जीसस एंड मैरी कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन
नई दिल्ली : 20.09.2017
जीसस एंड मैरी कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन के लिए आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए सम्मान और प्रसन्नता का विषय है। संस्थान ने नई दिल्ली में और हमारे देश की शिक्षा के हित में प्रभूत योगदान किया है। पांच दशक तक,इसने बालिकाओं को या कहूं कि युवतियों को इस प्रकार शिक्षित और तैयार किया है कि वे,अपने पर लादी गई सीमाओं को तोड़कर,अपनी क्षमताओं को साकार करने, समाज और अर्थव्यवस्था में योगदान करने तथा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए अग्रसर हो सकें।
राष्ट्र निर्माण के उद्यम में हम सभी शामिल हैं। यह कार्य केवल सरकार तक सीमित नहीं है। इसमें निजी और सार्वजनिक संस्थानों,धार्मिक और साधारण जनता तथा व्यक्ति के रूप में हर एक व्यक्ति चाहे वह कोई भी कार्य करता हो,के रूप में हर एक व्यक्ति चाहे वह कोई भी कार्य करता हो,की भागीदारी की जरूरत है। आखिरकार,इतनी विशाल और समृद्ध विविधता वाले देश में,राष्ट्र निर्माण की प्रकृति ही ऐसी है कि उसके लिए विविध प्रकार के कार्यों की जरूरत है।
यहां मैं कहना चाहता हूं कि ईसाई समुदाय,जिसका भारत में इतिहास 2000 वर्ष पुराना है और जिसने हमारी साझी संस्कृति में बहुत योगदान किया है,ने शिक्षा में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। आप जैसे मिशनरी संस्थानविद्वत्ता,समर्पित अध्यापन और शैक्षिक उत्कृष्टता के प्रतीक बन गए हैं।
यह उपयुक्त भी है। क्योंकि सभी धर्मों का सार यही है कि वे हमें निरंतर सीखने, विकास करने, आगे बढ़ने, ज्ञान प्राप्त करने, प्रज्ञा अर्जित करने और इस प्रकार एक बेहतर नागरिक बनने की शिक्षा देते हैं।
‘गोस्पेल अकॉर्डिंग टु जॉन‘के अध्याय 8, श्लोक12, में जीसस को यह कहते हुए दिखाया गया है-‘‘मैं दुनिया की रोशनी हूं,जो मेरा अनुकरण करेगा उसे अंधेरे में भटकना नहीं पड़ेगा बल्कि उसे जीवन की रोशनी हासिल होगी।’’
इसी प्रकार की भावना उपनिषद के एक स्मरणीय श्लोक में व्यक्त की गई है:
‘‘असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय’’
‘‘मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो
मुझे अंधेरे से प्रकाश की ओर ले चलो’’
ज्ञान के लिए और हमारे मन को जाग्रत करने के रूपक के तौर पर‘‘प्रकाश ’’का यह आह्वान, शिक्षा के पावन कार्य से जोड़ा जा सकता है। हमारी आस्था और अस्मिता चाहे जो हो,लेकिन शिक्षा का कार्य वास्तव में भगवद् कार्य है। और मैं,इस श्रेष्ठ कार्य को आगे बढ़ाने के लिए जीसस और मैरी कॉलेज से जुड़े जनों की प्रशंसा करता हूं।
शिक्षा का लक्ष्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं है। यह तो पहली सीढ़ी मात्र है। शिक्षा से प्राप्त ज्ञान का इस्तेमाल हमारे बीच मौजूद पिछड़े लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए करना उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। वास्तविक शिक्षित व्यक्ति वे नहीं है जो केवल उपाधियां एकत्रित करते हैं,बल्कि वे हैं जो हमारे समाज में से राष्ट्र निर्माता बनने के लिए इन उपाधियों और उनमें मौजूद विद्वत्ता का प्रयोग भी करते हों।
मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि शिक्षा का असली लक्ष्य है-अच्छा इन्सान बनाना। शिक्षा,न केवल राष्ट्र की बल्कि सम्पूर्ण मानवता की महान सेवा है। यदि आप सर्वश्रेष्ठ मानव हैं तो फिर आप चाहे किसी भी रूप में कार्य कर रहे हों,आप हमेशा अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठता पर ही विश्वास करेंगे। उदाहरण के लिए,यदि आप अध्यापक हैं तो आपको सर्वोत्तम अध्यापक बनना होगा। यदि आप प्रशासक हैं तो आपको सर्वोत्तम प्रशासक बनना होगा। यदि आप डॉक्टर हैं तो आपको सर्वोत्तम डॉक्टर बनना होगा।
हम जितना महसूस करते हैं,लड़कियों की शिक्षा उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। शिक्षित लड़की अर्थव्यवस्था में और कार्य स्थल पर अपना योगदान देती है। वह यह भी सुनिश्चित करती है कि उसके परिवार के अन्य बच्चे और जिस परिवार में उसका विवाह होता है,वह परिवार शिक्षित बने। लड़की की शिक्षा के माध्यम से अगली पीढ़ी दायित्वपूर्ण और शिक्षित बनती है। इस प्रकार,लड़कियों की शिक्षा का व्यापक सामाजिक प्रभाव महत्वपूर्ण है।
