हवाना विश्वविद्यालय में भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का संबोधन
हवाना : 22.06.2018
1. मुझे ‘इंडिया एंड ग्लोबल साउथ’ विषय पर आपके साथ अपने विचार साझा करने के लिए हवाना विश्वविद्यालय आकर प्रसन्नता हुई है। मैंने इस विषय का चयन इसलिए किया है क्योंकि यह विषय क्यूबाई और भारतीय विदेश नीति दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।और बहुपक्षीय संबंधों के इस क्षेत्र में हमने भारत-क्यूबा घनिष्ठ सहयोग का वास्तविक और सुदृढ़ प्रभाव देखा है, जिसमें दोनों देश दक्षिण-दक्षिण सहयोग को सशक्त बनाने और ‘ग्लोबल साउथ’अथवा विकासशील देशों की आवाज मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। विकासशील देशों की एकजुटता क्यूबा के महान नेता और राजनीतिज्ञ फिदेल कास्त्रो तथा क्यूबा आंदोलन की अंतरराष्ट्रीय संकल्पना के मूल में है। इस मायने में आज का मेरा यह व्याख्यान, विश्व को विकासशील दुनिया के नागरिकों के लिए बेहतर स्थान बनाने में फिदेल कास्त्रो के योगदान और संकल्पना के प्रति श्रद्धांजलि है।
2. प्यारे विद्यार्थियो,1728 में स्थापित ज्ञान का यह मंदिर अमेरिका के प्राचीनतम संस्थानों में से एक है। आप सौभाग्यशाली हैं कि आप इस विख्यात परिसर का हिस्सा हैं। जहां से मैं बोल रहा हूं, वहां से वह स्थान ज्यादा दूर नहीं है, जहां इस विश्वविद्यालय के कानून के युवा विद्यार्थी रहे फिदेल कास्त्रो ने क्यूबाईक्रांति के नेतृत्व की दिशा में बढ़ते हुए बहुतसे ऊर्जस्वी भाषण दिए थे।
3. भारत में हमें हम आपके देश के प्रति और आपकी बहुत सी उपलब्धियों के प्रति गहरा सम्मान है। हमारी सद्भावना और मैत्री उन लोगों के लिए दिशा निर्देशक शक्ति रही है, जो यह मानते हैं कि तीसरी दुनिया जिसे अब 'वैश्विक दक्षिण' कहा जाता है, के लोगों को विश्व व्यवस्था में स्वयं के लिए और अधिक सार्थक स्थान बनाने के लिए एकजुट हो जाना चाहिए।
4. कल मुझे सैंटियागो दे क्यूबा में आपके महान नेता फिदेल कास्त्रो के प्रति अपना सम्मान अर्पित करने का सम्मान और सौभाग्य प्राप्त हुआ है। क्यूबा की मेरी यात्रा की शुरुआत इससे ज्यादा महत्वपूर्ण घटना से नहीं हो सकती थी। वे भारत के एक महान मित्र थे; उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर विकासशील देशों की आवाज को सम्मान और ताकत प्रदान की थी। उनका नेतृत्व और आत्म-गौरवविश्व भर के करोड़ों लोगों को प्रेरित करते रहेंगे। क्यूबा के वर्तमान युवाओं के रूप में आप उनकी चिरस्थायी विरासत के गौरवान्वित उत्तराधिकारी हैं।‘अल कमांदेन्ते’के बारे में बोलने परमेरी यादें मुझे क्यूबाई क्रांति के विजयदिवसों कीऔरले जाती हैं। इस दौर में,नव-स्वतंत्र विकासशील देश राष्ट्रों के बीच अपना स्थान बनाने का प्रयास कर रहे थे।1955 का बांडुंग सम्मेलन शायद विकासशील देशों की पहली सामूहिक आवाज़ थी जिसमें यह मांग की गई थी कि उनकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए। इसी सम्मेलन से गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी और संयुक्त राष्ट्र में‘जी77’समूह का गठन हुआ। इसी एकजुटता से ही दक्षिण-दक्षिण सहयोग का जन्म हुआ जो आज तक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों के बीच विकास साझेदारी की आधार-भूमि बना हुआ है।
5. मुझे आज हवाना में आपके राष्ट्रीय नायक होजे मार्टी और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। इन दोनों महापुरुषों ने हमें आजादी दिलाने में सहायता की। दोनों ही जोरदार समर्थक थे कि राष्ट्र और लोग अपने भविष्य, अपने अधिकार और दायित्व अपने हाथ में लें। हम भली भांति देख रहे हैं कि आज ये सिद्धांत विकासशील देशों की राजनीति और एकजुटता को ताकत प्रदान कर रहे हैं।विकासशील देशों के बीच सहयोग की भावना ने हमारा अच्छा साथ निभाया है। विकासशील देशों के बीच आपसी सम्मान और एकजुटता इसकी आधार-भूमि है। विकासशील देशों के बीच परस्पर सहयोग की सफलता से हमारे साझीदार विकसित देशों को यह गौर करने के लिए प्रेरित होना चाहिए कि वे भी कितने अच्छे ढंग से इन तौर-तरीकों का उपयोग कर सकते हैं। 2019 में ब्यूनस आयर्स में दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर दूसरे उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन करने का संयुक्त राष्ट्र का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है।
