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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन 2018 के उद्घाटन समारोह के अवसर पर सम्बोधन

दिल्ली : 25.10.2018

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1. यहाँ उपस्थित आप सभी लोगों में आर्य समाज के आदर्शों और महर्षि दयानंद सरस्वती के प्रति श्रद्धा और उत्साह का भाव देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस अंतर्राष्ट्रीय आर्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए 32 देशों से प्रतिनिधि पधारे हैं। आप लोगों की ऊर्जा और आर्य समाज की सक्रियता को देखकर मुझेश्री अरविंद घोषका एक कथन याद आता है। उन्होंने स्वामी दयानंद जी के बारे में कहा था कि ‘वे मनुष्यों और संस्थाओं के मूर्तिकार हैं’। उनकी क्षमता को देखते हुए ईश्वर चन्द्र विद्यासागर और केशव चन्द्र सेनसरीखे समाज सुधारकों ने भी यह चाहा कि स्वामी जी को जनता के साथ संवाद करना चाहिए और उनका उद्धार करना चाहिए। आगे चलकर स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से आत्मानन्द सरस्वती, लाला हंसराज, पंडित गुरुदत्त, स्वामी श्रद्धानंद और लाला लाजपत राय जैसे परोपकारी महापुरुषों ने आर्य समाज के प्रकल्पों को आगे बढ़ाया। सचमुच ही स्वामी दयानंद जी के आदर्शों की प्रेरणा से करोड़ों मनुष्यों के चरित्र का निर्माण हुआ है। मैं आप सबके साथ उनके सम्मान में नमन करता हूँ।

2. यहाँ जो मंत्र हमने सुने उनका संदेश हमारी बुद्धि और चेतना को सब प्रकार से शुद्ध करने का है। ये मंत्र धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर, पूरी मानवता को प्रकाशित करने के लिए आवाहन हैं।

3. जैसा कि सभी जानते हैं उन्नीसवीं सदी में एक ऐसा दौर आया था जब पश्चिमी साम्राज्यवाद अपनी बुलंदी पर था, और भारत के लोग अपनी संस्कृति और मान्यताओं को कमजोर समझ रहे थे। अंध-विश्वासों और कुरीतियों ने समाज को जकड़ रखा था। ऐसे समय में स्वामी दयानंद सरस्वती ने पुनर्जागरण और आत्म-गौरव का संचार किया। वे सामाजिक और आध्यात्मिक सुधार के निर्भीक योद्धा थे।उन्होंने शिक्षा, समाज सुधार विशेषकर अस्पृश्यता-निवारण और महिला सशक्तीकरण के ऐसे प्रभावी कदम उठाए जो आज तक भारतीय समाज के लिए और पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक हैं। उन्होंने हमारी आस्थाओं को शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ आचार-विचार से जुड़ी पद्धतियों को तर्क की कसौटी पर परखने का उपदेश दिया, और समाज को कुरीतियों और आडंबरों से मुक्त कराया। आस्था और आधुनिकता का यह समन्वय स्वामी जी की अनमोल देन है।

4. स्वामी दयानंद की सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का पहला संस्करण सन 1875 में प्रकाशित हुआ था। इसी वर्ष मुंबई में उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। यह तथ्य उल्लेखनीय है कि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में स्वामी दयानंद ने नमक कानून का विरोध किया था। वे इस कानून को गरीबों के लिए अहितकर मानते थे। हम सभी जानते हैं इस पुस्तक के प्रकाशित होने के 55 वर्षों के बाद 1930 में डांडी में गांधी जी ने नमक कानून तोड़कर हमारे स्वाधीनता आंदोलन में एक नई ऊर्जा का संचार किया था।

5. स्वामी दयानंद ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर आर्य समाज के आदर्शों का प्रसार किया। उन्हें अनेक अवसरों पर कड़े विरोध का सामना भी करना पड़ा था।अनेक स्थानों पर उनके विरुद्ध बल प्रयोग तक करने के लिए असामाजिक तत्वों को इकट्ठा किया जाता था। कई स्थानों पर कानूनी दांवपेंच भी लगाए गए। एक बार बनारस में रूढ़िवादियों ने मजिस्ट्रेट के पास जाकर उन्हें राजी कर लिया कि शांति भंग होने की आशंका के आधार पर स्वामी दयानंद के भाषणों पर रोक लगा दी जाए। स्वामी दयानंद को भाषण देने से रोकने के सरकारी आदेश की ‘पायनियर’ और ‘थियोसॉफिस्ट’ अखबारों ने कड़ी आलोचना की और वह सरकारी आदेश रद्द किया गया। स्वामी जी के भाषण सफलतापूर्वक आयोजित किए गए और वे बहुत लोकप्रिय हुए।

6. इस प्रकार, अनेक स्थानों पर स्वामी जी को विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी तर्क-शक्ति और समाज के हर व्यक्ति के कल्याण की उनकी दृष्टि का लोगों पर गहरा असर पड़ा और आर्य समाज की लोकप्रियता और शक्ति बढ़ती गई। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि उन्नीसवीं सदी में ही स्वामी जी ने यह समझाया कि स्त्रियों के अधिकार पुरुषों के ही समान होने चाहिए।

7. उनकी कार्य-शैली का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आर्य समाज की स्थापना करने के बाद उन्होंने एक साधारण सदस्य के रूप में ही निरंतर कार्य किया और अध्यक्ष पद स्वीकार करने के आग्रहों को नहीं माना। उनकी प्रामाणिकता, सत्य-निष्ठा और आधुनिक सोच के बल पर आर्य समाज के आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा और उत्तर भारत में तेजी से एक के बाद एक सैकड़ों आर्य समाज केन्द्रों की स्थापना हो गई।

8. स्वामी दयानंद सरस्वती का चिंतन और उनका सक्रिय योगदान भारत की परंपरा के प्रति गौरव की भावना पर आधारित है। उन्होंने भारतीय चिंतन की शक्ति को पहचाना और उसे व्यवहार जगत में प्रसारित किया। उनकी इसी विशेषता को व्यक्त करते हुए गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था– "मैं सादर प्रणाम करता हूँ उस महागुरु दयानंद को, जिसकी दिव्य दृष्टि ने भारत की आत्म-गाथा में, सत्य-गाथा में, सत्य और एकता का बीज देखा।”

9. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आर्य समाज के आदर्शों और क्रियाकलापों को आधुनिक युग में प्रासंगिक बनाए रखने के निरंतर प्रयास चलते रहते हैं। मुझे बताया गया है कि इस सम्मेलन में अंध-विश्वास निवारण, आधुनिकीकरण, भविष्य की चुनौतियों और जरूरतों, नारी सशक्तीकरण, आदिवासियों के कल्याण तथा प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन जैसे विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। मुझे आशा है कि सौर ऊर्जा तथा वैकल्पिक ऊर्जा के अन्य स्रोतों के प्रयोग के लिए आर्य समाज भी प्रयास करेगा और इस तरह पर्यावरण संरक्षण को अपना योगदान देगा।

10. समाज में आधुनिक विचारों को शक्ति प्रदान करना, महिलाओं को समुचित स्थान व शक्ति प्रदान करना, प्रगति का लाभ सभी वर्गों तक पहुंचाना, घरों-गाँवों-शहरों की स्वच्छता सुनिश्चित करना,पर्यावरण और विकास की चुनौतियों का सामना करना ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर सरकार के साथ-साथ समाज को भी सक्रिय भूमिका निभानी है। आर्य समाज जैसे संगठन ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना योगदान दे रहे हैं, यह प्रसन्नता की बात है।

11. यह शरद-कालीन उत्सवों का समय है। इस समय दिल्ली जैसे शहरों के वातावरण में प्रदूषण की वजह से सांस लेने की दिक्कतें बढ़ जाती हैं। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका अधिक असर पड़ता है। सामाजिक संस्थाओं को लोगों में यह जागरूकता फैलानी चाहिए कि सभी त्योहार इस प्रकार मनाएँ जाएँ जिससे पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े तथा शांति और सौहार्द बना रहे। आर्य समाज जैसे संस्थान इन कार्यों में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।

12. आज आर्य समाज की लगभग दस हजार इकाइयां देश-विदेश में मानव कल्याण के कार्यों में संलग्न हैं। नैतिकता पर आधारित आधुनिक शिक्षा तथासमाज के प्रत्येक वर्ग के, विशेषकर महिलाओं और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए आर्य समाज ने प्रभावशाली योगदान दिए हैं। आर्य समाज ने देश में अनेक विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना की है। मुझे भी आर्य समाज द्वारा कानपुर में स्थापित एक संस्थान में उच्च-शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। आर्य समाज से प्रेरित होकर मेरे पूर्वज भी आर्य समाज के आंदोलन में सहभागी रहे हैं।आर्य समाज ने नारी सशक्तीकरण के हित में देश के विभिन्न हिस्सों में कन्या-पाठशालाओं और उच्च-शिक्षण संस्थानों की भी स्थापना की है। इसी प्रकार आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के लिए ‘अखिल भारतीय दयानंद सेवाश्रम संघ’ द्वारा स्कूल तथा कौशल विकास केंद्र चलाए जा रहे हैं जहां बच्चों को निशुल्क आवासीय शिक्षा प्रदान की जाती है। इस सेवाश्रम संघ द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए, उन्हें शिक्षा के माध्यम से, समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा रहा है।

13. सन 2024 में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की दो सौवीं जन्म-जयंती है। सन 2025 में आर्य समाज की स्थापना कीएक सौ पचासवीं वर्षगांठ होगी। आधुनिक परिवेश में स्वामी दयानंद के दिखाए मार्ग पर चलना और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। स्वामी जी समाज को मत-पंथ-संप्रदाय और जाति-पांति से मुक्त करते हुए मानव मात्र को‘आर्य ’अर्थात‘ श्रेष्ठ ’बनाने के लिए आजीवन सक्रिय रहे और सबको प्रेरित करते रहे। इस कार्य को उसकी पूर्णता तक आगे ले जाना हम सभी का कर्तव्य है। स्वामी जी शांति-पाठ का महत्व समझाते थे। सभी जानते हैं, उस शांति-पाठ में यह प्रार्थना की जाती है कि सम्पूर्ण विश्व में, जल में, धरती में, आकाश में, अन्तरिक्ष में, औषधियों में, वनस्पतियों में शांति बनी रहे। शांति-पाठ में निहित यह कामना पर्यावरण संतुलन का आदर्श रूप है। आज ‘क्लाइमेट चेंज’ और ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की चुनौतियों के सम्मुख इसी आदर्श को प्राप्त करने के लिए आर्य समाज जैसी संस्थाओं को निरंतर प्रयास करना है।

14. इस प्रकार, पर्यावरण के प्रति सजग और मानव-कल्याण के प्रति संवेदनशील तथा असमानता और अंध-विश्वास से मुक्त समाज की ओर बढ़ते हुए, आर्य समाज के सभी सदस्य,स्वामी दयानंद सरस्वती के आदर्शों के प्रति अपनी आस्था को साकार रूप प्रदान करेंगे। इस विश्वास के साथ, मैं ‘अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन’ के सभी प्रतिभागियों के तथा पूरे समाज के उज्ज्वल भविष्य की मंगल-कामना करता हूँ।

धन्यवाद

जय हिन्द!