कर्नाटक विधानसभा और विधानपरिषद के संयुक्त सत्र के 60वीं वर्षगांठ पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का अभिभाषण
बंगलुरू: 25.10.2017
आज संसदीय लोकतंत्र के लिए अविस्मरणीय दिवस है। मैं विधानसभा की हीकर जयंती के अवसर पर भारत गणतंत्र के 14वें राष्ट्रपति के रूप में कर्नाटक विधानसभा के इस भव्य सभा को संबोधित कर रहा हूं। व्यक्तिगत रूप से भी यह एक यादगार दिवस है क्योंकि इसी दिन तीन महीने पूर्व 25 जुलाई, 2017को संसद के दोनों सदनों की उपस्थिति में मैंने भारत के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी।
भारत के राष्ट्रपति के दायित्व को स्वीकार करने के बाद कर्नाटक की यह मेरी पहली यात्रा है। मैं ऐसे मौके पर यहां आया हूं जब हमारे देश और इस राज्य की गणतांत्रिक परंपराओं का उत्सव मनाया जा रहा है। आज हम विधान सौध, कर्नाटक में विधायी सीट की हीरक जयंती मना रहे हैं। भारत के राष्ट्रपति,डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अक्तूबर, 1956में इसका उद्घाटन किया गया था। मैं उनके पद्चिह्नों का अनुसरण करने का प्रयास कर रहा हूं। मुझे बिहार राज्य,डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के गृह राज्य में राज्यपाल के रूप में सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह केवल इस भवन की 60वीं जयंती नहीं है जो हम मना रहे हैं। यह विधानसभा के दोनों सदनों में उन वाद-विवादों और विचार विमर्शों की हीरक जयंती भी है जिन्हें पारित किया गया और उन नीतियों की भी जो कर्नाटक के लोगों की बेहतर जीवन के लिए बनाई गई हैं।
हम विधायिका के तीन डी के प्रति जागरूक हैं, डिबेट, डिसैट और अंततः डिसाइड हैं। और यदि हम चौथे डी डिसेन्सी को जोड़ लें तो पांचवां डी अर्थात डेमोक्रेसी एक वास्तविकता बन जाता है। राजनीतिक विश्वास, जाति, धर्म और लिंग के बावजूद। विधायिका में इच्छा,अभिलाषा और आशा में कर्नाटक के लोगों की उम्मीद निहित है। इससे हमारे लोगों के सपनों को पूरा करने के लिए विधानसभा के दोनों सदनों की सामूहिक बुद्धिमता की आवश्यकता है।
वाद-विवाद और विचार-विमर्श, पूछताछ और सेवा की यह भावना केवल विधान सौध अथवा राजनीतिक जीवन तक ही सीमित नहीं है। भारत के पास पर्याप्त खनिज संपदा है। इसका अस्तित्व इस महान राज्य की मिट्टी में है। कर्नाटक को इतिहास में इसकी आध्यात्मिकता और विज्ञान, किसानों और प्रौद्योगिकियों के लिए जाना जाता है। हमारे देश के बुद्धिवाद और सांस्कृतिक और अंततः लोकतांत्रिक विरासत में इसका योगदान प्रचुर मात्रा में है। यह पुरातन जैन और बौद्ध परंपरा की भूमि है। आदिशंकराचार्य ने इसी राज्य में श्रृंगेरी में मठ की स्थापना की थी। गुलबर्ग सूफी संस्कृति का केंद्र है। बासवाचार्य जैसे आध्यात्मिक अग्रणियों के अंतर्गत सिद्धांतवादी लिंगायत आंदोलन भी कर्नाटक में स्थित है। उन्होंने अपने तरीके से राष्ट्र निर्माण में अपना-अपना योगदान दिया है।
कर्नाटक महत्वपूर्ण सैनिकों की भूमि है। कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य की सबसे महान शासक थे और सभी भारतीयों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। कैंपेगौडा बैंगलुरू के संस्थापक थे। कित्तूर की रानी चेन्नमा और रानी अबक्का उपनिवेशवाद शक्तियों के विरुद्ध पूर्व की लड़ाइयों में शामिल थी।
टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश के साथ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। वह युद्ध में विकास और मैसूर रॉकेट में भी अग्रणी रहे। यही तकनीकी प्रौद्योगिकीवाद में यूरोपीयन लोगों द्वारा अपनाई गई। अभी हाल ही में हमारे दो आर्मी प्रमुख- फील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा और जनरल के.एस. खिवैया कर्नाटक के सपूत थे।
यह शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान की सीट भी है। इंजीनियर-स्टेट्समैन एन विश्वेश्वर राय आधुनिक कर्नाटक और आधुनिक भारत के निर्माता थे। वे प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं के लिए जिम्मेदार थे जिसने आज तक लगातार किसानों की मदद की। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन हमारे क्राउन जेबिल इंस्टीट्यूशन्स के अनेकों में से हैं जो बंगलुरू में स्थित हैं। उद्यमिता की गतिशीलता ने बंगलुरू को भारत की सूचना प्रौद्योगिकी राजधानी बनाया है। यह पूरे विश्व में सिलिकॉन सिटी के नाम से विख्यात है।