6. प्यारे विद्यार्थियो, भारत-क्यूबा संबंध हमारे कूटनीतिक रिश्तो की स्थापना के बाद से सुदृढ़ और घनिष्ठ रहे हैं। हमारे द्विपक्षी संबंधों को आगे बढ़ाने के बारे में, राष्ट्रपति दियाज कनेल के साथ आज मेरी विस्तृत बातचीत हुई है।हमने अपनी बहुपक्षीय साझेदारी पर भी व्यापक विचार किया। क्यूबा और भारत दोनों के लिए विकास साझेदारी हमारे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूल में रही है। क्यूबा के विख्यात चिकित्सा मिशनों और डॉक्टरों ने विकासशील दुनिया के करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाया है। क्यूबा द्वारा अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के देशों को हजारों वार्षिक चिकित्सा छात्रवृत्तियां प्रदान की जाती हैं, जो विश्व में अपनी तरह का अद्वितीय कार्य है। क्यूबा का प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रम'यो, सी पूयदो'दुनिया के सुदूरतम स्थानों तक में कामयाब रहा है।
7. विकासशील देशों के हमारे मित्रों के प्रति एकजुटता में, भारत विकासशील देशों में प्रशिक्षण प्रदान करने और क्षमता निर्माण में अग्रणी रहा है।हमारा व्यापक दृष्टिकोण कौशल प्रदान करने, तकनीकी क्षमता का निर्माण करने, रियायती वित्त-पोषण प्रदान करने तथा बाजार तक वरीयतापूर्ण पहुंच उपलब्ध करवाने का रहा है। हमने अपनी आजादी के तुरंत बाद 1949 में 70 छात्रवृत्तियों के साथ यह कार्य गंभीरता से करना शुरू किया। आज अपने आनुषंगिक कार्यक्रमों के साथ, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग मंच 160 से ज्यादा देशों के लाभार्थियों को हर वर्ष 10000 छात्रवृत्तियां उपलब्ध करा रहा है। मुझे खुशी है कि हमारे क्यूबाई मित्रों को भी इसका लाभ प्राप्त हुआ है।अफ्रीका के प्रति हमारी वचनबद्धता गहरी और स्थायी है। हमने अफ्रीका के अपने मित्र देशों अनुरोध और प्राथमिकता के अनुसार, वहां की विकास परियोजनाओं को वित्तीय सहायता के रूप में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया है। इसमें से 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के अंतर्गत शामिल परियोजनाओं के लिए निर्धारित किया गया है।
8. प्यारे विद्यार्थियो, भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अपनी विकास सहयोग कार्यनीति के केंद्र मेंस्थान दिया है। हाल ही में, मैंने मेडागास्कर में हमारे सहयोग से निर्मित‘सेंटर फोर जिओ-इन्फॉर्मेटिक्स एप्लीकेशन इन रूरल डेवलपमेंट सेंटर’का उद्घाटन किया है। यह केन्द्र इसद्वीपीयराष्ट्र में कृषि को बढ़ाने की दृष्टि से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी केफायदे पहुंचाएगा। भारत के उत्कृष्ट केन्द्रों के साथ अफ्रीका के 50 देशों को जोड़ने वाला उपग्रह आधारित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मंच, ‘पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क’बड़ी संख्या में इस महाद्वीप के लोगों को दूर-शिक्षा और दूर- चिकित्सा के लाभ पहुंचा रहा है। हमने बदलते हुए प्रौद्योगिकी परिदृश्यमें बहुत तेजी सेअपनी कार्यनीति मेंपरिवर्तन किया है। हमने उसके अनुसार ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वर्चुअल रियलिटी, रोबोटिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और नैनो- टेक्नोलॉजी पर कार्यक्रम शुरू किए हैं। इससे विकासशील देशों में विकास की तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है।
