'भारत जल सप्ताह—2019' के उदघाटन सत्र पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन
नई दिल्ली : 24.09.2019
1. मुझे छठे भारत जल सप्ताह—2019 का उद्घाटन करते हुए प्रसन्नता हो रही है। इसमें भारत और विश्व के कोने-कोने से आए प्रतिनिधि गणबड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं। मुझे विश्वास है कि आप सब सार्थक विचार-विमर्श में संलग्न होकर भारत में जल—संबंधित मुद्दों के प्रभावी और नूतन समाधान निकाल सकेंगे।
2. मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूं— क्या हम पानी के बिना जीवन की कल्पना कर सकते हैं? हम सभी कहेंगे—नहीं। हमारे वेदों में जल की महत्ता बताई गई है। मैं यजुर्वेद के एक अंश का उल्लेख करता हूं:
3. प्राचीन काल से, विशाल नदियों के तटों पर ही महान सभ्यताएं और नगर फले—फूले। सिंधु घाटी, मिस्र अथवा चीन की सभ्यताएं हों या वाराणसी, मदुरै, पेरिस अथवा मॉस्को जैसे नगर, सभी नदियों के किनारे विकसित हुए। जहां जल था, उसके आसपास मानव—जाति फली-फूली, और विद्यमान रही। वर्तमान काल में, हम सुदूरचंद्रमा पर भी पानी की तलाश करते हैं। दूसरी ओर, हम अपनी ही धरती पर जल—स्रोतों के परिरक्षण में लापरवाही बरतते हैं। बच्चे के जन्म के साथ ही, माता—पिता उसके भविष्य के लिए योजनाएं बनाने लगते हैं। बच्चों की शिक्षा व अन्य भावी जरूरतों के लिए हम बचत भी करने लगते हैं। लेकिन क्या कभी हम यह भी सोचते हैं कि हमारे बच्चे को जीवन-यापन के लिए ताजा और साफ पानी की भी आवश्यकता होगी? जल संरक्षण को प्राथमिकता देना, भावी पीढ़ियों के प्रति हमारा दायित्व है। विश्व भर में इसके लिए प्रयास हो रहे हैं। ‘भारत जल सप्ताह’ भी ऐसा ही एक उल्लेखनीय प्रयास है।
4. इस जल संरक्षण सप्ताह का विषय है—'21वीं शताब्दी की चुनौतियों का सामना करने के लिए जल सहयोग’। यदि हमें जल से जुड़ी चुनौतियों का प्रभावी तरीके से मुक़ाबला करना है तो निश्चय ही, इस मुद्दे से जुड़े विभिन्न पक्षों के बीच सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल से जुड़े मुद्दे इतने जटिल और बहुआयामी हैं कि कोई एक सरकार या देश इन्हें नहीं सुलझा सकता। सब देशों और जल से जुड़े उनके समुदायों को मिल कर एक ऐसे भविष्य के लिए काम करना होगा जहां सभी के लिए जल की सतत उपलब्धता सुनिश्चित हो।
5. अध्ययनों से पता चलता है कि विश्व की जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा पानी की कमी वाले इलाकों में रहता है। जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े पर्यावरणीय चिंताओं की वजह से सुरक्षित और स्वच्छ पेय जल की उपलब्धता की चुनौती और भी गंभीर हो गई है। मुझे प्रसन्नता है कि चुनौतियों के बावजूद, भारत सरकार ने सभी नागरिकों को सुरक्षित और स्वच्छ पेय जल उपलब्ध कराने को अपने प्राथमिक लक्ष्यों में शामिल किया है।
6. बेहतर जल प्रबंधन और स्वच्छता की स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने जल और स्वच्छता से जुड़े सभी विभागों को मिला कर एक नया एकीकृत जल शक्ति मंत्रालय बनाया है। अब यह मंत्रालय पानी से जुड़े सभी मुद्दों का एक ही स्थान पर तीव्रतर और प्रभावी समाधान सुनिश्चित करेगा।
