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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का वर्चुअल माध्यम से आयोजित 'राष्ट्रीय सेवा योजना' पुरस्कार वितरण समारोह के अवसर पर संबोधन

नई दिल्ली: 24.09.2021

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युवा शक्ति, सामाजिक परिवर्तन की ध्वज-वाहक होती है और उसका साधन भी। आज भारत की लगभग 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष तक के युवाओं की है, इसलिए भारत को एक युवा राष्ट्र कहा जाता है। देश के युवाओं को, सेवा के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण में प्रवृत्त करने के लिए युवा मामले एवं खेल मंत्रालय द्वारा संचालित एन.एस.एस. अर्थात् 'राष्ट्रीय सेवा योजना' एक दूरदर्शिता पूर्ण योजना है। इसीलिए, उल्लेखनीय राष्ट्रीय सेवा करने वाली इकाइयों तथा स्वयं-सेवकों को पुरस्कृत करने से जुड़े इस कार्यक्रम में शामिल होकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं इस अवसर पर, सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं।

मेरा सदैव यह विश्वास रहा है कि जिस समाज में बेटियों को जीवन के हर क्षेत्र में, उनकी अपनी चाहत, क्षमता और संभावना के अनुसार आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त होते हैं, वही समाज प्रगतिशील होता है। वही देश भी महान होता है जहां ऐसी सोच को, हर प्रकार से प्रोत्साहित किया जाता है। आज, मुझे यह देखकर विशेष प्रसन्नता हुई है कि समारोह में प्रदान किये गए 42 पुरस्कारों में से 14 पुरस्कार हमारी बेटियों ने प्राप्त किए हैं। यह हमारे समाज की खुशहाली और देश की प्रगति के लिए एक शुभ-संकेत है।

हमारी होनहार बेटियां, जीवन के हर क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करते हुए, हमारे बेटों के साथ मिलकर देश का नाम रोशन कर रही हैं। हाल ही में संपन्न हुए ओलंपिक एवं पैरालिंपिक खेलों में हमारे युवाओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन से हर देशवासी गौरवान्वित हुआ है।

देवियो और सज्जनो,

मनुष्य के जीवन का भव्य-भवन, विद्यार्थी जीवन की नींव पर ही निर्मित होता है। वैसे तो मानव की शिक्षा, जीवन-भर चलती रहती है, परंतु व्यक्तित्व-विकास के सूत्र, विद्यार्थी जीवन में ही भली प्रकार से ग्रहण किए जा सकते हैं। मैं, एन.एस.एस.को इसीलिए एक दूरदर्शितापूर्ण योजना मानता हूं कि इसके माध्यम से स्कूल और कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को, समाज और देश की सेवा से जुड़ने का अवसर जीवन के आरंभ में ही प्राप्त हो जाता है। युवा शक्ति का समुचित मार्गदर्शन करने वाली इस महत्वपूर्ण योजना का, सफलतापूर्वक संचालन करने के लिए मैं युवा मामले और खेल मंत्री, श्री अनुराग सिंह ठाकुर और उनकी पूरी टीम को साधुवाद देता हूं।

आप सब जानते ही हैं कि राष्ट्रीय सेवा योजना की स्थापना, वर्ष 1969 में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी के अवसर पर की गयी थी। महात्मा गांधी ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया था। वे चाहते थे कि हमारे युवा, जिम्मेदार नागरिक बनें और स्वयं को पहचानें। उनके अनुसार, स्वयं को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है- स्वयं को औरों की सेवा में डुबो देना। गांधीजी का जीवन मानव सेवा का अनुपम उदाहरण है। उनके आदर्श और उनका सेवा भाव हम सभी के लिए आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।

यह जानकर मुझे संतोष होता है कि राष्ट्रीय सेवा योजना का विस्तार अब तक देश भर के लगभग 30,000 शिक्षण संस्थानों तक हो चुका है और क़रीबन 40 लाख युवा स्वयंसेवक इस योजना से जुड़े हुए हैं। सेवा योजना के इस विस्तार से, विद्यार्थियों में इसकी लोकप्रियता का पता चलता है।

मुझे बताया गया है कि पिछले वर्ष कोविड-19 के आरंभिक प्रकोप के समय, जब तक मास्क का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू नहीं हुआ था, तब एनएसएस द्वारा 2 करोड़ 30 लाख से अधिक मास्क बनाकर देश के कई राज्यों में वितरित किए गए थे। एनएसएस स्वयं सेवकों ने 2 करोड़ 60 लाख से अधिक लोगों तक कोविड हेल्पलाइन के जरिए संपर्क स्थापित करके विभिन्न विषयों पर जानकारी उपलब्ध कराई। कोविड-19 महामारी के दौरान, 25 लाख से अधिक स्वयंसेवकों ने, अपनी जान की परवाह किये बिना जागरूकता और राहत गतिविधियों में जिला प्रशासन का हाथ बंटाया। लोगों की सेवा करते हुए, कुछ स्वयंसेवकों और कार्यक्रम अधिकारियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। मैं, आज उन सबकी स्मृति को नमन करता हूँ।

देश के विभिन्न भागों में आज़ादी के 75वें वर्ष को 'आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाया जा रहा है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर वेबिनार, स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान पर संगोष्ठी के साथ-साथ वृक्षारोपण, रक्तदान और श्रमदान जैसे कार्यक्रमों में एनएसएस स्वयं सेवक अपना योगदान दे रहे हैं। हमारे स्वाधीनता संग्राम के बारे में और इस संग्राम में असाधारण योगदान करने वाले सेनानियों के आदर्शों के बारे में जागरूकता का प्रसार करना भी राष्ट्रसेवा का काम है।

प्रिय विद्यार्थियो,

ऊर्जा से भरे हमारे युवाओं ने पूरी दुनिया को अपनी कर्मठता, लगन और मेधा से प्रभावित किया है। भारत को अपनी इस युवा शक्ति पर बहुत भरोसा है और इनके योगदान के बल पर देश, ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के आदर्श को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ रहा है। हमारी मान्यता है कि जीवन में यदि सच्चा सुख प्राप्त करना है, तो उसके लिए हमें दूसरों को सुखी बनाना सीखना होगा। उनके सुख में अपना सुख देखना होगा। जब सभी लोग सुखी होंगे, तब हम अपने-आप सुखी हो जाएंगे। लोक-मंगल की हमारी यह भावना, महान कवि जय शंकर प्रसाद की इन पंक्तियों से भी स्पष्ट होती है -

औरों को हंसते देखो मनु, हंसो और सुख पाओ।

अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ

अंत में एक बार फिर, मैं सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि सेवा के माध्यम से अपने चरित्र और व्यक्तित्व का विकास करते हुए हमारे युवा, समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए, निरंतर कार्य करते रहेंगे।

मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।

धन्यवाद

जय हिन्द!