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भारतीय समुदाय के स्वागत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

तोक्यो : 22.10.2019

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1. आपसे मिलकर मुझे हर्ष का अनुभव हो रहाहै। गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए आपको धन्यवाद। मैं भारत में रहने वाले आपके परिवार और मित्रों की ओर से आपके लिए शुभकामनाएं लेकर आया हूं।

2. मैं जापान के नये सम्राट के राज्याभिषेक समारोह में भाग लेने यहां आया हूं। आज इस राजसी समारोह में सम्मिलित होकर मैंने सम्राट को भारतवासियों और जापान में रहने वाले भारतीय समुदाय की ओर से शुभकामनाएं संप्रेषित कीं। जापान के राजघराने के भारत के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। वे हमारी मैत्री को बहुत महत्व देतेहैं। राष्ट्र के रूप में हमने भी इन मधुर और घनिष्ठ संबंधों को बनाए रखने के सर्वोत्तम प्रयास किये हैं। 1990 में जब सम्राट अकिहितो का राज्याभिषेक हुआ था, तो मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन नेउस समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।

3. पिछले कुछ वर्षों के दौरान विदेशोंमें भारत की सक्रियता का स्वरूप बहुत बदल गया है। अपनी नई रीति-नीति के अंतर्गत हम भारतवंशियों को अपनी गतिविधियों और संपर्क के केन्द्र में ले आए हैं। अपनी विदेश यात्राओं के दौरान, विदेशों में रहने वाले भाइयों-बहनों से मिलने को मैंने प्राथमिकता दी है। यह मेरे लिए विशिष्ट अनुभव रहा है और मुझे वाकई बहुत खुशी महसूस होती है कि मुझे उनसे मुलाक़ात का अवसर मिला।

4. जापान की इस यात्रा से पहले, मैंने फिलीपींस की राजकीय यात्रा सम्पन्न की है। सरकारी बैठकों के अलावा मुझे वहां भारतीय समुदाय के लोगों से मिलने और महात्मा गांधी की आवक्ष प्रतिमा के अनावरण का सुअवसर प्राप्त हुआ। जैसा कि आप सब जानते ही हैं, इस वर्ष हम विश्व भर में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनारहे हैं। आपने भी, यहां जापान में, गांधी जी के जीवन और त्याग का पुण्य स्मरण किया। यह वर्ष हमारे लिए इसलिए भी विशेष है क्योंकि गुरु नानकदेव जी का 550वां प्रकाश पर्व भी इसी साल मनाया जा रहा है। इस अवसर पर मैं आप सबको, विशेष रूप से सिख बहनों-भाइयों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं।

5. जापान में भारतीय समुदायकाफी बड़ा है और देश भर में फैला हुआ है। आपके कठोर परिश्रम और सफलताओं से आप सबकी प्रतिष्ठा बढ़ी है और भारत को भी सराहना प्राप्त हुई है। आपमें से कुछ लोग दशकों से यहां रह रहे हैं जबकि कुछ अन्य लोग हाल ही में यहां आएहैं। लेकिन अधिक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि आप एक समुदाय के रूप में बड़े उद्देश्यपूर्ण तरीके से सुसंबद्ध और एकजुट हैं। मुझे प्रसन्नता है कि घर से दूर रहकर भी आपने अपनी संस्कृति और अपने पारिवारिक जीवन—मूल्यों को संजोए रखा है। मुझे बताया गया है कि आपने अनेक सांस्कृतिक संघ और संगठन गठित किये हैं। इससे आपको अपने उत्सव मनाने और परम्पराओं के पालन का तथा आपके बच्चों को अपने देश की भाषा सीखने और भारत के साथ अपना तादात्म्य बढ़ाने का अवसर भी मिला है।

6. मुझे बताया गया है कि जापानी लोग उदार हृदय होते हैं और उससे भी बढ़कर,मित्रता का निर्वाह करने वाले होते हैं। उनके साथ आपका सामाजिक और सांस्कृतिक मेल—मिलाप निर्बाधरहा होगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच सदियों से वार्ता और संवाद होता रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि जब आप यहां रथयात्रा का आयोजन करते होंगे तो आपके जापानी मित्रों को ओमीकोशी की और जब गरबा करते होंगे तो उन्हें अपने ओदोरी उत्सवों की याद आती होगी।