7. जल जीवन मिशन के जरिये 2024 तक भारत के गांवों में हर घर तक पानी की आपूर्ति करने की सरकार की योजना की भी मैं सराहना करता हूं। अभी भारत के गांवों के केवल 18 प्रतिशत घरों में नल के जरिये पानी की आपूर्ति हो पाती है। इसे देखते हुए सरकार की यह योजना साहसिक और महत्वाकांक्षी है। इस मिशन में स्थानीय स्तर पर जल की एकीकृत मांग और आपूर्ति के प्रबंधन पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। इस मिशन के अंतर्गत वर्षा जल संचयन, भू—जल पुनः भरण और घरेलू गंदले जल के प्रबंधन का बुनियादी ढांचा तैयार किया जाएगा। मुझे विश्वास है कि जनता की व्यापक भागीदारी से सरकार द्वारा इस मिशन के लक्ष्य हासिल कर लिए जाएंगे।
8. हमारे किसानों के लिए तथा टिकाऊ कृषि के लिए पानी एक प्रमुख संसाधन है। 2015 में शुरू की गई प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना इस क्षेत्र में की गई एक बड़ी पहल है। देश में सिंचित भूमि का दायरा बढ़ाने के लिए इस राष्ट्र—व्यापी योजना को चलाया जा रहा है। हमारे जल—संरक्षण लक्ष्यों के अनुरूप, इस योजना के अंतर्गत प्रिसीज़न इरीगेशन और अन्य जल—बचत प्रौद्योगिकियां इस्तेमाल की जा रही हैं ताकि ‘हर बूंद से अधिक उपज’ सुनिश्चित की जा सके। हम अक्सर अपने ‘कार्बन फुटप्रिंट’ को कम करने की बात करते हैं। अब हमें अपना ‘वाटर फुटप्रिंट’ कम करने, यानि कम पानी खर्च करने के बारे में भी बात करनी होगी। हमारे किसानों, कॉर्पोरेट प्रमुखों और सरकारी संस्थाओं को विभिन्न फसलों और उद्योगों में ‘वाटर फुटप्रिंट’ को कम करने के उपायों पर सक्रियता से विचार करने की जरूरत है। हमें खेती और उद्योगों में ऐसे तौर-तरीकों को बढ़ावा देना होगा जिनमें पानी कम से कम खर्च हो।
9. भूजल संसाधनों का प्रबंधन और मानचित्रण भी जल—प्रशासन का महत्वपूर्ण आयाम है। बोरिंग मशीनों के व्यापक इस्तेमाल से भूजल का अनियंत्रित और अतिशय दोहन हुआ है। हमें अपने भूजल का महत्व समझना होगा और उसके प्रति जिम्मेदार बनना होगा। साथ ही, हमें अपने भूजल संसाधनों का लेखा—जोखा भी रखना होगा। मुझे बताया गया है कि हमारे राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम के अंतर्गत, अब तक जमीन के नीचे करीब दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का मानचित्रण कर लिया गया है और मार्च 2021 तक 15 लाख वर्ग किलोमीटर नए क्षेत्रों का मानचित्रणकर लिया जाएगा।
10. हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वर्षा का बहुमूल्य जल बर्बाद न हो। हमें अपने वर्तमान जल भंडारों, बांधों तथा अन्य जलाशयों का सदुपयोग करके तथा अपने घरों व आस—पड़ोस में जल—संचय के तरीके अपनाकर बरसात के पानी का भंडारण व संचयन करना होगा। प्रभावी तरीकों से बरसात के पानी के संचय से हमारे अनेक राज्यों में पानी के अभाव और सूखे की स्थितियों में काफी हद तक सुधार लाया जा सकता है।
11. भारत को अनेक नदियों का वरदान प्राप्त है। ये नदियां, हमारे जीवन और संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। हम उन्हें पूजते हैं और उनका बहुत सम्मान करते हैं। फिर भी, आज हमारी नदियां प्रदूषित हैं। अब समय आ गया है कि हम अपनी नदियों को पुनर्जीवित करें।
