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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का दिव्य प्रेम सेवा मिशन के रजत जयंती समापन समारोह में सम्बोधन

हरिद्वार : 27.03.2022

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आज आप सब के बीच यहां आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। सौभाग्य से देवभूमि उत्तराखंड आने का अवसर मुझे अनेक बार प्राप्त होता रहा है।इस पवित्र भूमि की प्रत्येक यात्रा मेरे जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार करती है। यह एक सुखद संयोग है कि राष्ट्रपति पद का कार्य भार ग्रहण करने के उपरान्त, उत्तराखंड की मेरी पहली यात्रा आपके इस संस्थान की ही थी। मानव-कल्याण हेतु, संवेदनशीलता के साथ, निरंतर योगदान देने वाले आपके संस्थान के रजत जयन्ती वर्ष के समारोह में उपस्थित होकर, मुझे विशेष हर्ष का अनुभव हो रहा है।

उत्तराखंड की इस पावन धरती की महिमा अनन्य है। प्राचीन काल से ही लोग इस पवित्रभूमि पर पहुंचकर शांति व ज्ञान प्राप्त करते रहे हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे धाम इस भू-खंड पर ही स्थित हैं। ‘हरि’-द्वार और ‘हर’-द्वार, इन दोनों नामों से प्रसिद्ध यह नगर भगवान विष्णु और महादेव शंकर, दोनों की ही प्राप्ति का द्वार माना जाता है। इस प्रकार यह स्थान सृष्टि के पालन और प्रलय सहित जगत की ईश्वरीय लीला के सम्पूर्ण चक्र से जुड़ा हुआ है। पतित पावनी गंगा इस लीला की साक्षी भी हैं और जीवन-दायिनी भी। मां गंगा के इस पवित्र परिक्षेत्र में आकर, भारत की अतुलनीय आध्यात्मिक परंपरा को मैं नमन करता हूं।

देवियो और सज्जनो,

अध्यात्म का मूल-तत्व है लोक-कल्याण और सेवा। अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए, दिव्य प्रेम सेवा मिशन की स्थापना की गयी जो लोक-कल्याण के मार्ग पर निरंतर अग्रसर है।यह इस माटी का ही प्रभाव था कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक, आशीष जी ने गंगा के तट पर मानवता की सेवा का यह पुनीत कार्य प्रारंभ किया।

हम सब जानते है कि स्वतन्त्रता के पश्चात्, हमारे संविधान द्वारा, अस्पृश्यता का अंत किया गया और उसे दंडनीय बनाया गया। किसी भी रूप में अस्पृश्यता, एक अमानवीय आचरण है। संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा जाति एवं धर्म पर आधारित अस्पृश्यता का अंत तो कर दिया गया परन्तु दुर्भाग्य से सदियों से चली आ रही, कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के प्रतिमानसिक अस्पृश्यता आज भी पूरी तरह समाप्त नहीं हो पायी है।

यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि प्राचीन काल में, प्रायः सभी संस्कृतियों में, कुष्ठरोग को अभिशाप, बुरे कर्मों के दण्ड तथा कलंक के रूप में देखा जाता था।वह अज्ञानता आधुनिक युग में भी विद्यमान है तथा इस अवैज्ञानिकता के अवशेष अभी भी पूरी तरह लुप्त नहीं हुए हैं। इसके प्रति अनेक गलत-फहमियां तथा आशंकाएं समाज में फैली हुई हैं।इन आशंकाओं को दूर करने की दिशा में दिव्य प्रेम सेवा मिशन के सार्थक प्रयासों की मैं सराहना करता हूँ।