शिक्षा का कार्य,किसी कॉलेज या शैक्षिक संस्थान के अपने प्रिय मूल्यों और संस्कृति जिन्हें वह अपने विद्यार्थियों तक पहुंचाता है,पर निर्भर करता है। इस मामले में जीसस एंड मैरी कॉलेज दूसरों के लिए आदर्श है। यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि कॉलेज ने अपनी स्वर्ण जयंती के अवसर पर साझेदारी के लिए नजदीकी एनडीएमसी स्कूल को चुना है और स्कूल और इसके बच्चों के विकास को सुकर बनाने की पहल की है। समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाने का यह एक सराहनीय उदाहरण है। अन्य कॉलेज भी इसका अनुसरण कर सकते हैं।
मुझे बताया गया है कि जीसस एंड मैरी कॉलेज नियमित रक्तदान शिविर आयोजित करता है जिसमें स्टाफ सदस्य और विद्यार्थी उत्साह के साथ भाग लेते हैं। हाल ही में एक रक्तदान शिविर14 सितंबर को आयोजित किया गया था। बाहर लगी प्रदर्शनी में मैंने इस रक्तदान शिविर के फोटोग्राफ देखे हैं। उससे पहले के दिन अर्थात् 13 सितंबर को कॉलेज ने एक अंगदान शिविर आयोजित किया था जिसमें बहुत से विद्यार्थियों ने पंजीकरण करवाया। सहृदयता और सामाजिक दायित्व की इस भावना से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। ऐसे कार्यों से युवाओं में हमारा विश्वास दृढ़तर होता है।
भारत अनेक प्रकार के परिवर्तनों की प्रक्रिया से गुजर रहा है। हमारी सभ्यता बहुत प्राचीन है परन्तु हमारा देश युवा है। 21वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, हमारे पास दुनिया के किसी भी देश की तुलना में विशालतम युवा आबादी होगी। हमारे युवाओं की ऊर्जा को दिशा देकर देश को एक विकसित समाज बनाने के लिए इस ऊर्जा का इस्तेमाल करना जरूरी है। इस प्रयास में शिक्षा की भूमिका बुनियादी है और इसके लिए शिक्षा तक पहुंच की और शिक्षा की गुणवत्ता की-दोनों की ही आवश्यकता है।
हमारी अर्थव्यवस्था का स्वरूप और कार्यस्थल की वास्तविक अवधारणा भी बदल रही है। चौथी औद्योगिक क्रांति और डिजिटाइजेशन व रोबोट विज्ञान में उन्नति के प्रभाव से कुछ निश्चित प्रकार के रोजगार अप्रचलित हो जाएंगे,और बहुत से नए अवसर पैदा भी होंगे। हमारा समाज इन नाटकीय परिवर्तनों से कैसे निपटेगा,यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उच्च शिक्षा के हमारे अग्रणी संस्थान- जीसस एंड मैरी कॉलेज जैसे संस्थान-इस स्थिति के प्रति कैसी प्रतिक्रिया करेंगे।
हमें अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली का उन्नयन करना होगा और जितना संभव हो, इसे भविष्योन्मुखी बनाना होगा। हमारी शिक्षा अवसंरचना, पाठ्यचर्या और अध्यापन विधियों को 21वीं शताब्दी के अनुकूल तथा निरंतर बदलाव के अनुरूप पर्याप्त कुशल और गतिशील बनाना होगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के और एक सौ से ज्यादा विश्वविद्यालयों के कुलाध्यक्ष के तौर पर, मुझे इस जैसे मुद्दों की चिन्ता है। आने वाले दिनों में, मुझे शैक्षिक समुदाय के साथ ऐसे विषयों पर सार्थक परिचर्चा की प्रतीक्षा है।
मित्रो,
मैं समझता हूं कि जीसस एंड मैरी कॉलेज के लिए यह दोहरी खुशी और उत्सव का क्षण है। जहां एक ओर,कॉलेज अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है, वहीं दूसरी ओर ‘कोंग्रेगेशन ऑफ द रेलिजियस ऑफ जीसस एंड मैरी’, जिसने इस संस्थान और हमारे देश के तथा हमारे देश के साथ-साथ अन्यत्र भी बहुत से दूसरे संस्थानों की स्थापना की है और उनका संचालन करता है, अपने द्वि-शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है।
मुझे यह भी बताया गया है कि सिस्टर मोनिका जोसेफ,जो ननों की इस विश्व व्यवस्था की सुपीरियर जनरल हैं, न केवल भारत से हैं बल्कि इसी कॉलेज की स्नातक भी हैं। इस कारण से भी यह जयंती आप सभी के लिए विशेष जयंती बन गई है और मैं इसके लिए एक बार फिर आपको बधाई देता हूं। मेरी शुभकामनाएं हैं कि जीसस एंड मैरी कॉलेज आगामी50 वर्ष तक और उससे भी परे,अध्यापन व शिक्षण में, शैक्षिक उत्कृष्टता में और विद्वत्तापूर्ण उपलब्धियां प्राप्त करने में सफल हो।
ईश्वर की कृपा आप सभी पर बनी रहे!
जय हिंद