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छठे अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्‍द का संबोधन

नई दिल्ली : 23.08.2018

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1. मुझे अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन 2018 के उद्घाटन समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। यह सम्‍मेलन, बौद्ध चिंतन और अध्‍ययन, बौद्ध विरासत और स्मारकों से तथा पर्यटन उद्योग, जो बौद्ध यात्रा और तीर्थयात्रा परिपथ को सुविधाजनक बनाने के लिए काफी काम करता है, से जुड़े प्रख्यात लोगों का सम्‍मेलन है। मैं, विशेष रूप से, लगभग 30 देशों के उन प्रतिनिधियों का स्वागत करता हूं जो इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए हैं और जो अगले तीन दिनों में दौरान इस समारोह में तथा महाराष्ट्र, बिहार और उत्तरप्रदेश में आयोजित कार्यक्रमों में भी भाग लेंगे।

2. इस सम्मेलन में एक साझीदार देश के तौर पर जापान की प्रतिभागिता की भी मैं सराहना करता हूं। भारत और जापान के बीच बहुत कुछ एक समान है। परंतु कुछ ही ऐसे संपर्क सूत्र हमारे बीच हैं जो हमें अपनी साझी बौद्ध धरोहर की तरह प्रिय हैं। हजारों वर्षों के मानव अस्तित्‍व के दौरान भारत इतिहास और संस्कृति, आस्था और दर्शन का भंडार रहा है। बौद्ध धर्म भारत की महानतम आध्यात्मिक परंपराओं में शामिल रहा है। भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से जुड़े अनेक महान स्थल भारत में विद्यमान हैं।इनमें कपिलवस्तु (पिपरहवा), जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया, बोध गया जहां उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, सारनाथ जहां उन्होंने अपना प्रथम उपदेश दिया और कुशीनगर जहां उन्‍हें महापरिनिर्वाण प्राप्‍त हुआ, शामिल हैं।

3. भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद भी ऐसे मठ, तीर्थ-स्थल, विश्वविद्यालय तथा शिक्षा व साधना के स्थान, जिन्‍होंने उनके कार्य को आगे बढ़ाया, भारत में स्थापित हुए। आज भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में बौद्ध विरासत स्‍थल मौजूद हैं। सामूहिक रूप से ये स्‍थल तीर्थ यात्रियों, धार्मिक पर्यटकों और आकर्षित यात्रियों में ‘बौद्ध परिपथ’ के नाम से लोकप्रिय हैं।

4. एशिया और विश्व के अन्य भागों में रह रहे 50 करोड़ के विशाल बौद्ध समुदाय के लिए भारत का ‘बौद्ध परिपथ’ एक महत्वपूर्ण और श्रद्धेय गंतव्‍य स्थल हैं। देशाटन और तीर्थ यात्रा के अनुभव को सुगम बनाने के लिए ही इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है तथा बौद्ध परिपथ के प्रति समर्पित वेबसाइट और फिल्म का भी औपचारिक शुभारंभ किया गया है।

5. सांस्कृतिक और धार्मिक-यात्रा एवं पर्यटन की परम्‍परा भारत के लिए नई नहीं है। ये यात्राएं हजारों वर्ष पूर्व से चली आ रही हैं और अन्य देशों एवं सभ्यताओं के बौद्ध तीर्थ यात्रियों, भिक्षुओं और विद्वानों की यात्राएं हमारे इतिहास की एक गौरवशाली विशेषता रही है। ये यात्राएं एक-दूसरे को समृद्ध करने वाली रही हैं और यह कार्य इन्‍होंने विविध तरीकों से किया है। इनसे धर्म की भारत से एशिया तक की यात्रा तथा उस दौरान सृजित अंतर महाद्वीपीय जुड़ाव से केवल अध्यात्म ही नहीं बल्कि बहुत कुछ वहां तक पहुंचा। उनके साथ ज्ञान और बोध की समृद्ध परम्‍परा वहां पहुंची। इनसे कला और शिल्प वहां पहुंचे। उन्होंने ध्यान की तकनीकें और मार्शल आर्ट वहां पहुंचा। अंतत: उन धर्मावलम्‍बी पुरुषों और महिलाओं यानि कि बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने जो पथ निर्मित किए, वे प्राचीन व्यापार मार्ग बन गए। इस प्रकार, बौद्ध धर्म वैश्वीकरण का तथा हमारे महाद्वीप में आपसी-जुड़ाव का आरंभिक आधार बन गया।

6. हमारे लिए बेहतर होगा कि यही सिद्धांत और जीवन-मूल्य निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते रहें। मैं ज़ोर देकर कहना चाहूंगा कि ऐसी ही सोच से भारतीय पर्यटन उद्योग का दृष्टिकोण सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन के प्रति झलकता है। और इससे बौद्ध-मत पर आधारित पर्यटन को, भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले के प्रोत्साहन को दिशा मिलती है।