9. हाल के वर्षों में, हमने भारत में अनेकनई पहल शुरू की हैं। हमारा आधार कार्यक्रम जो विश्व का विशालतम विशिष्ट पहचान कार्यक्रम है, विकास में एक प्रमुख सहायकतंत्र बन गया है। हमारी वित्तीय समावेशन परियोजना,‘जन धन योजना’से हम पिछले तीन वर्षों में उन लोगों के 316 मिलियन बैंक खाते खोलने में सफल रहे हैं जिनकी पहुंच बैंकिंग सेवाओं तक नहीं थी। हमारे सूक्ष्म ऋण कार्यक्रम,‘मुद्रा’के अंतर्गत हमने 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा के 128 मिलियन ऋण प्रदान किए हैं, इनमें 74 प्रतिशत हिस्सा महिला लाभार्थियों का है। जन धन- आधार-मोबाइल टेलीफोनी के रूप में तीन सशक्त तंत्रों के माध्यम से जन सेवाओं का वितरण कुशल और पारदर्शी ढंग से होने लगा है। हम अपने साथी विकासशील देशों के साथ अपने विकास अनुभव साझा करने के लिए तैयार हैं।
10. प्यारे विद्यार्थियो, विकास साझेदारी से विकासशील देशों के हित सुरक्षित होते हैं लेकिन ऐसा आंशिक रूप से ही होता है। हमें वैश्विक शासन ढांचे के अंतर्गत विकासशील देशों की और बड़ी भूमिका तय करने के मामले में एकजुट होकर कार्य करना होगा। इस संदर्भ में, हमें सुरक्षा परिषद् सहित संयुक्त राष्ट्र में सुधार के और प्रयास करने चाहिए। इसी प्रकार ब्रेटन वुड्स इन्स्टीट्यूशन को अपनी निर्णय प्रक्रिया में विकासशील देशों के बढ़ते कद को ध्यान में रखना चाहिए। हमारी सुधार कार्यसूची पर आगे बढ़ने के साथ-साथ हमें बहुपक्षवाद को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का विरोध करना चाहिए। नियम आधारित वैश्विक व्यापार व्यवस्था का संरक्षण विकासशील देशों के हितों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है। विश्व व्यापार संगठन के दोहा वार्ता चक्र में,खाद्य सुरक्षा और आजीविका के मुद्दों को सबसे अधिक प्राथमिकता दिया जाना जरूरी है।
11. वैश्वीकरण से करोड़ों लोग गरीबी से ऊपर उठ गए होंगे परंतु विकासशील देशों की अपूर्ण आवश्यकताएं अभी भी जस की तस हैं। इसलिए वैश्विक विकास विमर्श में निर्धनता उन्मूलन पर केंद्रित विकास कार्यसूची पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। हमें जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और विकास जरूरतों को पूरा करने में विकासशील देशों की मदद के लिए वित्त और प्रौद्योगिकी की बेहतर उपलब्धता पर भी बल देना होगा।
12. प्यारे विद्यार्थियो, अब तक विकासशील देशों के भीतर और उनके साथ हमारा परस्पर संबंध सैद्धांतिक रूप सेदो रास्तों पर चलता रहा है। पहला, लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए आपस में विशेषज्ञता और संसाधनों का आदान-प्रदान और दूसरा, वैश्विक शासन में विकासशील देशों की वृहत्तर भूमिका तलाश करना। यह हमारी प्रमुख कार्य नीति बनी रहेगी। परंतु हमें दुनिया में तेजी से आ रहे बदलावों का भी ध्यान रखना होगा। भू-राजनीतिक परिवर्तन बहुपक्षवाद और बहुध्रुवीयता को चुनौती दे रहे हैं। हमें दोनों की रक्षा करनी है। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर स्पेस और ऑटोमेशन द्वारा संचालित चौथी औद्योगिक क्रांति हमारे समक्ष चुनौतियां और अवसर दोनों पेश कर रही है। विकासशील देशों को इसमें बढ़त बनानी चाहिए और यह गौर करना चाहिए कि ये बदलाव उनकी विकास प्रक्रिया को तेज करने में किस प्रकार से मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, सौर ऊर्जा तथा पारंपरिक ज्ञान से समृद्ध विकासशील देशों के पास अपनी विकास जरूरतों को पूरा करने के लिए इनके इस्तेमालका एक संकेंद्रित नजरिया होना चाहिए।
13. देवियो और सज्जनो, विकासशील देशों ने 1960 के दशक के बाद से एक लंबी यात्रा तय की है। आज यह समूह और अधिक मजबूत और विशालतर बन गया है। यह बात सही है कि यह उन देशों का एक विविधतापूर्ण समूह है जो विकास के अलग-अलग पायदान पर हैं। परंतु यह महत्वपूर्ण है कि समूह की एकता बनी रहे। हम इसी तरीके से बहुपक्षवाद को मजबूत कर सकते हैं तथा सभी के विकास के अधिकार को बढ़ावा दे सकते हैं। जैसा कि होजे मार्टी ने कहा था,‘किसी गहरी गुफा सेआने वाला कोई औचित्वपूर्ण सिद्धांत, किसी सेना से ज्यादा शक्तिशाली होता है।‘विकासशील देशों के तर्क वास्तव में पुख्ता और मजबूत हैं।’भारत और क्यूबा विकासशील देशों के हितों की रक्षा में आगे रहे हैं। आइए एकजुट होकर आगे बढ़ते रहें। मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।