Back

पूर्वोत्तर विकास शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

इम्फाल: 21.11.2017

Download PDF

1. मुझे पूर्वोत्तर विकास शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। भारत के राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के बाद इस क्षेत्र और मणिपुर राज्य की यह मेरी पहली यात्रा है और मुझे सचमुच खुशी है कि यह यात्रा इस अत्यंत महत्वपूर्ण समारोह के अवसर पर हो रही है।

2. मुझे विश्वास है कि इस शिखर सम्मेलन में पूर्वोत्तर के विकास के बारे में न केवल एक घरेलू,भारतीय परिप्रेक्ष्य में बल्कि पड़ोसी देशों के संदर्भ में भी बुद्धिमत्तापूर्ण और व्यवहार्य निर्णय लिए जाएंगे। पूर्वोत्तर का विकास, भारत के पड़ोसी देशों और ‘आसियान’ देशों के विकास के साथ जुड़ा हुआ है। अन्य क्षेत्रों के मैत्रीपूर्ण साझीदार देश भी पूर्वोत्तर की हमारी संकल्पना के अभिन्न अंग हैं और वे पूर्वोत्तर के विकास में भरपूर योगदान दे सकते हैं।

3. हमारे इतिहास के छोटे से दौर में,पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के बारे में यह गलत धारणा बनी रही है कि ये राज्य भारत के सीमान्त राज्य हैं। मैं जानबूझ कर‘‘इतिहास के छोटे से दौर में’’वाक्यांश का प्रयोग कर रहा हूं। कुल मिलाकर यदि आप सैकड़ों-हजारों वर्षों की सभ्यता पर विचार करें तो पूर्वोत्तर के ये राज्य,सीमान्त राज्य न होकर भारतीय कल्पना के केन्द्र में बसे रहे हैं। यदि आज दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया को अविच्छिन्न रूप से देखें, जैसा कि इतिहास में ज्यादातर देखा गया है,तो पूर्वोत्तर का क्षेत्र इसके बिल्कुल मध्य में स्थित है।

4. पूर्वोत्तर में अद्भुत सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल है। विश्व के कुछ ही क्षेत्रों में यह दृश्य दिखाई देगा जहां इतने छोटे से क्षेत्र में ऐसी सांस्कृतिक,जातीय और धार्मिक विविधता वाला ़खजाना मौजूद हो। यह विविधता हम सभी के लिए प्रेरणा का काम करती है। पूर्वोत्तर क्षेत्र,विश्व के कुछ प्राचीनतम स्वदेशी समुदायों का आवास है। यह हमारे आध्यात्मिक मूल स्थानों में से एक है। चाहे कामाख्या में‘देवी परंपरा’हो या तवांग या अन्यत्र बौद्ध धर्म हो, वे एक ऐसा पवित्र जुड़ाव तैयार करते हैं जो भारत को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ता है। ईसाई धर्म प्रचारकों ने यहां शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दिया है। मणिपुर और मिजोरम में एक लघु परन्तु फलता-फूलता यहूदी समुदाय भी है।

5. समृद्धि पूर्वोत्तर की स्वाभाविक नियति है;सरल शब्दों मेंकहूं तो यही उसकी सहज नियति है। इसकी भौगोलिक अवस्थिति इसे भारतीय उपमहाद्वीप और वर्तमान‘आसियान’देशों की विशाल अर्र्थव्यवस्थाओं से जोड़ने वाला भारत का प्राकृतिक प्रवेश द्वार बनाती है। हमें इस क्षमता का फायदा उठाना होगा। और इसी विचार से इस शिखर सम्मेलन को प्रेरित होना चाहिए।

6. संयोज्यता में तत्काल और तीव्र बढ़ोत्तरी पूर्वोत्तर के विकास हेतु भारत सरकार की कार्यनीति के केन्द्र में है। यहजल,थल और नभ मार्ग से संयोज्यता का एक बहु-विध कार्यक्रम है। इसमें,भारत के भीतर और भारत व इसके पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशियाई पड़ोसी देशों के बीच संयोज्यता के घटक शामिल हैं।