कुष्ठ रोग के कुछ शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलू होते हैं। कुष्ठरोग से प्रभावित व्यक्ति को बीमारी के दौरान तथा उस से मुक्त होने के बाद भी, किसी भी अन्यरोग से प्रभावित व्यक्ति की तरह परिवार और समाज के अभिन्न अंग के रूप में उसी तरह स्वीकार करना चाहिए जैसे कि अन्य रोग से प्रभावित व्यक्ति को किया जाता है।ऐसा करने पर ही हम सही मायनों में एक संवेदनशील समाज और राष्ट्र कहलाने के हकदार बन सकते हैं। शायद इसी आत्मीय तथा भय-मुक्त व्यवहार को बलदेने के लिए भारत सरकार ने कुष्ठ जागरूकता अभियान को ‘स्पर्श’ नाम दिया है। कुष्ठ-प्रभावित लोगों कामनो-वैज्ञानिक पुनर्वास उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उन का शारीरिक उपचार।

भारतीय संसद ने "दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम –2016” को पारित किया है जिसके तहत Indian Lepers Act 1898 को निरस्त कर दिया गया और कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के प्रति भेदभाव कानूनी तौर पर समाप्त किया गया है। 2016 के अधिनियम के प्रावधानों द्वाराअन्य श्रेणी के दिव्यांग व्यक्तियों सहित कुष्ठ रोग से मुक्त व्यक्तियों को भी लाभार्थियों की सूची में शामिल किया गया है।

देवियो और सज्जनो,

मानवता की सेवा में समर्पित अपने जीवन-काल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कुष्ठ रोगियों का भी उपचार एवं देख-भाल करते थे। गांधीजी के अनुसार, स्वयं को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है- स्वयं को मानवता की सेवा में विलीन कर देना। सन् 1932 में यरवदा जेल में अपने कारावास के दौरान उन्होंने कुष्ठ रोग से ग्रसित अपने मित्र श्री परचुरे शास्त्री के लिए एक सन्देश भेजा था जिस में लिखा था:

"हमारे शरीर बीमार पड़ते हैं, लेकिन आप शरीर नहीं बल्कि एक आत्मा, एक चेतना हैं, इसलिए अपनी चेतना को जाग्रत करें!"

जेल से रिहा होने के बाद श्री परचुरे शास्त्री की सेवा और उपचार स्वयं गांधीजी ने की थी। गांधी जी कामानना था कि कुष्ठ रोग भी हैजा और प्लेग जैसी ही बीमारी है जिस का इलाज हो सकता है।अतः इसके रोगियों को हीन समझने वाले लोग ही असली रोगी हैं। उनका यह सन्देशआज भी प्रासंगिक है। महात्मा गांधी की पुण्य तिथि को हमारे देश में राष्ट्रीय कुष्ठ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

देवियो और सज्जनो,

कुष्ठ रोगियों की सेवा के उद्देश्य से दिव्य प्रेमसेवा मिशन के संस्थापक आशीष जी ने इस मिशन की नींव रखी। आज से दो दशक पूर्व, एक युवा का प्रयागराज से हरिद्वार आकर, समाज की परम्पराओं के विरुद्ध जाकर इस संस्थान की स्थापना एवं विकास करना आसान नहीं था। परन्तु अपनी संकल्प शक्ति एवं दृढ़ता से अपने इस सेवा प्रकल्प को विस्तृत रूप देकर आशीष जी ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

दिव्य प्रेम सेवा मिशन की अनेक गतिविधियां अनुकरणीय हैं। समिधा सेवार्थ चिकित्सालय द्वारा कुष्ठ रोगियों का उपचार, विद्यालयों में कुष्ठ-प्रभावित लोगों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करना, विद्यार्थियों के लिए छात्रावास की व्यवस्था, विशेष कर हमारी बेटियों को भी छात्रावास की सुविधा देना तथा शोभा स्मृति कौशल विकास केंद्र की स्थापना, ये सभी योगदान बहुत सराहनीय हैं।इस प्रकार, दिव्य प्रेम सेवा मिशन यहां रह रहे बच्चों के समग्र विकास हेतु प्रयासरत है। आपस बने अपने मिशन के सिद्धांत– सेवा, साधना, सम्बोधि -को कार्य-रूप दिया है। ऐसे उत्कृष्ट सेवा कर्म और समर्पण के लिए इस मिशन के संस्थापक और उनके सभी सहयोगियों को मैं बधाई देता हूं।

