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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के 17वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन

नई दिल्ली : 21.04.2018

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अद्य श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठस्य सप्तदश दीक्षांत समारोहे उपस्थित: सन् अति प्रसन्नताम् अनुभवामि।

1. मानद उपाधि से अलंकृत विद्वत्-गण, सभी पदक विजेताओं, उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों, शिक्षकों, अन्य सभी विद्यार्थियों तथा यहां उपस्थित अभिभावकों को मेरी बहुत-बहुत बधाई!

2. इस विद्यापीठ का नाम एक ऐसी महान विभूति से जुड़ा हुआ है जिनके लिए हमारे देशवासियों के हृदय में असाधारण सम्मान की भावना विद्यमान है। मुझे बताया गया है कि इस विद्यापीठ के संचालन हेतु ‘अखिल भारतीय संस्कृत-विद्यापीठ’ नाम से एक सोसाइटी गठित की गई थी जिसके संस्थापक अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे। उन्हीं की प्रेरणा और सक्रिय मार्ग-दर्शन से इस संस्थान का विकास तेजी से संभव हो पाया था। जैसा कि हम सभी ने कुछ देर पहले सुना कि उन्होंने इस विद्यापीठ की संकल्पना एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के रूप में की थी। वे इस विद्यापीठ को एक आदर्श संस्था के रूप में देखना चाहते थे। मुझे प्रसन्नता है कि विद्यापीठ द्वारा शास्त्री जी की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रयास किए जाते रहे हैं।

3. शास्त्री जी सादगी, त्याग और नैतिकता की जीती जागती तस्वीर थे। वे भारतीयता में रचे-बसे एक ऐसे राष्ट्र-नायक थे जिन्होंने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को चरितार्थ किया था। स्वयं शास्त्री जी द्वारा शुरू किए गए इस विद्यापीठ में पढ़ने वाले आप सभी विद्यार्थियों पर उन आदर्शों को अपने जीवन में ढालने की तथा उन्हें समाज में प्रसारित करने की विशेष जिम्मेदारी आ जाती है।

4. अच्छे मनुष्य का निर्माण करना शिक्षा की असली कसौटी है। यह आवश्यक है कि शिक्षा व्यवस्था मूल्य-केन्द्रित हो न कि केवल ज्ञान केन्द्रित। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है व्यक्ति का संवेदनशील और चरित्रवान होना। सुशिक्षित व्यक्ति वह है जिसमे परोपकार की भावना और लोक-हित के प्रति उत्साह होता है। इस विद्यापीठ में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि "विद्या किस लिए है”? इस प्रश्न का एक बहुत ही प्रचलित और प्रभावी उत्तर संस्कृत की परंपरा में दिया गया है। सा विद्या या विमुक्तये। विद्या मुक्ति प्रदान करने के लिए है। लालच,क्रोध और अहंकार जैसी प्रवृत्तियों से विद्या मुक्त करती है और व्यक्ति को सत्य की ओर ले जाती है। विद्या क्या देती है? इसका उत्तर दिया गया है, विद्या ददाति विनयम्। विद्या से विनम्रता प्राप्त होती है। विनम्रता से योग्यता बढ़ती है। योग्यता से सभी लक्ष्य सिद्ध होते हैं। नैतिक मूल्यों की यह धरोहर संस्कृत भाषा का अमूल्य योगदान है।

5. संस्कृत भाषा, साहित्य और विज्ञान की परंपरा हमारे देश के बौद्धिक विकास की गौरवशाली यात्रा का सबसे प्रभावशाली अध्याय है। कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा में भारत की आत्मा परिलक्षित होती है। संस्कृत भाषा अनेक भारतीय भाषाओं की जननी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संस्कृत भाषा में उपलब्ध ज्ञान को प्रसारित करना विश्व कल्याण के लिए बहुत प्रासंगिक है।

6. मुझे ज्ञात हुआ है कि इस विद्यापीठ में वेद-वेदांग के अध्ययन के संदर्भ में यजुर्वेद पर विशेष विस्तार के साथ ध्यान दिया जाता है। मैं शुक्ल-यजुर्वेद के आज तक प्रचलित और प्रासंगिक मंत्र के विषय में उल्लेख करना चाहूंगा जिसे शांति-प्रार्थना के नाम से भी जाना जाता है। ...... अन्तरिक्ष ग्वं शान्तिः, पृथिवी शान्तिः ...... वनस्पतय: शान्तिः विश्वे-देवा: शान्तिः ...... आदि-आदि यह प्रार्थना प्रकृति के समस्त अंगों में, तथा पूरे ब्रह्मांड में शांति की कामना व्यक्त करती है। समस्त पर्यावरण की शुद्धि और सर्वत्र शांति की यह प्रार्थना उसी भावना पर आधारित है जिसे हम पूरे विश्व को एक परिवार समझने वाली उक्ति‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ में देखते हैं। इन उदात्त भावनाओं और महान आदर्शों को संस्कृत भाषा ने सहेज कर रखा है। आज के विश्व को इन भावनाओं और आदर्शों की और भी अधिक जरूरत है। यह कहा जा सकता है कि संस्कृत भाषा में ज्ञान और विवेक की वह संजीवनी बूटी विद्यमान है जिसके बल पर भांति-भांति की विसंगतियों और संकटों से जूझती आज की दुनियां को बचाया जा सकता है और बेहतर बनाया जा सकता है।