मित्रो,
विधायिका के दोनों सदन संयुक्त और सामूहिक रूप से कर्नाटक की जनता की इच्छा और अभिलाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं, यहीं नहीं ये दोनों सदन कन्नाडिगा जनता के विचारों और आशावाद तथा ऊर्जा और गतिशीलता का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। यह भवन कर्र्नाटक में लोकसेवा के इतिहास के लिए एक स्मारक है। राजनीतिक दिग्गजों की गैलेक्सी ने दोनों सदनों की प्रक्रिया में भाग लिया है जो यहां मौजूद है। इन्होंने अनेक यादगार वाद-विवादों में बोला है।
आज का समारोह कर्नाटक के प्रथम तीन मुख्यमंत्रियों - के सी रेड्डी,केनगल हनुमंथैया और कैलिडल मनजप्पा के परिवारों को सम्मानित करेगा। ऐसे और भी अनेक नाम हैं जिन्हें हमें याद रखना चाहिए और सम्मानित करना चाहिए- जैसे एस. निजलिंगप्पा, देवराज अर्स, बीडी जट्टी, जो बाद में भारत के उपराष्ट्रपति बने, रामाकृष्णा हेगड़े, एस आर बुम्माई, वीरेन्द्र पाटिल, एस.एन कृष्णा और निःस्संदेह रूप से हमारे पूर्व प्रधानमंत्री और मेरे मित्र, श्री एच.डी देवगौड़ा।
यह दोनों सदनों के वर्तमान सदस्यों का काम है कि वे प्रतिनिधियों की इस शानदार विरासत को आगे ले जाएं। यह विधान सभा और विधान परिषद का काम है कि वे लोकतंत्र के पावन पर्व के रूप में कार्य करें और राजनीतिक और नीति संबंधी वार्तालाप के स्तर को आगे ले जाने में योगदान दें।
सदन का एक सदस्य उसके मतदाता द्वाना चुना जाता है। परंतु एक बार चुने जाने पर एमएलए अथवा एमएलसी समस्त निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वे नहीं जिन्होंने उसे चुना है। विधायिका उनका प्रतिनिधत्व भी समान रूप से रखती है जिन्होंने उसके लिए मत नहीं किया और वस्तुतः जिन्होंने उसका विरोध भी किया है।
चुनाव में एक स्पर्धी एक राजनीतिक प्रतिनिधि होता है न कि एक शत्रु। चुनाव के बाद प्रत्याशी एक सहकर्मी बन सकता है। जो हमारे साझे समाज या निर्वाचन क्षेत्र की खुशहाली और विकास को सुनिश्चित करे। यह गणतांत्रिक राजनीति की खूबसूरती है जिसकी हमें सराहना करनी चाहिए।
मित्रो,
1956 में इस भवन की शुरुआत राज्यों के पुनर्गठन और कर्नाटक राज्य में सीमाओं के सृजन के साथ संयोग रखती है। एक प्रकार से ये दोनों यादगार घटनाएं संप्रभु इच्छा,संस्कृति और भाषायी गौरव और कनाडिगा जनता की पहचान का प्रतिनिधित्व करते थे। इस प्रकार इस राज्य के लोग हमारे संपूर्ण परिश्रम और इस विधान भवन हुए आरंभ का केंद्र बिन्दु थे।
सभी संबंधित यह कहकर कर्नाटक के सपने केवल कर्नाटक के लिए नहीं हैं; वे पूरे भारत के सपने हैं। कर्नाटक भारतीय अर्थव्यवस्था का एक इंजन है। यह एक मिनी इंडिया है जो इसकी संस्कृति और भाषायी विशेषता को खोये बगैर पूरे देश को युवओं को आकर्षित करता है। वे यहां ज्ञान और रोजगार के लिए आते हैं और अपना श्रम और बुद्धिमता बांटते हैं। इससे सभी को लाभ मिलता है।
एक समय ऐसा था जब कर्नाटक में हम्पी विश्व में सबसे समृद्ध और महान शहरों में से एक था। आज जब हमारा देश वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में महत्व प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है। एक बार फिर से ज्ञान, प्रौद्योगिकी और प्रयोजन की एकता के लिए हमें आगे ले जाने के लिए हम कर्नाटक की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहे हैं और कर्नाटक के प्रतिनिधियों के रूप में दोनों सदनों के सदस्यों की एक विशेष जिम्मेदारी है।
विधायक लोकसेवक और राष्ट्रनिर्माता दोनों ही होता है। वास्तव में जो भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और समर्पण के साथ करता है वह राष्ट्रनिर्मार्ता है। जो इस भवन का रख-रखाव करते हैं वे भी राष्ट्रनिर्माता हैं। जो इस भवन को सुरक्षा प्रदान करते हैं वे भी राष्ट्रनिर्माता है। यह उन साधारण नागरिकों के प्रयास हैं जो बड़ी मेहन से रोजमर्रा के कार्य करते हैं कि देश का निर्माण हो। आप इस विधान सौध में बैठते हैं और कार्य करते हैं,मुझे विश्वास है कि आप इसे कभी नहीं भूलेंगे और इससे प्रेरणा लेते रहेंगे।
आइए हम सब इस इस हीरक जयंती को केवल विगत गौरव के समारोह के रूप में ही न मनाएं बल्कि यह इससे भी महान भविष्य की प्रतिबद्धता हो। कर्नाटक का एक महान भवष्यि और कर्नाटक का एक महान भविष्य!
धन्यवाद
जय हिन्द।