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अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन के समापन सत्र पर भारत के राष्‍ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्‍द का संबोधन

नई दिल्‍ली : 23.02.2020

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1. भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करना मेरे लिए सचमुच सुखद अनुभव है।

2. एक लोकप्रिय धारणा है कि—'अंत भला तो सब भला’। लेकिन इस सम्मेलन का शुभारंभ भी भव्य हुआ था। मुझे बताया गया है कि सम्मेलन का उद्घाटन करते समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधि की सर्वोच्चता को रेखांकित किया और विकास संबंधी आवश्यकताओं एवं पर्यावरण के बीच नाजुक संतुलन को बनाए रखने में तथा सर्वमान्य निर्णयों के माध्यम से जटिल मसलों को सुलझाने में न्यायपालिका की भूमिका की सराहना की थी। मुझे इस बात की भी प्रसन्नता है कि सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय विधिशास्त्र को और अधिक समृद्ध करने के लिए महात्मा गांधी के नैतिकता व कर्तव्यनिष्ठा-परकदृष्टिकोण तथा अपेक्षाओं को प्रतिभागियों के साथ साझा किया गया। इस बात को रेखांकित किया गया कि जनसांख्यिकी और टेक्नॉलॉजी संबंधी घटनाक्रम और अधिकारों के बारे में जागरूकता से व्यापक प्रभाव डालने वाले परिवर्तन हो रहे हैं। मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के बीच समन्वय स्थापित करने में न्यायपालिका की भूमिका पर विभिन्न देशों में ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। इसी तरह, स्त्री—पुरुष समानता पर आधारित न्याय के विश्व भर में स्वीकृत मानदंडों पर भी चर्चा हुई जिसका उद्देश्य इस सम्मेलन में प्रस्तुत भिन्न-भिन्न न्यायिक प्रणालियों के व्यावहारिक अनुभवों के आलोक में आगे के रास्ते का पता लगाना है।

3. विश्व के भिन्न-भिन्न भागों का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक गणमान्य न्यायाधीश और विधिशास्त्री यहां उपस्थित हैं। सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में आपकी भागीदारी से निस्संदेह इस सम्मेलन में विचार—विमर्श का स्तर बहुत ऊंचा रहा होगा और न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से बदलते विश्व की समसामयिक समस्याओं के समाधान पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि पिछले दो दिनों में जो विचार—विमर्श हुआ है उसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विधिशास्त्र को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।

4. सम्मेलन का मुख्य विषय—‘न्यायपालिका और परिवर्तनशील विश्व’, समयानुकूल और उपयुक्त है। एक अर्थ में,केवल परिवर्तन ही स्थायी रहता है और विश्व सदैव परिवर्तनशील रहा है। परंतु हाल के वर्षों में विश्व बहुत तेजी से तथा अप्रत्याशित रूप से बदलता रहा है। इन नाटकीय परिवर्तनों के बीच न्यायपालिका की केन्द्रीय भूमिका होना तय है।

5. सम्मेलन के कार्यकारी सत्रों के लिए विषयों का चयन इससे अधिक उद्देश्यपूर्ण नहीं हो सकता था। स्त्री—पुरुष समानता पर आधारित न्याय,संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के विषय में समसामयिक दृष्टिकोण, परिवर्तनशील विश्व में संविधान की गतिशील विवेचना, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के बीच संतुलन और इंटरनेट युग में निजता के अधिकार का संरक्षण—ये ऐसे मुद्दे हैं जिनका प्रभाव विश्व समुदाय के प्रत्येक सदस्य पर पड़ रहा है। स्पष्ट रूप से परिभाषित इन पांच विषयों के दायरे में विश्व भर में न्यायपालिका के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों के सभी आयाम आ जाते हैं। वैश्विक एजेंडा में स्त्री—पुरुष समानता पर आधारित न्याय को उच्च प्राथमिकता मिलनी ही चाहिए। पिछले दशक के दौरान, संवैधानिक मूल्यों के संदर्भ में बढ़ते लोकप्रियतावाद पर एक बहस चलती रही है। परिणामस्वरूप इससे अनेक लोगों ने अपने मूल दस्तावेजों, अर्थात संविधानों पर नये नजरिए के साथ विचार किया है। इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी के विकास से डेटा और निजता से जुड़े नये प्रश्न उभर कर सामने आये हैं। अंत में, सतत विकास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण सरोकार के प्रति आज की तुलना में कहीं अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। आपने इन मुद्दों पर व्यापक विचार—विमर्श किया है और चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाए हैं।

6. मुझे यह देखकर हर्ष होता है कि भारत में न्यायपालिका इन विषयों के प्रति सजग रही है और उसने भारतीय संविधान की आधारभूत परिकल्पना के आलोक में इन पर विचार किया है। उदाहरण स्वरूप, स्त्री—पुरुष समानता के उदात लक्ष्य को प्राप्त करने में उच्चतम न्यायालय का दृष्टिकोण हमेशा पूर्व-क्रियाशील और प्रगतिशील रहा है। दो दशक पहले, कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करने से लेकर इसी महीने, सेना में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने के निर्देश देने तक, उच्चतम न्यायालय ने प्रगतिशील सामाजिक बदलाव को दिशा दी है। इसी संवेदनशीलता के साथ, उच्चतम न्यायालय ने, सदियों पुराने हमारे संस्कारों का ध्यान रखते हुए, जैव-विविधता और सतत विकास के उभरते प्रश्नों पर भी विचार किया है।

