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संविधान दिवस समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द द्वारा सम्बोधन

नई दिल्ली : 26.11.2018

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1. मैं आज संविधान दिवस, जो हमारे राष्ट्रीय कैलेंडर पर दर्ज एक ऐतिहासिक दिवस है, के समारोह के उद्घाटन पर यहां आकर प्रसन्न हूंlमैं इस महत्‍वपूर्ण अवसर पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई देता हूंlमैं ऐसे अवसर पर जो न केवल भारत के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि विश्वव्यापी मूल्यों का उत्सव है और आपसी समझ तथाआदान-प्रदान का अवसर प्रदान करती है, बिम्सटेक देशों से आए न्यायपालिका के सदस्यों का भी स्वागत करता हूं।

2. 1949 में 26 नवंबर के दिन संविधान सभा द्वारा भारत का संविधान अंगीकृत किया गया थाl 1979 में इस महत्वपूर्ण घटना की तीसवीं साल गिरह पर, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे ‘राष्ट्रीय विधि दिवस’ के रूप में मनाना आरंभ कियाl 2015 में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती और विधि दिवस के एक साथ आने पर, केंद्र सरकार ने इसे ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लियाlयह डॉ अंबेडकर के प्रति सच्‍ची श्रद्धांजलि थी, जिन्‍होंने संविधान सभा की प्रारूप समिति की अध्यक्षता की थी और जिन्हें ‘संविधान के मुख्‍य रचनाकार’ के रूप में याद किया जाता हैl

3. मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री रंजन गोगोई का धन्‍यवाद करता हूं कि उन्‍होंने मुझे यहाँ आमंत्रित किया। मैंने यह आमंत्रण फ़ौरन स्वीकार किया क्योंकि मेरे लिए संविधान दिवस का विशेष महत्व है और मुझे यकीन है कि सभी के लिए यह दिवस महत्वपूर्ण हैl

4. हमारे संवैधानिक इतिहास में 26 नवंबर एक पावन दिवस हैlदुर्भाग्यवश यह तारीख एक ऐसी घटना से भी जुड़ी हुई है जबहमारे संविधान द्वारा प्रदत्त हमारी लोकतांत्रिक मान्यताओं और स्वतंत्रता पर आघात हुआ थाlमेरा आशय, आज से ठीक10साल पहले,मुंबई में हुई आतंकवादी घटना से है। वह हृदय विदारक दृश्य आज भी भारत की सामूहिक स्मृति में ताजा हैl एक देश और यहां की जनता के रूप में हमारे लिए उस घटना से प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों की न्याय दिलाना हमारा कर्तव्‍य है। संविधान और इसमें निहित सिद्धांत, हमें ऐसे संकल्प के लिए प्रतिबद्ध करते हैंl

देवियो और सज्जनो

5. संविधान स्वतंत्र भारत का आधुनिक धर्मग्रंथ हैlलैटिन भाषा में कहूं तो यह हमारा‘सुप्रीमा लेक्स’ है।यह ग्रन्‍थ अनुच्छेदों और उपखण्डों के संग्रह से कहीं अधिक हैlहम भारतीयों के लिए एक प्रेरणादायक और जीवंत दस्तावेज है,जैसे समाज के रूप में आज हमारा अस्तित्‍व हैं, और जैसा बेहतर समाज हम बनना चाहते हैं, ये ऐसी महत्वाकांक्षाएं हैं जो न केवल भारत के लिए बल्कियहां उपस्थित बिम्सटेक के सदस्य देशों सहित, कई उभरते राष्ट्रों पर भी लागू होती हैं।

6. संविधान सभा में डॉक्टर अंबेडकर और उनके साथी निश्चित रूप से बड़े हृदय वाले और उदार दृष्टिकोण के थेlउन्होंने संविधान के संशोधन में लचीलेपन की अनुमति दी और विभिन्न विचारधाराओं के प्रति सामंजस्यवादी दृष्टिकोण अपनाया।इन सबसे ऊपर, उन्होंने स्वतंत्रता और आजादी, न्याय और भाई चारे, निष्पक्षता और समानता के सीमांतों के विस्तार के लिए भावीपीढ़ियों की समझदारी पर विश्वास जताया।उन्होंने भावी पीढ़ियों पर न केवल संविधान के पाठ के संशोधन के बारे में अपितु परिवर्तनशील समय के लिए इसे रचनात्‍मक रूप से पुनः परिकल्पित और पुनः परिभाषित किए जाने के संबंध में भी भरोसा जताया।

7. यदि हमइसी भावना को जारी रख सके तो संविधान अनन्‍त काल तक भारत का हितसाधन कर सकेगा।

देवियो और सज्जनो

8. संविधान ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के बंटवारे को औपचारिक स्‍वरूप प्रदान किया था।संविधान की मर्यादा को बरकरार रखने और इसकी आशाओं और आकांक्षाओं को साकार करने की दृष्टि सेइसने शासन के सभी तीनों स्तंभों को उनकी उचित भूमिकाएं तथा महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी।इसने उन सभी से भाईचारा युक्त और समांतर रिश्ते बनाए रखने की अपील भी की थी। संविधान की रक्षा करने और इसे सशक्त बनाने का कार्य भारत के लोगों के साथ मिलकर, इन तीनों संस्थाओं के बीच संयुक्त रूप से साझा किया जाना होता है।

9. संविधान के वास्तविक संरक्षक अंतत: भारत के लोग हैं। उन्हीं में ही सार्वभौमिकता है और उन्हीं के नाम पर ही संविधान अंगीकृत किया गया थाl संविधान से नागरिकों का सशक्तिकरण होता है किंतु नागरिक भी अपनी कथनी और करनी से इसे अधिक सार्थक बनाने के लिए इसका अनुपालन कर, इसका समर्थन कर, इसका संरक्षण कर और इसे संजो कर संविधान को सशक्त बनाते हैंlसंविधान किसी एक की जागीर नहीं है-बल्कि यह सभी की संपत्ति है।

10. संविधान में संभवत: सबसे अधिक प्रेरणादायक शब्द है’"न्याय”। "न्याय” एक अकेला शब्द हैl "न्याय” एक मिश्रित और स्वतंत्र अभिव्‍यक्ति हैlऔर"न्याय” हमारे संविधान और राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का साधन और साध्‍य दोनों हैl

11. हमारे विधायी तंत्र के संकीर्ण अर्थ में, न्याय को तब सार्थक समझा जाता है जब न्यायालय में सही और गलत की पहचान हो जाए, इतना ही नहीं, बल्कि सभी नागरिक चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि से हो, उन्हें न्याय सुगम, वहनीय और शीघ्र उपलब्ध हो जाएlकिंतु न्याय को-समाज के विकास और इसकी बदलती धारणाओं, जीवन शैलियों और प्रौद्योगिकियों के एक वृहतर परिपेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिएl

12. संविधान की प्रस्तावना में सभी भारतीय नागरिकों को "सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक- न्याय”की गारंटी दी गई है। प्रस्तावना, संविधान को जानने और समझने का अद्भुत साधन हैlयदि मैं युवा पीढ़ी की परिचित शब्‍दावली में कहूं तो मैं कहूँगा कि प्रस्तावना संविधान का ‘सोर्स कोड’ हैl

13. प्रस्तावना में, न्याय को एकल-आयामी नहीं माना गया हैlयह माना गया है कि इसका प्रभाव राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक-सभी क्षेत्रों पर पड़ता है। राजनीतिक प्रक्रिया में सभी वयस्‍कों की समान प्रतिभागिता और कानून के उचित निर्माण और कार्यान्वयन ही राजनीतिक न्याय है।आर्थिक न्याय का अर्थ है- गरीबी का समूल नाश, आजीविका कमाने के समान अवसर और उचित मेहनताना प्राप्त होना। इस प्रकार से अर्थव्यवस्था, उद्यमशीलता और रोजगार के अवसरों का विस्तार आर्थिक न्याय के उदाहरण हैं।

देवियो और सज्जनो

14. हमारे देश के विविध इतिहास और हमारे अतीत में कभी-कभी दिखाई देने वाली असंतुलन तथा ऊंच नीच की व्‍यवस्‍था सामाजिक न्याय सदा हमारे राष्ट्र निर्माण की कसौटी रहा हैlसर्वाधिक आम तौर पर इसका तात्‍पर्य है कि सामाजिक असंतुलन को समाप्त किया जाए तथा भिन्‍न-भिन्‍न समुदायों और समूहों के परस्‍प्‍र विरोधी दावों और जरूरतों के बीच सामंजस्‍य पैदा किया जाए। सामाजिक न्‍याय का मतलब है- सभी को समान अवसर प्रदान करना।

15. न्याय की यह अवधारणा 1949 में मान्य थी और मोटे तौर पर आज भी प्रासंगिक है। फिर भी, 21वीं सदी में कुछ नई चुनौतियां सामने आई हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय की अवधारणा के मूल में समुत्‍थानशीलता की शक्ति है किंतु इस पर नए तरीकों से विचार किए जाने की आवश्यकता है। उत्पन्न होने वाली नई परिस्थितियों, जो हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान निर्माण के समय विद्यमान नहीं थीं, अथवा जिनके बारे में सोचा नहीं गया था, पर इसे नए सिरे से लागू किए जाने की आवश्यकता है।

16. आइए, दिन प्रतिदिन के जीवन से कुछ उदाहरण लेते हैं। निर्वाचन के मामले में राजनीतिक न्याय, केवल स्‍वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन तथा सार्वजनिक मताधिकार तक अथवा ऐसे प्रत्येक नागरिक को जो आयु और अन्य मापदंडों को पूरा करता हो, उम्‍मीदवार के तौर पर प्रस्‍तुत कर सकने के अधिकार तक सीमित नहीं किया जा सकता। सरकार द्वारा चुनाव अभियान के वित्‍तपोषण में पारदर्शिता को बढ़ाने का प्रयास किया जाना भी राजनीतिक न्याय को बढ़ावा देने का उदाहरण हैl संसदीय कार्य में व्यवधान पैदा किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण हैl कुछ लोगों का मानना है कि नागरिकों की न्याय की समझ पर इसे भी एक अतिक्रमण के रूप में देखा जाना चाहिए।

17. इसी प्रकार जब न्यायपालिका मामलों को विलंबित किए जाने और कम संसाधन पक्षकार को असुविधा में डाले जाने, और बार-बार होने वाले स्‍थगनों की समस्‍या का हल ढूंढने का प्रयास करती है तो इससे न्याय की गुणवत्ता बढ़ती हैl एकवर्ष पूर्व, मैंने इस मंच से न्यायालय के फैसलों की स्थानीय भाषाओं में प्रामाणिक अनूदित प्रतियां उपलब्ध कराने का सुझाव दिया थाlइससे ऐसे पक्षकारों को सहायता मिलेगी जो अंग्रेजी भाषा से अच्छी तरह से परिचित नहीं हैl मुझे खुशी है कि मुख्य न्‍यायमूर्ति का पदभार ग्रहण करने के कुछ ही समय पश्चात्, उच्चतम न्यायालय ने उनके नेतृत्व में हिंदी में प्रामाणिक अनूदित प्रतियां जारी करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी हैl कुछ उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषाओं में प्रमाणित अनूदित प्रतियां जारी कर रहे हैंlमेरी उम्‍मीद है कि संविधान दिवस 2019 तक, पूरे देश में सभी उच्च न्यायालय इस प्रक्रिया को कार्यान्वित कर लेंगे। इससे न्‍याय के दायरे का विस्‍तार होगा।

देवियो और सज्जनो

18. भारत में, सामाजिक न्याय का विचार भी स्वच्छ वायु; कम प्रदूषित शहर और कस्‍बों, नदियों और जलाशयों; साफ-सुथरी और स्‍वास्‍थ्‍यपूर्ण जीवन शैली और हरित एवं पर्यावरण अनुकूल उन्नति और विकास जैसे आधुनिक नागरिक-सम्‍बद्ध मानकों तकविस्तारित हुआ है। ये सभी सामाजिक न्याय के ढांचे के भीतर, पर्यावरण और जलवायु संबंधी न्याय के निहितार्थ हैंlयदि कोई बच्चा वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा से पीड़ित होता है, तो मैं इसे सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने में हुई चूक मानूंगा।

19. प्रोद्योगिकी का न्‍याय पर जो प्रभाव दिखाई दे रहा है उससे प्रोद्योगिकी के उत्‍तरोत्‍तर प्रयोग की चाह पैदा हो रही है। ऐसा विशेष रूप से इसलिए हुआ है क्योंकि हम बिग डेटा और ऑटोमेशन, और चौथी औद्योगिक क्रांति-के त्वरित और व्‍यापक प्राद्योगिकीय परिवर्तन के युग में रह रहे हैंl प्रौद्योगिकी न्याय को बढ़ावा देने के साथ–साथ इसके लिए चुनौती भी हैl यह हमें प्रौद्योगिकी न्याय को आर्थिक न्याय के भाग के रूप में देखने के लिए चेता रही हैl हमारे गरीब और पिछड़े हुए देशवासियों की प्रौद्योगिकी तक पहुँच के सन्दर्भ में यह सही भी हैl

20. प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन की गुणवत्ता में बहुत योगदान दिया हैl कृषि प्रौद्योगिकी में हरित क्रांति के साथ आरंभ हुए नवीन आविष्कारों से भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बन गया है तथा भुखमरी समाप्त हुई हैl नए-नए टीकों और जीवन रक्षक दवाओं से बीमारियां समाप्त हुई है तथा जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई हैl टेलीकॉम के क्षेत्र में हुई तरक्की से दूरियां घटी हैं तथा व्यापार में अधिक दक्षता आई है और इंटरनेट ने ज्ञान को लोकतांत्रिक और सुगम बना दिया हैl सूचना अब किसी का विशेषाधिकार न होकर उपयोग की वस्तु बन गई है।

21. नवाचार ने समाज के वंचित वर्गों के लाभ के कार्य भी किए हैं। इसका एक उदाहरण प्रौद्योगिकी-समर्थित आधार संबद्ध प्रत्यक्ष लाभ अंतरण का भारत का अनुभव है। इससे भारत के कल्याणकारी कार्यक्रमों से भ्रष्टाचार, लाभ का सही व्यक्ति तक न पहुंच पाना और कम पहुंचना तथा लाभ से वंचित रह जाने की समस्या समाप्त हुई है।

22. नवाचार और प्रौद्योगिकी से लाभ हुए हैं किंतु इससे पहुंच और निजता जैसे सवाल भी खड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए वृहत्‍तर जनहित के लिए डेटा के उपयोग और डेटा निजता के बीच प्राथमिकता तय करने का असमंजस सामने है। इन प्रतिस्पर्धी अनिवार्यताओं के बीच ही कहीं पर न्‍याय की प्रतिस्पर्धी धारणा भी मौजूद है और ऐसे मुद्दे हमारे सामने शायद 21वीं सदी तक बने रहेंl

देवियो और सज्जनो

23. संविधान को अंगीकृत करने का क्षण, भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में एकमील का पत्थर था। पिछले सात दशकों में जैसे-जैसे लोकतंत्र ने अपनी जड़ें गहरी की हैं, वैसे-वैसे न्याय की मांग भी बढ़ी हैl न्याय के विचार का विस्तार, एक जिम्मेदार राष्ट्र के साथ एक नवीन सामाजिक अनुबंध तैयार करने का प्रयास करने वाली समझदार और अकांक्षाशील जनता के उभार का परिणाम है।

24. जब मैं शासन का नाम लेता हूं, तो इसका अर्थ केवल "सरकार” से नहीं हैl जिम्मेदार बनने की प्राथमिकता हमारी सभी संस्थाओं-सार्वजनिक और निजी क्षेत्र सभी की हैl हम एक ऐसे युग में हैं जहां लोक सेवाओं और सार्वजनिक वस्तुओं का संदाय ज्यादातर निजी क्षेत्रों द्वारा किया जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, शहरी यातायात और टेलीकॉम तथा इंटरनेट तक पहुंच इसके उदाहरण हैं। न्याय के विस्तार से गैर सरकारी कारकों के लिए भी एक वृहत्‍तर भूमिका बनी हैl संविधान की किसीभावी सुरक्षा और सुदृढ़ीकरण के लिए तथा विभिन्न प्रारूपों में न्याय का झंडा ऊंचा बनाए रखने में सार्वजनिक और निजी हितधारकों-दोनों की भागीदारी की आवश्यकता होगी।

देवियो और सज्जनो

25. अपना वक्‍तव्‍य समाप्त करने से पूर्व, मैं यह बता देना चाहता हूं कि हम एक बहुत महत्वपूर्ण वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैंl आज से ठीक 12 माह बाद 26 नवंबर 2019 को संविधान के अंगीकरण की 70वीं सालगिरह मनाई जाएगीl आइए, आने वाले वर्ष को इस सालगिरह के अनुरूप मनाएं- जरूरी नहीं कि इसके लिए कार्यक्रमों और सम्मेलनों का आयोजन किया जाए बल्कि इसके लिए हमें अपने विचारों और अपने कार्यों में संवैधानिक नैतिकता को अधिक महत्व देना होगाl

26. विशेष रूप से हमें संविधान के बारे में तथा इसके द्वारा प्रदत्त अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयासरत होना चाहिएl यह विडंबना है कि हमारे नागरिक, जिनके नाम पर संविधान को अंगीकृत किया गया है, कभी-कभी पर्याप्त रूप से शिक्षित नहीं होते कि हमारे लिए-हम सबके लिए संविधान का क्‍या अर्थ है। आइए, संविधान को अंगीकृत किए जाने के70वें वर्ष को संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु समर्पित करेंl आइए, मीडिया और सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका के साथ इसे एक राष्ट्रीय अभियान बनाएंlमुझे विश्वास है कि आज से एकवर्ष बाद जब हम पुनः मिलेंगे तो इस विषय पर हम काफी कुछ उपलब्धि प्राप्त कर चुके होंगे।

27. इन्‍हीं शब्दों के साथ मैं आज दिनभर के आगामी कार्यक्रमों के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूंl

धन्यवाद

जय हिंद!