7. जापान के साथ हमारे सांस्कृतिक संबंध निश्चय ही गहन और ऐतिहासिक हैं। बौद्ध धर्म से लेकर हिन्दू धर्म तक और उससे भी आगे हमारे बीच आध्यात्मिक और धार्मिक संपर्क सूत्र विद्यमान हैं। ये संपर्क इतने स्पष्ट और गहरे हैंकि अगर मैं 752 ईस्वी में बौद्ध भिक्षु बोधिसेन की नारा मंदिर यात्रा का उल्लेख न करूं तो यह भारी भूल होगी, क्योंकि इस यात्रा से इस पवित्र भूमि पर बौद्ध धर्म की जड़ें सुदृढ़ हुई थीं। इन्हीं संबंधों को और प्रगाढ़ करने के लिए मैंने कल तोक्यो के सुकिजि होंगवांजी बौद्ध मंदिर में बोधि वृक्ष का पौधा लगाया। मैंने गोटेम्बा शांति पगोडा से आए एक शिष्टमंडल से भी भेंट की। सुप्रसिद्ध फूजी गुरुजी द्वारा स्थापित इस संगठन ने गांधी जन्मशताब्दी वर्ष—1969 में राजगीर में विश्व शांति स्तूप का निर्माण कराया था। बिहार के राज्यपाल के रूप में महात्मा बुद्ध का आशीर्वाद लेने के लिए मैं प्रायः राजगीर के स्तूप का दर्शन करने जाया करता था। आज से कुछ ही दिन बाद, 25 अक्टूबर को स्तूप के 50वें स्थापना समारोह में भाग लेने के लिए मैं पुनः राजगीर जाऊंगा।

8. भारत से, धर्म और आध्यात्मिकता के साथ ही, भारतीय कला और भाषा का प्रभाव भी जापान में आया। भारत—जापान बौद्धिक आदान-प्रदान प्राचीन काल से ही निरंतर जारी है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कई बार जापान की यात्रा की थी। स्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हमारी पारस्परिक समझ को और सुदृढ़ किया। कहने की आवश्यकता नहीं कि जापान में भारत संबंधी अध्ययन और भारत में जापानी विद्वत्ताकी बहुत मांग रहती है। 2019 में प्रोफेसर हिरोशी मारुई को उत्कृष्ट भारतविद् पुरस्कार प्रदान करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।

9. जापान के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों को आज हमारे सबसे महत्वपूर्ण संबंधों में गिना जाता है। हमारे सामरिक, राजनीतिक, सुरक्षा संबंध और आर्थिक सहयोग ने नई ऊंचाइयों को स्पर्श किया है। हमारी अर्थव्यवस्था में आमूल परिवर्तन लाने में जापान प्रमुख सहभागी है। मुंबई से अहमदाबाद तक हाई स्पीड रेल परियोजना में जापान की साझेदारी दोनों देशों के गहन पारस्परिक विश्वास और मित्रता की प्रतीक है। टेक्नॉलॉजी संबंधी सहयोग सुदृढ़ करने के लिए हमने भारत—जापान डिजिटल साझेदारी स्थापित की है। इससे आपके उच्चस्तरीय डिजिटल कौशल और क्षमता का बेहतर आकलन और मूल्यांकन हो सकेगा, विशेषकर आज के उस संदर्भ में जहां दोनों देश चौथी औद्योगिक क्रांति के माध्यमों की खोज करने और उसे आगे बढ़ाने में एक—दूसरे की सहायता कर रहे हैं।

10. भारत और जापान प्राचीन सभ्यताओं वाले देश हैं। दोनों ही देशों को प्राचीन विज्ञान और परम्पराओं की गहरी समझ है। जापान में आरोग्यमय जीवन के लिए आयुर्वेद और योग को बढ़ावा देने में संलग्न संगठनों के प्रयासों की मैं सराहना करता हूं। एक समुदाय के रूप में आपने इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आप हर साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी पूरे मनोयोग और उत्साह से मनाते रहे हैं। भारत के इस ज्ञान और धरोहर का प्रसार करने में आपके सहयोग को लेकर हम आश्वस्त रहते हैं।

11. मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि जापान के लोगों के साथ अपने बहुआयामी सम्बन्धों में आप सबने खेल-कूद के संबंध को भी शामिल कर लिया है। क्रिकेट का खेल अब तोक्यो के मैदानों में पहुंच चुका है। कबड्डी का प्रसार भी उत्साहवर्धक है। मेरी जानकारी में यह लोकप्रिय भारतीय खेल यहां कई स्कूलों और कॉलेजों में खेला जाता है। एक काफी दिलचस्प और हमारे लिए बहुत खुशी कीबात यह है कि जापानी खिलाड़ी अब भारतीय कबड्डी लीग में खेलने लगे हैं। जिस तरह से आपने अपने जापानी मित्रों को कबड्डी और क्रिकेट खेलना सिखाया है, मुझे आशा है कि आप भी उसी तरह सूमो के खेल में अपना हाथ आजमाएंगे। मैं सुझाव देने में कहीं अति तो नहीं कर रहा हूं!

12. 125 से भी अधिक वर्ष पहले, स्वामी विवेकानंद शिकागो जाते हुए जापान आए थे। उन्होंने उस समय कहा था कि भारतीय युवाओं को इस स्वाभिमानी देश की यात्रा करनी चाहिए,यहां से सीख लेनी चाहिए और अपने विचार साझा करने चाहिए। उनके भविष्यदर्शी शब्द भारतीय और जापानी संस्थाओं और युवाओं के बीच भागीदारी बढ़ाने में आज हमारा पथप्रदर्शन कर रहे हैं।

13. भारत व्यापक परिवर्तन के मार्ग पर अग्रसर है। हमारी अर्थव्यवस्था में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। हम तेजी से नए इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास कर रहे हैं। डिजिटल अर्थव्यवस्था, नई टेक्नॉलॉजी, जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई और ज्ञान पर आधारित समाज के स्वरूप के निर्धारण में हम विश्व का नेतृत्व करने का प्रयास कर रहे हैं। अपनी प्रगति और समृद्धि में सहभागी बनाने की प्रक्रिया में भारत आपको अनगिनत अवसर प्रदान कर रहा है। हमारी परिकल्पनाओं और स्वप्न के अनुरूप नये भारत के निर्माण में हमें आपके सहयोग और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है - एक ऐसे भारत के निर्माण में जो लाखों घरों को प्रगति और समृद्धि से आलोकित करने के लिए वचनबद्ध है; जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए संवेदनशील है।

14. अपनी ओर से, हम आपकी आवश्यकताओं को पूरा करने और आपके साथ और अधिक दृढ़ता के साथ जुड़ने के लिए गंभीरतापूर्वक प्रतिबद्ध हैं। हम आपकी और अच्छी सेवा कर सकें, इसके लिए हमें आपस में नियमित संवाद बनाए रखना चाहिए। इस संदर्भ में, मुझे प्रसन्नता है कि हमने सोच-विचार करने और आपके साथ सहयोग करने के लिए ‘प्रवासी भारतीय परिचर्चा’ प्रारंभ की है। हमने आपसबके लिए भी कईडायस्पोराकार्यक्रम प्रारंभ किये हैं। हमने अपने ओ.सी.आई. कार्ड की प्रक्रिया और कांसुलर सेवाओं को सुचारु और सरल बनाया है। जहां तक जनसेवाएं प्रदान करने का सवाल है, हमारी कार्य-संस्कृति में आमूल परिवर्तन हुआ है। अब हमारे दूतावासों को निर्देश हैं कि आपके लिए वे चौबीसों घंटे उपलब्ध रहें तथा जरूरत के समय आपकी सहायता व सहयोग करें। यही कार्यकुशलता स्वदेश में भी दिखाई दे रही है। परिणामस्वरूप, हमारे देश में नये विश्वास और नयी ऊर्जा का संचार हुआ है। आशा और उत्साह से भरी हमारी यात्रा में सम्मिलित होने के लिए मैं आप सबको आमंत्रित करता हूं।

15. आप सबसे मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं आपकी सफलता, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना करता हूं। दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं भी मैं आप सबको पहले ही दे रहा हूं। आपसे विदा लेने से पहले मैं आप सबको हार्दिक निमंत्रण देता हूं कि अगली बार आप जब भी दिल्ली आएं तो राष्ट्रपति भवन भी पधारें। वह मेरा राजकीय निवास अवश्य है, लेकिन उस पर सभी भारतीयों का हक है। हम आपके स्वागत के लिए प्रतीक्षारत रहेंगे।

धन्यवाद!