भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का डी.ए.वी. कॉलेज के शताब्दी वर्ष कार्यक्रम के अवसर पर अभिभाषण
कानपुर : 25.02.2019
1. कुछ ही दिन पहले, पुलवामा में हुई दर्दनाक आतंकी घटना में, हमारे देश के बहादुर जवानों की शहादत से, पूरा देश गहरी पीड़ा में है। उत्तर प्रदेश और कानपुर भी इस दुख में सहभागी है। इस हमले में कानपुर देहात जिले के श्याम बाबू भी शहीद हुए हैं। मेरी संवेदनाएं इन जवानों के परिजनों के साथ हैं और मैं, पूरे राष्ट्र की ओर से उनकी शहादत को नमन करता हूं।
देवियो और सज्जनो,
2. उन्नीसवीं सदी के दौरान, भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण में स्वामी दयानन्द सरस्वती की अग्रणी भूमिका रही। समाज सुधार का, कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् का, संकल्प लेकर उन्होंने 1874 में ‘आर्य समाज’ की स्थापना की। ‘आर्य समाज’ यानि कि ‘आचरण’ से और ‘विचार’ से श्रेष्ठ जनों का समाज। उनका मानना था कि शिक्षा और सामाजिक सुधार ही किसी समाज को, प्रगति के मार्ग पर ले जाने का सशक्त माध्यम हैं। इसीलिए उन्होंने सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया, और ज्ञानवान समाज के निर्माण के लिए, वेदों के ज्ञान को व्यावहारिक बनाया। वे आंतरिक सच्चरित्र, मानसिक विकास और वैज्ञानिक चिंतन के हिमायती थे।
3. स्वामी दयानन्द सरस्वती के आदर्शों का समाज बनाने के लिए, लगभग 131 वर्ष पहले लाला हंसराज ने, लाहौर में प्रथम ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक’ कॉलेज की नींव रखी। उसके बाद, देश भर में डी.ए.वी. संस्थाओं की स्थापना होने लगी और उसी क्रम में वर्ष 1919 में यह कॉलेज स्थापित किया गया। अब इस कॉलेज की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो गए हैं और इस गौरवशाली अवसर पर आयोजित शताब्दी वर्ष कार्यक्रम ‘अनान्तर’ में शामिल होकर मुझे प्रसन्नता हुई है। मैं कॉलेज की प्रबंध समिति को, वर्तमान और पूर्व शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को तथा अन्य कार्मिकों और अभिभावकों को बधाई देता हूं।
4. डी.ए.वी. की शिक्षा-पद्धति में विरासत और आधुनिकता का, अंग्रेजी और हिन्दी का, भारतीय ज्ञान परम्परा और पाश्चात्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सुन्दर संयोग है। इस पद्धति ने देश भर में अनेक पीढ़ियों को ज्ञान का प्रकाश दिया है। उनके विचारों और संकल्पों को दिशा दी है। इसी शिक्षा- पद्धति ने यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री और भारत-रत्न से अलंकृत स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसा प्रखर व्यक्तित्व देश को दिया। वे इसी कॉलेज में पढ़े थे। उनके परिवार में शिक्षा-प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अटल जी के पिता भी उनके सह-पाठी रहे। कुछ ही दिन पहले, संसद भवन के सेन्ट्रल हॉल में अटल जी की प्रतिमा का अनावरण करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। मैं उनकी पावन स्मृति को नमन करता हूं।
5. इस कॉलेज के ख्याति-प्राप्त पूर्व शिक्षकों एवं पूर्व विद्यार्थियों की सूची बहुत प्रभावशाली है। उनमें से कुछ महानुभावों के नामों से ही पूरी परम्परा की झलक मिल जाती है। डॉ. मुंशीराम शर्मा ‘सोम’ उन्हीं में से एक थे। चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, शालिग्राम शुक्ल और शिव वर्मा जैसे स्वाधीनता सेनानियों को इस कॉलेज के शिक्षकों का भी सहयोग मिलता था। सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय, ब्रह्मदत्त मिश्र और महावीर सिंह जैसे पूर्व विद्यार्थियों का नाम स्वाधीनता सेनानियों में आदर से लिया जाता है। विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. आत्माराम, साहित्य के क्षेत्र में गोपालदास ‘नीरज’ और सैन्य क्षेत्र में आर.सी. वाजपेई ने डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर का नाम रोशन किया।
