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भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अतिरिक्त भवन परिसर के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

नई दिल्ली : 17.07.2019

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1. आज आप सभी के बीच आकर मैं बहुत प्रसन्न हूं और मैं आप सभी का राष्ट्रपति भवन में स्वागत करता हूं। आप एक ऐसी सेवा और पेशे में शामिल हुए हैं जो हमारे पारिस्थितिकी संसाधनों और वनों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आप सभी ने भारतीय वन सेवा में शामिल होने के लिए कड़ी मेहनत की है और मैं आपकी सफलता पर आपके साथ-साथ आपके परिवारजनों को भी बधाई देता हूं।

2. आपकी सेवा अनूठी है क्योंकि आपका मूल कार्य-क्षेत्र जीवन की उत्पत्ति से जुड़ा है। आप एक ऐसी सेवा में शामिल हुए हैं जो प्रकृति, वनों और वन्य जीवन के वैज्ञानिक प्रबंधन में सबसे आगे रही है और इस सेवा की एक समृद्ध विरासत है।

3. हम भारतीयों का हमारे वनों से पुराना नाता है। हमारी सभ्यता को वनों से अपनी बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हुई है। हमारे लिए वन केवल संसाधन भर नहीं है, बल्कि ये हमारी सांस्‍कृतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक विरासत का हिस्सा हैं। फिर भी हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हम अपने वनों को उचित सुरक्षा और सम्मान पाते हैं तथा क्या हम इनकी उस प्रकार से देखभाल कर पाते हैं, जिसके ये हकदार हैं। यह सुरक्षा व देखभाल हमें वनों के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए और अपनी धरती सभी जीवधारियों के लिए प्रदान करनी चाहिए।

4. किसी राष्ट्र की शक्ति में योगदान देने वाले दो प्रमुख तत्व होते हैं- उसके प्राकृतिक संसाधन और मानव संसाधन। प्राकृतिक संसाधनों के मामले में, भारत दुनिया के शीर्ष विविधता परिपूर्ण देशों में शुमार है। इसके 10 जैव भौगोलिक क्षेत्र और 16 प्रकार के जलवायु वन प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों के एक व्यापक परिदृश्‍य का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत के जैविक संसाधन न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि अनमोल पारिस्थितिकीय लाभ भी प्रदान करते हैं।

5. आज, हम पर्यावरणीय क्षऱण, वन आवरण में हृास और सबसे बढ़कर ‘ग्‍लोबल वार्मिंग’द्वारा उत्‍पन्‍न भारी खतरों के बारे में पहले से कहीं अधिक जागरूक हैं। जिनके कारण जलवायु परिवर्तन की स्थिति पैदा हो रही है। लू तथा गर्मी बढ़ रही है, तापमान और समुद्री जल स्‍तर में वृद्धि, बाढ़, पिघलते ग्लेशियर, मौसम के बदलते मिजाज, प्रवाल भित्तियों का विघटन आदि घटनाएं घट रही हैं। ये घटनाएं पूरी मानव जाति के लिए गंभीर चुनौती के संकेत हैं। हमें तुरंत पूरी गंभीरता और दृढ़ता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। और इन चुनौतियों के समाधान में वनों की अनिवार्य भूमिका है।

6. इस महीने की शुरुआत में एक शोध पत्र ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, इसमें यह बताया गया है कि यदि वैश्विक वन क्षेत्र में एक तिहाई की वृद्धि कर दी है, तो उससे, औद्योगिक क्रांति के बाद से उत्सर्जित कार्बन के दो तिहाई हिस्से का शमन करने में सहायता मिल सकती है। हम यह भी जानते हैं कि अच्छे वन आच्छादन वाले जल भरण क्षेत्रों की मौजूदगी में संबंधित क्षेत्रों में सूखा नहीं पड़ता। आर्द्र भूमि, होने पर,चक्रवात और सुनामी से तटीय क्षेत्रों की रक्षा होती है, हमारे जल संसाधनों की भी रक्षा होती है और वनस्‍पतियों व जीव-जन्‍तुओं की संख्‍या बढ़ाने में सहायता मिलती है। घास के मैदानों के कारण पशुओं की प्रजातियों की विविधता बनाए रखने में सहायता मिलती है। इससे बाढ़ की रोकथाम होती है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा पशुधन के लिए ये मैदान महत्वपूर्ण होते हैं। पहाड़ी ढलानों पर वनों के होने से उस क्षेत्र की मृदा की रक्षा होती है, भूस्खलन और अचानक आने वाली बाढ़ को रोका जा सकता है।