12. इस संदर्भ में, भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ की शुरूआत करना अत्यंत सराहनीय है। इस मिशन से अनेक परियोजनाओं के जरिए गंगा के निर्मल और अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने के प्रयासों को बल मिला है। मैं कानपुर में पला—बढ़ा हूं और गंगा नदी, जिसे हम माँ का दर्जा देते हैं,से जुड़ी अनेक मधुर स्मृतियां मेरे मानसपटल पर अंकित हैं। गंगा को निर्मल बनाने की परिकल्पना से मैं निजी तौर पर जुड़ाव महसूस करता हूं। मैं पिछले वर्ष एक समारोह में शामिल हुआ था, जहां नागरिकों और संस्थाओं द्वारा गंगा को निर्मल बनाने की शपथ ली गई जिसे देख कर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव हुआ। गंगा और अन्य नदियों को निर्मल बनाने का मिशन केवल सरकार की ही ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती। इस मिशन के लिए हमारे सामूहिक प्रयास और सामूहिक प्रतिबद्धता आवश्यक हैं।
13. एक नागरिक होने के नाते हमें इस उद्देश्य के लिए अपना योगदान अवश्य देना चाहिए। कुछ दिन पहले हमने गणेश चतुर्थी मनाई और अब नवरात्र का उत्सव आने वाला है। इस अवसर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि नदी में विसर्जित की जाने वाली प्रतिमाएं पर्यावरण—अनुकूल सामग्री से बनी हों। इससे नदियां निर्मल बनी रहेंगी और जलीय जीवों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी।
14. कुछ दिन बाद, 2 अक्टूबर को हम लोग महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाएंगे। इसके साथ ही ‘स्वच्छ भारत अभियान’ आधिकारिक रूप से सम्पन्न हो जाएगा। पिछले पांच वर्षों में, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ में समाज के हर वर्ग के लोगों और संगठनों ने भागीदारी की। उन्होंने इसकी ज़िम्मेदारी ली और इसे अपना निजी अभियान बना लिया। मुझे कुछ दिन पूर्व इसी कक्ष में, स्वच्छ महोत्सव—2019 के अंतर्गत कुछ स्वच्छता—सेनानियों को सम्मानित करने का सुखद अवसर मिला। आज हमने देश को पूर्ण स्वच्छता के दायरे में लाने का लक्ष्य लगभग प्राप्त कर लिया है। भारत खुले में शौच की कुप्रथा से पूरी तरह से मुक्त होने ही वाला है। हमें जल शक्ति अभियान के लिए भी उसी प्रकार के समर्पण—भाव और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करना होगा।
15. देश में पानी की सबसे ज्यादा कमी वाले प्रखंडों और जिलों में, जल संरक्षण गतिविधियों पर, केंद्र और राज्य सरकारें मिल कर काम कर रही हैं। पारंपरिक जलाशयों के पुनरुद्धार व नवीकरण सहित वर्षा—जल संचयनऔर जल संरक्षण के लिए विशेष उपायों की योजना बनाई जा रही है।पूरे देश में जल—संरक्षण कार्यों में योगदान कर रही गैर सरकारी संस्थाओं के प्रयासों की भी मैं सराहना करता हूं। हमारे जल प्रबंधन में सुधार के लिए, तकनीकी विशेषज्ञता वाले अनेक उद्यमी नवाचारी प्रौद्योगिकी समाधानों का विकासकरके उन्हें कार्यरूप दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि जल शक्ति मंत्रालय, जल संरक्षण से जुड़े सभी हितधारकों के साथ भागीदारी करेगा और उनके साथ मिल कर काम करेगा ताकि प्रत्येक नागरिक के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयासों को एक जन आंदोलन का रूप दिया जा सके।
16. एक ओर हमें पानी से जुड़े भिन्न-भिन्न मुद्दों के समाधान हेतु उपाय करने हैं, वहीं दूसरी ओर जल—संरक्षण के अपने सदियों पुराने तौर-तरीकों को भी हमें भूलना नहीं है। हमारे पारंपरिक ज्ञानका आधुनिक टेक्नॉलॉजी और तकनीकों के साथ समन्वय करना, एक जल-सुरक्षित-राष्ट्र बनने में हमारे लिए सहायक हो सकता है। आइये, हम सब यह शपथ लेंकि सभी राज्यों, निजी व सरकारी संगठनों तथा देशवासियों की मजबूत भागीदारी से, हम जल से जुड़े अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे।
17. मैं आप सबकी और ‘भारत जल सप्ताह—2019’ की सफलता की कामना करता हूं।