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'रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज़्म' पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्‍ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्‍द का संबोधन

नई दिल्ली : 20.01.2020

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1. रामनाथ गोयनका एक्सेलेन्स इन जर्नलिज़्म अवार्ड्स समारोह में उपस्थित हो कर मुझे प्रसन्नता हो रही है। मुझे बताया गया है कि ये पुरस्कार स्वर्गीय गोयनका जी के जन्म—शताब्दी समारोहों के अंतर्गत शुरू किए गए थे। ये पुरस्कार प्रिंट, प्रसारण और डिजिटल मीडिया के ऐसे पत्रकारों को प्रदान किए जाते हैं जिन्होंने अपने पेशे के श्रेष्ठतम मानदंडों को बनाए रखा और अनेक चुनौतियों के बावजूद, ऐसा कार्य किया जिससे मीडिया पर लोगों का विश्वास बना रहता है और लोगों के जीवन पर उसका प्रभाव पड़ता है।

2. दूसरे शब्दों में, इन पुरस्कारों का उद्देश्य उन पत्रकारों को सम्मानित करना है जिनकी लेखनी सत्य के लिए समर्पित रहती है। मैं सभी पुरस्कार—विजेताओं को बधाई देता हूं और उनसे आग्रह करता हूं कि वे सत्य की तलाश के अपने मार्ग से कभी विचलित न हों। यही अच्छी पत्रकारिता की कसौटी है।

3. एक्सप्रेस ग्रुप के चेयरमैन, श्री विवेक गोयनका जब मुझे आमंत्रित करने के लिए मुझसे मिले तो उन्होंने विनोदपूर्ण तरीके से मुझे याद दिलाया कि मेरा और गोयनका जी का नाम— ‘रामनाथ’ — एक समान है। निश्चय ही, यह एक सुखद संयोग है, जिसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है, और मुझे विश्वास है कि आप सभी इस बात से सहमत होंगे।

4. यहां मैं इतना जोड़ना चाहूंगा कि मेरे जैसे साधारण ‘राम नाथ’ के लिए निश्चय ही यह एक गौरव का भाव जगाने वाला अनुभव है कि मैं उन असाधारण ‘राम नाथ’ जी के नाम से जुड़े समारोह में यहां उपस्थित हूं जिनकी दमन के विरुद्ध संघर्ष तथा सत्य के प्रति आग्रह की कहानियां लोक-कथाओं का रूप ले चुकी हैं। गोयनका जी की उत्कट राष्ट्रप्रेम की भावना मैं उनके साथ साझा करता हूं और हम सबको ऐसा करना ही चाहिए। मैं,सुदृढ़ और समृद्ध भारत के उनके सपने में हृदय से साझीदार हूं।

5. प्रेम से आरएनजी कहे जाने वाले गोयनका जी मीडिया की बेजोड़ शख्सियत थे जिन्होंने, आजादी के पहले और उसके बाद भी, देश पर अपना प्रभाव डाला। वे एक ऐसे व्यवसायी थे जिनके पास रियल एस्टेट का साम्राज्य खड़ा करने और अपने धन का उपयोग लोक—सेवी पत्रकारिता में करने की विलक्षण योग्यता थी। उनके प्रयासों का आधार थी - समझौते की संभावना से मुक्त, साहसपूर्ण पत्रकारिता। उनकी पत्रकारिता भयमुक्त और निष्पक्ष थी जिसकी मूलभूत व सर्वोच्च प्रतिबद्धता सत्य के प्रति ही थी। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान जब उन्होंने अपने अखबार का प्रकाशन रोका तो उसके संपादकीय में लिखा गया, ‘‘दि हार्टस्ट्रिंग्स, नॉट दि पर्सस्ट्रिंग्स’’ यानि ‘दिल की डोर से, न की बटुए की डोर से’।

6. अनेक दशकों से, इंडियन एक्सप्रेस समूह पत्रकारिता के सर्वोत्तम मूल्यों और परम्पराओं को समाहित करने वाले संस्थान के रूप में उभरा है। इंडियन एक्सप्रेस समूह ने, हुकूमत की परवाह न करने की संस्कृति विकसित की है और सत्ता के सम्मुख सत्य की अभिव्यक्ति करने वाली पत्रकारिता करने का प्रयास किया है। गोयनका जी ने यह समृद्ध विरासत, अपने योग्य उत्तराधिकारियों को सौंपी है जो उनके संदेश को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं।

7. आप जानते ही हैं कि मेरा जन्म और पालन-पोषण कानपुर में हुआ था, जहां एक समय, पत्रकारिता के उच्चतम मानदंड स्थापित किए गए थे। हम गणेश शंकर विद्यार्थी का स्मरण करें जो एक असाधारण पत्रकार थे और जिन्होंने कानपुर में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान घृणा की ज्वाला को शांत करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। उनकी पत्रकारिता में, न केवल भविष्य का स्वरूप दिखता था बल्कि समाज के वंचित वर्गों के प्रति उनकी गहरी चिंता भी दिखाई देती थी।

8. उन्हीं के द्वारा स्थापित क्रांतिकारी समाचार—पत्र ‘प्रताप’ में विद्यार्थी जी द्वारा लिखे गए शब्द हर पत्रकार के लिए उसका ‘मिशन स्टेटमेंट’ होना चाहिए। विद्यार्थी जी ने स्वयं लिखा था:

‘‘किसी की प्रशंसा या अप्रशंसा, किसी की प्रसन्नता या अप्रसन्नता, किसी की घुड़की या धमकी हमें अपने सुमार्ग से विचलित न कर सकेगी। सत्य और न्याय हमारे भीतरी पथ प्रदर्शक होंगे। सांप्रदायिक और व्यक्तिगत झगड़ों से ‘प्रताप’ सदा अलग रहने की कोशिश करेगा। उसका जन्म किसी विशेष सभा, संस्था, व्यक्ति या मत के पालन—पोषण, रक्षण या विरोध के लिए नहीं हुआ है, किन्तु उसका मत विचार स्वातंत्र्य और उसका धर्म सत्य होगा। हम न्याय में राजा और प्रजा दोनों का साथ देंगे, परन्तु अन्याय में दोनों में से किसी का भी नहीं। हमारी यह हार्दिक अभिलाषा है कि देश की विविध जातियों, संप्रदायों और वर्णों में परस्पर मेल—मिलाप बढ़े।’’

विद्यार्थी जी के लेखन में निहित विवेक कभी मनुष्यों द्वारा उत्पन्न की गई संकीर्णता के दायरे में नहीं बंधा। ऐसी थी उनकी पत्रकारिता! एक मजबूत और एकजुट भारत के सपने को साकार बनाने के प्रयास में उन्होंने, गांधीजी के सच्चे अनुयायी की तरह, शांति तथा अहिंसा के लिए अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया।

देवियो और सज्‍जनो,

9. मैं जानता हूं कि मैं उस युग की बात कर रहा हूं जब जन—संचार अपनी शैशवावस्था में ही था। तब हम, अपने संदेशों को कुछ ही ‘करैक्टर्स’ में संक्षिप्त करके, दावानल से भी ज्यादा तेजी से फैलाने की स्थिति से बहुत दूर थे। टेक्नॉलॉजी ने पत्रकारिता के स्वरूप में जबर्दस्त बदलाव ला दिया है।

10. पुराने जमाने के पत्रकार पांच ‘डब्ल्यू’ और एक ‘एच’ (वॉट, वेन, वाई, वेयर, हू एंड हाउ — क्या, कब, क्यों, कहां, कौन और कैसे) की जादुई कसौटी को याद करते हैं। इन पांच प्रश्नों का उत्तर, किसी भी आलेख को समाचार का दर्जा दिए जाने के लिए अनिवार्य था। आज के दौर में, मीडिया पर हावी ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ के शोर के नीचे, संयम तथा ज़िम्मेदारी के बुनियादी सिद्धान्त, दब से गए हैं। ‘फेक न्यूज़’ एक बड़ा खतरा बन गई है जिसे फैलाने वाले खुद को पत्रकार बताते हैं और इस गरिमामय पेशे को कलंकित करते हैं।

11. टेक्नॉलॉजी ने पत्रकारिता के एक नई किस्म को जन्म दिया है जो परंपरागत पत्रकारिता से बिलकुल भिन्न है। इस बदलाव से तथ्य और विचार तथा विश्वसनीयता और प्रामाणिकता से जुड़े पुराने वाद-विवाद को फिर से ताजा कर दिया है। आज जरूरत निष्पक्षता की है ताकि पत्रकार हर प्रकार के तथ्यों को प्रस्तुत करें और तस्वीर का हर पहलू सामने रखें। तथ्यों के प्रति निष्ठा, सत्य को जानने का प्रयास और अपनी दृष्टि एकदम साफ व तीक्ष्ण रखना अनिवार्य है।

12. मुझे पता है कि पत्रकारों को अपने कर्तव्य का निर्वाह करने में कई तरह की भूमिकाएं निभानी होती हैं। आजकल वे प्रायः, खोजी पत्रकार, अभियोजक और न्यायाधीश तीनों की भूमिकाएं अकेले ही निभाने लगते हैं। सत्य तक पहुंचने के लिए एक ही समय पर इतनी अधिक भूमिकाएं निभाने के लिए पत्रकारों में प्रचुर आंतरिक शक्ति और असाधारण जुनून की जरूरत होती है। उनकी बहुआयामी क्षमता प्रशंसनीय है। लेकिन इससे जुड़ा मेरा एक प्रश्न है कि अधिकारों के इतने व्यापक प्रयोग के साथ—साथ सच्ची जवाबदेही भी होती है क्या?