7. अनुरोध है कि इस संबंध में किए गए कुछ उपायों पर मनन अवश्‍य करें। इस सरकार की एक पहल है-ई-वीजा योजना की शुरुआत और विस्तार के बारे में। इस योजना से, अन्य बातों के अलावा भारत की बौद्ध विरासत को जानने-समझने की जानकारी के लिए आने वाले पर्यटकों को सुविधा हुई है। सरकार बौद्ध विरासत स्थलों को और अधिक स्वागतपूर्ण गंतव्य के रूप में विकसित करने का भी गंभीर प्रयास कर रही है।मुझे बताया गया है कि- पर्यटन मंत्रालय ने अपनी ‘स्वदेश दर्शन योजना’ के अंतर्गत विकास के लिए अलग-अलग परिपथों में बौद्ध परिपथ को भी चिह्नित किया है। आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए 350 करोड़ रुपए से अधिक की समग्र परिव्‍यय वाली पांच योजनाओं को मंजूरी दी गई है।

8. यह बताने की आवश्‍यकता नहीं कि सरकार अपने बलबूते पर सब कुछ नहीं कर सकती। पर्यटन में अनेक पक्षों की सहभागि‍ता होती है। इसमें निजी क्षेत्र और सिविल सोसायटी की भूमिकाएं महत्वपूर्ण होती हैं। और आगंतुकों को एक सुरक्षित और सुविधाजनक वातावरण उपलब्‍ध कराने में राज्य और नगर पालिका प्रशासन भी अहम भूमिका निभाते हैं। पर्यटन में कारोबार की अपार संभावनाएं हैं। विश्‍वभर में, यह उद्योग, विशेषकर स्थानीय परिवारों और स्थानीय समुदायों के लिए बड़े पैमाने पर एक बड़ा रोजगार पैदा करता है। अपने मूल रूप में, बौद्ध धर्म की भांति ही पर्यटन का संबंध भी लोगों से और उनकी क्षमताओं को साकार करने के लिए उनके सशक्‍तीकरण से है।

9. इस संदर्भ में, मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय इस सम्मेलन के भाग के रूप में एक ‘निवेशक सम्मेलन ’का आयोजन कर रहा है। इसका उद्देश्य, चिह्नित बौद्ध विरासत स्थलों में विश्वस्तरीय अवसंरचना विकसित करने के लिए कारोबार और निवेश योजनाओं को अंतिम रूप देने का है। मुझे विश्वास है कि इस निवेशक शिखर सम्मेलन में भारत और अन्य देशों से आए प्रतिनिधि, अपने-अपने प्रस्तावों को ठोस शक्ल देंगे।

10. मैं बौद्ध परिपथ में पर्यटन अवसंरचना के विकास में योगदान करने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सहयोग की भी सराहना करता हूं। अजंता-एलोरा के संरक्षण तथा पर्यटन विकास परियोजना के लिए जापान इंटरनेशनल को ऑपोरेशन एजेंसी तथा भारत सरकार के बीच सहयोग इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इससे हमारे सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक स्थलों में से एक को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाएगा तथा अजंता और एलोरा की गुफाओं की यात्रा करने वाले पर्यटकों का अनुभव भी बेहतर होगा।

11. जापान इंटरनेशनल को ऑपरेशन एजेंसी की सहायता से उत्तर प्रदेश और बिहार के बौद्ध परिपथ के विकास का प्रथम चरण भी पूरा हो चुका है। केन्‍द्रीय पर्यटन मंत्रालय तथा बिहार और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारें अब एक समेकित बौद्ध परिपथ पर्यटन विकास परियोजना पर वर्ल्‍ड बैंक ग्रुप के एक भाग, इंटरनेशनल फाइनेंस को ऑपरेशन के साथ सहयोग कर रही हैं। इससे आगंतुकों के लिए दी जा रही सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ेगी।

12. अंत में, मैं जोर देकर कहना चाहूंगा कि हमें अपनी खूबियों का लाभ तो उठाना ही चाहिए, उन मुद्दों का भी समाधान निकालना चाहिए जो हमें आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। ये मुद्दे, सीमित बाजार अनुसंधान; सीमित भाषांतरण सुविधाएं तथा बौद्ध परिपथ के इतिहास और आख्‍यान के अपर्याप्त प्रदर्शन और प्रस्तुति से संबंधित हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में हवाई सेवाओं में विस्तार हुआ है, परंतु चाहे सड़क हो या रेल मार्ग हो, अंतिम गंतव्य तक पहुंच के मामले में अभी कमियां मौजूद हैं जिन्हें दूर करना होगा। अन्‍य तात्‍कालिक चुनौतियां प्रदूषण और पर्यावरण संबंधी परिवर्तन से जुड़ी हैं।

13. इन मामूली समस्याओं के बावजूद, इस क्षेत्र में संभावनाएं इतनी ज्यादा हैं कि हमें और अधिक ऊर्जा एवं शक्ति के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन के प्रतिनिधि भगवान बुद्ध की प्रज्ञा और समस्या-समाधान तकनीकों से प्रेरणा लेते हुए, अपनी सामूहिक विशेषज्ञता से हमारे विरासत-पर्यटन प्रयासों को और अधिक ज्ञान संपन्न पथ पर अग्रसर करेंगे। इसी के साथ ही, मैं इस सम्मेलन की और इसके सत्रों एवं कार्यक्रमों की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिंद!