक्रम के अंतर्गत, 800 मिलियन गरीब परिवारों को खाना पकाने की सब्सिडी युक्त गैस सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई हैं। कोयले से जलाए जाने वाले चूल्हों का स्थान गैस चूल्हों ने ले लिया है, जो पर्यावरण, स्वास्थ्य और महिला सशक्तीकरण तथा सम्मान की दिशा में सकारात्मक संकेत हैं। व्यापक पैमाने पर चलाए जा रहे स्वच्छता कार्यक्रमों, हमारी प्रमुख नदियों और नदी बेसिनों को प्रदूषण मुक्‍त करने और उनका संरक्षण करने, हमारे शहरों के उन्नयन तथा नवीकरणीय ऊर्जा के अनवरत प्रयास भारत के आधुनिकीकरण के मामले में उतने ही आवश्यक हैं जितनी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की प्रभावी मात्रा और सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर आवश्‍यक है। हम इनमें से किसी को भी नहीं छोड़ सकते। 19वीं और 20वीं शताब्दी में यूरोप को यह छूट उपलब्‍ध थी परंतु आज भारत को यह छूट उपलब्‍ध नहीं है।

13. निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के भारत के संकल्प में यूरोप का स्‍थान अद्वितीय है। यूरोपीय संघ भारत के सबसे बड़े व्यापार साझेदारों में शामिल है। यह निवेश और प्रौद्योगिकी, विशेषकर सातत्‍यशील कार्यक्रमों का एक प्रमुख स्रोत है। भारतीय कंपनियां यूरोपीय संघ में औषध निर्माण से लेकर ऑटोमोबाइल कल-पुर्जों तक के उद्योगों में महत्वपूर्ण निवेशक हैं। वित्तीय और मानव पूंजी दोनों की गतिशीलता द्वारा रेखांकित परस्‍पर संयोजित विश्व में शिक्षित और पेशेवर रूप से कुशल भारतीय जन लगातार विश्व नागरिक बन रहे हैं और जहां कहीं भी वे जाते हैं, जीवन-मूल्य, संपत्ति और रोजगार सृजन के लिए उनका सम्मान किया जाता है।

14. एक प्राचीन और प्रबुद्ध सभ्यता होने के नाते, यूरोप में आपके अंदर दूरदर्शिता और भारत के उत्थान को सही परिप्रेक्ष्‍य में देखने की समझदारी मौजूद है। मुझे विश्वास है कि भारत के साथ संबंध बढ़ाने, भारत में निवेश करने, भारत के साथ व्यापार करने या किसी भारतीय के साथ आराम से बैठकर बातचीत करने के दौरान आप परिप्रेक्ष्य की यह भावना बनाए रखेंगे।

देवियो और सज्जनो,

15. मैंने उस प्रक्रिया के विषय में बताया है जिसके जरिए भारत एक वैश्विक कारक के रूप में उभर रहा है और अपनी अर्थव्यवस्था एवं समाज का आधुनिकीकरण कर रहा है। अब मैं इसके परिणामों या कम से कम जिन परिणामों की हम उम्मीद करते हैं, के बारे में चर्चा करता हूं। भारत दुनिया के सामने क्या लेकर आता है और भारत वास्तव में क्या प्रस्‍ताव रखता है? मेरा कहने का अर्थ है, भारत के पास देने के लिए क्‍या-क्‍या है?

16. भारत के घरेलू सुधारों को आकार प्रदान करने वाले स्वप्न और संगठनकारी सिद्धांत वही हैं जिनकी आकांक्षा हम अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए करते हैं। भारत विश्व शांति के प्रति वचनबद्ध है। भारत का मानना है कि शांति का मतलब संघर्ष की गैर-मौजूदगी मात्र नहीं है बल्कि उसमें सतत विकास का प्रतिबिंब और वास्तव में तनाव और तकलीफों का पुर्वानुमान लगाने और उनकी रोकथाम करने का प्रयास है। जलवायु परिवर्तन के लिए काम करते हुए हम विश्व शांति में योगदान देते हैं। विकासशील देशों की मदद, उनकी अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार मदद करने और एक कम असमान विश्व के लिए जब हम कोशिश करते हैं तो हम विश्व शांति में योगदान देते हैं। संकटग्रस्त क्षेत्रों से न केवल अपने बल्कि 40 दूसरे देशों के नागरिकों को बचाने और उन्हें सुरक्षित निकाल कर दूसरे स्थान पर ले जाते हुए, जैसा कि हमने 2015 के यमन संकट के दौरान किया था, हम विश्व शांति में योगदान देते हैं। जब हम संयुक्त राष्ट्र शांति सेना अभियानों को पूरा करने के लिए बड़ी संख्‍या में सैनिक और संसाधन उपलब्‍ध कराते हैं तो हम विश्व शांति में योगदान देते हैं। जब अफ्रीका वासियों के विकास के लिए हम संसाधनों की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त करते हैं, तब हम विश्‍व शांति में योगदान देते हैं।

