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संविधान दिवस समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संबोधन

नई दिल्ली : 26.11.2017

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1. मुझे 26 नवंबर, 1949 को हमारे संविधान के अंगीकरण की वर्षगांठ परमनाए जा रहे संविधान दिवस के अवसर पर,आज प्रात: यहां उपस्थित हो कर प्रसन्नता हुई है। इस दिन हम संविधान सभा के उन पुरुषों और महिलाओं को याद करते हैं जिन्होंने स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के ऐतिहासिक कार्य को संपन्न किया। उन्होंने एक ऐसा शानदार दस्तावेज तैयार किया जिसमें 90,000 शब्दों को हाथ से लिखा गया;जो अभी भी हमारा प्रकाश स्तंभ बना हुआ है।

2. प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबासाहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने इस कार्य में प्रमुख भूमिका निभाई जिन्हें1990 में भारत रत्न प्रदान किया गया।2015 में, डॉ. अम्बेडकर की 125वीं जयंती के सम्मान में,भारत सरकार ने 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाना आरंभ किया।

3. 1979 से, उच्चतम न्यायालय यह दिन राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाता है।2016 में, इसने किसी एक प्रख्यात न्यायविद् द्वारा प्रत्येक वर्ष इसे संविधान दिवस व्याख्यान के साथ मनाने का निर्णय किया। ऐसा प्रथम व्याख्यान न्यायमूर्ति श्री एम.एन. वेंकटचलैया द्वारा दिया गया। आज, हमें भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री आर.सी. लाहोटी को सुनने का अवसर मिला। मुझे दो पुस्तकों-द कॉन्सटीट्यूशन एट67 और इंडियन ज्यूडिसियरी : एन्युअल रिपोर्ट 2016-17 की दो प्रतियां प्राप्त करने पर खुशी हुई है। मैं इनके प्रकाशन के लिए उच्चतम न्यायालय की सराहना करता हूं।

देवियो और सज्जनो

4. संभवत: हमारे संविधान की सबसे उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसका विचार-दर्शन चिरस्थायी है,परन्तु इसका ढांचा और अनुच्छेद लचीले हैं। हमारे संविधान निर्माता समय के साथ आवश्यकतानुसार अनुच्छेदों के संशोधन और परिवर्तन के लिए भावी पीढ़ी को पर्याप्त शक्ति प्रदान करने के मामले में प्रबुद्ध और दूरदर्शी थे।

5. हमारा संविधान गतिहीन नहीं है बल्कि एक सजीव दस्तावेज है। संविधान सभा को इस बात की जानकारी थी कि संविधान को नए सूत्रों में पिरोना होगा। एक गतिशील विश्व मे,यह जनता और समग्र राष्ट्र की सेवा करने का सर्वोत्तम माध्यम बनेगा। इसी प्रकार, वर्षों के दौरान, संसद द्वारा संविधान में बहुत से संशोधन किए गए हैं।

6. संविधान सभा में बेजोड़ संकल्पना वाले पुरुष और स्त्री शामिल थे। वे एक ऐसा संविधान बनाना चाहते थे जो एक कठोर दस्तावेज की बजाय एक महान और व्यापक दर्शन द्वारा निर्मित हो। संविधान सभा के सदस्यों ने सुनिश्चित किया कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की उपयुक्त भूमिकाओं सहित लोकतांत्रिक प्रणाली में नियंत्रण और संतुलन को स्थान मिले। इससे वे स्वतंत्र परन्तु जवाबदेही के साथ कार्य कर सकेंगे।

7. हमारे देश के नागरिकों, जिनमें अन्तत: संप्रभुता निहित है, के बारे में संविधान सभा का दृढ़ विश्वास था कि उनका मौलिक और संवैधानिक अधिकारों पर दावा है। तथापि उनके मौलिक कर्त्तव्य ही नहीं, बल्किराष्ट्र और समाज के प्रति दायित्व भी है।

8. संवैधानिक परियोजना का मूल केन्द्र एक-दूसरे के बीच, संस्थानों के बीच, नागरिकों की अच्छाई तथा भावी पीढ़ियों की प्रज्ञा में विश्वास था।

9. विश्वास की यह भावना, संवैधानिक शासन में निहित है। जब सरकार द्वारा नागरिकों पर अपने दस्तावेज स्वयं सत्यापित करने का विश्वास करती है तो यह संविधान की भावना के अनुरूप होता है। जब केंद्र सरकार राज्य सरकारों को वित्तीय शक्ति प्रदान करके और सहकारी संघवाद के मिशन को आगे बढ़ाकर उन पर विश्वास करती है तब भी हम संविधान की भावना के साथ कार्य कर रहे होते हैं।

10. हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुभव किया था कि संविधान, चाहे कितना बढ़िया लिखा गया हो और कितना बड़ा हो, अमल में लाए और मूल्यों का अनुकरण किए बिना उसका कोई अर्थ नहीं है। इसलिए हमने भावी पीढ़ियों पर विश्वास जताया है।

11. जैसा कि डॉ. अम्बेडकर ने 25 नवम्बर, 1949 को सभा में अपने समापन भाषण में कहा था, ‘‘तथापि कोई संविधान अच्छा हो सकता है, परन्तु निश्चित रूप से इसके बुरे होने की संभावना होती है क्योंकि जिन्हें इस पर कार्य करने के लिए नियुक्त किया जाता है, वे बुरे हो सकते हैं। तथापि कोई संविधान बुरा क्यों न हो, यह अच्छा हो सकता है, क्योंकि जिन्हें इस पर कार्य करने के लिए नियुक्त किया जाता है,वे अच्छे हो सकते हैं। संविधान का कामकाज पूर्णत: संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता।’’

12. संविधान लोगों को उतना ही सशक्त बनाता है जितना लोग संविधान को सशक्त बनाते हैं। जब व्यक्ति और संस्थाएं पूछती हैं कि संविधान ने उनके लिए क्या किया है और इसने उनकी क्षमता को कितना बढ़ाया है, उन्हें यह भी विचार करना चाहिए कि उन्होंने संविधान के अनुपालन के लिए क्या किया है? उन्होंने इसके मूल्य तंत्र के समर्थन के लिए क्या किया है?संविधान का अर्थ ‘हम लोग’है और ‘हम लोग संविधान’हैं।

13. हमारे संविधान ने राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र का श्रेष्ठ ढांचा निर्मित किया है। यह श्रेष्ठ ढांचा स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के तीन सिद्धांतों या स्तंभों पर टिका हुआ है। डॉ. अम्बेडकर ने सतर्क किया कि इन सिंद्धातों को पृथक और असंबद्ध के तौर पर व्यवहृत न किया जाए। उन्होंने कहा था‘‘समानता रहित स्वतंत्रता से कुछ लोगों का बहुत से लोगों पर प्रभुत्व हो जाएगा। स्वतंत्रता रहित समानता से व्यक्तिगत प्रभाव समाप्त हो जाएगा। बंधुत्व रहित स्वततंत्रता और समानता स्वाभाविक पथ नहीं बन पाएगा।’’

14. राष्ट्र की तीन शाखाओं-न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के संबंधों को खोजते हुए इनके जटिल और नाजुक संतुलन का ध्यान रखना जरूरी है। सभी एक समान हैं। इन्हें अपनी स्वतंत्रता के प्रति जागरूक होना चाहिए तथा स्वायतत्ता की रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। तथापि इन्हें किसी भी दो शाखाओं के कार्यक्षेत्र में अनजाने में हस्तक्षेप करके शक्तियों के पृथक होने की व्यवस्था को भी नहीं बिगाड़ना चाहिए।

15. तीनों शाखाओं के बीच संवाद में संयम और विवेक रखना चाहिए। इससे राष्ट्र की तीनों एक समान शाखाओं, जिनका संविधान मे एक निश्चित दायित्व है, के बीच समन्वय को बढ़ावा मिलेगा। इससे जनसाधारण को यह भरोसा प्राप्त होगा कि संविधान सुरक्षित है और अनुभवी हाथों में है। और यह कि तीनों शाखाएं संविधान सभा की भावना के अनुरूप अपने दायित्व निभा रही हैं।

देवियो और सज्जनो

16. हमारी प्रमुख निष्ठा हमारे संविधान के मूल्यों तथा हमारे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के फायदों को समाज के निचले पायदान तक ले जाने की होनी चाहिए। इसके लिए, हमें अधीनस्थ संस्थानों के स्तर को उठाने का निरंतर प्रयास करना चाहिए और उन्हें सभी क्षेत्रों की उच्च संस्थाओं के बराबर लाना चाहिए।

17. निस्संदेह केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों पर ही नहीं बल्किइस बात पर भी बल किया जाना चाहिए कि गांव और खण्ड स्तरीय संस्थाएं हमारी संवैधानिक परियोजनाओं को किस प्रकार आगे ले जा रही हैं। संसद की विधायी पवित्रता महत्वपूर्ण है परन्तु उतनी ही प्रत्येक ग्राम पंचायत की भी है। इस पर हम में प्रत्येक को ध्यान देना चाहिए।

18. संभवत: उच्च न्यायापालिका के समक्ष बड़ी चुनौती है। लोगों तक न्याय को पहुंचाना इसका कर्त्तव्य है। जैसा कि मैंने पहले उदाहरण दिया है, उच्च न्यायालयों को स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं में निर्णयों की सत्यापित अनूदित प्रतियां शीघ्र प्रदान करने का कार्य करने की आवश्यकता है। यहां तक न्यायालयों की सुनवाई भी ऐसी भाषा में होनी चाहिए जो साधारण वादी के लिए सुबोध हो। मामले के निपटान की प्रक्रिया को तेज किया जाना चाहिए।

19. निचली न्यायपालिका को परामर्श देना और प्रोत्साहित करना उच्च न्यायपालिका की जिम्मेदारी है। इसके लिए राज्य सरकारों का सहयोग अत्यंत आवश्यक है। राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों को उनकी बकाया परिलब्धियां और सुविधाओं से वंचित न किया जाए। उच्च न्यायालयों की यह जिम्मेदारी है कि वे अधीनस्थ न्यायालयों से मामलों को और अधिक कुशलता तथा तेजी से निपटाने का आग्रह करें। मैं मानता हूं कि उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश इस चिंता से अवगत हैं।

20. मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि कुछ उच्च न्यायालय इन दिशाओं में कदम उठा रहे हैं।30 जून, 2017 तक, झारखण्ड उच्च न्यायालय के अधीन सत्र और जिला न्यायालयों में पांच या उसे अधिक वर्ष तक के लगभग 76,000 पुराने मामले लंबित हैं। उच्च न्यायालय ने इनमें से लगभग आधे मामले निपटाने के लिए31 मार्च, 2018 का लक्ष्य निर्धारित किया है।

21. इस संबंध में, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ उच्च न्यायालयोंके लिए 10 वर्ष से अधिक समय तक के लंबित मामलों के निपटान के लिए 30 अप्रैल, 2018 की समयसीमा तय की है। इसके अतिरिक्त, 5 से10 वर्ष के बीच लंबित मामलों के निपटान की सीमा केलिए 30 सितंबर, 2018 है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने निर्णयों और आदेशों के हिन्दी पाठ की उपलब्धता की व्यवस्था करनी आरंभ कर दी है।

22. मैं इन पहलों की सराहना करता हूं। मुझे विश्वास है कि अन्य उच्च न्यायालय भी जन सेवा की ऐसी ही भावना के साथ आगे बढ़ेंगे।

देवियो और सज्जनो,

23. संविधान केवल अमूर्त आदर्श नहीं है। इसे हमारे देश की प्रत्येक गली, प्रत्येक गांव और प्रत्येक मोहल्ले के जनसामान्य के जीवन को सार्थक बनाना होगा। इसे किसी भी प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के साथ जुड़ना है तथा उसे और अधिक सुविधाजनक बनाना है।

24. जैसा कि महात्मा गांधी ने हमें बताया कि जो भी हम निर्णय लेते हैं, जो भी उपाय हम सोचते हैं, हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि हम जो भी कार्य करने जा रहे हैं,उसका सबसे गरीब और सबसे कमजोर व्यक्ति के लिए क्या उपयोग और फायदा होगा। किसी भी तरह से इस व्यक्ति को अपने भविष्य को बनाने का अधिकार दिया जाना चाहिए।

25. मेरे विचार से, जिस संविधान के लिए आज हम यह समारोह मना रहे हैं, उसके प्रति यही सबसे महान श्रद्धांजलि होगी।


धन्यवाद ।

जय हिन्द ।