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दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा में महात्मा गांधी की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का सम्बोधन

चेन्नई : 21.02.2019

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1. நமது நாட்டில் எனக்குப்பிடித்த மாநிலங்களில் ஒன்றான தமிழ்நாட்டுக்கு மீண்டும் வருவதில் மிக்க மகிழ்ச்சி. மிக அழகிய தமிழ்மொழி, செம்மையான கலாச்சாரம், தொன்மையான வரலாறு, திறமையுடன் கடுமையாக உழைக்கும் மக்கள் ஆகிய சிறப்புகளைக்கொண்டது தமிழ்நாடு.

2. தேசத்தந்தை மகாத்மா காந்தி அவர்களால் நிறுவப்பட்ட தக்ஷிண பாரத ஹிந்தி பிரச்சார சபாவின் இந்த வளாகத்தில் உங்களின் நடுவில் இருப்பது எனக்கு மிகுந்த மகிழ்ச்சியை அளிக்கிறது. காந்திஜியின் சிலையை திறப்பதின் மூலம் நான் மிக்க பெருமிதம் கொள்கிறேன்.

देवियो और सज्जनो,

3. महात्मा गांधी उत्तर भारतीयों से हमेशा आग्रह किया करते थे कि वे हमेशा हमारे दक्षिणी राज्यों की भाषाएं और लिपियां सीखें। इसी भावना के साथ उन्होंने ‘दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा’ की स्थापना भी की। यह अत्यंत हर्ष की बात है कि इस प्रचार सभा ने हमारे दक्षिणी राज्यों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं। यह भवन इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 1946 में महात्मा गांधी ने यहां 10 दिन बिताए थे। यहां महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित कर, आपने राष्ट्रपिता के जीवन-मूल्यों का सम्मान किया है। इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं।

4. इस वर्ष दुनिया महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रही है। दुनिया भर के देशों की अपनी यात्राओं में, मैंने गांधीजी से जुड़े कई कार्यक्रमों में भाग लिया है। हर जगह मैंने उनके प्रति गहरा सम्मान का भाव महसूस किया है। सचमुच, गांधीजी का मान दुनिया भर में है।

5. दूसरे क्षेत्र या किसी अन्य राज्य की भाषा सीखना बहुत शिक्षाप्रद हो सकता है। यह ऐसी संस्कृति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जिससे हम परिचित भी हों और जो नई भी हो। दिल्ली में, मैंने उत्तर भारतीय स्कूली बच्चों को तमिल सीखते हुए भी देखा है। भिन्‍न-भिन्‍न राज्यों के बीच युग्मक कार्यक्रम से एक क्षेत्र की भाषा दूसरे क्षेत्र में लोकप्रिय हो रही है। इस तरह के कदमों से राष्ट्रीय सद्भाव मजबूत होता है।

6. हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, सुब्रमण्यम भारती की कविता ने न केवल तमिलनाडु के लोगों को बल्कि पूरे देश के लोगों को प्रेरित किया। उसी प्रकार, मानवीय गरिमा के हमारे सबसे महत्वपूर्ण पैरोकारों में से एक - पेरियार के मुक्तकारी विचार भी किसी भाषाई या भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नहीं थे। यह भी उल्‍लेखनीय है कि राष्ट्रपति भवन में मेरे दो पूर्ववर्ती, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, जो हमारे अंतिम गवर्नर-जनरल थे, और राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण, तमिलनाडु के ऐसे बहुभाषी बुद्धिजीवी थे, जिनके योगदान और विचार किसी एक भाषा या क्षेत्र से बंधे हुए नहीं थे।

7. अन्य राज्यों की भाषाओं को सीखने का एक अन्‍य व्यावहारिक लाभ भी है। हम एक ऐसे युग में रहे हैं जिसमें लगातार बढ़ रही भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के कारण काफी बड़े पैमाने पर आंतरिक प्रवास की स्थिति सामने आ रही है। देश के किसी एक हिस्से के युवा पुरुष और महिलाएं देश के किसी अन्य हिस्से में अध्ययन या काम कर रहे हैं और मूल्य संवर्धन कर रहे हैं। तमिल लोग उत्तर प्रदेशमें काम करते हैं, बिहारियों को तमिलनाडु में रोजगार मिल जाता है; हो सकता है कि मिजोरम की कोई प्रतिभाशाली युवा महिला केरल में पढ़ रही हो, और आंध्र प्रदेश का कोई युवक असम में अपना करियर बना रहा हो। ऐसे लाखों उदाहरण मौजूद हैं।ऐसे मामलों में, उस राज्य या क्षेत्र की भाषा जानना लाभप्रद ही हो सकता है। इससे उस व्यक्ति के जीवन-वृत्त की महत्‍ता बढ़ने के साथ-साथ हमारे देश भारत का भी मूल्य संवर्धन होता है।

देवियो और सज्जनो,

8. भारत की विभिन्न भाषाएँ हम सबको एक दूसरे से जोड़ती हैं। भाषाओं की विविधता हमारे देश की पहचान है और ताकत भी। प्राचीन काल से ही, तमिल भाषा ने पूरे देश की संस्कृति, साहित्य और चिन्तन को प्रभावित किया है। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती की देशप्रेम से भरी तमिल कविताओं ने पूरे देश में प्रेरणा का संचार किया था। उन्होंने हिन्दी भाषा के प्रचार के लिए भी कार्य किया था। जिस तरह तमिल भाषी महाकवि भारती ने हिन्दी भाषा के प्रचार को प्रोत्साहित किया उसी तरह गुजराती भाषी महात्मा गांधी ने भी हिन्दी भाषा के प्रसार को अपने रचनात्मक कार्यों में शामिल किया। इन राष्ट्र निर्माताओं ने पूरे देश को एकता के धागे में पिरोने के लिए भाषाओं का उपयोग किया।

9. अनेक भाषाएँ हमारे देश को समृद्ध बनाती हैं। इन भाषाओं में, हमारी संस्कृति की अनेक धाराएँ प्रवाहित होती हैं। इन सभी धाराओं के मिलने से हमारे देश की सामासिक संस्कृति का स्वरूप उभरता है। महात्मा गांधी ने निरंतर यह प्रयास किया था कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले भारतवासियों के बीच पारस्परिक संवाद बने और विचारों का आदान-प्रदान बढ़े। वे मानते थे कि ऐसा होने से देशवासियों के बीच घनिष्ठता बढ़ेगी। उन्होंने समझाया कि ऐसी घनिष्ठता को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले देशवासियों द्वारा एक दूसरे की भाषाओं को सीखना सहायक सिद्ध होगा। इसीलिए, उन्होंने न केवल ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ की स्थापना की अपितु इस बात पर भी ज़ोर दिया कि उत्तर भारत तथा देश के अन्य क्षेत्रों में, तमिल समेत सभी भारतीय भाषाओं की शिक्षा का प्रसार हो। गांधी जी की सोच पर आधारित ऐसे भाषा संबंधी प्रयासों को जारी रखना बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।

10. इन्हीं शब्दों के साथ, और इस विश्वास के साथ कि दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा अपनी महान विरासत को आगे ले जाएगी और साथ ही इसी तरह की अन्‍य संस्थाओं को हमारे देश के भिन्‍न-भिन्‍न हिस्सों में अन्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करेगी, मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिन्द!