7. पिछले तीन वर्षों में, एक पुरानी मांग को पूरा करते हुए आखिरकार अरुणाचल प्रदेश में रेल लाइन पहुंच गई है। कुल90,000 करोड़ रुपये के सकल निवेश से पूर्वोत्तर में रेल संपर्क का व्यापक विकास कार्य जारी है। क्षेत्र में अभूतपूर्व गति से सड़क निर्माण हो रहा है। सीमावर्ती सड़कें,राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य सड़कें-सभी पर काम चल रहा है। जुलाई, 2014में बनाया गया ‘राष्ट्रीय राजमार्ग अवसंरचना विकास निगम’पूर्वोत्तर क्षेत्र पर विशेष ध्यान देते हुए कार्य कर रहा है। क्षेत्रकी लगभग100 सड़क परियोजनाओं पर यह निगम काम कर रहा है।

8. विशेषकर विशाल ‘ब्रह्मपुत्र’और ‘बराक’नदियों में अन्तर्देशीय जलमार्ग विकसित किए जाने से परिवहन लागत बचेगी और संयोज्यता में आसानी होगी। हवाई संपर्क पर भी बल दिया जा रहा है। अपेक्षाकृत छोटे शहरों और हवाई अड्डों पर आधारभूत ढांचे के विकास के साथ-साथ अधिक से अधिक उड़ानें शुरू किए जाने से पूर्वोत्तर में हवाई यातायात बढ़ गया है।

9. यदि पड़ोसी देशों की बात करें तो, ‘भारत-म्यांमार-थाइलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग’तथा ‘कलादान मल्टी मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट’जैसी पहल, हमारे पड़ोस के बहुत से देशों और पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है। ‘‘बांग्लादेश- भूटान-भारत-नेपाल (बीबीआईएन)’’तथा ‘‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक)’’मंचों पर तैयार की गई अनेक व्यापारिक और संयोज्यता परियोजनाएं पूर्वोत्तर से होकर गुजरने वाली हैं। मैं कहना चाहूंगा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य भारत की‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’के सच्चे वाहक हैं।

देवियो और सज्जनो

10. मार्च, 2017 में निगमित,‘पूर्वोत्तर पर्यटन विकास परिषद्’,सरकार और निजी क्षेत्र के भागीदारों के बीच साझेदारियां सृजित कर रही है। मुझे विश्वास है कि इनसे पूर्वोत्तर क्षेत्र न केवल भारत के बल्कि एशिया के प्रमुख पर्यटन गंतव्यों में से एक बन जाएगा। यह क्षेत्र इस उपलब्धि का हकदार भी है।

देवियो और सज्जनो

11. पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ संपर्क की भावना इस कक्ष में बैठे प्रत्येक व्यक्ति को इस क्षेत्र में हिस्सेदार बना देती है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम पूर्वोत्तर से हैं,भारत के किसी दूसरे हिस्से से हैं या संस्कृति और भूगोल, इतिहास और व्यापार के माध्यम से पूर्वोत्तर के साथ जुड़े हुए अन्य देशों से हैं। पूर्वोत्तर का विकास हम सभी का एक साझा उद्यम है।

12. इस शिखर सम्मेलन में न केवल मणिपुर और पूर्वोत्तर के राज्यों से बल्कि शेष भारत से और प्रमुख साझीदार देशों से भागीदारी प्रभावशाली मात्रा में देखते हुए,मैं बहुत आशान्वित हो गया हूं। मुझे उम्मीद है कि इस शिखर सम्मेलन में सरकारी अधिकारियों,कारोबारियों और अन्य प्रतिनिधियों के बीच विचार-विमर्श से सफल परिणाम सामने आएंगे और उनसे विशिष्ट परियोजनाएं और निष्कर्ष तैयार किए जा सकेंगे।

13. निष्कर्ष रूप में, मैं एक बार फिर जोर देकर कहना चाहता हूं कि पूर्वोत्तर का विकास भारत के विकास तथा भारत-आसियान साझेदारी का सच्चा पैमाना है। अवसर हमारे सामने उपस्थित है। आइए इससे लाभ उठाएं।


धन्यवाद

जय हिन्द !