7. इस प्रक्रिया में, जिस तरह दूसरे देशों की न्यायिक प्रणालियों ने कई मामलों में उच्चतम न्यायालय का अनुसरण किया है, उसी तरह, उच्चतम न्यायालय ने, अन्य देशों के सर्वोच्च न्यायालयों के सर्वोत्तम तौर—तरीकों से सीख ली है। इस तरह के आदान—प्रदान का ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना से हार्दिक स्वागत किया जाना चाहिए। संस्कृत की हमारी इस प्राचीन सूक्ति का अर्थ है—सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है। इस प्रकार से, इसमें समूची मानवता के लिए संपूर्णतावादी दृष्टिकोण अपनाने की बात कही गई है।

8. जन-सामान्य के लिए न्याय प्रक्रिया को और अधिक सुगम बनाने की दिशा में अनेक क्रांतिकारी सुधार करने के लिए भी भारत के उच्चतम न्यायालय की प्रशंसा की जानी चाहिए। न्यायालय द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसलों से हमारे देश का विधिक और संवैधानिक ढांचा सुदृढ़ हुआ है। उच्चतम न्यायालय की ‘बेंच’ और ‘बार’, वैधानिक विषयों में अपनी विधि-विषयक विद्वत्ता और बौद्धिक विवेक के लिए जाने जाते हैं। इसने न्याय प्रणाली पर दुष्प्रभाव डालने वाली कमजोरियों का पता लगाने और उन्हें दूर करने में जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं वे किसी शांतिपूर्ण क्रांति से कम नहीं हैं। उदाहरण के लिए, वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली को लागू करने की दिशा में हाल में जो कदम उठाए गये हैं उनसे न्यायालय पर काम के बोझ में काफी हद तक कमी आने की संभावना है। लंबी मुक़दमेबाज़ी में पड़ने की बजाय मध्यस्थता और सुलह के माध्यम से विवादों के प्रभावी तरीके से सद्भावपूर्ण समाधान में मदद मिलेगी।

9. न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया में और शीघ्रता लाने के लिए हाल ही में भारतीय न्यायालयों ने कार्य-प्रणाली को नयी टेक्नॉलॉजी के अनुकूल ढालना शुरू कर दिया है तथा उनके द्वारा आर्टिफिशल इंटेलीजेंस की क्षमता पर भी विचार किया जा रहा है। महत्वपूर्ण मामलों में कार्यवाही का निर्विघ्नसंचालन सुनिश्चित करने के लिए इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी का उपयोग किया जा रहा है। प्रायः, वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए साक्ष्य रिकॉर्ड किये जाने लगे हैं। न्यायालयी गतिविधियों के निर्बाध संचालन में सहायता के लिए टेक्नॉलॉजी का उपयोग होने लगा है। मैंने गौर किया है कि उच्चतम न्यायालय, अदालती कार्रवाई को पेपरलैस बनाने केतरीकों के बारे में सक्रिय रूप से विचार कर रहा है। स्पष्ट है कि इससे मामलों की तेजी से सुनवाई होने और शीघ्रता से न्याय मिलने का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। मुझे विश्वास है कि इन नवाचारों से, समय के साथ, निचली अदालतों में भी इसी तरह के परिवर्तन शुरू किये जा सकेंगे जिससे अधिकाधिक लोगों को लाभ मिलेगा।

10. उच्चतर न्यायालयों के निर्णयों को क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा किए गए भगीरथ प्रयासों का भी उल्लेख मैं करना चाहूंगा। भारत की भाषायी विविधता को देखते हुए यह निश्चय ही एक असाधारण उपलब्धि है। इस समय उच्चतम न्यायालय के निर्णय नौ भारतीय भाषाओं में अनूदित कर जन सामान्य के लिए उपलब्ध कराये जा रहे हैं। मुझे विश्वास है कि समय के साथ—साथ इसका दायरा और विस्तृत होता जाएगा।

11. मुझे आशा है कि आप सभी, अनेक विचारों तथा उनमें से परिवर्तनकारी प्रभाव वाले विचारों के क्रियान्वयन के दृढ़ संकल्प के साथ, न्याय और विधिशास्त्र के अपने-अपने कर्तव्य स्थलों को लौटेंगे। मुझे विश्वास है कि सम्मेलन में हुए विचार—विमर्श से न केवल भारत में, बल्कि अन्य देशों में भी न्यायिक प्रणाली को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।

12. मुझे प्रसन्नता है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश ने मुझे ऐसी सुविज्ञ सभा में अपने विचार साझा करने का अवसर प्रदान किया। मैं उन्हें और उनके सहकर्मियों को इस अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन के आयोजन के लिए बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि इस आयोजन की सफलता को आगे ले जाते हुए यह सम्मेलन, विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में आयोजित किया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम बन जाएगा जिससे एक बेहतर विश्व के निर्माण में सहायता के लिए सर्वोत्तम विधिक तौर-तरीकों तथा विचारों को समेकित किया जा सकेगा।

13. मेरी शुभकामना है कि आप सब अपने प्रयासों में सफल हों।

जय हिन्‍द!