मैं इस मिशन की गतिविधियों और उसके विकास को तब से देख रहा हूं जब यहां घास-फूस की एक झोपड़ी में कुष्ठ पीड़ितों की चिकित्सा सेवा आरंभ की गई थी। आज यह मिशन बड़े पैमाने पर सेवारत भी है और जन-चेतना का संचार भी कर रहा है। आज मेरे मानस पटल पर वे सभी पुरानी स्मृतियाँ धीरे-धीरे उभर रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

हमने देखा है कि कुष्ठ से प्रभावित रोगियों के बीच में काम करने वालों के प्रति भी अस्पृश्यता का व्यवहार अनेक लोग करते हैं।इस के बावजूद जो लोग कुष्ठ प्रभावित लोगों के बीच निरंतर सेवा कार्य करते हैं उनका मनोबल कितना ऊंचा होता है और उनका हृदय कितना विशाल होता है यह एक सामान्य व्यक्ति की कल्पना से परे है। अभी हाल ही में मुझे ऐसे ही दृढ़ मनोबल और विशाल हृदय वाले, अत्यंत वयोवृद्ध स्वामी शिवानंद जी को पद्मश्री से सम्मानित करने का अवसर मिला। लगभग 125 वर्ष के स्वामी जी पिछले 50 वर्षों से अनेक कुष्ठ प्रभावी गरीब लोगों की जगन्नाथ पुरी में सेवा करते रहे हैं। वे ऐसी सेवा कोई श्वर की सेवा मानतेहैं। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था, "जीव सेवा से बढ़कर और कोई दूसरा धर्म नहीं है।सेवा धर्म का यथार्थ अनुष्ठान करने से संसार का बंधन सुगमता से छिन्न हो जाता है।”स्वामी विवेकानंद कुष्ठ रोग की औषधि तथा कुष्ठ रोगियों की सेवा के विषय में भी सचेत थे।अपनी विदेश यात्राओं के दौरान भी उन्हों ने कुष्ठ रोग के उपचार के विषय में लोगों को जानकारी प्रदान की थी।

देवियो और सज्जनो,

हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस कार्य क्रम में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर वेबिनार, स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान पर संगोष्ठी के साथ-साथ वृक्षारोपण, रक्तदान और श्रमदान जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। मुझे यह जानकार प्रसन्नता हुई है कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा भी वृक्षारोपण और स्वच्छ गंगा मिशन हेतु श्रमदान जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। ऐसे कार्य क्रमों के लिए मेरी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं।

कुछ माह पूर्व मुझे कुछ ऐसे छात्र-छात्राओं से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ जो राष्ट्रीय सेवा योजना के अंतर्गत देश के विभिन्न क्षेत्रों में जन सेवा में लगे हुए हैं।मुझे यह जानकर बहुत संतोष हुआ कि लगभग 40 लाख युवा इस योजना से जुड़े हुए हैं। हमारे देश के युवा, NSS के माध्यम से भी लोगों में कुष्ठ रोग से जुड़ी भ्रांतियों दूर कर सकते हैं और इस रोग के उपचार के बारे में सही जानकारी प्राप्त करा सकते हैं। मैं देश के युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों की सेवा करने के अनुकरणीय उदाहरणों से प्रेरणा प्राप्त करें और अपना सक्रिय योगदान भी प्रदान करें।

मैं आशा करता हूं कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन से जुड़े आप सब, इसी प्रकार, मानव सेवा के कार्यों में पूरी निष्ठा व तत्परता के साथ आगे बढ़ते रहेंगे तथा लोगों को सेवा-कार्य के लिए प्रेरित भी करते रहेंगे।

धन्यवाद,

जयहिन्द!