7. भारत सरकार और राज्य सरकारें देश की वन संपदा की रक्षा और हरित क्षेत्र के विस्तार के लिए गहन प्रयास कर रही हैं। फिर भी, पारितंत्र को पहले जैसी अवस्था में वापस लाने और इसके संरक्षण की सफलता के लिए जन-जागरण आवश्यक है। हमारे देश के वनों में और उसके आस-पास जनजातियों सहित बड़ी संख्या में गरीब लोग रहते हैं। वे वनों से ही भोजन और चारे जैसी अपनी मूल-भूत जरूरतों को पूरा करते हैं। ये लोग सीधे-सादे और मेहनती होते हैं और बहुत बुद्धिमान भी होते हैं। वे अपनी परंपराओं और मान्यताओं के नाते वनों का सम्मान करते हैं। वनों की रक्षा के किसी भी उपाय में इन लोगों की बुनियादी जरूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए और उन्हें साझेदारों के रूप में इस कार्य में शामिल किया जाना चाहिए। वन्‍य जीवों के अवैध शिकार और वनों की अवैध कटाई के विरूद्ध ये समुदाय आपके लिए निगरानी और सूचना में अत्यधिक सहायक हो सकते हैं। आपको केवल उनका मार्गदर्शन करने और उनके वन अधिकारों तथा सुरक्षा के बारे में उन्‍हें आश्वस्त करने की आवश्यकता है।

8. हमने जो संयुक्त वन प्रबंधन मॉडल अपनाया है, उसमें वास्‍तव में, भागीदारी की भावना पर ही बल दिया गया है। इसमें वनों के प्रबंधन के लिए स्थानीय लोगों और समुदायों के साथ मिलकर काम करने की परिकल्पना की गई है। स्थानीय लोगों की असरदार भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए संरक्षण के प्रयासों के साथ आजीविका के अवसरों को जोड़ना महत्वपूर्ण है। आपके कार्यक्रमों को स्थानीय आबादी की आजीविका संबंधी आवश्यकताओं के साथ जोड़े जाने चाहिए और संसाधन आधार में भी सुधार करना चाहिए क्‍योंकि इस पर निरंतर खतरा बना हुआ है। एक बार जब लोग और समुदाय वन प्रबंधन के प्रयासों में शामिल हो जाएंगे, तो वन अधिकारी जो समाधान चाहते हैं वह अधिक टिकाऊ और प्रभावी हो जाएगा।

9. भारत दुनिया की सर्वाधिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और हमने स्वयं के लिए तीव्र गति से आर्थिक प्रगति का लक्ष्य बनाया है। फिर भी, इस बारे में,कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। अंतत: हम सतत विकास ही चाहते हैं। आर्थिक विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिए नेतृत्‍व क्षमता, दूर-दृष्टि, ज्ञान और प्रवीणता की आवश्यकता होती है। मुझे यकीन है कि वह उचित संतुलन प्राप्त करने के लिए आप सभी के पास आवश्यक प्रेरणा, कौशल और जीवन-मूल्य विद्यमान हैं।

10. आप सभी एक महत्वपूर्ण पेशे से जुड़ने वाले युवा अधिकारी हैं। आपके कार्य और आपकी कार्यशैली से, आने वाली अनेक पीढि़यों पर अमिट छाप पड़ेगी और हमारी सभ्‍यता के विकास को प्रभावित करेगी। जन-विश्वास के घ्‍वज-वाहक के रूप में अपने कर्तव्यों का पूरी लगन, ईमानदारी और निष्ठा के साथ निर्वहन करें। आप लोगों को प्राय: आम लोगों, आदिवासियों और समुदायों के बीच कार्य करने का अवसर मिलेगा। उनके प्रति और उनकी समस्याओं के प्रति आप हमेशा संवेदनशील और करुणामय रहें। अच्‍छे लोक सेवक की यही निशानी है। आपके दीर्घ सेवा काल में आपके द्वारा प्रदर्शित आचरण से ही आपकी सफलता का आकलन किया जाएगा।

11. मैं एक बार पुनः आप सभी के लंबे और सफल कैरियर के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिन्द!