13. एक क्षण के लिए विचार करें कि यदि गोयनका जी के समक्ष ‘पेड न्यूज़’ तथा ‘फेक न्यूज़’ से उत्पन्न विश्वसनीयता का संकट प्रस्तुत हुआ होता तो वे क्या करते? वे कभी भी स्थिति को यूं ही दिशाहीन न छोड़ देते और पूरे मीडिया समुदाय को सही रास्ते पर लाने के उपाय शुरू करते। निस्संदेह, पत्रकारिता एक चुनौती भरे दौर से गुजर रही है।

14. निश्चय ही, सत्य की खोज एक कठिन कार्य है। यह कहने में तो आसान है, लेकिन करने में मुश्किल।लेकिन इस मार्ग पर चलना ही होगा। हमारे जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में, तथ्यों को उजागर करने और उनपर वाद-विवाद का स्वागत करने के प्रति गहरी आस्था रहती है। लोकतंत्र तभी सार्थक होता है जब नागरिक सूचना सम्पन्न होता है। इस दृष्टि से, उत्कृष्ट पत्रकारिता ही लोकतंत्र को पूर्ण सार्थकता प्रदान करती है।

15. यदि पत्रकारिता को प्रासंगिक बने रहना है, तो इसे अपने उद्देश्य के प्रति सचेत रहना ही होगा; ईमानदारी और निष्पक्षता की खोई जमीन फिर से हासिल करनी होगी। पत्रकारिता को चौबीसों घंटे नागरिकों के साथ अपने इस करार को मजबूत बनाए रखना होगा: यह झुकेगी नहीं; यह परिणामों की चिंता किए बिना सत्य के लिए हमेशा लड़ती रहेगी और यह भय या पक्षपात के बिना सत्य की खोज के लिए प्रतिबद्ध रहेगी।

16. इन उच्च आदर्शों की पृष्ठभूमि में, यह एक कठिन चुनौती है कि पत्रकारिता अच्छीभी बनी रहे और लाभदायक भी। मीडिया के एक वर्ग ने समाचार के नाम पर मनोरंजन प्रस्तुत करने का रास्ता अपनाया है। सामाजिक और आर्थिक असमानता को उजागर करने वाली खबरों की अनदेखी की जाती है और उनकी जगह पर महत्वहीन सामग्री प्रस्तुत की जाती है। अधिकाधिक लोगों को आकर्षित करने और रेटिंग बढ़ाने के लिए कुछ मीडिया प्रतिष्ठान वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की बजाय, तर्कहीन सामग्री पेश करते हैं। लेकिन मुझे विश्वास है कि अंततः गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता ही टिकेगी। ऐसी पत्रकारिता का उत्सव मनाने के लिए ही आज हम यहां एकत्र हुए हैं।

17. मैं एक बार फिर सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। मैं उनके संस्थानों को भी बधाई देता हूं जिन्होंने इन पत्रकारों को अभिव्यक्ति का मंच प्रदान किया। इन पुरस्कारों के जरिए उत्कृष्ट पत्रकारिता को प्रोत्साहन देने के लिए, मैं एक्सप्रेस समूह और निर्णायकमण्डल के सदस्यों को भी बधाई देता हूं। मैं उन युवा पत्रकारों को भी शुभकामनाएं देता हूं जिनके कार्य को भविष्य में इस मंच से सम्मानित किया जाएगा। उनके लिए और अन्य सभी पत्रकारों के लिए भी, इस पेशे से भी जुड़े उनके महानतम पूर्ववर्तियों में से एक— महात्मा गांधी की यह सलाह उनका प्रभावी मार्गदर्शन करेगी, ‘‘सत्य के लिए अपने आग्रह को न छोड़ें और उसी तरह विनय तथा मृदुता को भी न छोड़ें। मैं स्वयं एक पत्रकार हूं और वह भी एक प्रतिष्ठित पत्रकार। मेरा मानना है कि यह काम मुझे अच्छी तरह से आता है। इसलिए लेखकों और राजनीतिज्ञों से मैं कहता हूं कि अपनी कलम और वाणी को वश में रखें।शब्दों का कठोर नियंत्रण कीजिए, परंतु सत्य का नहीं। अपनी अभिव्यक्ति पर अंकुश रखें, लेकिन उस आंतरिक ज्योति पर नहीं जिसकी प्रखरता, संयम में वृद्धि के साथ-साथ, बढ़ती रहेगी।’’

18. राष्ट्रपिता के इन्हीं शब्दों के साथ मैं आप सबसे विदाई लेता हूं।

जय हिन्‍द!