17. सुदृढ़, नियम आधारित बहुपक्षीय संस्थानों; अंतरराष्ट्रीय शासन में बहु-ध्रुवीयता; तथा व्यवहार्य, सातत्‍यपूर्ण, राष्ट्रों की संप्रभुता व क्षेत्र का सम्मान करने वाले तथा स्थानीय और मेजबान समुदायों को दरकिनार करने की बजाय उन्हें समृद्ध बनाने वाली निवेश और संयोज्यता परियोजनाओं द्वारा निरूपित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति भारत वचनबद्ध है। इसी प्रकार की स्थिरता के आधार स्तंभ तथा मित्र देशों को विकास संबंधी सहायता के उद्भवशील प्रदाता के रूप में भारत ऐसी ही दुनिया स्‍थापित करना चाहता है। मुझे विश्वास है कि यूरोप भी इसी प्रकार की दुनिया को बढ़ावा देना चाहेगा।

18. ऐसा नहीं है कि हमारी पृथ्वी के सामने कोई चुनौती-विहीन नहीं है। व्यापार, समुद्री शासन और अन्य क्षेत्रों में नियम-आधारित बहुपक्षीय संस्थानों की विश्‍वसनीयता और आश्‍वासनप्रद उपस्थिति पर दबाव आ रहा है। परस्पर संपर्कों की वैश्विक प्रणाली के मुश्किल से हासिल किए गए फायदों को कायम रखना हम सबके हित में हैं। भारत और यूरोप को यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए कि बहुपक्षीय व्यवस्था मजबूत बनी रहे तथा भावी पीढ़ियों के लिए काम करे तथा योग्यता आधारित दावे रखने वाले नए उम्मीदवारों को स्थान दे। वास्‍तव में, सामूहिक विश्‍व संगठनों को, उन्मुक्त और सहयोगात्मक अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा संचालित मानवता का एक साझा संसाधन बने रहना चाहिए। एक जिम्मेदार शक्ति होने के नाते, भारत नियम निर्माता और नियम संरक्षक बनना चाहता है।

19. स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के संबंध में, भारत और यूरोपीय संघ 2015के पेरिस समझौते के प्रति अपनी वचनबद्धता के मामले में एकजुट हैं। जलवायु परिवर्तन पर ध्‍यान देते हुए तथा ऊर्जा की सुरक्षित, वहनीय और सतत आपूर्ति हमारी प्राथमिकता है। भारत कड़ी तत्‍परता दिखाते हुए अपने उर्जा संसाधन उपयोग में गैर-जीवाश्म ईंधनों के हिस्से को बढ़ा रहा है। वर्ष 2027तक यह हिस्‍सा वर्तमान31प्रतिशत से बढ़कर 53प्रतिशत हो जाएगा। हम 175गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं, जिसमें सौर ऊर्जा का हिस्‍सा100गीगावाट का होगा।इस वर्ष की शुरुआत में, भारत ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के संस्थापना सम्मेलन की मेजबानी की, इसका मुख्यालय हमारे देश में स्थित है। मैं, तेज धूप वाले देश यूनान को अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं। मैं, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के सदस्य देशों की वहनीय सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण प्रदान करने की ‘यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक’ की सहमति पर खुशी व्यक्त करता हूं।

20. कट्टरता और इसका सहोदर आतंकवाद अब भीषण वैश्विक चिंताओं का रूप ले चुकी हैं। अस्थिरता और आतंकवाद के स्‍थल यूरोप के पूर्व में और भारत के पश्चिम क्षेत्र में देखे जा सकते हैं। ये स्‍थान, यूरोप और भारत दोनों के लिए चिंताजनक है। सरकारी और गैर-सरकारी तत्वों द्वारा आतंकवाद को प्रोत्साहन; विविध रूपों में उपस्थित और अकारण नफरत पर आधारित उग्रवाद; संवेदनशील हथियारों का प्रसार; आतंकवादी समूहों द्वारा संचार और वित्तीय माध्यमों का लगातार प्रयोग-ये सब लक्षण केवल किसी एक या दूसरे राष्ट्र के लिए बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए चुनौती पेश करते हैं।