6. ऐसे गौरवशाली इतिहास वाले इसी कॉलेज से मुझे भी शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने यहां से बी.कॉम. और दयानन्द कॉलेज ऑफ लॉ से एल.एल.बी. की शिक्षा 1965 से 1969 तक पूरी की। मेरे समय में, विधि की पढ़ाई भी इसी परिसर में होती थी। बहुत अच्छा समय था वह, लेकिन बहुत जल्दी बीत गया।
7. उन दिनों होस्टल का वातावरण अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही शान्त और सौम्य होता था। कॉलेज के परिसर के नजदीक ही, क्रिकेट के लिए प्रसिद्ध ग्रीन पार्क स्टेडियम है। परीक्षा के दिनों में हम लोग, ग्रीन पार्क स्टेडियम का उपयोग, क्रिकेट खेलने के लिए नहीं बल्कि एकान्त अध्ययन हेतु करते थे।
देवियो और सज्जनो,
8. किसी भी संस्था के लिए 100 वर्ष पूरे करना, उपलब्धि एवं गौरव का अवसर होता है। लेकिन इसके साथ ही, यह अवसर, पीछे मुड़कर देखने और भविष्य की रूप-रेखा तय करने का भी समय होता है। डी.ए.वी. कॉलेज के संस्थापकों श्री आनन्द स्वरूप, श्री ब्रजेन्द्र स्वरूप और डॉ. वीरेन्द्र स्वरूप की विरासत को संभाल रहे डॉ. नागेन्द्र स्वरूप ने संस्था का योग्य मार्गदर्शन किया है।
9. हमारे पवित्र ग्रन्थों में शतायु होना- 100 वर्ष पूरे करना- पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद फिर से एक नई पारी की, नए जीवन की शुरूआत होती है। मुझे विश्वास है कि कॉलेज का यह नव-जीवन, नए संकल्पों को पूरा करने वाला तथा नई ऊंचाइयों को छूने वाला होगा।
प्रिय विद्यार्थियो,
10. आज का समय टैक्नोलॉजी का समय है और आने वाला समय आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस का होगा। आप लोगों को नए प्रकार की चुनौतियों का सामना करना है। ऐसी स्थिति में, अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए आपको नए दौर के नए साधनों का उपयोग करना होगा। प्रौद्योगिकी ने जो नए औजार दिए हैं, उनका सदुपयोग करते हुए प्रगति करनी है, आगे बढ़ना है।
11. विद्यार्थियों ने हर समय में, हर युग में, देश और समाज के प्रति अपने दायित्वों को समझा और स्वीकारा है। तेजी से बदलते, अनेक प्रकार के दबावों वाले इस समय में भी, आपको अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में सामंजस्य रखना होगा, समाज के साथ सामंजस्य रखना होगा क्योंकि सामंजस्य के बल पर ही हम विकसित राष्ट्र बन सकते हैं।
12. भारतीय मूल्यों और आधुनिक विज्ञान एवं टैक्नोलॉजी के समन्वय से पूरी मानवता का कल्याण संभव है। आप जिस संस्था से जुड़े हैं, उस के शिक्षा-दर्शन के आधार पर इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है क्योंकि इस शिक्षा-पद्धति का मूल है- ‘ज्ञान’। और आज की अर्थव्यवस्था को ‘ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था’ कहा जाता है। भारत के शिक्षकों, विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों ने दुनिया भर में अपनी विशेष पहचान बनाई है। आपके लिए भी, अनन्त संभावनाओं के दरवाजे खुले हैं। आपको एकाग्रचित्त होकर, अपने हित के लिए, अपने परिजनों के हित के लिए और सबसे बढ़कर राष्ट्र-हित के लिए इन संभावनाओं का उपयोग करना है।
13. मैं एक बार फिर से, डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर की प्रबंध समिति को, यहां के शिक्षकों, प्रशासकों, विद्यार्थियों और अभिभावकों को बधाई देता हूं। और स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में यही शुभकामना देता हूं कि-