7. ऐसा नहीं है कि संस्कृत भाषा में केवल अध्यात्म, दर्शन, भक्ति, कर्म-कांड और साहित्य की ही रचना हुई हो। वह ज्ञान-विज्ञान की भाषा भी रही है। आर्यभट, वराह मिहिर, भास्कर,चरक और सुश्रुत जैसे अनेक वैज्ञानिकों और गणितज्ञों के मूल्यवान ग्रन्थों की रचना संस्कृत में ही हुई थी।आज पूरे विश्व में योग शास्त्र की चर्चा हो रही है।प्रतिवर्ष इक्कीस जून को अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस मनाया जा रहा है। आयुर्वेद की लोकप्रियता भी निरंतर बढ़ रही है। यह सारा ज्ञान अपने मूल रूप में संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध है। आज के विद्वानों की शब्दावली में पाणिनि का व्याकरण बहुत ही व्यवस्थित और‘मेन्यू-ड्रिवेन’ माना जा रहा है। अनेक विद्वान यह मानते हैं कि नियम-बद्ध, सूत्र-बद्ध और तर्कपूर्ण व्याकरण पर आधारित संस्कृत भाषा एल्गोरिथम लिखने और मशीन लर्निंग पर काम करने, यहां तक कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के लिए भी सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है।

8. मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि इस विद्यापीठ में एक ‘आधुनिक विद्या-संकाय’ है जिसमें विद्यार्थी-गण अनेक आधुनिक विषयों के साथ-साथ पर्यावरण-विज्ञान और मानवाधिकार जैसे सम-सामयिक विषयों का अध्ययन भी कर रहे हैं। यह भी बहुत खुशी की बात है कि इस‘आधुनिक विज्ञान संकाय’ में कंप्यूटर-एप्लीकेशन्स की शिक्षा की व्यवस्था है। संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिक तकनीक का अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में विद्यापीठ द्वारा प्रदत्त इलेक्ट्रोनिक पी.जी. पाठ्यक्रम की सुविधा सराहनीय है। प्राचीन ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़ने का विद्यापीठ का यह प्रयास विद्यार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।

9. आज जिन प्रतिष्ठित विद्वानों को मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया है वे आप सभी विद्यार्थियों के लिए उत्कृष्टता का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। मैं चाहता हूँ कि आप सभी विद्यार्थी संस्कृत के ऐसे ज्ञाताओं के संपर्क में आएं और उनसे प्रेरणा प्राप्त करें जो विज्ञान अथवा अन्य क्षेत्रों में लब्ध-प्रतिष्ठ हैं। विद्यापीठ द्वारा ऐसे विद्वानों की सूची बनाई जा सकती है। एक उदाहरण आज‘वाचस्पति’उपाधि से सम्मानित डॉक्टर बिबेक देबरॉय जी का है। मूर्धन्य अर्थशास्त्री और सम-सामयिक मुद्दों पर अधिकार रखने वाले देबरॉय जी ने संस्कृत के ग्रंथ-रत्नों को अंग्रेजी अनुवादों के जरिए विश्व के सम्मुख प्रस्तुत किया है। मुझे बताया गया है कि उन्होने वेदों, उपनिषदों और पुराणों के संक्षिप्त अनुवादों के साथ-साथ ‘हरिवंश पुराण’ ‘महाभारत’ और ‘वाल्मीकि रामायण’ का संस्कृत से अंग्रेजी में वृहद अनुवाद किया है। देश की आर्थिक व्यवस्था के प्रबंधन को सर्वोच्च स्तर से योगदान देने के साथ-साथ, आजकल वे भागवत पुराण के सम्पूर्ण अनुवाद का कार्य भी कर रहे हैं।

10. आज ‘वाचस्पति’ उपाधि से सम्मानित डॉक्टर एच. आर. नागेंद्र जी ने‘स्पेस साइंस’ में विश्व-स्तर की विशेषज्ञता हासिल करने के बाद योग-विज्ञान में भी उसी स्तर की उत्कृष्टता प्राप्त की है और अनगिनत लोगों के जीवन में कल्याण-कारी परिवर्तन किया है।

11. आज महा-महोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित प्रोफेसर रामचन्द्र पांडे जी और प्रोफेसर गंगाधरन नायर जी ने संस्कृत भाषा के माध्यम से हमारे ज्ञान की परंपरा को समृद्ध किया है और इस विद्यापीठ के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है।

12. ‘श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ’ ने विगत लगभग 55 वर्षों के दौरान अध्ययन, अध्यापन, शोध एवं प्रकाशन की एक स्वस्थ परंपरा स्थापित की है। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, यह विद्यापीठ अपने महान संस्थापक की आशाओं के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करे, यही मेरी शुभकामना है। यहां के आप सभी विद्यार्थी-गण यशस्वी बनें, यह मेरा आशीर्वाद है।

जयतु संस्कृतम्

जयतु भारतम्

धन्‍यवाद

जय हिन्द!