21. भारत और यूरोपीय संघ को चाहिए कि तथा-कथित‘अच्छे’और‘बुरे’आतंकवादियों के बीच फर्क न किया जाए,आतंकवाद के सरकारी प्रायोजकों को लांछित किया जाए और उन पर प्रतिबंध लगाया जाए और वित्तीय कारर्वाई कार्य-बल तथा वैश्विक आतंकवाद-रोधी मंच जैसे बहुपक्षीय मंचों को मजबूत करने के लिए विश्व को समझाया जाए। भारत को कट्टरतावाद का मुकाबला करने की दृष्टि से, यूरोपीय संघ के लिए संभावित रूप से उपयोगी सिद्ध होने वाले अपने घरेलू अनुभव और सफलताओं को साझा करके खुशी होगी। खाड़ी देशों के हमारेसाझीदार देश भी सीख प्राप्‍त करने की ऐसी ही परस्पर प्रक्रियामें हमारे साथ जुड़े हुए हैं।

22. भारत और यूरोपीय संघ का एक अन्य साझा प्रयास सइबर-सुरक्षा तथा इंटरनेट फ्रेमवर्क के क्षेत्र में है जिससे तीन उद्देश्य पूरे होते हैं। पहला, इससे विशेषकर महत्वपूर्ण वित्तीय और ऊर्जा नेटवर्कों के लिए जन सुरक्षा की जरूरतें पूरी होनी चाहिए। दूसरा, इससे वाणिज्य और संचार क्षमता में बढ़ोत्‍तरी होनी चाहिए। और तीसरा, व्यावहारिक सीमा के अंदर इससे व्यक्ति और उसके डेटा की निजता का सम्मान होना चाहिए। स्वाभाविक रूप से इसके लिए बहु-हितधारक पद्धति अपनाए जाने की जरूरत है। चाहे उग्रवादी समूह हों या कट्टरवादी राष्ट्र हों, हमें उनके द्वारा किए जा रहे इंटरनेट के दुरुपयोग को भी रोकना होगा। अन्य प्रौद्योगिकियां उभर रही हैं, ऐसी परिस्थिति में हमारे द्वारा निर्मित आदर्श महत्‍वपूर्ण साबित होंगे। आखिरकार, यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स की चौथी औद्योगिक क्रांति का युग है। यह क्रांति मानव और मशीन के बीच समीकरणों को दोबारा गढ़ सकती है तथा हमारी विनियामक प्रणालियों को प्रतिक्रिया करने की बजाय परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाना होगा।

देवियो और सज्जनो,

23. यूरोपीय संघ और भारत के बीच साझेदारी का दायरा विस्‍तारशील है और इसमें व्यापार से लेकर प्रौद्योगिकी, नागरिक उड्डयन से लेकर आतंकवाद की रोक-थाम जैसे अनेक विषय शामिल हैं। मुझे बताया गया है कि हम 30 अलग-अलग संवाद प्रणालियों के जरिए बातचीत करते हैं। अपने संबोधन में, मैंने इनमें से कुछ का ही उल्लेख किया है, क्योंकि यह साफ है कि सभी विषयों का जिक्र करना संभव नहीं है। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि हम आपसी समझ-बूझ तथा व्यावहारिकता की उदार भावना के साथ लागू किए जाने वाले भारत-यूरोपीय संघ के व्यापक व्यापार और निवेश समझौते के प्रति वचनबद्ध हैं।

24. तथापि, सबसे बढ़कर, मैं आग्रह करता हूं कि चाहे कूटनीतिक और राजनीतिक सहयोग हो या कारोबार और सुरक्षा सहयोग हो, हमारा सहयोग लोगों की आपसी गहरी सद्भावना पर टिका हुआ है। इसका कोई विकल्प नहीं है। भारत और यूरोप के लोगों ने सदियों से हमारे रिश्तों को प्‍यार से सींचा है और संभाल कर रखा है। सरकारें केवल छूटी हुई चीजों को सहेजने का ही काम कर रही हैं। हमारे लोग सदैव हमारे सहयोग केन्‍द्र–बिन्‍दु का आधार रहे हैं और रहेंगे। एक बहुलवादी और लोकतांत्रिक समाज में व्यक्ति की गरिमा और स्वतंता तथा प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता और सामर्थ्य की पूर्णता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। हमारी कामना है कि यही आदर्श हमें 21वीं शताब्दी में अभिन्न साझेदार बनने के लिए प्रेरित करता रहे।

धन्यवाद।

आपका दिन शुभ रहे!